एपिसोड 1
🌹 तहम्मुल-ए-इश्क़ 🌹
इश्क़…
यह एक एहसास है, जो रूह से दिल तक और दिल से ज़िंदगी तक अपना रास्ता बनाता है।
ख़ूबसूरती तो हर चेहरे पर मिल जाती है, मगर इश्क़ का बोझ उठाने का हौसला हर किसी के बस की बात नहीं होती।
यह कहानी है एक हसीन और मासूम लड़की की,
जिसके चेहरे पर चमकते चाँद जैसी रौशनी थी,
जिसकी आँखों में बसी थी हज़ारों ख्वाहिशें,
और जिसके दिल में छुपी थी मोहब्बत की तड़प।
मगर…
ज़िंदगी ने उसके रास्ते में सिर्फ़ फूल ही नहीं बिछाए,
बल्कि कांटे भी दिए।
जहाँ लोग उसकी ख़ूबसूरती को देखते थे,
वहाँ कोई उसके दिल की चीख़ नहीं सुनता था।
यह दास्तान है हुस्न और मोहब्बत की,
यह तर्जुमा है सपनों और हक़ीक़त का,
यह सफ़र है तहम्मुल-ए-इश्क़ का…
जहाँ मोहब्बत सिर्फ़ चाहना नहीं, बल्कि सहना भी है।
लेखक मलीहा चौधरी
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डूबता हुआ सूरज उसकी नारंगी किरनें जैसे आसमान में फैली हुई थी, ऐसे ही उसके दिल और दिमाग पर डूबते सूरज की नारंगी किरनों की तरह कई सवालात गर्दिश कर रहे थे, जिसके वो हर रोज़ जवाब तलाशती थी।।
आसमान में चहकते चरिंद परिंद अपने अपने घोंसलों की तरफ वापस लौट रहे थे, असर और मगरिब का दरमियानी वक़्त था सूरज ग़ुरूब हो रहा था, हर जानिब लाल पीली हरी कई सारे रंगों में ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया के सारे रंग एक ही कर दिए गए हो, ऐसा ही तो था वो आसमानों ज़मीनों का बादशाह वो तो कुछ भी तो कर सकता था, उसको दुनिया के आरज़ी रंगों की क्या ज़रूरत थी, हल्की हल्की हवाएं चल रही थी जो आज के मौसम को निखार रही थी।।
"क्या कभी मेरी ज़िंदगी से ये अज़ाब ख़त्म होगा? मेरी ज़िंदगी में एक ख़लिश सी क्यों है?
"ये ज़िंदगी क्यों बनाई गई, इसका मक़सद क्या है? क्या ज़िंदगी का नाम सिर्फ़ दुख ही हैं? क्या ज़िंदगी में कभी ख़ुशियां भी मिलेगी? सवालों के बौछार ज़िंदगी के सितम, वो मासूम छोटी उमर लड़की जिस ने ज़िंदगी के महज़ चंद साल ही जीए थे इतने सवालात और वो भी जिस के जवाब हर किसी के पास नहीं होता उनको सोचने पर मजबूर थी।।
आख़िर वो क्यों थी मजबूर?? क्या उसकी ज़िंदगी ने उसको ऐसे दोराहे पर ला पटक था कि वो इन सवालात के जवाब ढूंढने पर मजबूर थी।।
वो टेरेस पर खड़ी नीचे की तरफ देख रही थी सब्ज़ हरी भरी लॉन एक जानिब लातादाद क़तार में लगे फूल जो सोने की तैयारी पकड़ रहे थे वो उन फूलों को अपने टेरेस पर खड़ी बहुत ग़ौर से देख रही थी जैसे अपने सवालों के जवाब तलाश रही हो।।
जब इंसान के पास ऐसा कोई जिन से वो अपने दिल की बात, अपने सवालों के जवाब अपनी ज़िंदगी का हर वो उतार चढ़ाव शेयर करने के लिए रिश्ता नहीं होता तो वो फिर क़ुदरती चीज़ों में वो तलाशने लगता है जो वो इंसान से चाहता है। और यक़ीन मानो ये सबसे ज़्यादा मुख़लिस दोस्त साबित होते हैं, हम अपना हाल बयान कर लेते हैं उनसे और वो ख़ामोशी के साथ ऐसे हमारी बातें सुनते है जैसे इस बात से ज़्यादा तो कोई अहम बात हो ही नहीं सकती, न वो इंसानों की तरह ग़म का नक़ाब चेहरे पर सजाए बात को सुनते है और सुन कर हंस कर उड़ाते हैं, अल्लाह की बनाई हर वो बेज़बान चीज़ उसके बंदे की बहुत ही मुख़लिस दोस्त साबित होती है।।
"आपि आपि जेरश आपि...!!!
ओफ़ीरा सआद अहमद दरमियान क़द, गोरारंग, पतली सुतवां नाक बड़ी बड़ी काली आंखें, कंधों तक आते सुनहरी बाल पतली सी ठोड़ी तल्ख़ बात करने वाली लड़की थी वो बात बोलने से पहले कभी नहीं सोचती थी कि सामने वाले को बुरा भी लगेगा या नहीं बस जो बोलना है बस बोलना है फिर चाहे सामने वाला उसकी बातों के तीर से मर ही क्यों न जाए उसको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था।।
वो जेरश को आवाज़ें देती बल्कि उसको ढूंढती टेरेस पर ही आ गई थी।।
"जेरश आपि आप यहां हैं? और मैं आपको कब से पागलों की तरह ढूंढ रही हूं वो माथे पर बल लाए बोली, लेकिन आप.....? उसके तो मुंह में ही अल्फ़ाज़ रह गए थे जब उसने जेरश को देखा था।।
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लंबा क़द, मोटी मोटी गुलाबी शराबी आँखें जो भी देखता दोबारा देखने की ख़्वाहिश ज़रूर करता, उन आँखों में हम्मा वक़्त वीरानी सी रहती थी। गोल चेहरा, गुलाबी पंखुड़ीदार होंट जो लिपस्टिक से बिल्कुल पाक थे, गुलाबी सफ़ेद रंग जो सूरज की टिमटिमाती रौशनी की तरह चमक रहा था। सराहीदार गर्दन जिस में वो एक छोटा सा लॉकेट पहने रखती थी, काले घने लंबे बाल जिसको उस ने जूड़े में मक़ीद किए हुए थे। वो काले लॉन्ग फ़्रॉक ज़ेब तन किए गले में दुपट्टा डाले, वो नज़र लग जाने की हद तक प्यारी कम गो शाहज़ादी लग रही थी।
"वाओ इट्स आ ब्यूटीफ़ुल!!" एक दम अफ़ीरा चल्लाई, उस के यूँ चलाने पर जेरिश ने उस की तरफ़ हैरत से देखा।
"क्या हुआ? ऐसे रिएक्ट क्यों कर रही हो?" जेरिश ने उस की तरफ़ देखते हुए पूछा था।
"आप बहुत प्यारी लग रही हैं, सच में इतनी ख़ूबसूरत लग रही हैं कि क्या बताऊँ?" अफ़ीरा जेरिश से बोल कर ख़ामोश हुई थी। और कुछ वक़्फ़ा बाद बोली— "वैसे आपी पड़ोस का वो लड़का है न रहीम, आप पर यूँ ही फ़िदा नहीं है। आपकी ख़ूबसूरती तो ऐसी है कि किसी अच्छे ख़ासे इंसान को जला कर ख़ाक कर सकती है अपने हुस्न से। फिर वो बेचारा क्या उस के सामने। उस का अंदाज़ ऐसा था कि जेरिश का दिल किया खुद को कहीं फ़ना कर ले, ख़ुदकुशी कर ले या फिर अपने आप को ज़मीन में ज़िंदा दफ़्ना दे।"
"अफ़ीरा स्टॉप इट…!!
तुम्हें अंदाज़ा भी है क्या बोल रही हो तुम? कुछ बोलते हुए अपने अल्फ़ाज़ों पर भी ग़ौर कर लिया करो।" जेरिश ने उसको डांटा था, जबकि अफ़ीरा ढीठ बनती मुस्कुराई थी।
"आपी, मैंने क्या ग़लत बोला है? सही तो बोल रही हूँ। आपका हुस्न है ही इतना पटाखेदार, जिसको भी चाहे ज़ोरदार धमाके से उस के दिल और दिमाग़ पर अपना क़ब्ज़ा कर ले।" वो ढीठ बनी बोल रही थी, ये जाने बग़ैर कि उस के अल्फ़ाज़ों से सामने वाले पर क्या बीत रही होगी।
"सही कहा है किसी ने कि मारते हुए के हाथ पकड़े जा सकते हैं, लेकिन बोलते हुए की ज़ुबान नहीं।" अफ़ीरा को जो बोलना था वो बोल चुकी थी। उस का मक़सद ही जेरिश रोहेल ख़ान को हर्ट करना था, सो वो कर चुकी थी।
अफ़ीरा सअद अहमद जेरिश रोहेल ख़ान से बहुत ही नफ़रत करती थी। दिल में कुछ और और चेहरे पर कुछ। वो जितनी सीधी मासूम दिखती थी, उस से कहीं ज़्यादा वो तेज़-तर्रार थी। कहने को वो जेरिश रोहेल ख़ान की छोटी बहन थी, लेकिन अस्ल में अफ़ीरा उसको बहन नहीं मानती थी बल्कि सौतेली बहन मानती थी। वही रवैया जो एक सौतेले के साथ किया जाता है, वो करती थी उस के साथ।
आख़िर वजह क्या थी अफ़ीरा की, जो वो जेरिश रोहेल ख़ान से इतनी नफ़रत करती थी??
क्या कभी उस की ये नफ़रत ख़त्म हो पाएगी?
क्या जेरिश को अफ़ीरा सअद अहमद अपना मान लेगी?
ये तो सिर्फ़ वक़्त ही बता सकता है।
"ख़ैर, आपको बाबा बुला रहे हैं स्टडी रूम में। जल्दी जाइए, वैसे ही काफ़ी वक़्त ज़ाया हो गया है।" वो जेरिश को सर-ता-पा देखते हुए बोली। जेरिश उसको बहुत अच्छे से समझ रही थी—उस का अंदाज़ बोलने का, आँखों का एक्सप्रेशन सब ही पहचानती थी, लेकिन कह कुछ नहीं पाई। क्योंकि बक़ौल जेरिश के, इन बोलने वालों के साथ एक बहुत बड़ा मज़बूत बैकग्राउंड है, जबकि मेरे पास रिश्ते के नाम पर सिर्फ़ माँ ही है।
बाबा के नाम पर जेरिश के चेहरे पर ख़ौफ़ आकर गुज़रा था। माथे पर हल्के-हल्के पसीने की बूंदें देखने लगीं। उस का दिल किया कि वो बहुत दूर चली जाए जहाँ ये आफ़त न हो। वो ख़ुद को संभालती बहुत देर तक ख़ामोश रही थी और फिर बोली—
"क…क्या ब…बाबा? वो मुझे क्यों बुला रहे हैं?" आवाज़ टूट-टूट कर अदा हो रही थी।
"मुझे क्या पता क्यों बुला रहे आपको? कुछ काम ही होगा।" अफ़ीरा कंधे उचकाती बोली। "वैसे डर क्यों रही हैं आप?" अफ़ीरा ने पूछा। जेरिश कुछ नहीं बोली तो वो फिर से ग़ोया हुई थी।
"बाय द वे, आप यहाँ क्या कर रही हैं?" अफ़ीरा ने उसको अजीब तलाशती नज़रों से देखा। जेरिश ने उसको देखा और फिर बोली—
"मैं तुम्हें बताना ज़रूरी नहीं समझती।" वो बोल कर उसको वहीं छोड़ते हुए बग़ल से निकल कर बाहर को चली गई थी।
"ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!!
बड़ी आई 'मैं तुम्हें बताना ज़रूरी नहीं समझती'!" वो उसके जाने के बाद जेरिश की नकल उतारते हुए ख़ुद से मुख़ातिब हुई और एक अदा से बालों को झटकती वहाँ से चली गई थी।
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"क्या यार हर बार तू ऐसा क्यों करता है? मतलब तुझे स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने के लिए पूरी यूनिवर्सिटी ज़ोर लगा रही हैं, लेकिन मुअज़्ज़फ़ के तो मिज़ाज ही सातवें आसमान पर चढ़े हुए हैं।।
शायान ने किन आँखों से उसकी तरफ़ देखकर कहा जबकि इसको शो ऐसे करवा रहा था जैसे वह सिमआन से बहुत नाराज़ हो।।
लेकिन मुकाबिल भी सिमआन अहमद था वह किसी की सुन ले, इम्पॉसिबल, नेवर!!
"कभी ऐसा हो ही नहीं सकता? जिस दिन हो गया तो दुनिया में उसने एक मरतबा ही न मिल जाएगा उसके नाम से वर्ल्ड का ख़िताब ही तो तैयार हो जाएगा ऐसा शायान को लगता था।।
"हहहहह!!
"वैसे एक क़िस्म के ढीठ बदतमीज़ जाहिल इंसान हो तुम।" वह ग़ुस्से से उसकी तरफ़ कुशन फेंकते खड़ा हुआ और गेट की तरफ़ बढ़ा, सिमआन जो ड्रेसिंग टेबल पर कुछ तलाश रहा था उसके यूँ ग़ुस्सा होकर जाने पर पलटा था।।
"एक क़दम अगर और तूने आगे बढ़ाया न तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा," वह गेट की तरफ़ जाते शायान को धमकी देने के से अंदाज़ में बोला, शायान के क़दम वहीं ठहर गए थे, चेहरे पर बहुत प्यारी मुस्कराहट दर आई। वह पलटा नहीं था क्योंकि वह आज अपना ग़ुस्सा नहीं बल्कि मसनूई ग़ुस्सा दिखाना चाहता था।।
सो वह दिखा रहा था। "तू अच्छे से जानता है, कि मैं क्यों नहीं ले रहा स्पोर्ट्स में हिस्सा फिर क्यों इतना ज़ोर दे रहा है तू?? जिस चीज़ पर कोई फ़ायदा नहीं है बात करने का तो लड़ाई क्यों कर रहा है?" वह बेबसी से बोल रहा था, आँखों के पपोटे लाल सुर्ख हो गए थे। वह इतना बेबस दिखाई दे रहा था कि शायान का दिल किया अपने जिगरी दोस्त को गले से लगाकर उसके हर दुख अपने अंदर समेट ले।।
वह एकदम सिमआन की तरफ़ बढ़ा था और उसको गले से लगाकर बोला:
"सम्मी मेरे भाई कब तक तू एक इंसान की वजह से अपने आप को अज़ीयत में रखेगा?
तू ये सोच ले न कि वह एक अजनबी है, बस अपने ख़्वाब को पूरा कर तू, उस ओर ध्यान दे सब कुछ भूल जा। ये सोच कि तू उनको नहीं जानता, जैसे सारी दुनिया तेरे लिए अजनबी है उनको भी तू देखकर इग्नोर कर दे।" शायान उसको समझाने की अपनी सी कोशिश कर रहा था।।
"नहीं भूल सकता यार!! उस शख़्स को मैं नहीं कर सकता इग्नोर क्योंकि वह अजनबी नहीं है, मैं लाख सही उनको नज़रअंदाज़ भी करूँ तो नहीं कर सकता। एक रिश्ता है उस शख़्स से मेरा और वह है नफ़रत का। मैं जब जब उस शख़्स की शक्ल देखता हूँ तो वह अज़ीयतनाक लम्हा मेरी आँखों के सामने फ़िल्म बनकर चलने लगता है।।" उसकी आँखों से एक आँसू टूटकर शायान की शर्ट में जज़्ब हो गया था। शायान ने उसकी पीठ को ठप ठपाया और फिर हँसते हुए बोला:
"अच्छा अच्छा मेरे भाई, बस भी कर दे अब रुलाएगा क्या?" वह आँखों से मसनूई आँसुओं को पोंछते सिमआन को मुस्कराने पर मजबूर कर गया था।।
"नहीं रुलाता, लेकिन एक शर्त पर??" सिमआन ने उसकी तरफ़ देखा, शायान ने झट से सिमआन को देखा और फिर ज़ोर से चिल्लाया था:
"नहींऽऽऽऽऽं!!"
उसने उसका इशारा समझते हुए वहाँ से दौड़ लगा दी थी। सिमआन ने उसको यूँ भागते हुए देखा तो उसका क़हक़हा इख़्तियार बुलंद था।।
"हाहाहा हाहाहा।।।
"बेटा हँस ले हँस ले लेकिन जेब ख़ाली मैं बिल्कुल भी नहीं करूँगा इंशा अल्लाह!!"
शायान ने सिमआन की तरफ़ दिल जला देने वाली मुस्कराहट पास करते बाहर को दौड़ लगा दी थी।
"जा बेटा, तू तो क्या तेरी परछाई भी जेब ख़ाली करेगी," सिमआन ने भी पीछे से हाँक लगाई थी।
शायान जो गेट के उस पार खड़ा सुन रहा था उसने अपना थोड़ा सा चेहरा दरवाज़े से अंदर किया और फिर बोला:
"चल बे, जेब ख़ाली करती है मेरी जूती!" और जल्दी से अपनी शक्ल गुम की थी कहीं सिमआन की जूती ही न उसकी शक्ल को बे-नूर कर देती।।।
वह ऐसे ही थे — एक-दूसरे के हमसाये, एक-दूसरे पर जान वारा देने वाले। बहुत ख़ूबसूरत थी उनकी दोस्ती, वह एक-दूसरे को दोस्त कम, भाई ज़्यादा मानते थे। दोनों बचपन के दोस्त थे। स्कूल, कॉलेज और अब यूनिवर्सिटी साथ-साथ पढ़ाई कर रहे थे। दोनों का एमबीए का आख़िरी साल था। पढ़ाई में बहुत ही होनहार थे। हाँ, कभी-कभी शायान कोताही कर देता था लेकिन सिमआन अहमद — वह कभी भी अपनी स्टडी को लेकर किसी भी चीज़ में समझौता नहीं करता था। जो ठान ली, बस फिर वह करना ही है चाहे फिर उसमें अपनी जान भी ख़त्म हो जाए।।
सिमआन अहमद:
संज़ीदा मिज़ाज, कम बोलने वाला, ग़ुस्से का तेज़, अहमद फ़ैमिली का सबसे बड़ा बेटा। लंबा क़द, कुश्ती बदन, सफ़ेद गुलाबी रंग, ब्लू आँखें जिन पर बड़ी-बड़ी पलकों की बाड़ थी, ख़ूबसूरत नाक, सुनहरी बाल। वह हर लिहाज़ से परफ़ेक्ट ख़ूबसूरत था। एक ज़माना उसकी ख़ूबसूरती का क़ायल था। लड़की तो लड़की, लड़के भी उसकी पर्सनैलिटी को देखकर रश्क करते थे उस पर।
वह अपनी यूनिवर्सिटी में हैंडसम बॉय के नाम से फ़ेमस था। होता भी क्यों न? आख़िर अल्लाह ने उसको हुस्न ही इतना दिया था। लेकिन कभी उसको अपने हुस्न पर ग़ुरूर नहीं हुआ था।।
शायान ख़ान:
शायान ख़ान, ख़ान फ़ैमिली का सबसे छोटा शरारती लड़का था। सिमआन जितना संज़ीदा था तो वह उतना ही शोख़ मिज़ाज का था। लंबा क़द, गोरा साफ़ रंग, कुश्ती बदन, मोटी-मोटी काली स्याह आँखें, काले बाल, भरी-भरी दाढ़ी। वह ख़ूबसूरत था लेकिन सिमआन से थोड़ा कम। वह जब भी बात करता तो सबका दिल मोह लेता था।
भई, आख़िर को वह हमारा शायान ख़ान था तो होता भी क्यों न। सिमआन की शायान में और शायान की सिमआन में जान बस्ती थी। बहरहाल, जो भी था, वह दोनों एक-दूसरे के बहुत ही अच्छे दोस्त थे और उनको अपनी इस दोस्ती पर फ़ख़्र था।।
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वो दरवाज़े को अंदर के जानिब धकेलती अंदर आ गई थी , साद साहब किसी फाइल का मुतालिआ कर रहे थे वो धीरे धीरे कदम बढ़ाती उनके पास जा कर रुकी थी , गर्दन नीचे झुकाए आहिस्ता से उस ने सलाम की ।
" अस्सलाम वालेकुम !!
" वालेकुम अस्सलाम , बहुत देर कर दी आने में ? साद साहब ने अपना चश्मा दुरुस्त करते हुए फाइल को एक तरफ रख कर उसको सर ता पा देखा था ।
" व वो मुझे अभी बताया है आफ़ीरा ने , वो उनकी नज़रों से घबराती खुद में सिमटी थी ।।
" हम्म ठीक है !!
बैठो साद साहब ने उसको बैठने का बोला वो खामोशी से उनके सामने वाली चेयर पर बैठ गई , अपने हाथों की उँगलियों को चटकाने लगी थी।।
" क्या सोचा फिर ? थोड़ी खामोशी के बाद वो बोले थे , जेरिश की तो साँसें ही रुक गई थी आँखों में बे तहाशा आँसू आ गए थे जिनको उस ने अपने अंदर धकेले वो बस खामोशी से साद साहब का चेहरा देखने लगी थी।।
" कुछ पूछा है मैंने ? साद साहब ने उसको न बोलते देखा तो अपनी बात पर ज़ोर देते बोले , अ आप क क्यों कर रहे हैं ऐसा ? अ आफ़ीरा भी तो है वो हिम्मत कर के आज बोल ही तो गई थी , म म मैं आपकी बेटी जैसी ही तो हूँ एक आँसू टूट कर उसकी हाथ की हथेली पर गिरा था ।
" बेटी जितनी हो , लेकिन बेटी हो तो नहीं , और फिर क्या हरज है ?? एक दिन की ही तो बात है जेरिश ने क़ुरब से आँखें मूद लीं थी ।
वो झटके से खड़ी हुई और फिर बोली " अंकल बेशक आप मुझे घर से निकाल दें , लेकिन जो आप सोच रहे हैं मैं उसको कभी नहीं कर सकती ये ना जायज़ रिश्ते , छी य य !! आपको शर्म आनी चाहिये म मैं आपकी बेटी से कुछ ही तो बड़ी हूँ वो एक ही जस्ट में सारी बात बोल गई थी रोज़ रोज़ से अच्छा था कि आज ही वो इस टॉर्चर को खत्म कर देना चाहती थी वो बोल तो गई थी , लेकिन अब उसको डर था कि कहीं गुस्से में उसकी बाप की उम्र का ये शख़्स कुछ कर ही न दें।।
साद साहब हल्का सा मुस्कुराए थे उनकी हँसी उस वक़्त शैतान की हँसी लग रही थी , ना जायज़ रिश्ते ?? तो फिर चलो जायज़ बना लेते हैं न ! वो बोल कर जेरिश को देख कर हँसे थे ।
जेरिश को तो यक़ीन ही नहीं हुआ सामने बैठा ये पचपन साल का शख़्स जिसके दो बेटे और एक बेटी थी व वो ऐसा बोल सकता था , जेरिश एक लम्हे को डगमगाई थी , अंकल आपको आपको मक़ाफ़ात-ए-अमल से डर नहीं लगता क्या पता जो आज आप मेरे साथ करने पर तैयार हैं वही दुख कभी आपकी बेटी पर भी आ जाए।।
" बस्स !! वो मेरी बेटी है साद अहमद खान की बेटी समझी आइन्दा कभी ये लफ़्ज़ ज़ुबान से नहीं निकालना और हाँ अगर मेरी बात नहीं मानी तो बहुत बुरा होगा सिर्फ़ आज आज रात का वक़्त है तुम्हारे पास , मुझे हाँ में ही जवाब चाहिये अगर मना किया तो मैं जो कर सकता हूँ फिर आपकी एक भी नहीं सुनूँगा , अब आप जा सकती हो।।
जेरिश ने आँसुओं से लबालब आँखें उठा कर उस ज़ालिम सिम्त इंसान को देखा था कैसे उस शख़्स पर हैवानियत तारी थी , जो अल्लाह की मार से भी नहीं डर रहा था।।
वो भारी क़दमों से स्टडी रूम से बाहर निकली और बेदर्दी से आँसुओं को रगड़ती अपने रूम की तरफ चली गई थी ।।
" क्या जेरिश , साद अहमद साहब के सामने झुक जाएगी ?
" क्या होगा उसका आख़िरी फ़ैसला ?
" क्या वो कोई क़दम उठाएगी इस गुनाह से बचने के लिये ?
ये तो आने वाले कल ही बतायेगा ।।
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वैसे इस दुनिया के इंसान बहुत ही ज़ालिम होते हैं दूसरों के पाकीज़ा जज़्बातों के साथ ऐसे खेलते हैं जैसे ये इंसान नहीं एक मिट्टी की गुड़िया हों, जैसे छोटा सा बच्चा जब एक ख़ूबसूरत गुड़िया को देख कर उसको अपने पास रखने की ख़्वाहिश करता है न ऐसे ही बड़े होने के बाद वो इंसान जिसमें जज़्बात जैसे एहसास से आरी किसी ख़ूबसूरत लड़की को देख कर ऐसी ख़्वाहिश करता है, लेकिन बच्चे की ख़्वाहिश और एहसास से आरी शख़्स की ख़्वाहिश में बहुत फ़र्क़ होता है, बच्चा उस गुड़िया को संवारता है, उसका ख़याल रखता है और उसको खेल कर उसकी सेफ़्टी करने के लिए उसको अच्छी तरह संभाल कर रख देता है, लेकिन एहसास से आरी शख़्स उस ख़ूबसूरत गुड़िया के साथ ऐसे खेलता है कि उसको दोबारा खेलने के क़ाबिल नहीं छोड़ता, उसको ज़िंदा ही मुर्दों में शामिल कर देता है, वो जो किसी घर की शहज़ादी, किसी की बहन, किसी की बीवी, तो किसी की माँ या फिर किसी की बेटी होती है, वो इस एक खेल नहीं नहीं खिलौना बनने के बाद ज़िंदा लाश बन कर रह जाती है, वो जीने के क़ाबिल नहीं रहती, वो जीती तो है लेकिन मरने और जीने में फिर कोई फ़र्क़ नहीं रहता।।
मुझे बताइए क्या ख़ूबसूरत होना ग़लत है? अगर अल्लाह ने किसी को ख़ूबसूरती जैसी अनमोल नेमत दे ही दी है तो अपनी उम्र से छोटी लड़कियों की ख़ूबसूरती को देख कर मर्द उसका मौशरे में रहना अज़ाब बना देते हैं, फिर वो अपनी उम्र नहीं देखते, कि तुम्हारी उम्र क्या है? तुम उसके बाप के उम्र के हो भी कि नहीं, आज कल की नौजवान नस्लों में सबसे बड़ा हाथ बिगाड़ने का हमारी ओल्ड जेनरेशन का है।।
जानते हैं क्यों? क्योंकि जब बच्चा छोटा होता है तो उसको कुछ नहीं पता होता और माँ बाप वो घर में ऐसी ऐसी हरकतें करता है और माँ बाप उसकी इन हरकतों पर हँसते हैं, मुस्कुराते हैं और बात और उसकी हरकत को हँसी में टाल मटोल कर देते हैं, फिर जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है वो नाजायज़ ख़्वाहिशें करने लगता है जिसको माँ बाप हँसी-ख़ुशी ये समझ कर पूरी कर देते हैं जैसे कि ये उनकी अपने बच्चे के लिए बे तहाशा मोहब्बत है, जबकि वो नहीं जानते कि उनकी ये मोहब्बत उसको कितनी बड़ी बुराई की तरफ़ ले जाती है, जब बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो उसकी ये ख़्वाहिशें ज़िद में तब्दील हो जाती है, वो उम्र के इस मोड़ पर आ जाता है जहाँ से वापस होना कम-अज़-कम उसके लिए तो बहुत ही मुश्किल होता है 🥺🥺❤️ फिर वो अपनी मनमानी करने लगता है, वो किसी की नहीं सुनता और ये माँ बाप ख़ुद इस तह पर पहुँचाते हैं बच्चे को, अब क्या फ़ायदा रोने का, क्योंकि ये नाजायज़ ख़्वाहिशों का बीज भी तो वो ख़ुद ही बोते हैं, अब काटना भी उनको ही है, फिर वक़्त के साथ-साथ बहुत से तो सुधर जाते हैं या वक़्त की मार उनको सुधरने पर मजबूर कर देती है जबकि बहुत-से में वक़्त के साथ-साथ और भी बुराइयाँ उनके अंदर आ जाती हैं और वो इन बुराइयों की दलदल में फँस जाते हैं, कहते हैं न जैसा बीज बोने के लिए तुम ज़मीन में दबाओगे वैसी ही फ़सल पैदा होगी और अब चाहे फ़सल अच्छी हो या बुरी, काटनी तो पड़ेगी ही, अब उनको तुम कहीं फेंक तो नहीं सकते, इस लिए कहते हैं कि वक़्त रहते अपने बच्चों को अच्छी तालीम दो, अल्लाह का डर, उनकी मोहब्बत बच्चे के दिल में पैदा करो ताकि वो अच्छे काम करें, अल्लाह का ख़ौफ़ उसके दिल में हो, बुरा काम करते वक़्त उसको अल्लाह याद आ जाए, उनका अतीत, उनका आज और उनका मुस्तक़बिल तीनों ही महफ़ूज़ रहें।।
वो रूम में आई थी, अपना दुपट्टा उतार कर दूर उछाला और चिल्लाती हुई वहीं बैठती चली गई थी।
"अल्लाह ह ह ह ह ह !!!
बालों को अपनी मुठ्ठी में बेदर्दी से जकड़े वो बे तहाशा रो रही थी, अल्लाह तूने मुझे ये ख़ूबसूरती दी ही क्यों? म मुझे नहीं चाहिए ये अज़ाब बना देने वाली ख़ूबसूरती, वो अल्लाह से शिकवा कुना थी, मुझे तू बदसूरत ही बना दे, मेरा ये हुस्न छीन ले, कम-अज़-कम इस दुनिया के ये शैतान मुझे देखना तो पसंद नहीं करेंगे, मेरी शक्ल को देख कर सौ बार मुँह तो मोड़ लेंगे, अब वो अपना दर्द अपने रब से बयान कर रही थी।।
तभी दरवाज़ा नॉक हुआ, उसने अपने आँसुओं को बेदर्दी से पोंछा और अपना दुपट्टा उठा कर कंधों पर डाला, अपना हुलिया दुरुस्त करते हुए दरवाज़ा खोल दिया था।।
"आमिर ??