रात के ग्यारह बजे थे। आकाश चमकीले तारों से भरा हुआ था। चाँद इस तरह चमक रहा था मानो पूर्णिमा की रात में दूसरा सूरज ही निकल आया हो। चारों ओर ऐसा सन्नाटे की नुकीली सुई कानों में चुभ रही हो।
पार्क में एक खंभे के नीचे, जहाँ बल्ब जल रहा था, सीमेंट की बनी एक छोटी-सी बेंच रखी थी। उसी पर काले ओवरकोट में सिर झुकाए एक युवक बैठा था। उसके पास ही उसका बैग रखा था। वह कोई और नहीं बल्कि ऋषि था—जो दो दिन पहले ही अपने घर से भाग निकला था।
“लगता है आज भी मुझे भूखे पेट ही सोना पड़ेगा… कोई बात नहीं, कल सूरज निकलते ही मैं नानी के घर की ओर चल दूँगा। इतनी दूर आ ही चुका हूँ, अब हिम्मत तोड़ने का कोई लाभ नहीं।”
ऋषि धीमी आवाज़ में स्वयं से बड़बड़ा रहा था।
उसकी आँखों से बड़े-बड़े आँसू ढुलक रहे थे। उसकी दृष्टि एक तस्वीर पर टिकी थी—उस तस्वीर में तीन साल का छोटा-सा ऋषि अपनी माँ के साथ मुस्कुरा रहा था।
धीरे-धीरे उसकी साँसें भारी होने लगीं। वह और रो सकता था, पर उसने स्वयं को सँभाला और तस्वीर को बैग में रख दिया। आँसू पोंछकर बैग उठाया और बच्चों की फिसलपट्टी के नीचे बने एक छोटे से खाली कोने में जाकर लेट गया।
ठंड से उसका शरीर काँप रहा था। हथेलियाँ सुन्न पड़ चुकी थीं। गला सूख चुका था और आँखें ठिठुरन से जवाब दे चुकी थीं। ऋषि धीरे-धीरे गहरी नींद में चला गया।
~~~फ्लैशबैक~~~~
चारों ओर बसंत की हवा ने साँसों में ताजगी भर दी थी। फूलों की सुगंध उस हवा में और मिठास घोल रही थी। सूरज की आशावादी रोशनी पशु-पक्षियों को अपने पोषण भरे तेज से नहला रही थी। हरियाली से लदे पेड़-पौधे आँखों को ठंडक दे रहे थे।
"माँ… माँ…" चिल्लाता हुआ पाँच साल का ऋषिकेश, एक पेड़ के नीचे बैठी औरत की तरफ भाग रहा था। उसके चमकते काले बाल, चेहरे की सादगी, और नीली कॉटन की साड़ी में लिपटी वह जवान महिला कोई और नहीं, बल्कि ऋषि की माँ खुशबू थी। नाम और स्वभाव, दोनों एक-दूसरे से मेल खा रहे थे।
"माँ… मुझे भी एक आइसक्रीम दिला दो ना। मेरे दोस्तों के मम्मी-पापा ने भी उन्हें दिलाई है, आप मुझे कब दिलाओगी?"
ऋषि ने आँसुओं से भीगी आँखों से माँ की ओर देखते हुए कहा।
खुशबू मुस्कुराई और बोली—
"पर बेटा, अगर तुम अभी से ही आइसक्रीम खाने लगोगे तो गर्मी के मौसम में क्या खाओगे?"
ऋषि ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा—
"अरे! ये तो मैंने सोचा ही नहीं।"
"हाँ… ठीक है फिर, मैं नहीं खाऊँगा," उसने मासूमियत से कहा।
ऋषि का बचकाना जवाब सुनकर खुशबू ज़ोर से हँस पड़ी।
"अरे, मैं तो मज़ाक कर रही थी!"
वह ऋषि को गोद में उठाकर आइसक्रीम दिलाने ले गई।
"मैं चॉकलेट आइसक्रीम खाऊँगा!" ऋषि ने कहा।
"जो मन करे खा लेना… लेकिन एक ही दिलाऊँगी," खुशबू ने उसके नाक को खींचते हुए कहा।
"एक ही क्यों माँ? मेरे दोस्त तो तीन-चार आइसक्रीम खाते हैं, मैं भला क्यों सिर्फ एक खाऊँ?" ऋषि ने ज़िद की।
खुशबू ने हल्के से डराते हुए कहा—
"अगर तुम एक खाओगे तो कुछ नहीं होगा, लेकिन ज्यादा खाओगे तो रात में डरावने राक्षस आकर तुम्हें सोने नहीं देंगे। उन्हें आइसक्रीम खाने वाले बच्चे बहुत पसंद होते हैं।"
ऋषि जिद्दी था, वो इतनी आसानी से मानने वाला नहीं।
"ठीक है बाबा, जितनी मन करे उतनी खाना।"
यह सुनकर ऋषि खुश हो गया। वे दोनों आइसक्रीम स्टॉल के पास पहुँच चुके थे।
"भैया, दो चॉकलेट वाली आइसक्रीम देना," खुशबू ने कहा।
"अभी लीजिए मैडम।"
तभी ऋषि ने माँ से कहा कि वो यहीं रुके, और खुद थोड़ी दूर एक फैंसी स्टॉल की ओर चला गया।
लेकिन अनहोनी को कौन टाल सकता है। जब ऋषि पलटकर देखता है, तो उसकी आँखें फटी रह जाती हैं—कोई अनजान आदमी बार-बार चाकू से खुशबू पर हमला कर रहा था और फिर भाग खड़ा हुआ।
यह दृश्य देखते ही ऋषि के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह स्तब्ध होकर वहीं खड़ा रह गया, मानो उसके शरीर में जान ही न बची हो।
To be continued…