{ पहली मुलाक़ात }
कॉलेज का नया सेशन शुरू हुआ था। कैंपस में हर जगह हलचल थी—कहीं नए स्टूडेंट्स का उत्साह, कहीं सीनियर्स का रौब। गलियारों में पोस्टर्स लगे थे कि “वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव अगले महीने होगा।”
मायरा भीड़ में चलते-चलते अपने ही अंदाज़ में दोस्तों को हँसा रही थी। वो ऐसी लड़की थी जिसकी मौजूदगी से माहौल बदल जाता था। उसकी आवाज़ में उत्साह और चेहरों पर मुस्कान खींचने की ताक़त थी। हर क्लास में वो सबसे आगे रहती, हर एक्टिविटी में उसका नाम जरूर होता।
लेकिन उसी कॉलेज के एक कोने में, डिज़ाइन रूम में, कोई बिल्कुल उल्टा लड़का बैठा था — आर्यन।
वो अपनी मेज़ पर झुका हुआ स्केच बना रहा था। बाहर की हलचल से जैसे उसका कोई लेना-देना नहीं था। उसके लिए पेंसिल और काग़ज़ ही उसकी दुनिया थे।
आर्यन कपड़ों के डिज़ाइन बनाता था। ये उसका पैशन था, मगर वो इसे सबके सामने खुलकर कभी नहीं दिखाता। क्योंकि उसे पता था—लोग मज़ाक उड़ाएँगे।
उसी दिन क्लास के बाद मायरा अपने थिएटर ग्रुप के साथ रिहर्सल कर रही थी। नाटक के लिए उसे एक खास ड्रेस चाहिए थी—ऐसी जो उसके किरदार की जान बन जाए। लेकिन सीनियर्स ने साफ़ कहा था कि “कॉलेज का बजट नहीं है, अपने हिसाब से देख लो।”
मायरा थोड़ी परेशान हो गई। दोस्तों ने सलाह दी कि “साधारण ड्रेस पहन ले, स्टेज पर तो एक्टिंग से ही जान डालनी है।”
मगर मायरा ऐसी नहीं थी। वो मानती थी कि किरदार की आत्मा उसके कॉस्ट्यूम में भी छिपी होती है।
शाम को वो कैंपस में घूमते-घूमते डिज़ाइन रूम के पास से गुज़री। दरवाज़ा आधा खुला था। अंदर उसने देखा—एक लड़का ध्यान से काग़ज़ पर कुछ बना रहा है।
उसके चारों ओर रंगीन कपड़ों के टुकड़े बिखरे थे।
“ये कौन है?” उसने धीरे से सोचा।
वो चुपचाप अंदर चली गई।
आर्यन ने सर उठाया और चौंक गया। उसके कमरे में कोई आया था, जो मुस्कुराते हुए उसके बनाए स्केच को देख रही थी।
“ये… सब तुमने बनाया है?” मायरा ने पूछा।
आर्यन कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे से बोला,
“हाँ… शौक है बस।”
मायरा ने स्केच उठाकर देखा। ड्रेस इतनी खूबसूरत थी कि उसकी आँखों में चमक आ गई।
“कमाल है! अगर तुम चाहो तो हमारे नाटक के लिए ड्रेस बना सकते हो?”
आर्यन ने झिझककर उसकी तरफ़ देखा। उसकी आदत नहीं थी कि कोई उसके काम की तारीफ़ करे।
“नाटक?”
“हाँ… मैं ‘सीता’ का रोल कर रही हूँ। मुझे खास कॉस्ट्यूम चाहिए। तुम बनाओगे?”
आर्यन ने पेंसिल घुमाई, जैसे सोच रहा हो।
“शायद… हाँ।”
बस इतना कहकर उसने फिर सिर झुका लिया।
मायरा ने मुस्कुराते हुए कहा,
“तो तय रहा। कल से मैं तुम्हें परेशान करने आऊँगी।”अन्सुन
वो हँसते हुए चली गई।
आर्यन चुपचाप उसे जाते देखता रहा।
अगले दिन मायरा वाकई वहाँ पहुँच गई।
वो लगातार बातें करती रही—अपने डायलॉग्स, अपने सपनों, अपने दोस्तों के बारे में। और आर्यन बस सुनता रहा। बीच-बीच में छोटा-सा जवाब देता, मगर उसकी आँखें उसके काम पर टिकी रहतीं।
मायरा को हैरानी होती थी कि कोई इतना चुप रहकर भी इतना कुछ कैसे कह सकता है।
वो जानती थी कि आर्यन हर बात सुनता है, महसूस करता है, बस बोलता नहीं।
एक बार उसने मज़ाक में कहा,
“तुम्हें पता है? तुम्हें देखकर लगता है जैसे तुम किसी दूसरी ही दुनिया के हो। हम सब बोलते रहते हैं और तुम बस… अपनी पेंसिल से जादू करते रहते हो।”
आर्यन हल्की-सी मुस्कान देकर फिर ड्रॉइंग में खो गया।
दिन बीतते गए। मायरा को अब हर रोज़ डिज़ाइन रूम में जाना अच्छा लगने लगा।
वो ड्रेस के बहाने जाती, लेकिन अंदर ही अंदर उसे अच्छा लगता कि कोई उसकी बातें चुपचाप सुन रहा है।
एक शाम बारिश हो रही थी। मायरा भीगकर आई। उसके बालों से पानी टपक रहा था।
वो हँसते हुए बोली,
“देखो, मैं बिलकुल गीली बिल्ली बन गई हूँ। अब तो तुम मुझे बाहर निकाल दोगे।”
आर्यन ने पहली बार सीधे उसकी आँखों में देखा।
“सर्दी लग जाएगी… यहाँ बैठ जाओ।”
उसने धीरे से कुर्सी खिसकाई।
मायरा ने महसूस किया कि उसके शब्द कम हैं, मगर परवाह गहरी है।
जैसे-जैसे ड्रेस पूरी होने लगी, वैसे-वैसे उनके बीच एक अनकहा रिश्ता भी बनने लगा।
मायरा जानती थी कि वो कुछ खास है, और आर्यन के दिल में उसके लिए जगह बन रही है।
लेकिन दोनों में से किसी ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा।
कॉलेज के गलियारों में लोग कहते,
“लगता है मायरा और वो चुपचाप वाला लड़का कुछ ज्यादा ही टाइम बिता रहे हैं।”
मायरा बस मुस्कुरा देती।
और आर्यन? वो तो और भी चुप हो जाता।
नाटक का दिन आया।
मायरा ने वो ड्रेस पहनी जो आर्यन ने बनाई थी। आईने के सामने खड़ी होकर उसने कहा,
“तुम्हें पता है? ये ड्रेस सिर्फ़ कपड़ा नहीं है… ये मेरी पहचान है।”
आर्यन ने उसकी तरफ़ देखा, कुछ कहना चाहा… लेकिन शब्द नहीं निकले।
उसकी आँखें सब कह रही थीं।
स्टेज पर मायरा ने जब एंट्री ली, तो पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा।
सब उसकी एक्टिंग और खूबसूरती की तारीफ़ कर रहे थे।
लेकिन भीड़ में, मायरा की नज़र सिर्फ़ एक शख्स को ढूँढ रही थी।
आर्यन।
वो चुपचाप सबसे पीछे खड़ा था।
उसकी आँखों में गर्व और अपनापन साफ़ झलक रहा था।