Surrogate Mother in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | सरोगेट मदर

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सरोगेट मदर

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी घुंघराले बालों, भूरी आंखों और रंगीन बुशर्ट वाला एक सुंदर लंबा- चौड़ा आदमी खिड़की में खड़ा होकर चांद की तरफ देख कर एक आह भरता है। अचानक कमरे में एक आवाज़ आती है, 'रंजीत ...।' यह आवाज़ उसकी दूसरी पत्नी तृप्ति की थी‌। रंजीत सिगरेट का एक कश ज़ोर से लेकर सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक देता है फिर बुरा- सा मुंह बनाकर कहता है, 'हां तृप्ति, क्या है...?' 'ग्यारह‌ बज गए, कब सोओगे?' अभी नींद नहीं आती। तुम सो जाओ, मैं आता हूं। ज़रा एक सिगरेट और पी लूं। यह कहकर एक सिगरेट निकालकर लाइटर से जलाता है और चांद सेे बातें करने लगता है? तृप्ति कहती है, 'कुछ बताओगे भी, हुआ क्या है?'रंजीत फिर क्रोध से लगभग  चिल्लाकर कहता है, 'बार-बार परेशान क्यों करती हो?' तृप्ति की आंखों मेंं आंसू आ जाते हैं रोती हुई खिड़की से चली जाती है ...। परेशान हाल रंजीत लाइट बंद कर देता है और सोफे पर लेट जाता है।जैसे ही वह नींद के आगोश में गया, किसी से बातें करने लगता है। उसे कमरे में एक लड़की के नाचने का आभास हुआ। लड़की अभी कच्ची उम्र की ही है। शीशे के सामने अटखेलियां करती नाच रही है। सड़क के आवारा छोकरो को देखकर डांस के सीखें स्टेप्स करते हुए उसे अपने शरीर की थिरकन निहारना सुखद लगता है, वह निर्लज-सी सोच रही है 'उसकी और कोई क्यों नहीं देखता?'रंजीत ने इस लड़की को पहली बार देखा था, 'हूबहू उसकी पहली पत्नी नेहा की कॉपी थी। उसे लगा, 'यह तो मेरी बेटी है...। मेरी और मेरी पहली पत्नी नेहा के डिंब से पैदा हुई लड़की जो एक सरोगेट मदर की कोख में पली है। वह चिल्ला कर कहता है, 'शर्म नहीं आती, तुम्हारी रगों में कुंवर का खून बह रहा है और तुम ऐसी अश्लील हरकतें कर रही हो।'तभी उस लड़की की सरोगेट मदर आ जाती है। वह व्यंग्य भरे लहजे में कहती है, 'कुंवर साहब जब आपको पता चला, आपकी बेटी की सरोगेट मदर हिंदू नहीं है, बल्कि क्रिश्चियन है तो आपने अपनी बेटी को धिक्कार दिया। यह जो आपने सपने में देखा, ट्रेलर था पिक्चर अभी बाकी है। जब यह ख्वाब हकीकत में बदलेगा तब क्या होगा? कल सुबह के छः बजे मेरा आपके साथ किया एग्रीमेंट ख़त्म हो जाएगा। उसके बाद न आप इसके पिता रहेंगे, न यह आपकी पुत्री। इसका नसीब तय करेगा, 'यह उमराव जान बनेगी या किसी हवेली की बेगम साहिबा।'यह सुनकर तृप्ति सहम जाती है, कमरे की लाइट ऑन करती है। रंजीत जाग जाता है।  हड़बड़ाया हुआ, वह लाकर खोलता है, नोटों की गड्डियां लेकर घर से निकल जाता है। तृप्ति खिड़की से उसकी फर्राटा भरती गाड़ी को जाता देखती रहती है।कई घंटे बाद रंजीत एक नवजात बच्ची को गोद में लेकर लौटता है। तृप्ति आश्चर्यचकित होकर पूछती है, 'किसकी बच्ची उठा लाए?'  वह उसे यह कहानी सुनाता है ...।मैं कुंवर धीरेंद्र प्रताप सिंह की अकूत संपत्ति का इकलौता वारिस था और मेरी पहली पत्नी नेहा हीरे-जवाहरात में लिपटी हाउसवाइफ थी। मैं कुंवर हूं, यानी ठाकुर का पुत्र इसलिए अपने को श्रेष्ठ मानता था। यह संज्ञान आसपास के लोगों से मुझे खुद को ऊंचा उठा देता। मैं श्रेष्ठ हूं तो श्रेष्ठ दिखना भी चाहिए, सो कीड़े मकोड़े की तरह रेंगते अपने बदहाल रिश्तेदारों से मैंने कब का किनारा कर लिया था। हमारे विवाह को कई साल गुज़र गए थे फिर भी घर का आंगन बच्चे की किलकारियों बिना सूना था। जब से नेहा ने मुझे मां बनने का शुभ संदेश दिया था, आईने के सामने खड़े होकर अपने भावी शिशु के रूप-रंग की कल्पना करना मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया था।'डॉक्टर के पास चले? मैंने नेहा से पूछा।''तनिक रुक जाओ। नवरात्र शुरू होने जा रहे हैं। रामनवमी को चलेंगे, शुभ दिन है।' पत्नी ने उत्तर दिया।'ओ.के. डार्लिंग। मैंने प्रशंसा भरी नज़रों से पत्नी को देखा, 'वैसे तुम इस मायने में बहुत समझदार पत्नी हो। ना जल्दबाज़ी की, न देरी मां बनने में। बहुत जल्दी बाल बच्चों के बंधन में कैद होकर रह जाना मुझे गवारा नहीं। फिर सही समय पर मान गयी। राइट थिंग्स इन राइट ऑर्डर।डॉक्टर ने थारो चेक-अप किया, फिर मौन हो गये। कुछ बोलते क्यों नहीं? एक- एक पल मुझे एक-एक युग की तरह भारी लग रहा था।'क्यों सब ठीक तो है डॉक्टर!' मैंने डरते-डरते पूछा।'वैसे तो सब ठीक है, बस ज़रा सी दिक्कत है। यह दवाएं लेते रहे, वह भी दूर हो जानी चाहिए। तब तक वेट कीजिए।''पर दिक्कत है क्या?''फैलोपियन ट्यूब में हल्की सी स्वेलिंग है।'अगले सप्ताह मैं नेहा को फिर डॉक्टर के पास ले गया, लेकिन दिक्कत दूर नहीं हुई। अगली बार डॉक्टर ने सैंपल लेकर बायप्सी के लिए भेज दिया और कहा, 'फेलापियन ट्यूब संकरी होती जाएगी, फिर चोक्ड!''क्या कहते हैं संकरी...?''हां, बताया ना एक गांठ है, अगर वह गल जाती तो...! लेकिन...' 'लेकिन क्या?''देखिए कोशिश तो कर रहे हैं, मगर...'डॉक्टर ने रूककर उनकी आंखों में झांकते  हुए पूछा, 'एक बात पूछूं मिस्टर रंजीत, आप भगवान में विश्वास रखते हैं?''बिल्कुल।''तो प्रार्थना कीजिए, और सब कुछ उस पर छोड़ दीजिए। अगर यह गांठ गली नहीं और मासिक रुक गया तो लंबे जटिल ट्रीटमेंट में जाना पड़ेगा और फिर बायोप्सी की रिपोर्ट तो है ही।''हम दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया।'हम दोनों ने प्रार्थनाओं का दौर शुरू किया। दिन पर दिन बीत रहे थे। घड़ी की चुक- चुक पर चुक रहा था धैर्य- अगर नि:संतान ही रह गए तो...? डॉक्टर ने कहा, 'वैसे तो ट्रीटमेंट चल रहा है, पर आप रिस्क क्यों ले रहे हैं? इसके पहले की डिंब का आना बंद हो जाए, आप दूसरे विकल्पों की ओर स्विच ओवर क्यों नहीं कर लेते?''दूसरे विकल्प यानी...?''टेस्ट ट्यूब थिरैपी!'टेस्ट ट्यूब का नाम आते ही हम दोनों को साँप सूंघ गया। कभी सोचा भी ना था कि इसकी नौबत आएगी।'आप चौक क्यों गए टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम पर?''मुझे यह निहायत गलीज़ लगता है।''अरे नहीं, अब तो यह आम होता जा रहा है। वह बच्चा भी तो आपका और आपकी मिसेज़ का ही होगा। फर्क सिर्फ इतना होगा कि वह पलेगा किसी और की कोख में।''किसी और की कोख में? किसी और की यानी कि...?' मुझे अचानक ही कई चेहरे याद आए..., बाप रे, वह गंदी औरतें होगी, उनके बच्चे की सरोगेट मदर। उन नापाक गंदी कोखों में पलेगा मेरा ठाकुर वंशीय छोटा कुंवर...?डॉक्टर की आवाज़ पर मेरा ध्यान टूटा, रंजीत साहब आप समझते क्यों नहीं..., किसी गैर का बच्चा अडॉप्ट करने से तो यह लाख गुना बेहतर है। 'और बायप्सी टेस्ट रिज़ल्ट क्या रहा?''अरे आपको बताया नहीं, ओ सॉरी! अनफॉर्चूनेटली रिज़ल्ट तो पॉज़िटिव है।'हम उदास हो गये। डॉक्टर बोले, 'बट डॉन्ट वरी। कैंसर का प्रारंभ है। जितनी जल्दी ट्रीटमेंट शुरू कर देंगे, इतनी जल्दी क्योर हो जाएगी।'मेरे मन को थोड़ी राहत मिली। दोनो खबरें सुकूनदायी थी, एक तो नेहा का कैंसर प्राइमरी स्टेज पर ही डिटेक्ट हो गया और वह ठीक हो जाएगी, दूसरे किराए की कोख में हमारा भ्रूण सुरक्षित रहेगा। बच्चा पैदा होने के बाद तो उनका ही होगा। इसे यूं माना जा सकता है जैसे उनका छोटा कुंवर कुछ दिनों के लिए बोर्डिंग में पढ़ने गया हो। बहुत दिनों बाद मेरे मुरझाए चेहरे पर रौनक आई। बहुत दिनों के बाद एक बार फिर मैं आईने के सामने खड़ा हुआ। फिर परीक्षण- निरीक्षण का दौर शुरू हुआ। डॉक्टर ने मुझसे पूछा, 'कुंवर साहब, क्या बात है, कुछ परेशान से लग रहे हैं?''अरे वह सरोगेट वाली औरत! आप जाने, सारा दारोमदार  उस पर है। अगर वह ऐरी- गैरी मिली तो सब कुछ बेकार हो जाएगा। डॉक्टर ने सिर हिलाया और अंदर चले गए। थोड़ी देर बाद हाथ में दस्ताने निकालते हुए बाहर आये, बोले 'वह रही तुम्हारी बच्चे की सरोगेट मदर- देख लो।'मैंने और मेरी पत्नी ने उस औरत को देखा, गोल चेहरा, गोरा, एक दो काली काली चित्तियां, चेहरे पर दीनता की झाइयां... आयु 25- 30 की लग रही थी। 'पसंद आई?' डॉक्टर ने धीरे से पूछा, जैसे सरोगेट की नहीं शादी की बाबत पूछ रहे हो। 'तुम्हारा नाम क्या है?' मैंने पूछा। 'मीरा।' उसने धीरे से कहा। 'तुम किस जाति की हो?' मैंने प्रश्न किया।'जाति बाद में पूछना। भाभी की जो हालत है, तुम वेट नहीं कर सकते। तुम्हें तत्काल चाहिए थी। तुम बस भगवान का शुक्रिया करो। मैंने हाथ जोड़कर भगवान से कहा, 'गनीमत है हिंदू औरत मिल गई, ठकुराइन तो मिलने से रही।'मैंने डॉक्टर से पूछा,  'मेरा बच्चा हर तरह से सेफ तो रहेगा?'उसी के लिए तो लीगल एग्रीमेंट कर रहे हैं। एक लाख अभी देना है, एक लाख डिलीवरी के बाद बच्चा लेते समय।'औरत में हमारा भ्रूण स्थापित करने के बाद डॉक्टर ने कहा- 'आप लोग हमारी तरफ से बेफिक्र होकर जाइए, मिसेस का ट्रीटमेंट कराइए और वे स्वस्थ होकर बाकी एक लाख देकर नौ महीने में आकर अपना बच्चा ले जायें।'वक्त वक्त की बात है। हालात को देखकर इससे बेहतर कुछ और होना संभव भी ना था। यह सोचकर दिल को तसल्ली दी। नेहा की कीमोथिरेपी शुरू हुई। डॉक्टर से अक्सर हाल- हवाल मिल जाता बेबी के ग्रोथ का।सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। यकायक नेहा का कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच गया। घर में 'मानस', 'हनुमान चालीसा', 'संकट मोचन'के साथ कुछ और प्रार्थनाएं जुड़ गई। फिर एक दिन मैंने नेहा को भगवान के सामने गिड़गिड़ाते हुए सुना,  'इतनी ज़िंदगी दे दे कि मैं अपनी शिवानी का मुंह देख लूं।''उफ! मेरा दिल जैसे असह्य वेदना से भर उठा। मैं मीरा के घर गया, 'इस उम्मीद से की कभी-कभी बच्चे वक्त से पहले भी पैदा हो जाते हैं। मैंने उसे मीरा कहकर पुकारा। उसने कहा, 'मैं मीरा नहीं मारिया हूं।' 'क्या कहा ईसाई...?' जैसे पांव के नीचे बिच्छू आ गया हो। अंदर ही अंदर रो पड़ा, 'अभी यह दिन भी देखना बाकी था, मेरी बेटी पले ईसाई की कोख में।' पर मैं कुछ बोला नहीं। मैंने नेहा के इलाज में पैसा पानी की तरह बहाया, मगर कैंसर ले ही गया उसको। नेहा की तेरहवीं के बाद मैंने संतान पाने के लिए तुमसे शादी कर ली।आज मेरी बेटी का जन्म हुआ। डॉक्टर ने मुझे बेटी ले जाने के लिए कई बार फोन किया पर मैंने उसका फोन अटेंड नहीं किया। मैं नहीं चाहता था, एक ईसाई औरत की कोख में पली लड़की मेरी बेटी बने। मुझ पर धिक्कार बरस रहे थे। तुमने नींद में मुझे बडबडाते सुना, वह मेरी अंतरात्मा की आवाज़ थी। भगवान की कृपा से समय रहते शिवानी को ले आया। वरना जो तुमने मुझे सपने में बड़बड़ाते सुना था, वह मेरी बच्ची की जवानी आते- आते हक़ीक़त में बदल जाता। मैंने तृप्ति से बच्ची की मां बनने को कहा पर उसका उत्तर कितना सपाट था। , 'मैं तुम्हारे साथ जो दहकते दिन बिता चुकी हूं अब ये शून्य में ढलकते दिन नहीं बिता सकती, तुम भी स्वतंत्र हो मेरी तरफ से।' उसने कंधे पर बैग टांगा और हवा के झोंके की तरह निकल गई। मैं बार-बार उसे पुकारता रहा पर वह नहीं रुकी। मैं कहीं फंस सा गया था। तृप्ति मेरी सारी सुवास लेकर चली गई। भूख से बिलखती शिवानी मेरे हृदय के स्पंदन को बढ़ा रही थी। मैं सोचने लगा, 'कहीं मेरी बच्ची भूखी मर ना जाए ?' मैंने आनन- फानन मैं बच्ची को गोद में उठाया और उसकी सरोगेट मदर को वापस देने ले गया। उसने ने बच्ची को कलेजे से लगा लिया और उसकी भूख मिटा दी। मैंने बच्ची की छवि को आंखों में उतारा और घर वापस चला गया। घर पहुंचा तो देखा तृप्ति शिवानी के लिए बेबी फीडर लेकर आई है। मैंने तृप्ति से कहा, 'तुमने मां बनने में बहुत देर कर दी।'उसकी आंखें छलक आई और रूंधे गले से शिवानी को वापस लाने के लिए मिन्नतें करने लगी।मैं उसे वापस लेने गया। दरवाज़े पर ताला लटक रहा था। सरोगेट मदर उसे लेकर जा चुकी थी।शिवानी मेरी सारी सुवास लेकर जा चुकी थी। मैं उसे ढूंढता रहा। वर्षों बाद वह मिली पर उमराव जान बन चुकी थी।348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बायपास, बरेली ( उ प्र) 243006 मो: 9027982074 ई मेल wajidhusain963@gmail.com