Flowers of worship in Hindi Love Stories by Sharovan books and stories PDF | पूजा के फूल

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पूजा के फूल

पूजा के फूल / कहानी / शरोवन

   शीशमगढ़ के भयानक और सूनसान जंगलों का एक असुरक्षित इलाका. ऐसा दहशत भरा और दुर्दम कि, कभी-भी कुछ भी वह हो जाए कि, जिसकी मनुष्य कभी कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसीलिये इस इलाके में सरकार की तरफ से सांझ पांच बजे के बाद जन-सामान्य को प्रवेश करने की मनाही थी.दिन का सूरज शाम होते ही शीशम के घने जंगलों के पीछे जाकर छुप चुका था और जंगल के चप्पे-चप्पे में आनेवाली रात की भयवाह अपने पग बढ़ाने लगी थी. फिर जब रात हो गई और जंगल की मनहूसियत से भरा सारा माहौल  अन्धकार के कोने-कोने में शीशम के वृक्षों से भरा जंगल रात के इस भयंकर माहौल में जैसे कहीं छुपकर भायं-भायं किये जा रहा था. हर तरफ शीशम के कहीं भारी-भरकम बूढ़े वृक्ष तो कहीं पर जवान-युवा और कहीं पर छोटे पेड़ झाड़ियों समान इस समस्त वातावरण को तन्हा और सूनसान बनाये हुए थे. वैसे भी इस इलाके में शीशम के ही वृक्षों का जैसे जमावड़ा था; शायद इसी कारण इस स्थान का नाम शीशमगढ़ था. कोई भी नहीं जानता था कि, मजबूत लकड़ियों से भरा ये जंगल कितना पुराना था और किसने इसे बसाया था. लेकिन इन वृक्षों कि महंगी और मजबूत लकड़ियों के कारण अब ये सारा जंगले राज्य सरकार की सम्प्रति बन चुका था और इसकी सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से सारे इंतजामात किये जाते थे. फिर भी इन लकड़ियों की चोरी के किस्से समय-असमय मीडिया के बदन की सुन्दरता बन जाते थे.शीशमगढ़ कि इन्हीं जंगलों का फ़ॉरेस्ट ऑफिसर नवेश राज अपनी सरकारी जीप से, रात के अन्धकार में जंगल की कच्ची और सूखी सड़क पर धूल के गुबारों को बड़ी बे-दर्दी से उड़ाता हुआ अपनी जीप को रौंदता हुआ चला जा रहा था. हांलाकि, जंगल के असुरक्षित प्रवृत्ति के कारण उसकी ड्यूटी दिन के तीन बजे ही समाप्त हो जाती थी, परन्तु आज वह बड़ी देर तक अपना काम करता रहा था और उसे अपने निवास तक पहुंचने से पहले ही देर हो चुकी थी. उसने बहुत कोशिश की थी कि, दिन छिपने से पहले ही वह इस जंगल से पार हो जाए परन्तु वह ऐसा नहीं कर सका था. इसी कारण  वह जंगल की इस धूल से भरी सूनी और सूखी, कच्ची सड़क पर अपनी जीप को बेताहाशा भगाए जा रहा था.जीप की भरपूर स्पीड के कारण वह ऊबड़-खाबड़ सड़क पर धचके और हिचकोले खाती थी तो नवेश का शरीर भी अपनी सीट पर हिल जाता था. धूल से भरी हुई सड़क और उड़ते हुए गुबारों के कारण उसकी जीप के समान वह खुद भी उड़ती  हुई मिटटी से जैसे स्नान कर चुका था.रात काली थी. धूल के गुबारों के कारण जैसे और भी अधिक मटमैली हो चुकी थी. चारों तरफ अन्धकार का आलम पसरा पड़ा था और नवेश अपनी जीप से चला जा रहा था. फिर जैसे ही कच्ची सड़क समाप्त हो और अब काली, डाबर से सनी पक्की सड़क आ गई थी. इसका संकेत था कि, भयानक जंगल समाप्त हो चुका था और शहर की तरफ जानेवाली पक्की तारकोल की सड़क पर उसकी गाड़ी दौड़ रही थी.  सो जैसे ही नवेश ने पक्की चिकनी सड़क को देखा तो उसने अपनी जीप की स्पीड तुरंत और भी अधिक तीव्र कर दी. मगर वह यह देखकर आश्चर्य से भर गया कि, उसकी जीप से सौ फीट की दूरी पर एक स्त्री मानव छाया अपना हाथ हिलाकर उसे रोकने की कोशिश कर रही थी. शायद वह उससे लिफ्ट मांग रही थी. नवेश ने उसे यूँ अचानक से अपनी जीप के सामने देखकर तुरंत ही ब्रेक कस दिए. जीप लड़खड़ाती हुई उस स्त्री छाया के सामने जाकर खड़ी हो गई.नवेश ने उसे गौर से देखने से पहले अपना दाहिना हाथ अपनी पिस्तौल पर रखा, फिर उस अजनबी स्त्री की तरफ देखा. वह स्त्री न जाने क्यों अपना चेहरा अपनी साड़ी के पल्लू से छिपाए हुए थी, नवेश कुछ समझ नहीं सका. वह कुछ कहता, उससे पहले ही उस स्त्री ने उससे निवेदन किया. वह अपनी शालीन आवाज़ में उससे बोली, 'यहाँ से कोई पांच किलोमीटर की दूरी ही पर वह स्थान है जहां मुझे जाना है. अगर आपको कोई तकलीफ न हो तो मुझे वहां तक छोड़ दीजिये.'
'?'- नवेश ने उस स्त्री को फिर एक बार ध्यान से देखा. उसका चेहरा देखकर उसे पहचानने की चेष्टा भी की, मगर वह कुछ समझ नहीं सका. ना ही उसके बारे कोई भी अंदाजा लगा सका. उस स्त्री ने अपने आपको अपनी सफेद साड़ी से इस तरह से लपेट रखा था कि, उसके अंदर से उसके सिर से लटके हुए लंबे बालों का मात्र एहसास ही हो पा रहा था. तब नवेश ने फिर एक बार उसको गौर से देखा और कहा कि,
'आइये ! बैठिये.'
मगर उस स्त्री ने बैठने से पहले नवेश से एक अर्ज़ और की. वह बोली
'मैं एक ऐसे घर और समाज से हूँ कि, जहां पर मुझे किसी भी अजनबी को अपने बारे में कुछ भी बताने की मनाही है. लिहाजा, आप मुझसे मेरे व्यक्तिगत मामले का कोई भी सवाल नहीं पूछेंगे. यद्दपि मेरी इस बात पर आप मुझे लिफ्ट नहीं भी देना चाहेंगे तौभी मैं इसे अन्यथा नहीं लूंगी.'
'?' -
स्त्री के मुख से ऐसी अप्रत्याशित सुनकर नवेश फिर एक बार आश्चर्य और सशोपंज में भर गया. उसने कुछेक पल सोचा और कहा कि,
'आइये ! '
तब वह स्त्री बैठ गई. जीप चल पड़ी. मगर सारे रास्ते भर नवेश का हाथ अपनी पिस्तौल को चुपचाप पकड़े रहा. यही सोच कर कि, 'ज़माना तो यूं भी खराब है. किसी का क्या भरोसा? इंसानियत निभानी तो है मगर अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा.'हांलाकि, उस स्त्री ने अपने बारे में व्यक्तिगत सवाल ही पूछने के लिए मना किया है, अन्य बातों के लिए तो नहीं. नवेश का दिल नहीं मान रहा था. उसने सोच रखा था कि, इस स्त्री के जीप से उतरते ही वह उससे एक बात तो पूछेगा ही. यही सोचकर वह जीप चलाता रहा.आगे जाकर वह स्थान भी आया जहां पर उस स्त्री को उतरना था. वह उससे बोली,
'बस, इसी जगह पर मुझे उतार दीजिए.'
'?'- नवेश वह स्थान देखकर आश्चर्य से गड़ गया. वह एक भेदभरे ढंग से उसे देखता हुआ बोला कि,
'यहाँ आपको जाना है. यह तो शमशान है?'
'मुझे यहीं जाना है.' उसने उतरते हुए कहा तो नवेश उससे बोला कि,
'आपको इस रात के अन्धकार में एक नारी होते हुए ज़रा भी डर नहीं लगता है.?
'जब जीवित थी तो बहुत डरा करती थी.'
'?' - सुनकर नवेश की आँखों के सामने जैसे आकाश के सारे तारे नाचने लगे. उसके शरीर के समस्त रोंये तक अपने स्थान पर सतर्क हो गये. वह अभी यह सब सोच ही रहा था कि तभी उस स्त्री जो युवा लड़की ही थी, उससे अपना हाथ हिलाते हुए बोली,'बाय ! थैंक यू . . .'
नवेश ने जो उसकी तरफ देखा तो देखते ही घोर आश्चर्य से उसके मुख से अनायास ही निकल पड़ा,
'अरे ! नव्या तुम?'
'हां ! मैं.'
'?'-  अविश्वास की दशा में नवेश ने अपनी आँखों को हथेलियों से मसला, यही सोचकर कि, वह कहीं भ्रमित तो नहीं हो चुका है, और फिर दोबारा देखा तो वहाँ कुछ भी नहीं था. कोई परछाईं नहीं, कोई भी मानव छाया नहीं, कोई भी अस्पष्ट झलक भी नहीं. नव्या के साथ सब कुछ लुप्त हो चुका था. वह जा चुकी थी. वह आई और गई. बस एक झलक दिखाकर. वह चली भी गई थी? सामने उसके काली, अँधेरे में डूबी वीरान सड़क थी और अगल-बगल जंगलों से छूटती हुई वीरानियाँ? उसने फिर एक बार इधर-उधर देखा और फिर बड़े ही निराशमन से उसने जीप के एक्सीलेटर पर अपना पैर रख दिया. जीप चल पड़ी. वह बड़े ही उदास और निराशाओं के बोझ को लादे हुए घर पहुंचा. घर आते ही वह थके हुए दिमाग और हताश कामनाओं के साथ सोफे मरण - सा धंस गया. वह अपने ख्यालों में डूबा. पिछले सात वर्षों के पश्चात आज उसे फिर से नव्या नज़र आई थी. उसको अपनी एक झलक दिखा गई थी. एक भेदभरे रूप में, रहस्यमय ढंग से, उसकी आँखों के सामने कितने ही प्रश्नों को उछालते हुए;
'जब जीवित थी तब बहुत डरा करती थी?'
'क्या वह. . .?' मन में यह ख्याल आते ही, एक अनजाने खौफ से नवेश के शरीर के सारे रोंगटे खड़े हो गये. अपने ही स्थान पर उसका बदन हिलने लगा. मन-मस्तिष्क और अनजाने भयावह विचारों के साथ उसके हाथ-पैर मानो सुन्न-से पड़ने लगे. फिर तमाम अच्छे-बुरे विचारों के साथ, सोचते ही नवेश की आँखों के सामने, उसके पिछले जिए हुए दिनों का एक पूरा खाका ही नज़र आने लगा.... .....'
....वह दुबली-पतली, सींक-सी लड़की जब देखो तुमको अपना कंधा मारते हुए निकल जाती है और तुम कैसे आदमी हो जो उससे कुछ कहते ही नहीं हो?'
उसके साथ पढ़ने वाली नव्या ने कहा तो, नवेश बोला,'मैं क्या कहूँ और क्यों कहूँ ?'नवेश ने एक छोटा-सा उत्तर दिया तो नव्या मानो अपने ही स्थान पर उछल पड़ी. ज़रा-सी तुनकते हुए बोली,'माना कि, वह बचपन से ही तुम्हारे मुहल्ले में, तुम्हारे पड़ोस में रहती आई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि, अब इस उम्र में भी वह जो चाहे सो तुम्हारे साथ करती रहे? तुम्हें कोई परेशानी नहीं होती है क्या?''क्या परेशानी होगी मुझको. कोई भगाकर तो नहीं ले जायेगी मुझे?' नवेश ने बड़ी ही सहजता से कहा तो नव्या जैसे चिढ़ते हुए बोली,'क्या फर्क पड़ता है. आज वह कंधा मार रही है, कल को भगा भी ले जायेगी?''इतना आसान नहीं होता है, किसी के दिल में बस जाना.''ऐसे ही आसान हो जाएगा उसके लिए, जब तुम उससे कुछ नहीं कहोगे?''चार महीनों की और बात है, सालाना परीक्षाओं में. इधर कॉलेज बंद और उधर उसकी शादी हुई. उसके बाद कहानी खत्म और तम्हें भी कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा.'नवेश ने समझाया तो नव्या बोली,'क्या मालुम, कल को कोई दूसरी कंधा मारने लगेगी तब क्या करोगे तुम ?'इस पर नवेश ने बात को बदला और कहा,'अच्छा अब ज्यादा टेंशन मत लो. मैं कहीं नहीं भागा जा रहा हूँ. कॉलेज का सफर समाप्त, नौकरी मिली और फिर हमारी शादी. शादी के बाद हम दोनों का गृहस्थ जीवन की यात्रा का आरंभ. चलो, कक्षा आरंभ होने वाली है.'यह कहते हुए नवेश अपने स्थान से उठा तो नव्या ने उसका हाथ थाम लिया और उसके साथ-साथ चलने लगी.नवेश और नव्या का साथ इसी कॉलेज में हाई स्कूल की कक्षा से आरम्भ हुआ था. नव्या के पिता राज्य सरकार में मनोरंजन कर निरीक्षक थे. अपने शहर और आस-पास के तमाम सिनेमा हॉल उनकी निगरानी में थे. कहने का मतलब था कि, सरकार की तनख्वाह कम लेकिन ऊपरी आमदनी भ्ररपूर. पैसे की कोई कमी नहीं. नव्या बड़े ही ठाट-बाट से रहती थी. हरेक दिन वह एक-से-एक नई, मंहगे सूट पहनकर आया करती थी. वह जितना अधिक अपने वस्त्रों में आकर्षक और सुंदर नज़र आती थी, उतनी ही व्यवहार और बात-चीत में भी सुलभ और शालीन. इंटर में आते-आते वह नवेश को मन-ही-मन पसंद करने लगी थी. नव्या ने नवेश की तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो नवेश भी उसे मना नहीं कर सका था. फलस्वरूप दोनों ही अपने प्रेम में डूबने लगे थे और अब वे अपने भावी जीवन के मनमोहक सपने तैयार करते, उन्हें देखा करते और फिर नये सपने बुनते थे. कॉलेज का अंतिम सत्र समाप्त होने से पहले नवेश ने नव्या का परिचय अपने घर में उनकी भावी बहू के रूप में करा दिया था. नवेश के मां-बाप बड़े ही शालीन और सुलभ विचारों के थे. उन्होंने अपने पुत्र की पसंद के लिए कोई भी विरोध नहीं किया. उधर नव्या के परिवार वाले भी राजी हो चुके थे. एक तरह से तराजू का पासंग हो चुका था. केवल तिलक और विवाह की तैयारियाँ होना ही शेष थीं. अगर देर थी तो केवल नवेश की नौकरी मिलने की.      तभी एक अनहोनी-सी, अविश्वसनीय जैसी घटना नवेश के जीवन में घट गई. ऐसी घटना कि, जिसके लिए कोई भी जन कभी कल्पना तक नहीं कर सकता था. यह घटना नहीं बल्कि, एक मोड़ नवेश के जीवन में आया था कि, जिसने उसकी ज़िन्दगी के काफिले का सारा रास्ता ही बदल डाला था.नवेश अपने परम मित्र की शादी में, उसके घर का विशेष अतिथ बनकर गया था. गर्मी के दिन थे. उसके मित्र की शादी एक दूर के गाँव में थी. पुराने रीति-रिवाजों के साथ यह विवाह होना था. खेतों से फसलें कट चुकी थीं. फसलों के लवने के दिन भी जा चुके थे. अनाजों से किसानों के घर-खत्ते आदि भर चुके थे. गर्म हवाएं चलने लगीं थी.जिस गाँव में नवेश के मित्र की बारात जानेवाली थी, उसमें कम-से-कम पांच बीघा खेत के क्षेत्र में करीब तीन-सौ चारपाइयां बारातियों के लिए बिछा दी गईं थीं. उन चारपाइयों के नई दरियां, चादरें और तकिया आदि भी रखे गये थे. ठंडे पानी के लिए बड़े-बड़ी घड़े भर कर रखे गये थे. इसके अतिरिक्त प्रत्येक चारपाई के पास एक सुराई और गिलास रखे गये थे. यह सब इंतजाम इसलिए किया गया था ताकि आनेवाले बारातियों को समुचित आराम मिल सके.बारातियों की तरफ से भी लगभग बीस बैलगाड़ियां, रंग-बिरंगे वस्त्रों की सजावट के साथ, अपने बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं के राग सुनाती हुई आईं थीं. सारे गाँव में बारातियों का हुजूम देखने से लगता था जय कि, वहां किसी स्थानीय मेले का आयोजन किया जा रहा है.विवाह का आयोजन सब तरीके ठीक चल रहा था. अधिकतर कार्यक्रम संपूर्ण हो चुके थे. परन्तु अग्नि के फेरों से पहले वर की तरफ से उसके पिता ने दहेज के रूप में पूरे एक करोड़ रुपयों की मांग रख दी. उसने कहा कि, 'जब तक यह रकम उन्हें नहीं मिल जायेगी तब तक फेरे नहीं होंगे.'बधू का पिता यह सब सुनकर आश्चर्य से गड़ गया. उसका कहना था कि, विवाह की बातचीत के समय ऐसी तो कोई शर्त नहीं थी. यह तो अनहोनी-सी बात है. इतनी बड़ी रकम का प्रबंध वह नहीं कर सकता है.'मगर वर की तरफ का पिता, अर्थात नवेश के मित्र का पिता अपनी बात पर अड़ा हुआ था. रकम न मिलने पर वह बरात वापस ले जाने की धमकी दे रहा था.फिर जब बात अधिक बढ़ गई तो नवेश ने अपने मित्र को भी समझाया. वह उससे बोला कि,'तू तो पढ़ा-लिखा और समझदार इंसान है. यह कैसा तमाशा बना रखा है? अपने पिता को समझाता क्यों नहीं है?''मैं अपने पिता के विरोध में कुछ भी नहीं कर सकता हूँ.''नहीं कर सकता है तो अपने पिता से कह दे कि, आप वापस जाना चाहो तो जाओ, लेकिन मैं लड़की से विवाह करके ही आऊंगा.''मरना पसंद करूंगा, लेकिन यह तो कभी-भी नहीं कर पाऊँगा.'तभी लड़की का पिता वहां आया और अपनी विवाह की पगड़ी वर के पिता के पैरों पर रखते हुए, उन पर रुपयों को  रखकर बोला,'समधी जी ! मैंने अपना घर, खेत गिरवी रख दिया है. साथ ही क़र्ज़ आदि लेकर ये केवल पचास लाख ही हो पाए हैं. अब आपकी मर्जी है, चाहो तो बिटिया के फेरे करके ले जाओ अथवा मेरी इज्ज़त को सारे गाँव में मिट्टी में मिला जाओ.'लेकिन फिर भी वर का पिता अपनी ज़िद से तनिक भी नहीं हटा. वह बारात वापस ले जाने लगा. फिर देखते-ही-देखते बारात चली भी गई. चली गई तो वधू का पूरा परिवार शोक की लहर में डूब गया. वधू के घर-परिवार की यह दशा देख कर तब नवेश ने उन सब लोगों को समझाया और कहा कि,'मेरे मित्र ने सचमुच आप लोगों के साथ बहुत बुरा किया है. फिर भी अगर आप चाहें तो मैं आपकी लड़की से विवाह कर सकता हूँ. अगर आप समझें तो बारात अभी-भी वापस नहीं गई है. मैं भी उसी बारात का ही हिस्सा हूँ. अगर बारात जायेगी भी तो वधू के सात फेरे पूरे करके ही जायेगी.'नवेश का इतना भर कहना था कि समूचे परिवार में खुशियों की लहर फैल गई. फिर तुरंत ही पंडित को बुलाया गया. कुंडली फिर एक बार देखी गई. नवेश के हल्दी साथ हल्दी की रस्म पुरी की गई. और फिर बाकायदा विवाह की रस्में पूर्ण की गई. सो इस प्रकार से मिताली उसकी पत्नि और उसके घर की बहू बनकर उसके साथ आ गई.हांलाकि, नवेश को मिताली के साथ उसकी पत्नि के रूप में अचानक देखकर उसके मां-बाप को कोई विशेष प्रसन्नता तो नहीं हुई थी. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे? वे तो बहुत पहले ही से उसके समक्ष अपने सारे हथियार डाल चुके थे. अगर उन्हें कोई चिंता थी तो वह भी नव्या की, जिसके अथाह प्रेम की चिता पर आग लगाकर उनके बेटे ने अपने भावी जीवन के घर में उजाला किया था.अपने घर मिताली को लाकर नवेश कई दिनों तक इसी सोच में पड़ा रहा कि, वह नव्या को कैसे अपना मुंह दिखाएगा? किस प्रकार से वह उसको अपना मुंह दिखाएगा. सब कुछ सोच-विचार करके फिर भी नवेश सारी परिस्थितियों से सामना करने के लिए अपने आपको मनाने का प्रयास कर रहा था तो दूसरी तरफ उसकी मां अपने ही घर में फिर एक बार उसकी शादी मिताली के साथ, मंडप में करवाने के बारे में सोच रही थी.तब जब सब कुछ तैयार हो गया तो नवेश ने नव्या को अपनी तरफ से, अपने सीने पर पहाड़ जैसा बोझ रखते हुए  एक पत्र लिखा,  'नव्या,तुम्हें यह बताते हुए मुझे बहुत दुःख हो रहा है कि, कल ही मैंने अपना विवाह एक ऐसी गाँव की सीधी-सादी बाला से कर लिया है, कि जिसे मैंने इससे पहले कभी देखा भी नहीं था. मैं तो उसको जानता भी नहीं था, परन्तु कुछ संजोग ही ऐसा बना था कि, मैं मिताली, जो अब मेरी पत्नी है, से अपना विवाह कर बैठा. परिस्थितियोंवश, हालात ही ऐसे बन गये थे कि, मुझको अचानक ही अपने भावी जीवन के बारे में यह निर्णय लेना पड़ गया. मैं नहीं जानता हूँ कि, मैंने यह सब करके गलत किया है अथवा सही?मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ, इसलिए जो भी सजा तुम मुझको देना चाहोगी, मुझे कोई भी गिला-शिकवा नहीं होगा. जानता हूँ कि, पिछले दस सालों से मैं तुम्हें एक प्रकार से भरम में रखे रहा- तुमसे विवाह करने के वायदे करता रहा और जब समय आया तो तुमको दर-किनार करके किसी दूसरी का हाथ पकड़ लिया. यह सब कुछ अचानक से, इतनी शीघ्रता में हुआ है कि, मैं अपने माता-पिता को भी सूचित नहीं कर पाया था. पत्नी को जब अपने घर पर लेकर आया था मेरे सारे घर के लोग भी आश्चर्यचकित रह गये थे. लेकिन, उन्होंने भी मुझसे कुछ भी नहीं कहा, केवल इसके कि,  मेरी माता जी, मेरे फेरे फिर एक बार, अपने ही घर पर मंडप में करा लेना चाहती हैं. इसीलिये उन्होंने, अगले सप्ताह, बुद्धवार के दिन, इस विवाह का कार्यक्रम बनाया है- तुमको निमंत्रण दे रहा हूँ, अगर आओगी तो सारी बातें तुमको विस्तार में बता भी दूंगा.मैंने, पाप नहीं किया है; इतना तो मैं जानता हूँ, लेकिन, गलती की है या नहीं? यह नहीं बता सकता हूँ. मैं, मिताली से अपना विवाह करने के लिए बहुत ही अधिक मजबूर था- मैं तुम्हारा प्रेमी था- तुम्हारा बे-वफा साथी बनकर जीना नहीं चाहूँगा- अब आगे तुम्हारा दोस्त बनकर, अपनी गलतियों की मॉफी तुम से सदा ही माँगता रहूंगा. मैं तुम्हारी मुहब्बत का कातिल नहीं हूँ, केवल अपने सिद्धांतों का दास जरुर हूँ; इस दास की मजबूरियों पर अगर गौर करोगी, तो हो सकता है कि, तुम मुझे मॉफ कर सको.नवेश.''व्हाट्स एप' में, नव्या के नाम लिखे हुए संदेश को, नवेश ने एक बार फिर से पढ़ा और फिर अपने धड़कते दिल के स्पंदनों पर विवशता का बोझ रखते हुए, संदेश को भेज दिया. यह जानते हुए भी कि, इस संदेश को पढ़कर नव्या के दिल पर क्या-कुछ नहीं गुज़र जाएगी?संदेश भेजने के बाद, नवेश बड़ी देर तक, यूँ ही बैठा रहा. बिलकुल, किसी ज़मी हुई बर्फ की सिल्ली के समान- बहुत चुप- शांत और थका-थका-सा. अपने कमरे में नितांत अकेला और तन्हा-तन्हा. विवाह के बाद भी, उसकी पत्नी, उसकी मां के कमरे में सो रही थी. मां का कहना था कि, जब तक उसकी मां के सामने फिर से उसके विवाह के फेरे पूरे नहीं हो जाते हैं, वह मिताली को छू भी नहीं सकता है- घर-परिवार और समाज-बिरादरी के भी कुछ संस्कार होते हैं? यही सब कुछ सोचते हुए, नवेश के अपनी ज़िन्दगी के पिछले जिए हुए दिनों के चित्र किसी भारतीय फिल्म के समान उसकी आँखों के पर्दे पर आकर चलने लगे थे.       
 नवेश ने उस दिन का इंतज़ार किया जब उसकी मां ने दोबारा मिताली के साथ अपने घर में मंडप सजाकर उसके फेरे लगवाये और अपनी रीति से उसके विवाह की रस्में पूरी कीं. अपनी शादी के दिन की शाम तक नवेश ने नव्या का बहुत इंतज़ार किया. बहुत अधिक उसके आने की बाट जोही. वह विवाह के अंतिम कार्यक्रमों तक नव्या की प्रतीक्षा करता रहा. मगर वह तो नहीं आई बल्कि उसके स्थान पर अपने विवाह के उपहारों के मध्य उसे नव्या की तरफ से भेजा गया उसका एक लिफाफा और कुछ पुराने-नये ताज़े फूलों का वेक पैकेट अवश्य ही मिला था. वह लिफाफा उसके उपहारों के साथ कैसे आया था? किसने या किसके ज़रिये नव्या ने इसको भिजवाया था, ये सोचे बगैर उसने जिज्ञासा में तुरंत ही लिफाफे को खोल दिया. उसमें नव्या की तरफ से लिखा हुआ उसको एक पत्र था, जिसे वह तुरंत ही पढ़ने लगा,'नवेश,'बहुत सारी तुम्हारे विवाह की शुभकामनाओं के साथ.  मेरे पास ऐसा कुछ भी कीमती धन नहीं है जो मैं तुमको उपहार के नाम पर दे सकूं. वैसे भी प्यार में लुटा हुआ एक कमजोर इंसान किसी को दे भी क्या सकता है? लेकिन मैं तुमको इस शुभ अवसर पर तुम्हारे हाथ खाली नहीं रहने दूंगी. ये पिछले दस वर्षीं से मेरी उस पूजा के फूल हैः जिन्हें मै तुहारे नाम से बर्बाद करती रही थी. इन फूलों को अगर तुम चाहो तो मेरी बर्बाद मुहब्बतों की अर्थी पर, अपने प्यार की जीत समझकर, मेरी तरफ से रख देना. इन फूलों को अपने सामने तुम्हारे हाथों में देखकर, हो सकता है कि, मेरी भटकती हुई आत्मा को शान्ति मिल जाए?'  मैं तो अपने विवाह की खुशियों के अंबार देखकर तम्हें ये बताना ही भूल गई थी कि, मेरे पिता का स्थानान्तरण इस बार शीशम नगर में हो गया है. बहुत शीघ्र ही हम सब यहाँ से चले जायेंगे.यह जो सब कुछ हुआ उसमें तुम्हारी ही मुख्य भूमिका थी. जो कुछ भी हुआ वह तुम्हारे ही साथ हुआ है. अब यह और बात है कि, तुम्हारी इस अग्नि में झुलस मैं भी गई हूँ. तुमको अब अधिक सोचने की जरूरत भी नहीं होनी चाहिए. यही सोचकर तुम खुद को समझा लेना कि, हमारे प्यार के पथ पर अचानक से एक मोड़ आया और तुमने रास्ता बदल लिया. तुम दरिया के बहते हुए जल के समान आगे बढ़ गये और मैं झील के ठहरे हुए पानी की तरह अपने ही स्थान पर ठहरी रही. इतनी-सी ही बात है. बात हुई और समाप्त हो गई. तुम आये. मिले और चले गये. मैं अपने ही स्थान पर खड़ी रह गई. और हमारी बात, हमारी वर्षों की मुहब्बत की कहानी? मुझे लगा कि समाप्त हो गई है, लेकिन नहीं, सचमुच में कहानी तो अब आरंभ हुई थी. वह कहानी जो अब मेरी साँसों में, मेरे दिल की हरेक धड़कनों में गूँजती रहेगी. कब तक ऐसा होगा, मुझे नहीं मालुम. ज़िन्दगी ने कभी अवसर दिया तो शायद हमारी फिर से मुलाक़ात हो जाए? बरना, यहीं तक तुम इसे मेरा आखिरी सलाम समझ लेना.'  नव्या.'पत्र पढ़कर समाप्त किया तो नवेश अपना सिर, अपने दोनों हाथों से पकड़कर बैठ गया. वह सोचने लगा कि, यह जो सब कुछ अचानक से घटित हो गया है, वह किसकी मर्जी से हो गया है? कौन दोषी है इसके लिए? उसने अच्छा किया है अथवा बुरा?'इस तरह से सिर पकड़कर नहीं बैठा करते हैं. मनहूसियत होती है.'अचानक उसकी नई-नवेली पत्नि मिताली ने उसे टोका तो वह फिर अपने विचारों से हटकर बाहर आया. फिर काफी देर तक मिताली उसके पास ही बैठी रही और बहुत कुछ सोचती भी रही.बाद में दिन बदले. आनेवाले समय के साथ बहुत कुछ बदल गया. नवेश अपने काम में व्यस्त हो गया. यही सोचकर उसने खुद को समझा लिया था कि, कभी शीशम नगर जाना  हुआ तो वह नव्या से अपने दोनों हाथ जोड़कर क्षमा मांग लेगा.इस प्रकार से नवेश के बहुत सारे दिन यूँ ही व्यतीत हो गये. बदले हुए दिनों के साथ वह अपनी पत्नि और परिवार में व्यस्त हो गया. इस प्रकार कि, वह नव्या को भूला तो नहीं था, परन्तु अब याद भी नहीं करता था. वक़्त के बदलते हुए आयामों के साथ जब कभी भी वह नव्या के बारे में सोचा करता तो अपनी तरफ से अपनी ही की हुई भूल के लिए पश्चाताप अवश्य ही कर लेता था. यही सोचकर तसल्ली दे लेता था कि, . . 'अब तक तो नव्या भी उसे भूल चुकी होगी?', हो सकता है कि, उसने भी अपना विवाह कर लिया हो?' उसका भी परिवार हो?' . . इस तरह की तमाम बातें वह सोचकर अपने-आपको समझा लिया करता था.फिर शीशम नगर आकर उसने नव्या और उसके परिवार के बारे में जानकारी लेनी चाही. नव्या को उसने बहुत ढूंढा, बहुत खोजा, मगर उसे सफलता नहीं मिल सकी. मगर आज नव्या को अचानक से पाकर उसकी स्मृतियों के काफिले फिर एक बार अपने कारवाँ को आगे ले जाने के लिए एकत्रित हो चुके थे. बार-बार उसके मन-मस्तिष्क में नव्या के यही शब्द मानो हथोड़ों समान चोटें मारने लगते थे,'जब जीवित थी तो बहुत डर लगता था?'. . . सोचते ही नवेश का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा.उसने फिर एक बार गंभीरता से सोचा. अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला. फिर बाद में विचार किया और अपने मन में ही कहा कि, 'जब वह जीवित थी तो बहुत डरती थी और अब बगैर किसी भी भय के भयावह जंगल में घूमती फिरती है? इसका मतलब है कि, वह अब जीवित? अगर नहीं है तो फिर उससे एक दिन पहले मिलने वाली वह 'नव्या' कौन थी? अगर नव्या अभी भी जीवित है तो फिर . . .? उसे उसको ढूँढने अवश्य ही जाना चाहिए.ऐसा मन में विचार आते ही नवेश ने पैरों में अपने जूते पहने और अपनी जीप की चाबी उठाई और घर से बाहर निकलने लगा.उसको यूँ बगैर बताये घर से बाहर अचानक से निकलते ही उसकी पत्नि मिताली तुरंत ही बाहर आई और घर के दरवाज़े पर खड़े होकर बोली,'अरे ! आप कहाँ चल दिए, यूँ अचानक से. वह भी बगैर बताये हुए. सब खैरियत तो है?''?'- नवेश के कदम शीघ्र ही अपने ही स्थान पर ठिठक गये. उसने मुड़ कर मिताली से कहा कि,'अचानक से एक जरूरी काम याद आ गया है. मैं आता हूँ, थोड़ी देर में.''थोड़ी देर में ! शाम तो हो रही है. अभी कुछ ही देर में अन्धेरा होने लगेगा?मिताली ने चिंता व्यक्त कि तो नवेश ने उसे धैर्य्य रखते हुए कहा,'घबराने की बात नहीं है. मैं शीघ्र ही आता हूँ.'ये सुनकर मिताली चुप हो गई. और तब तक द्वार पर ही खड़ी रही, जब तक कि, नवेश की जीप उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गई.फिर कुछ ही मिनटों के पश्चात उसकी जीप शीशम नगर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी और उसकी तीव्र रफ्तार के साथ-साथ सड़क के किनारे लगे हुए तमाम तरह के शीशम आदि वृक्षों की कतारें भी भाग रही थीं.जब तक नवेश अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचा, तब तक संध्या पूरी तरह से डूब चुकी थी और रात्रि की मटमैली धुंध वातावरण में अपना प्रभाव दिखाने लगी थी. इसके साथ ही आस-पास के सारे खामोश माहोल से जमीन की घास और झाड़ियों में छिपे-बैठे कीड़े-मकोड़ों की भयावनी आवाजें आना आरंभ हो चुकी थीं.नवेश ने अपनी जीप एक सुरक्षित स्थान पर खड़ी की. सरकार की तरफ से दिया गया उसकी सुरक्षा के लिए सत्तराह  राउंड का सरकारी पिस्तौल को उसने अपनी पेंट के बेल्ट में खोंस लिया. फिर जीप से उसने वर्षों पूर्व नव्या के दिए हुए उसकी आरती के सूखे-कुम्लाहये हुए फूलों को अपने हाथ में उठाया और एक ना-उम्मीद से अपने चारों तरफ देखने लगा. यही सोचकर कि, अगर नव्या यहीं कहीं आस-पास की रहने वाली होगी तो वह उसे जरुर ही मिलेगी. ऐसा ही कुछ सोचकर वह अपने आस-पास और चारों तरफ देखने लगा. काफी देर तक वह यूँ ही खड़ा रहा. नव्या उसे कहीं भी नहीं दिखाई दी. केवल बढ़ती हुई रात के सन्नाटों में, इस जंगल भरे इलाके में उसे भिन्न-भिन्न प्रकार की डरावनी आवाजों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई दिया.फिर जब रात जब और भी अधिक गहराने लगी तो वह निराश हो गया. उसने उम्मीद छोड़ दी और वापस लौटने के विचार से अपनी जीप की तरफ बढ़ने लगा. लेकिन, तभी अचानक से, दूर से किसी अन्य गाड़ी की दो हेड लाईट्स आती दिखाईं दी तो वह अपने ही स्थान पर अपनी जीप का सहारा लेकर खड़ा हो गया. तभी वह आती हुई कोई कार थी जो दूर से ही शायद उसको और उसकी जीप को देखकर धीमी होती हुई रुक गई थी. तब उस कार में बैठे हुए किसी अधेड़ मनुष्य ने नवेश को देखते हुए उससे इंसानियत के नाते पूछा,'जेंटिल मेन सब ठीक तो है? यू नीड ऐनी हेल्प?''नो थैंक्स. आई एम फाइन.'नवेश ने कहा तो वह पुरुष एक संशय से बोला,'किसी की तलाश में हैं आप?'तब नवेश ने एक पल सोचा फिर बोला,'ऐसी जरूरी तलाश तो नहीं है, पर हां अभी शाम को जब मैं यहाँ से घर जा रहा था तो एक ऐसी लड़की ने मेरा रास्ता रोका था जो कभी मेरे साथ पढ़ा करती थी. उसने यह भी बताया था कि, वह यही पास में रहती है.''अरे ! वह गुमशुदा आत्मा ?''मैं कुछ समझा नहीं.''अरे साहब, उसके चक्कर में मत पड़िए. वह यहाँ अक्सर आते-जाते लोगों को दिखाई दे जाती है. यहाँ के जानकार लोगों का कहना है कि, वह किसी ऐसी लड़की की भटकती हुई आत्मा है जिसने अपने प्यार में धोखा खाकर, यहीं पास में बने किसी कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. पर यह बात समझ में नहीं आई कि, आप उसे जानते भी हैं?''?'- सुनकर नवेश के पैरों से मानो धरती खिसक गई. इस प्रकार कि, वह फिर आगे कोई उत्तर भी नहीं दे सका.तभी उस शख्स ने आगे कहा कि,'रात हो रही है. जंगल का इलाका है. आप टेंशन न लें. आराम से घर जाईये, बच्चे आपकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे. मैं भी चलता हूँ.'उस मनुष्य की यह बात सुनकर नवेश ने एक बार फिर से उसकी तरफ देखा. मगर यह क्या? वहां तो कोई भी नहीं  था. वह मनुष्य और उसकी कार आदि सब कुछ लुप्त हो चुका था. वहां नवेश के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं था.यह सब देख सुनकर नवेश का दिल घबराने लगा. उसका हौसला और साहस ठंडा पड़ने लगा. उसने वहां से वापस जाना ही ठीक समझा.तब वह शीघ्र ही अपनी जीप में जाकर बैठ गया. चाबी लगाकर जीप को चालू ही करना चाहा था कि, जीप की दूसरी सीट पर नव्या को बैठा देखकर चोंका ही नहीं बल्कि घबरा भी गया. वह कुछ कहता, इससे पहले ही नव्या उससे बोली,'इतनी जल्दी भी क्या है. इतने दिनों के बाद मिले हो. कुछ बातें आदि नहीं करोगे?''?'- नवेश उसे देखकर चुप हो गया.'तुम मुझे ढूँढ़ रहे थे और जानना चाहते थे कि, मैं यहाँ जंगल में कहाँ रहती हूँ. तुम जहां पर खड़े हो, वह हम जैसी लोगों का ही बसेरा है. यही अब हमारी दुनिया है. मैं तो तुम्हारी दुनियां से सदा के लिए बहुत दूर आ चुकी हूँ. शाम होते ही, रात के अँधेरे में यहाँ पर तुमको मुझ जैसे ही लोगों से वास्ता पड़ेगा. मैं जानती हूँ कि, तुम अब मेरे जीवन के दूसरे रूप को देखकर डरने बहुत लगे हो. लेकिन, घबराओ नहीं, आज के बाद मैं क्या तुमको कोई भी मेरे जैसा कभी नहीं दिखाई देगा. चलो, जीप चालू करो, मैं तुमको अपना वास्तविक ठिकाना दिखाकर वापस चली जाऊँगी.'नवेश ने जीप चालू की. जीप का इंजन थरथराया और फिर कुछेक पलों के अंतर पर ही जीप ने रेंगते हुए अपनी गति पकड़ ली. जीप बाद में अपनी ही गति से दौड़ने लगी. शीशमगढ़ के भयानक जंगलों की तरफ. फिर अचानक ही नव्या ने नवेश को आगे कुछ ही दूरी पर जीप को रोकने के लिए कहा तो नवेश आश्चर्य से बोला,'तुम अपने पापा और परिवार के साथ यहाँ रहती हो?''परिवार के साथ नहीं, केवल मैं ही रहती हूँ. हां पापा तो शहर में ही थे, जब उनकी मृत्यु हो चुकी थी. वह कभी कभी मुझसे मिलने यहाँ आते रहते हैं.''अच्छा छोड़ो इस विषय को. यह बताओ कि, मेरे अचानक तुमको छोड़कर अचानक से मिताली नाम की अनजान लड़की से विवाह कर लेने पर तुम नाराज़ नहीं हुईं. मुझे कोई सज़ा भी नहीं दी?''जहां तक नाराजी की बात है, तो जो तुमने मेरे साथ किया है, वह तुमको नहीं करना चाहिए था. रही बात सज़ा देने की, तो मैंने तुमसे प्यार किया है, सज़ा और श्राप किस दिल से तुमको दे लेती ?''अब तुम क्या करोगी?''इस संसार के बाद एक दूसरी दुनियां भी है जो तुम्हारी सांसारिक संसार से बहुत बड़ी है. वहां मेरी जैसी बहुत सी छली हुई लड़कियां भी हैं जो यातनाएं झेल रही हैं. तुमने मेरा दिल छलनी किया, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकी थी. और तुम्हारी दुनियां त्यागने का फैसला कर लिया. इस संसार का सृष्टिकर्त्ता इस बात से नाराज़ नहीं होता है कि, लोग ठोकर खाकर उसके बनाये हुए कानून अपने हाथ में ले लेते हैं और संसार को त्याग देते है बल्कि इस बात से नाराज़ होता है कि हम जैसों का संसार को त्यागने का तरीका गलत होता हुई. खुद को खुद ही के द्वारा मृत्यु के हाथों में सौंप देने को पाप कहा जाता है.''मैं समझा नहीं?''मेरा मतलब कि, मुझे केवल तुम्हारा ही संसार छोड़ने का अधिकार था, अपनी दुनियां, अपना जीवन नष्ट करने की इजाज़त ऊपरवाला नहीं देता है.''अच्छा ये बताओ कि, अब जाना कहाँ है हमें''कहीं नहीं. यही जगह है. यहीं तक आना था हमें.'यहाँ और इस स्थान पर? यह तो अंग्रेजों की कोई बहुत पुरानी सीमेट्री है जिसे बाद में सरकार ने इसको शीशम गढ़ के वन-विभाग में ले लिया है.''तुमने सही कहा है. सचमुच यह स्थान बिटिश भारत के  अंग्रेजों का सदियों पुराना कब्रिस्थान है. और जब कब्रिस्थान है, तो उसमें एक बहुत बड़ा और गहरा कुआं भी होगा. तुम उसी कुएं के पास आ जाना. मैं वहीं रहती हूँ. मैं अब चलती हूँ. मेरा वापस जाने का समय हो चुका है. मैं अब इससे अधिक तुम्हारी दुनियां में नहीं ठहर सकती हूँ. फिर जब भी कभी आओगे तो कोशिश करके तुमसे मिलने का प्रयास अवश्य ही करूंगी.'      
'इसका मतलब तुम भी अब जीवित नहीं हो?'कहते हुए उसने नव्या को देखा तो हतप्रभ-सा रह गया. नव्या जा चुकी थी. कबसे, उसे कुछ पता ही नहीं चल सका. उसके चारों तरफ सूना और किसी भी परछाईं से मरहूम सन्नाटों से भरा कब्रिस्थान था. देखते ही लगता था कि, जैसे सदियों से वहां किसी भूले-भटके पंछी तक ने अपने पैर नहीं रखे थे.नवेश ने चुपचाप अपनी जीप में से नव्या के द्वारा वर्षों तोड़े हुए उसकी आरती के फूलों को उठाया और चल दिया उस कुएं को ढूँढ़ते हुए जिसकी चर्चा कुछ देर पहले नव्या ने की थी. सो थोड़े से कदमों के चलने के बाद ही उसे वह जीर्ण-शीर्ण सा कुआं भी दिखाई दे गया जिसकी लाल ईंट से बनी हुई दीवारें तक अब काली पड़ चुकी थी. वह अभी उस तरफ जा ही रहा था कि, तभी उसे कुंए की मनि पर दूर से ही बैठे हुए कुछेक लोग दिखाई दिए तो वह सहसा ही आश्चर्य से भर गया. साथ ही मन में डर भी गया. चूँकि वह इसी इलाके का वन विभाग अधिकारी भी था, इसलिए तुरंत ही उसका हाथ  कमर में उसके बेल्ट में बंधे सरकारी पिस्तौल की तरफ चला गया. लेकिन ये क्या, उसने फिर से उस कुएं की तरफ निहारा तो उसे वहां कोई भी नहीं दिखाई दिया. तब उसे समझते देर नहीं लगी कि, वह भूतों और भटकी हुई प्रेतात्माओं की बस्ती में घूम रहा है; इस प्रकार से अतिवाहकीय रूपों का लुकना-छिपना तो आम बात ही रहेगी.यही सोचता हुआ वह कुएं के पास आ गया और सोचने लगा कि, शायद नव्या की आत्मा उसे फिर से दिखाई दे जाए. परन्तु ऐसा नहीं हो सका. वह खड़े हुए ऐसा सोच ही रहा था कि, तभी उसके पीछे से किसी ने उसे संबोधित किया.'महोदय यहाँ किसके इंतज़ार में खड़े हैं आप ?''?' - नवेश ने पीछे मुड़कर देखा तो एक बूढ़ा आदमी, कोट-पेंट और टाई बांधे हुए उसी को बड़े ही कौतुलता के साथ देख रहा था.'अभी कुछ देर पहले मुझे यहाँ एक लड़की मिली थी. उसने कहा था कि, वह यहीं इसी कुएं के पास रहती है. सो मैं उसी को तलाश रहा था.'   नवेश ने कहा तो वह बूढ़ा व्यक्ति उससे बोला,'अच्छा, वह इंडियन लड़की?''जी हां. . .जी हां, वही.''तो फिर ढूँढ़ते ही रहो, लेकिन ज़रा होशियार रहना. वह अब शायद ही तुमको मिलेगी?'कहते हुए वह बूढ़ा व्यक्ति वहां से जाने लगा तो नवेश ने उसे रोकना चाहा और बोला कि,'सुनिए सुनिए. . .अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है.''क्या मतलब?''यही कि, आप कहना क्या चाहते हैं?''मैं कहना नहीं बल्कि आपको आगाह करना चाहता हूँ कि, यहाँ आपको सब मेरे जैसे और उस लड़की जैसे नहीं मिलेंगे, जो आप पर रहम करते रहें. खुदा-न-खास्ता अगर कोई सरफिरा मिल गया तो वह भी आपको हमारी दुनियां में  मिला लेगा और घर पर तब आपकी बीबी-बच्चे आपके वापस घर लौटने का इंतज़ार करते रह जायेंगे. बेहतर होगा कि, आप यहाँ से जल्द-से-जल्द बाहर निकल जाओ.''आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.'कहते हुये नवेश ने उस मनुष्य पर एक दृष्टि डाली तो वह तुत्न्त ही आश्चर्य से भर गया.'?' -  वह अनजान व्यक्ति भी अचानक से गायब हो गया तो नवेश उसे ठगा सा देखता ही रह गया. उसे समझते देर नहीं लगी कि वह सचमुच ही भटकी हुई रूहों के मरे हुए शरीरों के म्रत्युस्थान में घूम रहा है. लेकिन वह तो नव्या के फिर एक बार दर्शन करने के उद्देश्य से वहां ठहरा हुआ था और चाह्तास था कि, वह अंतिम बार उससे बात करके अपने किये पर क्षमा मांग ले. मगर, काफी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद भी जब नव्या उसे कहीं भी नहीं दिखाई दी तो उसने मायूस होकर अपने साथ में लाये हुए नव्या ही के सारे फूल उसी कुएं में समर्पित कर दिए; यही सोचकर कि ऐसा करना नव्या के लिए उसके निस्वार्थ प्यार की वह अंतिम विदाई और श्रृद्धांजलि थी जिसके कारण वह इस भयानक जंगल में अभी-भी भटक रहा था. वह जानता था कि, आज भी नव्या उसके साथ चले प्यार की डगर में उससे कहीं बहुत अधिक आसमान की सीढ़ियाँ चढ़ चुकी थी और वह अभी भी उसी स्थान पर, किसी ठहरे हुए झील के पानी सामान अपनेर किये पर पश्ताप कर रहा था. वह सचमुच मानव-जीवन की इस सच्चाई को समझ गया था कि, सच्चा प्यार वाकई में जीवन की आहुति चाहता है. उसने  मिताली के जीवन को शरण देकर, उसका भविष्य संभालकर, उसका मान रखकर अपनेर प्यार नव्या की कुर्बानी दी थी; दुनियां, समाज और ईश्वर की दृष्ट में अच्छा किया था अथवा गलत? वह नहीं जानता था.रात गहरा गई थी. दूर से शीशमगढ़ शहर की विद्दयुत बत्तियां मुस्करा रहीं थीं और गोरों के इस कब्रिस्थान के भयावह सन्नाटों से भरे जंगली इलाके में अजीब-अजीब तरह के कीडों-मकोड़ों और झींगरों की विभिन्न प्रकार की आवाजें उसे चले जाने की हिदायतें दे रही थीं.नवेश ने एक बार फिर से अपने चारों तरफ देखा. अंदर कुएं में झांका तो सिवाय तरह-तरह की आकृतियों के अलावा उसे कुछ भी नज़र नहीं आया. कौन जानता था कि, मानव-जीवन के पुतलों की शक्लों के सामान ये आकृतियाँ असली थीं अथवा झूठी? वह मन मारकर कुएं की मनि से नीचे उतरा और शीघ्र ही अपनी जीप में बैठ गया.थोड़ी ही देर में उसकी जीप शीशमगढ़ के जंगलों से बाहर निकल रही थी. मुख्य सड़क पर आते ही उसने जीप की रफ्तार को जैसे ही तीव्र करना चाह तो अचानक से जीप के सामने नव्या को खड़े देखते ही उसने जीप के ब्रेक कस दिए. इस प्रकार कि, जीप के टायर सूखी, काली तारकोल की सड़क पर चीं. . .चीं करती हुई रुक गई. रुक गई तो नव्या उसके सामने खड़ी हुई मुस्करा रही थी. उसे देखकर नवेश ने उससे जैसे विनती की. वह बोला कि,'तुम इसी तरह से मुझसे मेरे जीवन भर मिलती रहना तो मैं समझूँगा कि, मेरी नव्या मरी नहीं बल्कि अभी-भी जीवित है. मेरी दुनियां में न सही, चाहे अपने संसार में ही क्यों न. लेकिन वह जीवित तो होगी.''?' - इस पर नव्या ने उसे एक बार फिर से देखा. देखा तो उसकी आँखों से आंसुओं की दो पंक्तियाँ, उसके गोरे  गालों से सरकती हुई नीचे भूमि पर गिरने से पहले ही ठहर गईं.नवेश अभी भी उससे कही हुई अपनी गुजारिश के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था. नव्या ने उसकी परेशानी समझी और फिर अपनी गर्दन न में हिलाकर जैसे कहा हो कि, 'ये उसके वश की बात नहीं है.'तभी नव्या जीप के सामने से हटकर साइड में आई और अपना हाथ हिलाकर नवेश से बोली,'बाय. . .बाय मिस्टर नवेश मिताली.'दूसरे ही क्षण वह वहां से गायब हो चुकी थी. नवेश ने बेबसी में बहुत देर तक उसका इंतज़ार किया और फिर जीप को आगे बढ़ा दिया- अपने घर की दिशा की तरफ.- समाप्त.   पूजा के फूलकहानी / शरोवन शीशमगढ़ के भयानक और सूनसान जंगलों का एक असुरक्षित इलाका. ऐसा दहशत भरा और दुर्दम कि, कभी-भी कुछ भी वह हो जाए कि, जिसकी मनुष्य कभी कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसीलिये इस इलाके में सरकार की तरफ से सांझ पांच बजे के बाद जन-सामान्य को प्रवेश करने की मनाही थी.दिन का सूरज शाम होते ही शीशम के घने जंगलों के पीछे जाकर छुप चुका था और जंगल के चप्पे-चप्पे में आनेवाली रात की भयवाह अपने पग बढ़ाने लगी थी. फिर जब रात हो गई और जंगल की मनहूसियत से भरा सारा माहौल  अन्धकार के कोने-कोने में शीशम के वृक्षों से भरा जंगल रात के इस भयंकर माहौल में जैसे कहीं छुपकर भायं-भायं किये जा रहा था. हर तरफ शीशम के कहीं भारी-भरकम बूढ़े वृक्ष तो कहीं पर जवान-युवा और कहीं पर छोटे पेड़ झाड़ियों समान इस समस्त वातावरण को तन्हा और सूनसान बनाये हुए थे. वैसे भी इस इलाके में शीशम के ही वृक्षों का जैसे जमावड़ा था; शायद इसी कारण इस स्थान का नाम शीशमगढ़ था. कोई भी नहीं जानता था कि, मजबूत लकड़ियों से भरा ये जंगल कितना पुराना था और किसने इसे बसाया था. लेकिन इन वृक्षों कि महंगी और मजबूत लकड़ियों के कारण अब ये सारा जंगले राज्य सरकार की सम्प्रति बन चुका था और इसकी सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से सारे इंतजामात किये जाते थे. फिर भी इन लकड़ियों की चोरी के किस्से समय-असमय मीडिया के बदन की सुन्दरता बन जाते थे.शीशमगढ़ कि इन्हीं जंगलों का फ़ॉरेस्ट ऑफिसर नवेश राज अपनी सरकारी जीप से, रात के अन्धकार में जंगल की कच्ची और सूखी सड़क पर धूल के गुबारों को बड़ी बे-दर्दी से उड़ाता हुआ अपनी जीप को रौंदता हुआ चला जा रहा था. हांलाकि, जंगल के असुरक्षित प्रवृत्ति के कारण उसकी ड्यूटी दिन के तीन बजे ही समाप्त हो जाती थी, परन्तु आज वह बड़ी देर तक अपना काम करता रहा था और उसे अपने निवास तक पहुंचने से पहले ही देर हो चुकी थी. उसने बहुत कोशिश की थी कि, दिन छिपने से पहले ही वह इस जंगल से पार हो जाए परन्तु वह ऐसा नहीं कर सका था. इसी कारण  वह जंगल की इस धूल से भरी सूनी और सूखी, कच्ची सड़क पर अपनी जीप को बेताहाशा भगाए जा रहा था.जीप की भरपूर स्पीड के कारण वह ऊबड़-खाबड़ सड़क पर धचके और हिचकोले खाती थी तो नवेश का शरीर भी अपनी सीट पर हिल जाता था. धूल से भरी हुई सड़क और उड़ते हुए गुबारों के कारण उसकी जीप के समान वह खुद भी उडती हुई मिटटी से जैसे स्नान कर चुका था.रात काली थी. धूल के गुबारों के कारण जैसे और भी अधिक मटमैली हो चुकी थी. चारों तरफ अन्धकार का आलम पसरा पड़ा था और नवेश अपनी जीप से चला जा रहा था. फिर जैसे ही कच्ची सड़क समाप्त हो और अब काली, डाबर से सनी पक्की सड़क आ गई थी. इसका संकेत था कि, भयानक जंगल समाप्त हो चुका था और शहर की तरफ जानेवाली पक्की तारकोल की सड़क पर उसकी गाड़ी दौड़ रही थी.  सो जैसे ही नवेश ने पक्की चिकनी सड़क को देखा तो उसने अपनी जीप की स्पीड तुरंत और भी अधिक तीव्र कर दी. मगर वह यह देखकर आश्चर्य से भर गया कि, उसकी जीप से सौ फीट की दूरी पर एक स्त्री मानव छाया अपना हिलाकर उसे फ्रोकने की कोशिश कर रही थी. शायद वह उससे लिफ्ट मांग रही थी. नवेश ने उसे यूँ अचानक से अपनी जीप के सामने देखकर तुरंत ही ब्रेक कस दिए. जीप लड़खड़ाती हुई उस स्त्री छाया के सामने जाकर खड़ी हो गई.नवेश ने उसे गौर से देखने से पहले अपना दाहिना हाथ अपनी पिस्तौल पर रखा, फिर उस अजनबी स्त्री की तरफ देखा. वह स्त्री न जाने क्यों अपना चेहरा अपनी साड़ी के पल्लू से छिपाए हुए थी, नवेश कुछ समझ नहीं सका. वह कुछ कहता, उससे पहले ही उस स्त्री ने उससे निवेदन किया. वह अपनी शालीन आवाज़ में उससे बोली,'यहाँ से कोई पांच किलोमीटर की दूरी ही पर वह स्थान है जहां मुझे जाना है. अगर आपको कोई तकलीफ न हो तो मुझे वहां तक छोड़ दीजिये.''?'- नवेश ने उस स्त्री को फिर एक बार ध्यान से देखा. उसका चेहरा देखकर उसे पहचानने की चेष्टा भी की, मगर वह कुछ समझ नहीं सका. ना ही उसके बारे कोई भी अंदाजा लगा सका. उस स्त्री ने अपने आपको अपनी सफेद साड़ी से इस तरह से लपेट रखा था कि, उसके अंदर से उसके सिर से लटके हुए लंबे बालों का मात्र एहसास ही हो पा रहा था. तब नवेश ने फिर एक बार उसको गौर से देखा और कहा कि,'आइये ! बैठिये.'मगर उस स्त्री ने बैठने से पहले नवेश से एक अर्ज़ और की. वह बोली,'मैं एक ऐसे घर और समाज से हूँ कि, जहां पर मुझे किसी भी अजनबी को अपने बारे में कुछ भी बताने की मनाही है. लिहाजा, आप मुझसे मेरे व्यक्तिगत मामले का कोई भी सवाल नहीं पूछेंगे. यद्दपि मेरी इस बात पर आप मुझे लिफ्ट नहीं भी देना चाहेंगे तौभी मैं इसे अन्यथा नहीं लूंगी.''?' - स्त्री के मुख से ऐसी अप्रत्याशित सुनकर नवेश फिर एक बार आश्चर्य और सशोपंज में भर गया. उसने कुछेक पल सोचा और कहा कि,'आइये ! 'तब वह स्त्री बैठ गई. जीप चल पड़ी. मगर सारे रास्ते भर नवेश का हाथ अपनी पिस्तौल को चुपचाप पकड़े रहा. यही सोच कर कि, 'ज़माना तो यूं भी खराब है. किसी का क्या भरोसा? इंसानियत निभानी तो है मगर अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा.'हांलाकि, उस स्त्री ने अपने बारे में व्यक्तिगत सवाल ही पूछने के लिए मना किया है, अन्य बातों के लिए तो नहीं. नवेश का दिल नहीं मान रहा था. उसने सोच रखा था कि, इस स्त्री के जीप से उतरते ही वह उससे एक बात तो पूछेगा ही. यही सोचकर वह जीप चलाता रहा.आगे जाकर वह स्थान भी आया जहां पर उस स्त्री को उतरना था. वह उससे बोली,'बस, इसी जगह पर मुझे उतार दीजिए.''?'- नवेश वह स्थान देखकर आश्चर्य से गड़ गया. वह एक भेदभरे ढंग से उसे देखता हुआ बोला कि,'यहाँ आपको जाना है. यह तो शमशान है?''मुझे यहीं जाना है.' उसने उतरते हुए कहा तो नवेश उससे बोला कि,'आपको इस रात के अन्धकार में एक नारी होते हुए ज़रा भी डर नहीं लगता है.''जब जीवित थी तो बहुत डरा करती थी.''?' - सुनकर नवेश की आँखों के सामने जैसे आकाश के सारे तारे नाचने लगे. उसके शरीर के समस्त रोंये तक अपने स्थान पर सतर्क हो गये. वह अभी यह सब सोच ही रहा था कि तभी उस स्त्री जो युवा लड़की ही थी, उससे अपना हाथ हिलाते हुए बोली,'बाय ! थैंक यू . . .'नवेश ने जो उसकी तरफ देखा तो देखते ही घोर आश्चर्य से उसके मुख से अनायास ही निकल पड़ा,'अरे ! नव्या तुम?''हां ! मैं.''?'-  अविश्वास की दशा में नवेश ने अपनी आँखों को हथेलियों से मसला, यही सोचकर कि, वह कहीं भ्रमित तो नहीं हो चुका है, और फिर दोबारा देखा तो वहाँ कुछ भी नहीं था. कोई परछाईं नहीं, कोई भी मानव छाया नहीं, कोई भी अस्पष्ट झलक भी नहीं. नव्या के साथ सब कुछ लुप्त हो चुका था. वह जा चुकी थी. वह आई और गई. बस एक झलक दिखाकर. वह चली भी गई थी? सामने उसके काली, अँधेरे में डूबी वीरान सड़क थी और अगल-बगल जंगलों से छूटती हुई वीरानियाँ? उसने फिर एक बार इधर-उधर देखा और फिर बड़े ही निराशमन से उसने जीप के एक्सीलेटर पर अपना पैर रख दिया. जीप चल पड़ी. वह बड़े ही उदास और निराशाओं के बोझ को लादे हुए घर पहुंचा. घर आते ही वह थके हुए दिमाग और हताश कामनाओं के साथ सोफे मरण धंस गया. वह अपने ख्यालों में डूबा. पिछले सात वर्षों के पश्चात आज उसे फिर से नव्या नज़र आई थी. उसको अपनी एक झलक दिखा गई थी. एक भेदभरे रूप में, रहस्यमय ढंग से, उसकी आँखों के सामने कितने ही प्रश्नों को उछालते हुए;'जब जीवित थी तब बहुत डरा करती थी?''क्या वह. . .?' मन में यह ख्याल आते ही, एक अनजाने खौफ से नवेश के शरीर के सारे रोंगटे खड़े हो गये. अपने ही स्थान पर उसका बदन हिलने लगा. मन-मस्तिष्क और अनजाने भयावह विचारों के साथ उसके हाथ-पैर मानो सुन्न-से पड़ने लगे. फिर तमाम अच्छे-बुरे विचारों के साथ, सोचते ही नवेश की आँखों के सामने, उसके पिछले जिए हुए दिनों का एक पूरा खाका ही नज़र आने लगा. . .'. . .'वह दुबली-पतली, सींक-सी लड़की जब देखो तुमको अपना कंधा मारते हुए निकल जाती है और तुम कैसे आदमी हो जो उससे कुछ कहते ही नहीं हो?'उसके साथ पढ़ने वाली नव्या ने कहा तो, नवेश बोला,'मैं क्या कहूँ और क्यों कहूँ ?'नवेश ने एक छोटा-सा उत्तर दिया तो नव्या मानो अपने ही स्थान पर उछल पड़ी. ज़रा-सी तुनकते हुए बोली,'माना कि, वह बचपन से ही तुम्हारे मुहल्ले में, तुम्हारे पड़ोस में रहती आई है तो इसका मतलब यह नहीं है कि, अब इस उम्र में भी वह जो चाहे सो तुम्हारे साथ करती रहे? तुम्हें कोई परेशानी नहीं होती है क्या?''क्या परेशानी होगी मुझको. कोई भगाकर तो नहीं ले जायेगी मुझे?' नवेश ने बड़ी ही सहजता से कहा तो नव्या जैसे चिढ़ते हुए बोली,'क्या फर्क पड़ता है. आज वह कंधा मार रही है, कल को भगा भी ले जायेगी?''इतना आसान नहीं होता है, किसी के दिल में बस जाना.''ऐसे ही आसान हो जाएगा उसके लिए, जब तुम उससे कुछ नहीं कहोगे?''चार महीनों की और बात है, सालाना परीक्षाओं में. इधर कॉलेज बंद और उधर उसकी शादी हुई. उसके बाद कहानी खत्म और तम्हें भी कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा.'नवेश ने समझाया तो नव्या बोली,'क्या मालुम, कल को कोई दूसरी कंधा मारने लगेगी तब क्या करोगे तुम ?'इस पर नवेश ने बात को बदला और कहा,'अच्छा अब ज्यादा टेंशन मत लो. मैं कहीं नहीं भागा जा रहा हूँ. कॉलेज का सफर समाप्त, नौकरी मिली और फिर हमारी शादी. शादी के बाद हम दोनों का गृहस्थ जीवन की यात्रा का आरंभ. चलो, कक्षा आरंभ होने वाली है.'यह कहते हुए नवेश अपने स्थान से उठा तो नव्या ने उसका हाथ थाम लिया और उसके साथ-साथ चलने लगी.नवेश और नव्या का साथ इसी कॉलेज में हाई स्कूल की कक्षा से आरम्भ हुआ था. नव्या के पिता राज्य सरकार में मनोरंजन कर निरीक्षक थे. अपने शहर और आस-पास के तमाम सिनेमा हॉल उनकी निगरानी में थे. कहने का मतलब था कि, सरकार की तनख्वाह कम लेकिन ऊपरी आमदनी भ्ररपूर. पैसे की कोई कमी नहीं. नव्या बड़े ही ठाट-बाट से रहती थी. हरेक दिन वह एक-से-एक नई, मंहगे सूट पहनकर आया करती थी. वह जितना अधिक अपने वस्त्रों में आकर्षक और सुंदर नज़र आती थी, उतनी ही व्यवहार और बात-चीत में भी सुलभ और शालीन. इंटर में आते-आते वह नवेश को मन-ही-मन पसंद करने लगी थी. नव्या ने नवेश की तरफ अपना हाथ बढ़ाया तो नवेश भी उसे मना नहीं कर सका था. फलस्वरूप दोनों ही अपने प्रेम में डूबने लगे थे और अब वे अपने भावी जीवन के मनमोहक सपने तैयार करते, उन्हें देखा करते और फिर नये सपने बुनते थे. कॉलेज का अंतिम सत्र समाप्त होने से पहले नवेश ने नव्या का परिचय अपने घर में उनकी भावी बहू के रूप में करा दिया था. नवेश के मां-बाप बड़े ही शालीन और सुलभ विचारों के थे. उन्होंने अपने पुत्र की पसंद के लिए कोई भी विरोध नहीं किया. उधर नव्या के परिवार वाले भी राजी हो चुके थे. एक तरह से तराजू का पासंग हो चुका था. केवल तिलक और विवाह की तैयारियाँ होना ही शेष थीं. अगर देर थी तो केवल नवेश की नौकरी मिलने की.      तभी एक अनहोनी-सी, अविश्वसनीय जैसी घटना नवेश के जीवन में घट गई. ऐसी घटना कि, जिसके लिए कोई भी जन कभी कल्पना तक नहीं कर सकता था. यह घटना नहीं बल्कि, एक मोड़ नवेश के जीवन में आया था कि, जिसने उसकी ज़िन्दगी के काफिले का सारा रास्ता ही बदल डाला था.नवेश अपने परम मित्र की शादी में, उसके घर का विशेष अतिथ बनकर गया था. गर्मी के दिन थे. उसके मित्र की शादी एक दूर के गाँव में थी. पुराने रीति-रिवाजों के साथ यह विवाह होना था. खेतों से फसलें कट चुकी थीं. फसलों के लवने के दिन भी जा चुके थे. अनाजों से किसानों के घर-खत्ते आदि भर चुके थे. गर्म हवाएं चलने लगीं थी.जिस गाँव में नवेश के मित्र की बारात जानेवाली थी, उसमें कम-से-कम पांच बीघा खेत के क्षेत्र में करीब तीन-सौ चारपाइयां बारातियों के लिए बिछा दी गईं थीं. उन चारपाइयों के नई दरियां, चादरें और तकिया आदि भी रखे गये थे. ठंडे पानी के लिए बड़े-बड़ी घड़े भर कर रखे गये थे. इसके अतिरिक्त प्रत्येक चारपाई के पास एक सुराई और गिलास रखे गये थे. यह सब इंतजाम इसलिए किया गया था ताकि आनेवाले बारातियों को समुचित आराम मिल सके.बारातियों की तरफ से भी लगभग बीस बैलगाड़ियां, रंग-बिरंगे वस्त्रों की सजावट के साथ, अपने बैलों के गले में बंधे घुंघरूओं के राग सुनाती हुई आईं थीं. सारे गाँव में बारातियों का हुजूम देखने से लगता था जय कि, वहां किसी स्थानीय मेले का आयोजन किया जा रहा है.विवाह का आयोजन सब तरीके ठीक चल रहा था. अधिकतर कार्यक्रम संपूर्ण हो चुके थे. परन्तु अग्नि के फेरों से पहले वर की तरफ से उसके पिता ने दहेज के रूप में पूरे एक करोड़ रुपयों की मांग रख दी. उसने कहा कि, 'जब तक यह रकम उन्हें नहीं मिल जायेगी तब तक फेरे नहीं होंगे.'बधू का पिता यह सब सुनकर आश्चर्य से गड़ गया. उसका कहना था कि, विवाह की बातचीत के समय ऐसी तो कोई शर्त नहीं थी. यह तो अनहोनी-सी बात है. इतनी बड़ी रकम का प्रबंध वह नहीं कर सकता है.'मगर वर की तरफ का पिता, अर्थात नवेश के मित्र का पिता अपनी बात पर अड़ा हुआ था. रकम न मिलने पर वह बरात वापस ले जाने की धमकी दे रहा था.फिर जब बात अधिक बढ़ गई तो नवेश ने अपने मित्र को भी समझाया. वह उससे बोला कि,'तू तो पढ़ा-लिखा और समझदार इंसान है. यह कैसा तमाशा बना रखा है? अपने पिता को समझाता क्यों नहीं है?''मैं अपने पिता के विरोध में कुछ भी नहीं कर सकता हूँ.''नहीं कर सकता है तो अपने पिता से कह दे कि, आप वापस जाना चाहो तो जाओ, लेकिन मैं लड़की से विवाह करके ही आऊंगा.''मरना पसंद करूंगा, लेकिन यह तो कभी-भी नहीं कर पाऊँगा.'तभी लड़की का पिता वहां आया और अपनी विवाह की पगड़ी वर के पिता के पैरों पर रखते हुए, उन पर रुपयों को  रखकर बोला,'समधी जी ! मैंने अपना घर, खेत गिरवी रख दिया है. साथ ही क़र्ज़ आदि लेकर ये केवल पचास लाख ही हो पाए हैं. अब आपकी मर्जी है, चाहो तो बिटिया के फेरे करके ले जाओ अथवा मेरी इज्ज़त को सारे गाँव में मिट्टी में मिला जाओ.'लेकिन फिर भी वर का पिता अपनी ज़िद से तनिक भी नहीं हटा. वह बारात वापस ले जाने लगा. फिर देखते-ही-देखते बारात चली भी गई. चली गई तो वधू का पूरा परिवार शोक की लहर में डूब गया. वधू के घर-परिवार की यह दशा देख कर तब नवेश ने उन सब लोगों को समझाया और कहा कि,'मेरे मित्र ने सचमुच आप लोगों के साथ बहुत बुरा किया है. फिर भी अगर आप चाहें तो मैं आपकी लड़की से विवाह कर सकता हूँ. अगर आप समझें तो बारात अभी-भी वापस नहीं गई है. मैं भी उसी बारात का ही हिस्सा हूँ. अगर बारात जायेगी भी तो वधू के सात फेरे पूरे करके ही जायेगी.'नवेश का इतना भर कहना था कि समूचे परिवार में खुशियों की लहर फैल गई. फिर तुरंत ही पंडित को बुलाया गया. कुंडली फिर एक बार देखी गई. नवेश के हल्दी साथ हल्दी की रस्म पुरी की गई. और फिर बाकायदा विवाह की रस्में पूर्ण की गई. सो इस प्रकार से मिताली उसकी पत्नि और उसके घर की बहू बनकर उसके साथ आ गई.हांलाकि, नवेश को मिताली के साथ उसकी पत्नि के रूप में अचानक देखकर उसके मां-बाप को कोई विशेष प्रसन्नता तो नहीं हुई थी. लेकिन वे कर भी क्या सकते थे? वे तो बहुत पहले ही से उसके समक्ष अपने सारे हथियार डाल चुके थे. अगर उन्हें कोई चिंता थी तो वह भी नव्या की, जिसके अथाह प्रेम की चिता पर आग लगाकर उनके बेटे ने अपने भावी जीवन के घर में उजाला किया था.अपने घर मिताली को लाकर नवेश कई दिनों तक इसी सोच में पड़ा रहा कि, वह नव्या को कैसे अपना मुंह दिखाएगा? किस प्रकार से वह उसको अपना मुंह दिखाएगा. सब कुछ सोच-विचार करके फिर भी नवेश सारी परिस्थितियों से सामना करने के लिए अपने आपको मनाने का प्रयास कर रहा था तो दूसरी तरफ उसकी मां अपने ही घर में फिर एक बार उसकी शादी मिताली के साथ, मंडप में करवाने के बारे में सोच रही थी.तब जब सब कुछ तैयार हो गया तो नवेश ने नव्या को अपनी तरफ से, अपने सीने पर पहाड़ जैसा बोझ रखते हुए  एक पत्र लिखा,  'नव्या,तुम्हें यह बताते हुए मुझे बहुत दुःख हो रहा है कि, कल ही मैंने अपना विवाह एक ऐसी गाँव की सीधी-सादी बाला से कर लिया है, कि जिसे मैंने इससे पहले कभी देखा भी नहीं था. मैं तो उसको जानता भी नहीं था, परन्तु कुछ संजोग ही ऐसा बना था कि, मैं मिताली, जो अब मेरी पत्नी है, से अपना विवाह कर बैठा. परिस्थितियोंवश, हालात ही ऐसे बन गये थे कि, मुझको अचानक ही अपने भावी जीवन के बारे में यह निर्णय लेना पड़ गया. मैं नहीं जानता हूँ कि, मैंने यह सब करके गलत किया है अथवा सही?मैं तुम्हारा मुजरिम हूँ, इसलिए जो भी सजा तुम मुझको देना चाहोगी, मुझे कोई भी गिला-शिकवा नहीं होगा. जानता हूँ कि, पिछले दस सालों से मैं तुम्हें एक प्रकार से भरम में रखे रहा- तुमसे विवाह करने के वायदे करता रहा और जब समय आया तो तुमको दर-किनार करके किसी दूसरी का हाथ पकड़ लिया. यह सब कुछ अचानक से, इतनी शीघ्रता में हुआ है कि, मैं अपने माता-पिता को भी सूचित नहीं कर पाया था. पत्नी को जब अपने घर पर लेकर आया था मेरे सारे घर के लोग भी आश्चर्यचकित रह गये थे. लेकिन, उन्होंने भी मुझसे कुछ भी नहीं कहा, केवल इसके कि,  मेरी माता जी, मेरे फेरे फिर एक बार, अपने ही घर पर मंडप में करा लेना चाहती हैं. इसीलिये उन्होंने, अगले सप्ताह, बुद्धवार के दिन, इस विवाह का कार्यक्रम बनाया है- तुमको निमंत्रण दे रहा हूँ, अगर आओगी तो सारी बातें तुमको विस्तार में बता भी दूंगा.मैंने, पाप नहीं किया है; इतना तो मैं जानता हूँ, लेकिन, गलती की है या नहीं? यह नहीं बता सकता हूँ. मैं, मिताली से अपना विवाह करने के लिए बहुत ही अधिक मजबूर था- मैं तुम्हारा प्रेमी था- तुम्हारा बे-वफा साथी बनकर जीना नहीं चाहूँगा- अब आगे तुम्हारा दोस्त बनकर, अपनी गलतियों की मॉफी तुम से सदा ही माँगता रहूंगा. मैं तुम्हारी मुहब्बत का कातिल नहीं हूँ, केवल अपने सिद्धांतों का दास जरुर हूँ; इस दास की मजबूरियों पर अगर गौर करोगी, तो हो सकता है कि, तुम मुझे मॉफ कर सको.नवेश.''व्हाट्स एप' में, नव्या के नाम लिखे हुए संदेश को, नवेश ने एक बार फिर से पढ़ा और फिर अपने धड़कते दिल के स्पंदनों पर विवशता का बोझ रखते हुए, संदेश को भेज दिया. यह जानते हुए भी कि, इस संदेश को पढ़कर नव्या के दिल पर क्या-कुछ नहीं गुज़र जाएगी?संदेश भेजने के बाद, नवेश बड़ी देर तक, यूँ ही बैठा रहा. बिलकुल, किसी ज़मी हुई बर्फ की सिल्ली के समान- बहुत चुप- शांत और थका-थका-सा. अपने कमरे में नितांत अकेला और तन्हा-तन्हा. विवाह के बाद भी, उसकी पत्नी, उसकी मां के कमरे में सो रही थी. मां का कहना था कि, जब तक उसकी मां के सामने फिर से उसके विवाह के फेरे पूरे नहीं हो जाते हैं, वह मिताली को छू भी नहीं सकता है- घर-परिवार और समाज-बिरादरी के भी कुछ संस्कार होते हैं? यही सब कुछ सोचते हुए, नवेश के अपनी ज़िन्दगी के पिछले जिए हुए दिनों के चित्र किसी भारतीय फिल्म के समान उसकी आँखों के पर्दे पर आकर चलने लगे थे.        नवेश ने उस दिन का इंतज़ार किया जब उसकी मां ने दोबारा मिताली के साथ अपने घर में मंडप सजाकर उसके फेरे लगवाये और अपनी रीति से उसके विवाह की रस्में पूरी कीं. अपनी शादी के दिन की शाम तक नवेश ने नव्या का बहुत इंतज़ार किया. बहुत अधिक उसके आने की बाट जोही. वह विवाह के अंतिम कार्यक्रमों तक नव्या की प्रतीक्षा करता रहा. मगर वह तो नहीं आई बल्कि उसके स्थान पर अपने विवाह के उपहारों के मध्य उसे नव्या की तरफ से भेजा गया उसका एक लिफाफा और कुछ पुराने-नये ताज़े फूलों का वेक पैकेट अवश्य ही मिला था. वह लिफाफा उसके उपहारों के साथ कैसे आया था? किसने या किसके ज़रिये नव्या ने इसको भिजवाया था, ये सोचे बगैर उसने जिज्ञासा में तुरंत ही लिफाफे को खोल दिया. उसमें नव्या की तरफ से लिखा हुआ उसको एक पत्र था, जिसे वह तुरंत ही पढ़ने लगा,'नवेश,'बहुत सारी तुम्हारे विवाह की शुभकामनाओं के साथ.  मेरे पास ऐसा कुछ भी कीमती धन नहीं है जो मैं तुमको उपहार के नाम पर दे सकूं. वैसे भी प्यार में लुटा हुआ एक कमजोर इंसान किसी को दे भी क्या सकता है? लेकिन मैं तुमको इस शुभ अवसर पर तुम्हारे हाथ खाली नहीं रहने दूंगी. ये पिछले दस वर्षीं से मेरी उस पूजा के फूल हैः जिन्हें मै तुहारे नाम से बर्बाद करती रही थी. इन फूलों को अगर तुम चाहो तो मेरी बर्बाद मुहब्बतों की अर्थी पर, अपने प्यार की जीत समझकर, मेरी तरफ से रख देना. इन फूलों को अपने सामने तुम्हारे हाथों में देखकर, हो सकता है कि, मेरी भटकती हुई आत्मा को शान्ति मिल जाए?'  मैं तो अपने विवाह की खुशियों के अंबार देखकर तम्हें ये बताना ही भूल गई थी कि, मेरे पिता का स्थानान्तरण इस बार शीशम नगर में हो गया है. बहुत शीघ्र ही हम सब यहाँ से चले जायेंगे.यह जो सब कुछ हुआ उसमें तुम्हारी ही मुख्य भूमिका थी. जो कुछ भी हुआ वह तुम्हारे ही साथ हुआ है. अब यह और बात है कि, तुम्हारी इस अग्नि में झुलस मैं भी गई हूँ. तुमको अब अधिक सोचने की जरूरत भी नहीं होनी चाहिए. यही सोचकर तुम खुद को समझा लेना कि, हमारे प्यार के पथ पर अचानक से एक मोड़ आया और तुमने रास्ता बदल लिया. तुम दरिया के बहते हुए जल के समान आगे बढ़ गये और मैं झील के ठहरे हुए पानी की तरह अपने ही स्थान पर ठहरी रही. इतनी-सी ही बात है. बात हुई और समाप्त हो गई. तुम आये. मिले और चले गये. मैं अपने ही स्थान पर खड़ी रह गई. और हमारी बात, हमारी वर्षों की मुहब्बत की कहानी? मुझे लगा कि समाप्त हो गई है, लेकिन नहीं, सचमुच में कहानी तो अब आरंभ हुई थी. वह कहानी जो अब मेरी साँसों में, मेरे दिल की हरेक धड़कनों में गूँजती रहेगी. कब तक ऐसा होगा, मुझे नहीं मालुम. ज़िन्दगी ने कभी अवसर दिया तो शायद हमारी फिर से मुलाक़ात हो जाए? बरना, यहीं तक तुम इसे मेरा आखिरी सलाम समझ लेना.'  नव्या.'पत्र पढ़कर समाप्त किया तो नवेश अपना सिर, अपने दोनों हाथों से पकड़कर बैठ गया. वह सोचने लगा कि, यह जो सब कुछ अचानक से घटित हो गया है, वह किसकी मर्जी से हो गया है? कौन दोषी है इसके लिए? उसने अच्छा किया है अथवा बुरा?'इस तरह से सिर पकड़कर नहीं बैठा करते हैं. मनहूसियत होती है.'अचानक उसकी नई-नवेली पत्नि मिताली ने उसे टोका तो वह फिर अपने विचारों से हटकर बाहर आया. फिर काफी देर तक मिताली उसके पास ही बैठी रही और बहुत कुछ सोचती भी रही.बाद में दिन बदले. आनेवाले समय के साथ बहुत कुछ बदल गया. नवेश अपने काम में व्यस्त हो गया. यही सोचकर उसने खुद को समझा लिया था कि, कभी शीशम नगर जाना  हुआ तो वह नव्या से अपने दोनों हाथ जोड़कर क्षमा मांग लेगा.इस प्रकार से नवेश के बहुत सारे दिन यूँ ही व्यतीत हो गये. बदले हुए दिनों के साथ वह अपनी पत्नि और परिवार में व्यस्त हो गया. इस प्रकार कि, वह नव्या को भूला तो नहीं था, परन्तु अब याद भी नहीं करता था. वक़्त के बदलते हुए आयामों के साथ जब कभी भी वह नव्या के बारे में सोचा करता तो अपनी तरफ से अपनी ही की हुई भूल के लिए पश्चाताप अवश्य ही कर लेता था. यही सोचकर तसल्ली दे लेता था कि, . . 'अब तक तो नव्या भी उसे भूल चुकी होगी?', हो सकता है कि, उसने भी अपना विवाह कर लिया हो?' उसका भी परिवार हो?' . . इस तरह की तमाम बातें वह सोचकर अपने-आपको समझा लिया करता था.फिर शीशम नगर आकर उसने नव्या और उसके परिवार के बारे में जानकारी लेनी चाही. नव्या को उसने बहुत ढूंढा, बहुत खोजा, मगर उसे सफलता नहीं मिल सकी. मगर आज नव्या को अचानक से पाकर उसकी स्मृतियों के काफिले फिर एक बार अपने कारवाँ को आगे ले जाने के लिए एकत्रित हो चुके थे. बार-बार उसके मन-मस्तिष्क में नव्या के यही शब्द मानो हथोड़ों समान चोटें मारने लगते थे,'जब जीवित थी तो बहुत डर लगता था?'. . . सोचते ही नवेश का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा.उसने फिर एक बार गंभीरता से सोचा. अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला. फिर बाद में विचार किया और अपने मन में ही कहा कि, 'जब वह जीवित थी तो बहुत डरती थी और अब बगैर किसी भी भय के भयावह जंगल में घूमती फिरती है? इसका मतलब है कि, वह अब जीवित? अगर नहीं है तो फिर उससे एक दिन पहले मिलने वाली वह 'नव्या' कौन थी? अगर नव्या अभी भी जीवित है तो फिर . . .? उसे उसको ढूँढने अवश्य ही जाना चाहिए.ऐसा मन में विचार आते ही नवेश ने पैरों में अपने जूते पहने और अपनी जीप की चाबी उठाई और घर से बाहर निकलने लगा.उसको यूँ बगैर बताये घर से बाहर अचानक से निकलते ही उसकी पत्नि मिताली तुरंत ही बाहर आई और घर के दरवाज़े पर खड़े होकर बोली,'अरे ! आप कहाँ चल दिए, यूँ अचानक से. वह भी बगैर बताये हुए. सब खैरियत तो है?''?'- नवेश के कदम शीघ्र ही अपने ही स्थान पर ठिठक गये. उसने मुड़ कर मिताली से कहा कि,'अचानक से एक जरूरी काम याद आ गया है. मैं आता हूँ, थोड़ी देर में.''थोड़ी देर में ! शाम तो हो रही है. अभी कुछ ही देर में अन्धेरा होने लगेगा?मिताली ने चिंता व्यक्त कि तो नवेश ने उसे धैर्य्य रखते हुए कहा,'घबराने की बात नहीं है. मैं शीघ्र ही आता हूँ.'ये सुनकर मिताली चुप हो गई. और तब तक द्वार पर ही खड़ी रही, जब तक कि, नवेश की जीप उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गई.फिर कुछ ही मिनटों के पश्चात उसकी जीप शीशम नगर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी और उसकी तीव्र रफ्तार के साथ-साथ सड़क के किनारे लगे हुए तमाम तरह के शीशम आदि वृक्षों की कतारें भी भाग रही थीं.जब तक नवेश अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचा, तब तक संध्या पूरी तरह से डूब चुकी थी और रात्रि की मटमैली धुंध वातावरण में अपना प्रभाव दिखाने लगी थी. इसके साथ ही आस-पास के सारे खामोश माहोल से जमीन की घास और झाड़ियों में छिपे-बैठे कीड़े-मकोड़ों की भयावनी आवाजें आना आरंभ हो चुकी थीं.नवेश ने अपनी जीप एक सुरक्षित स्थान पर खड़ी की. सरकार की तरफ से दिया गया उसकी सुरक्षा के लिए सत्तराह  राउंड का सरकारी पिस्तौल को उसने अपनी पेंट के बेल्ट में खोंस लिया. फिर जीप से उसने वर्षों पूर्व नव्या के दिए हुए उसकी आरती के सूखे-कुम्लाहये हुए फूलों को अपने हाथ में उठाया और एक ना-उम्मीद से अपने चारों तरफ देखने लगा. यही सोचकर कि, अगर नव्या यहीं कहीं आस-पास की रहने वाली होगी तो वह उसे जरुर ही मिलेगी. ऐसा ही कुछ सोचकर वह अपने आस-पास और चारों तरफ देखने लगा. काफी देर तक वह यूँ ही खड़ा रहा. नव्या उसे कहीं भी नहीं दिखाई दी. केवल बढ़ती हुई रात के सन्नाटों में, इस जंगल भरे इलाके में उसे भिन्न-भिन्न प्रकार की डरावनी आवाजों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई दिया.फिर जब रात जब और भी अधिक गहराने लगी तो वह निराश हो गया. उसने उम्मीद छोड़ दी और वापस लौटने के विचार से अपनी जीप की तरफ बढ़ने लगा. लेकिन, तभी अचानक से, दूर से किसी अन्य गाड़ी की दो हेड लाईट्स आती दिखाईं दी तो वह अपने ही स्थान पर अपनी जीप का सहारा लेकर खड़ा हो गया. तभी वह आती हुई कोई कार थी जो दूर से ही शायद उसको और उसकी जीप को देखकर धीमी होती हुई रुक गई थी. तब उस कार में बैठे हुए किसी अधेड़ मनुष्य ने नवेश को देखते हुए उससे इंसानियत के नाते पूछा,'जेंटिल मेन सब ठीक तो है? यू नीड ऐनी हेल्प?''नो थैंक्स. आई एम फाइन.'नवेश ने कहा तो वह पुरुष एक संशय से बोला,'किसी की तलाश में हैं आप?'तब नवेश ने एक पल सोचा फिर बोला,'ऐसी जरूरी तलाश तो नहीं है, पर हां अभी शाम को जब मैं यहाँ से घर जा रहा था तो एक ऐसी लड़की ने मेरा रास्ता रोका था जो कभी मेरे साथ पढ़ा करती थी. उसने यह भी बताया था कि, वह यही पास में रहती है.''अरे ! वह गुमशुदा आत्मा ?''मैं कुछ समझा नहीं.''अरे साहब, उसके चक्कर में मत पड़िए. वह यहाँ अक्सर आते-जाते लोगों को दिखाई दे जाती है. यहाँ के जानकार लोगों का कहना है कि, वह किसी ऐसी लड़की की भटकती हुई आत्मा है जिसने अपने प्यार में धोखा खाकर, यहीं पास में बने किसी कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. पर यह बात समझ में नहीं आई कि, आप उसे जानते भी हैं?''?'- सुनकर नवेश के पैरों से मानो धरती खिसक गई. इस प्रकार कि, वह फिर आगे कोई उत्तर भी नहीं दे सका.तभी उस शख्स ने आगे कहा कि,'रात हो रही है. जंगल का इलाका है. आप टेंशन न लें. आराम से घर जाईये, बच्चे आपकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे. मैं भी चलता हूँ.'उस मनुष्य की यह बात सुनकर नवेश ने एक बार फिर से उसकी तरफ देखा. मगर यह क्या? वहां तो कोई भी नहीं  था. वह मनुष्य और उसकी कार आदि सब कुछ लुप्त हो चुका था. वहां नवेश के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं था.यह सब देख सुनकर नवेश का दिल घबराने लगा. उसका हौसला और साहस ठंडा पड़ने लगा. उसने वहां से वापस जाना ही ठीक समझा.तब वह शीघ्र ही अपनी जीप में जाकर बैठ गया. चाबी लगाकर जीप को चालू ही करना चाहा था कि, जीप की दूसरी सीट पर नव्या को बैठा देखकर चोंका ही नहीं बल्कि घबरा भी गया. वह कुछ कहता, इससे पहले ही नव्या उससे बोली,'इतनी जल्दी भी क्या है. इतने दिनों के बाद मिले हो. कुछ बातें आदि नहीं करोगे?''?'- नवेश उसे देखकर चुप हो गया.'तुम मुझे ढूँढ़ रहे थे और जानना चाहते थे कि, मैं यहाँ जंगल में कहाँ रहती हूँ. तुम जहां पर खड़े हो, वह हम जैसी लोगों का ही बसेरा है. यही अब हमारी दुनिया है. मैं तो तुम्हारी दुनियां से सदा के लिए बहुत दूर आ चुकी हूँ. शाम होते ही, रात के अँधेरे में यहाँ पर तुमको मुझ जैसे ही लोगों से वास्ता पड़ेगा. मैं जानती हूँ कि, तुम अब मेरे जीवन के दूसरे रूप को देखकर डरने बहुत लगे हो. लेकिन, घबराओ नहीं, आज के बाद मैं क्या तुमको कोई भी मेरे जैसा कभी नहीं दिखाई देगा. चलो, जीप चालू करो, मैं तुमको अपना वास्तविक ठिकाना दिखाकर वापस चली जाऊँगी.'नवेश ने जीप चालू की. जीप का इंजन थरथराया और फिर कुछेक पलों के अंतर पर ही जीप ने रेंगते हुए अपनी गति पकड़ ली. जीप बाद में अपनी ही गति से दौड़ने लगी. शीशमगढ़ के भयानक जंगलों की तरफ. फिर अचानक ही नव्या ने नवेश को आगे कुछ ही दूरी पर जीप को रोकने के लिए कहा तो नवेश आश्चर्य से बोला,'तुम अपने पापा और परिवार के साथ यहाँ रहती हो?''परिवार के साथ नहीं, केवल मैं ही रहती हूँ. हां पापा तो शहर में ही थे, जब उनकी मृत्यु हो चुकी थी. वह कभी कभी मुझसे मिलने यहाँ आते रहते हैं.''अच्छा छोड़ो इस विषय को. यह बताओ कि, मेरे अचानक तुमको छोड़कर अचानक से मिताली नाम की अनजान लड़की से विवाह कर लेने पर तुम नाराज़ नहीं हुईं. मुझे कोई सज़ा भी नहीं दी?''जहां तक नाराजी की बात है, तो जो तुमने मेरे साथ किया है, वह तुमको नहीं करना चाहिए था. रही बात सज़ा देने की, तो मैंने तुमसे प्यार किया है, सज़ा और श्राप किस दिल से तुमको दे लेती ?''अब तुम क्या करोगी?''इस संसार के बाद एक दूसरी दुनियां भी है जो तुम्हारी सांसारिक संसार से बहुत बड़ी है. वहां मेरी जैसी बहुत सी छली हुई लड़कियां भी हैं जो यातनाएं झेल रही हैं. तुमने मेरा दिल छलनी किया, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकी थी. और तुम्हारी दुनियां त्यागने का फैसला कर लिया. इस संसार का सृष्टिकर्त्ता इस बात से नाराज़ नहीं होता है कि, लोग ठोकर खाकर उसके बनाये हुए कानून अपने हाथ में ले लेते हैं और संसार को त्याग देते है बल्कि इस बात से नाराज़ होता है कि हम जैसों का संसार को त्यागने का तरीका गलत होता हुई. खुद को खुद ही के द्वारा मृत्यु के हाथों में सौंप देने को पाप कहा जाता है.''मैं समझा नहीं?''मेरा मतलब कि, मुझे केवल तुम्हारा ही संसार छोड़ने का अधिकार था, अपनी दुनियां, अपना जीवन नष्ट करने की इजाज़त ऊपरवाला नहीं देता है.''अच्छा ये बताओ कि, अब जाना कहाँ है हमें''कहीं नहीं. यही जगह है. यहीं तक आना था हमें.'यहाँ और इस स्थान पर? यह तो अंग्रेजों की कोई बहुत पुरानी सीमेट्री है जिसे बाद में सरकार ने इसको शीशम गढ़ के वन-विभाग में ले लिया है.''तुमने सही कहा है. सचमुच यह स्थान बिटिश भारत के  अंग्रेजों का सदियों पुराना कब्रिस्थान है. और जब कब्रिस्थान है, तो उसमें एक बहुत बड़ा और गहरा कुआं भी होगा. तुम उसी कुएं के पास आ जाना. मैं वहीं रहती हूँ. मैं अब चलती हूँ. मेरा वापस जाने का समय हो चुका है. मैं अब इससे अधिक तुम्हारी दुनियां में नहीं ठहर सकती हूँ. फिर जब भी कभी आओगे तो कोशिश करके तुमसे मिलने का प्रयास अवश्य ही करूंगी.'    
  'इसका मतलब तुम भी अब जीवित नहीं हो?'कहते हुए उसने नव्या को देखा तो हतप्रभ-सा रह गया. नव्या जा चुकी थी. कबसे, उसे कुछ पता ही नहीं चल सका. उसके चारों तरफ सूना और किसी भी परछाईं से मरहूम सन्नाटों से भरा कब्रिस्थान था. देखते ही लगता था कि, जैसे सदियों से वहां किसी भूले-भटके पंछी तक ने अपने पैर नहीं रखे थे.नवेश ने चुपचाप अपनी जीप में से नव्या के द्वारा वर्षों तोड़े हुए उसकी आरती के फूलों को उठाया और चल दिया उस कुएं को ढूँढ़ते हुए जिसकी चर्चा कुछ देर पहले नव्या ने की थी. सो थोड़े से कदमों के चलने के बाद ही उसे वह जीर्ण-शीर्ण सा कुआं भी दिखाई दे गया जिसकी लाल ईंट से बनी हुई दीवारें तक अब काली पड़ चुकी थी. वह अभी उस तरफ जा ही रहा था कि, तभी उसे कुंए की मनि पर दूर से ही बैठे हुए कुछेक लोग दिखाई दिए तो वह सहसा ही आश्चर्य से भर गया. साथ ही मन में डर भी गया. चूँकि वह इसी इलाके का वन विभाग अधिकारी भी था, इसलिए तुरंत ही उसका हाथ  कमर में उसके बेल्ट में बंधे सरकारी पिस्तौल की तरफ चला गया. लेकिन ये क्या, उसने फिर से उस कुएं की तरफ निहारा तो उसे वहां कोई भी नहीं दिखाई दिया. तब उसे समझते देर नहीं लगी कि, वह भूतों और भटकी हुई प्रेतात्माओं की बस्ती में घूम रहा है; इस प्रकार से अतिवाहकीय रूपों का लुकना-छिपना तो आम बात ही रहेगी.यही सोचता हुआ वह कुएं के पास आ गया और सोचने लगा कि, शायद नव्या की आत्मा उसे फिर से दिखाई दे जाए. परन्तु ऐसा नहीं हो सका. वह खड़े हुए ऐसा सोच ही रहा था कि, तभी उसके पीछे से किसी ने उसे संबोधित किया.'महोदय यहाँ किसके इंतज़ार में खड़े हैं आप ?''?' - नवेश ने पीछे मुड़कर देखा तो एक बूढ़ा आदमी, कोट-पेंट और टाई बांधे हुए उसी को बड़े ही कौतुलता के साथ देख रहा था.'अभी कुछ देर पहले मुझे यहाँ एक लड़की मिली थी. उसने कहा था कि, वह यहीं इसी कुएं के पास रहती है. सो मैं उसी को तलाश रहा था.'   नवेश ने कहा तो वह बूढ़ा व्यक्ति उससे बोला,'अच्छा, वह इंडियन लड़की?''जी हां. . .जी हां, वही.''तो फिर ढूँढ़ते ही रहो, लेकिन ज़रा होशियार रहना. वह अब शायद ही तुमको मिलेगी?'कहते हुए वह बूढ़ा व्यक्ति वहां से जाने लगा तो नवेश ने उसे रोकना चाहा और बोला कि,'सुनिए सुनिए. . .अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है.''क्या मतलब?''यही कि, आप कहना क्या चाहते हैं?''मैं कहना नहीं बल्कि आपको आगाह करना चाहता हूँ कि, यहाँ आपको सब मेरे जैसे और उस लड़की जैसे नहीं मिलेंगे, जो आप पर रहम करते रहें. खुदा-न-खास्ता अगर कोई सरफिरा मिल गया तो वह भी आपको हमारी दुनियां में  मिला लेगा और घर पर तब आपकी बीबी-बच्चे आपके वापस घर लौटने का इंतज़ार करते रह जायेंगे. बेहतर होगा कि, आप यहाँ से जल्द-से-जल्द बाहर निकल जाओ.''आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.'कहते हुये नवेश ने उस मनुष्य पर एक दृष्टि डाली तो वह तुत्न्त ही आश्चर्य से भर गया.'?' -  वह अनजान व्यक्ति भी अचानक से गायब हो गया तो नवेश उसे ठगा सा देखता ही रह गया. उसे समझते देर नहीं लगी कि वह सचमुच ही भटकी हुई रूहों के मरे हुए शरीरों के म्रत्युस्थान में घूम रहा है. लेकिन वह तो नव्या के फिर एक बार दर्शन करने के उद्देश्य से वहां ठहरा हुआ था और चाह्तास था कि, वह अंतिम बार उससे बात करके अपने किये पर क्षमा मांग ले. मगर, काफी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद भी जब नव्या उसे कहीं भी नहीं दिखाई दी तो उसने मायूस होकर अपने साथ में लाये हुए नव्या ही के सारे फूल उसी कुएं में समर्पित कर दिए; यही सोचकर कि ऐसा करना नव्या के लिए उसके निस्वार्थ प्यार की वह अंतिम विदाई और श्रृद्धांजलि थी जिसके कारण वह इस भयानक जंगल में अभी-भी भटक रहा था. वह जानता था कि, आज भी नव्या उसके साथ चले प्यार की डगर में उससे कहीं बहुत अधिक आसमान की सीढ़ियाँ चढ़ चुकी थी और वह अभी भी उसी स्थान पर, किसी ठहरे हुए झील के पानी सामान अपनेर किये पर पश्ताप कर रहा था. वह सचमुच मानव-जीवन की इस सच्चाई को समझ गया था कि, सच्चा प्यार वाकई में जीवन की आहुति चाहता है. उसने  मिताली के जीवन को शरण देकर, उसका भविष्य संभालकर, उसका मान रखकर अपनेर प्यार नव्या की कुर्बानी दी थी; दुनियां, समाज और ईश्वर की दृष्ट में अच्छा किया था अथवा गलत? वह नहीं जानता था.रात गहरा गई थी. दूर से शीशमगढ़ शहर की विद्दयुत बत्तियां मुस्करा रहीं थीं और गोरों के इस कब्रिस्थान के भयावह सन्नाटों से भरे जंगली इलाके में अजीब-अजीब तरह के कीडों-मकोड़ों और झींगरों की विभिन्न प्रकार की आवाजें उसे चले जाने की हिदायतें दे रही थीं.नवेश ने एक बार फिर से अपने चारों तरफ देखा. अंदर कुएं में झांका तो सिवाय तरह-तरह की आकृतियों के अलावा उसे कुछ भी नज़र नहीं आया. कौन जानता था कि, मानव-जीवन के पुतलों की शक्लों के सामान ये आकृतियाँ असली थीं अथवा झूठी? वह मन मारकर कुएं की मनि से नीचे उतरा और शीघ्र ही अपनी जीप में बैठ गया.थोड़ी ही देर में उसकी जीप शीशमगढ़ के जंगलों से बाहर निकल रही थी. मुख्य सड़क पर आते ही उसने जीप की रफ्तार को जैसे ही तीव्र करना चाह तो अचानक से जीप के सामने नव्या को खड़े देखते ही उसने जीप के ब्रेक कस दिए. इस प्रकार कि, जीप के टायर सूखी, काली तारकोल की सड़क पर चीं. . .चीं करती हुई रुक गई. रुक गई तो नव्या उसके सामने खड़ी हुई मुस्करा रही थी. उसे देखकर नवेश ने उससे जैसे विनती की. वह बोला कि,'तुम इसी तरह से मुझसे मेरे जीवन भर मिलती रहना तो मैं समझूँगा कि, मेरी नव्या मरी नहीं बल्कि अभी-भी जीवित है. मेरी दुनियां में न सही, चाहे अपने संसार में ही क्यों न. लेकिन वह जीवित तो होगी.''?' - इस पर नव्या ने उसे एक बार फिर से देखा. देखा तो उसकी आँखों से आंसुओं की दो पंक्तियाँ, उसके गोरे  गालों से सरकती हुई नीचे भूमि पर गिरने से पहले ही ठहर गईं.नवेश अभी भी उससे कही हुई अपनी गुजारिश के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा था. नव्या ने उसकी परेशानी समझी और फिर अपनी गर्दन न में हिलाकर जैसे कहा हो कि, 'ये उसके वश की बात नहीं है.'तभी नव्या जीप के सामने से हटकर साइड में आई और अपना हाथ हिलाकर नवेश से बोली,'बाय. . .बाय मिस्टर नवेश मिताली.'दूसरे ही क्षण वह वहां से गायब हो चुकी थी. नवेश ने बेबसी में बहुत देर तक उसका इंतज़ार किया और फिर जीप को आगे बढ़ा दिया- अपने घर की दिशा की तरफ.- 
समाप्त.