The Lost Heirs in Hindi Drama by atul nalavade books and stories PDF | लापता उत्तराधिकारी

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लापता उत्तराधिकारी

लापता उत्तराधिकारी

15वीं सदी का इंग्लैंड "Wars of the Roses" (गुलाबों का युद्ध) से हिल चुका था। ये युद्ध दो शाही परिवारों—हाउस ऑफ़ यॉर्क और हाउस ऑफ़ लैंकेस्टर—के बीच हुए, जिनमें दोनों पक्ष इंग्लैंड के ताज के लिए लड़े।

 

आख़िरकार, यॉर्क परिवार की शाखा से राजा एडवर्ड IV ने सत्ता संभाली। एडवर्ड IV के दो बेटे थे—एडवर्ड V (12 वर्ष) और रिचर्ड, ड्यूक ऑफ़ यॉर्क (9 वर्ष)।

जब एडवर्ड IV की अचानक मृत्यु हुई, तो बड़ा बेटा एडवर्ड V उत्तराधिकारी बना। लेकिन वह अभी बच्चा था, इसलिए राज्य की देखभाल के लिए एक रीजेंट (संरक्षक) की ज़रूरत थी।

 

यहीं पर तस्वीर बदल गई।

एडवर्ड IV का भाई, रिचर्ड, ड्यूक ऑफ़ ग्लॉस्टर, ने खुद को बच्चों का "संरक्षक" घोषित किया और दोनों राजकुमारों को लंदन टॉवर में रखा। शुरुआत में कहा गया कि यह सुरक्षा के लिए था, ताकि ताजपोशी ठीक से हो सके।

 

लेकिन धीरे-धीरे, राजकुमारों की खबरें बाहर आनी बंद हो गईं। जनता ने सुना कि वे बीमार हैं, फिर कहा गया कि वे आराम कर रहे हैं। लेकिन किसी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा।

फिर अचानक, रिचर्ड ने खुद को राजा घोषित कर दिया—Richard III।

 

इस ताजपोशी के बाद दोनों राजकुमारों का कहीं अता-पता नहीं मिला।

कोई सबूत, कोई शव, कोई आधिकारिक बयान—कुछ भी नहीं।

 

यही वह बिंदु है, जिसने सदियों से इतिहासकारों, लेखकों और जनता को उलझन में रखा है।

 

अध्याय 1 – राजा की मृत्यु

 

लंदन के सेंट पॉल की घंटियाँ धीमे-धीमे बज रही थीं। हर ध्वनि मानो पूरे नगर को बोझिल मौन में डुबो रही थी। इंग्लैंड का महान राजा, एडवर्ड चतुर्थ, अब इस दुनिया में नहीं रहा।

 

वेस्टमिंस्टर के महल में दरबारियों का जमावड़ा था। चारों ओर शोक की छाया थी, पर उस शोक के पीछे छुपा था भय और अनिश्चितता। अब सिंहासन पर बैठने वाला था केवल बारह वर्ष का एक बालक—प्रिंस एडवर्ड। उसके सुनहरे बाल और तीखी आँखें उसे पिता की छवि देती थीं। लेकिन चेहरा मासूम था, अनुभवहीन।

 

रानी एलिज़ाबेथ वुडविल ने अपने बेटे का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था, मानो कोई उसे छीन लेगा।

 

लॉर्ड हेस्टिंग्स झुककर बोला,

“महाराज, इंग्लैंड रो रहा है, पर इंग्लैंड आपकी आज्ञा मानेगा।”

 

बालक-राजा की नज़र बार-बार अपने चाचा रिचर्ड, ड्यूक ऑफ ग्लॉस्टर, की ओर जा रही थी। रिचर्ड धीरे-धीरे आगे बढ़ा, झुका और बोला,

“भतीजे, तुम्हारे पिता ने मुझे तुम्हारा संरक्षक बनाया था। मैं तुम्हारे लिए ढाल बनूँगा, तुम्हारे ताज की रक्षा करूँगा।”

 

रानी का चेहरा सख़्त हो गया। उसने तीखी आवाज़ में कहा,

“वूडविल परिवार उसका असली सहारा है। हम उसके साथ हैं, वह अकेला नहीं।”

 

रिचर्ड के होंठ हल्के से मुस्कुराए। उस मुस्कान में आदर भी था और छुपी हुई चुनौती भी।

“निश्चित ही, महारानी साहिबा,” उसने शांत स्वर में कहा, “हम सब उसकी सेवा करेंगे… निष्ठा से।”

 

लेकिन उस क्षण कमरे में मौजूद हर दरबारी ने वह असत्य महसूस कर लिया जो शब्दों के पीछे छिपा था। एक बालक-राजा केवल नाम का राजा होता है। और सत्ता… एक बार मुक्त हो जाए तो अपने रास्ते खुद चुनती है।

 

अध्याय 2 – लंदन की ओर यात्रा

 

वसंत की ठंडी सुबह थी। आकाश में हल्के बादल तैर रहे थे और रास्ते पर खड़े किसान व नगरवासी उत्सुकता से देख रहे थे—राजा की अंतिम यात्रा नहीं, बल्कि नये बालक-राजा की लंदन की ओर प्रस्थान यात्रा।

 

राजकुमार एडवर्ड भारी रथ में बैठा था। उसके बगल में रानी एलिज़ाबेथ और छोटे राजकुमार रिचर्ड (ड्यूक ऑफ यॉर्क) थे। रथ के पीछे-पीछे सशस्त्र सैनिक, दरबारी और सलाहकार चल रहे थे।

 

भीतर का वातावरण, बाहर की भीड़ के शोर से बिलकुल अलग था। रानी ने धीरे से बेटे से कहा,

“डरो मत, मेरे लाल। तुम राजा हो। इन सबको तुम्हारी शपथ लेनी है।”

 

बालक-राजा ने हिम्मत बटोरकर सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखें अब भी चाचा रिचर्ड की ओर टिकी थीं, जो घोड़े पर सवार होकर रथ के पास चल रहा था।

 

रिचर्ड का चेहरा स्थिर था, पर उसके मन में तूफ़ान उठ रहे थे।

“एक बच्चे के हाथ में इंग्लैंड की बागडोर… क्या यह उचित है? और अगर वूडविल परिवार ने अपना प्रभाव बढ़ाया तो? क्या मैं अपने भाई की विरासत को ऐसे नष्ट होते देखूँ? या फिर…”

 

उसके विचारों को तोड़ते हुए लॉर्ड हेस्टिंग्स ने घोड़े को उसके पास लाकर कहा,

“माई लॉर्ड, राजधानी तक सब सुरक्षित रहेगा?”

 

रिचर्ड ने हल्की मुस्कान दी।

“सुरक्षा मेरी चिंता है, हेस्टिंग्स। लंदन हमारे राजा का स्वागत करेगा।”

 

रानी ने यह सुन लिया और कठोर स्वर में बोली,

“सुरक्षा की चिंता हम सबको है, ड्यूक। मेरी संतानों की ज़िम्मेदारी केवल आपके कंधों पर नहीं है।”

 

रिचर्ड ने एक पल उसकी आँखों में देखा। उसमें चुनौती थी और डर भी।

“निश्चित ही, महारानी। लेकिन याद रखिए, इंग्लैंड के लोग भी स्थिरता चाहते हैं। और कभी-कभी… स्थिरता के लिए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं।”

 

रानी का चेहरा पीला पड़ गया। उसने बेटे का हाथ और कसकर पकड़ लिया।

 

रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था, लेकिन हर कदम के साथ वातावरण भारी होता जा रहा था। सड़कों पर लोग जयकार कर रहे थे—“लॉन्ग लिव द किंग!”—पर किसी के मन में यह साफ नहीं था कि राजा कौन है: मासूम एडवर्ड, या महत्वाकांक्षी रिचर्ड।

 

अध्याय 3 – टॉवर का स्वागत

 

लंदन की ऊँची दीवारें और भीड़ से भरी गलियाँ जयकारों से गूँज उठीं जब राजकुमार का रथ शहर में दाख़िल हुआ। “लॉन्ग लिव किंग एडवर्ड!” की आवाज़ें हर गली, हर चौक में सुनाई दे रही थीं।

 

लेकिन रानी एलिज़ाबेथ के दिल में अजीब बेचैनी थी। यह स्वागत जितना भव्य था, उतना ही बनावटी भी लग रहा था।

 

जैसे ही रथ टॉवर ऑफ़ लंदन के पास पहुँचा, भारी लोहे के दरवाज़े खुले। सैनिकों की कतारें बनीं और नगाड़ों की धुन बजने लगी। रिचर्ड ने आगे बढ़कर कहा,

“भतीजे, यह टॉवर इंग्लैंड के सबसे महान शासकों का किला रहा है। यहाँ से तुम्हारा राज्याभिषेक की तैयारियाँ होंगी।”

 

राजकुमार ने भोलेपन से पूछा,

“चाचा, मैं यहाँ कब तक रहूँगा? मैं तो वेस्टमिंस्टर जाना चाहता हूँ।”

 

रिचर्ड ने मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा,

“बहुत जल्द। लेकिन पहले सुरक्षा। और टॉवर तुम्हारी रक्षा करेगा।”

 

रानी ने असहज होकर कहा,

“क्या यह आवश्यक है? राजा को उसके महल में होना चाहिए, न कि कैदखाने जैसे किले में।”

 

रिचर्ड ने उसकी ओर देखा, उसकी आवाज़ शांत थी लेकिन शब्द तलवार की तरह तेज़,

“महारानी, टॉवर केवल कैदखाना नहीं है। यह शाही शक्ति का प्रतीक है। और जब तक सब स्थिर नहीं हो जाता, यही हमारे राजा के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है।”

 

रानी ने पलटकर कुछ नहीं कहा। पर उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।

 

उधर छोटे राजकुमार रिचर्ड ने अपने भाई से फुसफुसाकर पूछा,

“भैया, क्या हम यहाँ हमेशा रहेंगे? यह जगह थोड़ी डरावनी लगती है।”

 

एडवर्ड ने उसका हाथ थाम लिया।

“नहीं, छोटू। हम जल्द बाहर निकलेंगे। मम्मा हमारे साथ हैं।”

 

लेकिन वह खुद भीतर से आश्वस्त नहीं था।

 

रात को, टॉवर की ऊँची खिड़कियों से शहर की टिमटिमाती रोशनियाँ दिखाई देती थीं। बाहर पहरेदारों की तलवारें चमक रही थीं। अंदर दोनों राजकुमार अपने कमरे में थे—मासूम, अनजान कि उनके चारों ओर धीरे-धीरे षड्यंत्र का जाल बुना जा रहा था।

 

रिचर्ड अपने निजी कक्ष में बैठा था। मोमबत्ती की लौ उसके चेहरे पर नाच रही थी। उसने दर्पण में खुद को देखा और बुदबुदाया,

“राजा केवल नाम से नहीं बनता… शासन करने की ताक़त भी चाहिए। और वह ताक़त… मेरे हाथों में होनी चाहिए।”

 

अध्याय 4 – साज़िश की शुरुआत

 

टॉवर की ऊँची दीवारों के भीतर शांति थी, लेकिन बाहर दरबार में हलचल बढ़ने लगी थी। इंग्लैंड के लॉर्ड्स, चर्च और रईस वर्ग को समझ नहीं आ रहा था कि सत्ता किसके हाथ में है—बालक राजा के, रानी एलिज़ाबेथ के, या रिचर्ड ड्यूक ऑफ ग्लॉस्टर के।

 

वेस्टमिंस्टर के एक गुप्त कक्ष में कुछ प्रमुख दरबारी इकट्ठा हुए। मोमबत्तियों की हल्की रोशनी में छायाएँ दीवारों पर अजीब आकृतियाँ बना रही थीं।

 

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने धीरे से कहा,

“हम सब जानते हैं कि वूडविल परिवार—रानी का कुनबा—अपना प्रभाव फैलाना चाहता है। वे हर पद, हर अधिकार अपने हाथ में ले रहे हैं। क्या यह इंग्लैंड के लिए उचित है?”

 

बिशप शॉ ने सिर हिलाते हुए उत्तर दिया,

“इंग्लैंड अस्थिरता बर्दाश्त नहीं कर सकता। एक बालक राजा और लालची रिश्तेदार… यह भविष्य के लिए खतरा है। शायद ड्यूक ऑफ ग्लॉस्टर ही सही व्यक्ति हैं जो राज्य को संभाल सकते हैं।”

 

कक्ष में सन्नाटा छा गया। सब जानते थे, यह चर्चा महज़ तर्क नहीं, बल्कि एक षड्यंत्र की शुरुआत थी।

 

उसी समय रिचर्ड अंदर आया। उसकी आँखें ठंडी और नाप-तौल कर देखने वाली थीं।

“आप सब मेरी वफ़ादारी जानते हैं,” उसने धीरे से कहा। “मैंने अपने भाई की सेवा की, अब उसके पुत्र की रक्षा कर रहा हूँ। लेकिन…” वह ठहर गया, “…अगर इंग्लैंड को स्थिरता चाहिए, तो कुछ कठिन फैसले लेने होंगे।”

 

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने संकोच से पूछा,

“कठिन फैसले? आपका मतलब… राजा को हटाना?”

 

रिचर्ड ने मुस्कुराया, पर उसकी मुस्कान में सर्दी थी।

“मैं ऐसा नहीं कह रहा। लेकिन अगर राजा का जन्म ही संदेहास्पद हो? अगर यह सिद्ध हो जाए कि वह वैध उत्तराधिकारी नहीं है?”

 

बिशप शॉ ने तुरंत समझ लिया।

“आप कह रहे हैं कि विवाह अवैध घोषित कर दिया जाए, और फिर… ताज आपके सिर पर रख दिया जाए?”

 

रिचर्ड चुप रहा। उसकी चुप्पी ही उत्तर थी।

 

इधर टॉवर में मासूम राजकुमार रात को खिड़की से बाहर देख रहे थे। उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि शहर की गलियों में, दरबार की दीवारों में और चर्च की प्रार्थनाओं में उनका भाग्य तय हो रहा था।

 

अध्याय 5 – माँ की बेबसी

 

टॉवर की ठंडी पत्थरों वाली दीवारों के बीच, रानी एलिज़ाबेथ का दिल एक माँ की तरह तड़प रहा था। वह रोज़ अपने बेटों को देखना चाहती थी, लेकिन हर दिन कोई न कोई बहाना बना दिया जाता—कभी सुरक्षा, कभी दरबार की व्यस्तता।

 

एक सुबह जब उसने अपने गार्ड से मिलने की अनुमति माँगी, तो जवाब मिला,

“महारानी, राजकुमार अपने अध्ययन में व्यस्त हैं। ड्यूक ऑफ ग्लॉस्टर का आदेश है कि फिलहाल उनसे कोई न मिले।”

 

रानी के चेहरे पर आंसू छलक आए। उसने गार्ड से कहा,

“मैं उनकी माँ हूँ। क्या एक माँ को अपने बच्चों से मिलने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है?”

 

गार्ड ने सिर झुका लिया, पर दरवाज़ा बंद ही रहा।

 

उस रात रानी अकेली अपने कक्ष में रो रही थी। उसके मन में संदेह गहराने लगा था।

“क्या मेरे बेटे सचमुच सुरक्षित हैं? या यह टॉवर सुरक्षा का नाम लेकर उन्हें कैद करने की चाल है?”

 

उधर, छोटे राजकुमार रिचर्ड ने अपने भाई से धीमी आवाज़ में कहा,

“भैया, मम्मा क्यों नहीं आतीं? क्या उन्होंने हमें छोड़ दिया है?”

 

एडवर्ड ने छोटे भाई को सीने से लगा लिया।

“नहीं, छोटू। मम्मा हमें कभी नहीं छोड़ेंगी। बस… शायद उन्हें आने नहीं दिया जा रहा।”

 

दोनों बच्चों की मासूम आँखों में इंतज़ार और भरोसा था, जबकि उनकी माँ का दिल धीरे-धीरे टूट रहा था।

 

रानी को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि उसका शाही दर्जा केवल दिखावा रह गया है। दरबार, लॉर्ड्स और चर्च—सब उसकी आवाज़ को अनसुना करने लगे थे।

 

एक शाम उसने हिम्मत जुटाकर दरबार में रिचर्ड से कहा,

“मुझे मेरे बच्चों से मिलने दीजिए। मैं जानती हूँ कि आप उनकी देखभाल कर रहे हैं, पर एक माँ की गोद से बढ़कर कोई सुरक्षा नहीं होती।”

 

रिचर्ड ने ठंडी निगाहों से उसे देखा।

“महारानी, आप भावनाओं से सोचती हैं। लेकिन राज्य राजनीति से चलता है। बच्चे आपकी भावनाओं से नहीं, मेरी निगरानी से सुरक्षित हैं।”

 

एलिज़ाबेथ के होंठ काँप उठे, लेकिन वह कुछ नहीं कह सकी। वह जान गई थी कि उसकी शक्ति खत्म हो रही है।

 

उस रात उसने भगवान से प्रार्थना की—

“हे प्रभु, अगर मेरे बेटों की किस्मत मेरे हाथ में नहीं, तो कम से कम उन्हें दर्द से बचा लेना।”

 

अध्याय 6 – छिपते साये

 

लंदन की गलियाँ पहले जैसी चहल-पहल से भरी थीं, लेकिन धीरे-धीरे शहर में फुसफुसाहट फैलने लगी। लोग पूछने लगे—

“क्या किसी ने हाल ही में टॉवर के राजकुमारों को देखा है?”

 

दरबार में कभी दोनों भाई जुलूस में साथ दिखाई देते थे, खिड़की से हाथ हिलाते थे। पर अब कई हफ़्तों से उनका चेहरा किसी ने नहीं देखा।

 

टॉवर के भीतर

 

रात को गार्डों की आवाजाही बढ़ गई थी। हर कुछ दिनों में नए सैनिक तैनात किए जाते, पुराने हटा दिए जाते। यह बदलाव इतना तेज़ था कि गार्ड भी नहीं समझ पाते कि किस पर भरोसा करें।

 

एक बूढ़ा प्रहरी अपने साथी से फुसफुसाया—

“मैंने महीनों से बड़े राजकुमार की आवाज़ तक नहीं सुनी। पहले वह हर सुबह प्रार्थना करते थे, अब वहाँ भी सन्नाटा रहता है।”

 

साथी ने कांपते स्वर में उत्तर दिया,

“चुप रहो। दीवारों के भी कान होते हैं। हम सिर्फ आदेश मानते हैं।”

 

दरबार में अफवाहें

 

लॉर्ड हेस्टिंग्स को एक गुप्त चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था—

“राजकुमार सुरक्षित नहीं हैं। जो उनकी रक्षा का दावा करते हैं, वही उनके भाग्य के निर्णायक हैं।”

 

लेकिन इससे पहले कि हेस्टिंग्स कोई कदम उठाता, उसे अचानक राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। दरबार ने घोषणा की—

“लॉर्ड हेस्टिंग्स, राज्यविरोधी षड्यंत्र में शामिल थे।”

 

किसी ने सवाल करने की हिम्मत नहीं की।

 

रानी एलिज़ाबेथ की पीड़ा

 

वह अब महल में लगभग अकेली रह गई थी। जब भी वह अपने बेटों का हाल पूछती, जवाब मिलता—

“वे आराम कर रहे हैं।”

“वे पढ़ाई में व्यस्त हैं।”

“वे जल्द ही आपसे मिलेंगे।”

 

लेकिन मुलाक़ात कभी नहीं होती।

 

रात को जब चर्च की घंटियाँ बजतीं, तो उसे लगता कि हर ध्वनि उसके बच्चों की पुकार है।

 

शहर में डर का माहौल

 

लंदन के नागरिक भी बेचैन होने लगे। बाज़ार में, शराबख़ानों में, गलियों में एक ही चर्चा थी—

“क्या राजकुमार जिंदा भी हैं?”

 

लेकिन कोई ज़ोर से यह सवाल नहीं पूछ सकता था। क्योंकि जो पूछता, वह अगले दिन गायब हो जाता।

 

रहस्यमयी सन्नाटा

 

टॉवर की ऊँची खिड़कियों से पहले कभी हँसी-ठिठोली की आवाज़ आती थी। अब वहाँ सिर्फ़ सन्नाटा था।

मानो मासूमियत धीरे-धीरे पत्थरों के बीच दबकर मर रही हो।

 

अध्याय 7 – भाग्य की रात

 

टॉवर के ऊपर उस रात आसमान काले बादलों से ढका था। हल्की बारिश हो रही थी और ठंडी हवा गलियारों में सीटी बजा रही थी। टॉवर की घड़ी ने बारह बजाए, और उसी के साथ अचानक सब कुछ असामान्य लगने लगा।

 

खामोशी से पहले की आहट

 

गार्डों को अचानक आदेश मिला—

“आज रात कोई शोर नहीं, कोई हलचल नहीं। सब खामोशी से गश्त करेंगे।”

 

कई पहरेदारों ने देखा कि आधी रात को दो अजनबी चेहरे टॉवर में दाखिल हुए। उन्होंने काले लबादे ओढ़ रखे थे, और कोई उनकी पहचान नहीं जानता था। बस इतना पता था कि वे सीधे उस हिस्से की ओर गए जहाँ दोनों राजकुमार रहते थे।

 

भाइयों की अंतिम बातचीत

 

अपने छोटे कक्ष में एडवर्ड और रिचर्ड अभी जाग रहे थे। रिचर्ड ने भाई से कहा—

“भैया, मुझे डर लग रहा है। ये दीवारें जैसे हमें कैद कर रही हैं।”

 

एडवर्ड ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा,

“डरो मत, छोटू। चाहे कुछ भी हो, हम साथ रहेंगे।”

 

उनकी मासूम बातचीत के बीच अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।

 

अंधेरे के साये

 

दरवाज़ा खुला। दो साये अंदर आए। उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उनके हाथ में सिर्फ़ भारी तकिए और रेशमी चादरें थीं।

 

राजकुमारों ने कुछ पूछने की कोशिश की, लेकिन सायों ने कुछ नहीं कहा। बस कमरे की खिड़की बंद कर दी।

 

बाहर पहरेदारों ने भी असामान्य खामोशी महसूस की। एक ने कहा—

“क्या तुमने बच्चों की आवाज़ सुनी?”

दूसरा बोला—

“आज रात कुछ मत सुनो, कुछ मत देखो। वरना सुबह हम ज़िंदा नहीं रहेंगे।”

 

सन्नाटा और रहस्य

 

रात ढल गई। टॉवर की दीवारें गवाह बनीं उस घटना की, जिसके बारे में किसी ने खुलकर कभी कुछ नहीं कहा।

 

सुबह होते ही राजकुमारों का कक्ष खाली पाया गया। खिड़की बंद थी, बिस्तर पर हल्के से सिलवटें थीं, लेकिन कोई शरीर नहीं।

 

किसी ने नहीं बताया कि क्या हुआ।

कोई शव नहीं मिला।

कोई बयान नहीं दिया गया।

 

अफवाहें और डर

 

दरबार में कहा गया—

“राजकुमार सुरक्षित हैं।”

लेकिन जनता को यक़ीन नहीं आया।

 

लोग फुसफुसाने लगे—

“क्या उन्हें घोंटकर मार दिया गया?”

“या किसी गुप्त सुरंग से निकालकर कहीं और भेजा गया?”

“या फिर उनका अस्तित्व ही मिटा दिया गया?”

 

रानी एलिज़ाबेथ को जब यह खबर मिली, उसका दिल टूट गया। उसने दरबार से पूछा—

“मेरे बच्चों को कहाँ ले जाया गया?”

 

लेकिन जवाब सिर्फ़ चुप्पी थी।

 

 

निष्कर्ष – गुमशुदगी का बोझ

 

टॉवर में राजकुमारों की गुमशुदगी सिर्फ़ दो बच्चों की मौत या गुमनामी की कहानी नहीं थी। यह इंग्लैंड के इतिहास पर हमेशा के लिए छाया हुआ सवाल बन गया।

 

रानी एलिज़ाबेथ ने अपने जीवन के आख़िरी दिन तक अपने बेटों का चेहरा देखने की उम्मीद नहीं छोड़ी, लेकिन उसे सिर्फ़ अफ़वाहें और चुप्पी मिली। दरबारियों ने कभी सच नहीं बोला, और जो कुछ जानते थे, वे भी डर और सत्ता की परछाइयों में दबकर ख़ामोश हो गए।

 

जनता के लिए यह घटना एक डरावनी मिसाल थी कि राजनीति और सत्ता के खेल में मासूमियत की कोई जगह नहीं होती। टॉवर की दीवारें आज भी उस सन्नाटे की गवाह हैं, जहाँ शायद आख़िरी बार दो मासूम भाइयों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा था।

 

इतिहासकारों ने कई थ्योरी दीं—किसी ने कहा उन्हें मार दिया गया, किसी ने कहा गुप्त रूप से कहीं और भेजा गया। लेकिन सच कभी सामने नहीं आया।

और शायद यही इस कहानी की सबसे गहरी त्रासदी है—सच हमेशा दीवारों के पीछे क़ैद रहा।