अध्याय 1 : मिट्टी की खुशबू
गाँव की हवा में उस दिन कुछ अलग ही बात थी।
आसमान पर बादल छाए हुए थे और धूल से भरी ज़मीन पर पहली बारिश की बूँदें गिरते ही मिट्टी से सोंधी खुशबू उठने लगी थी।
वह खुशबू, जो सीधे दिल में उतर जाए, जैसे कोई पुराना गीत जिसे सुनते ही आत्मा मुस्कुरा दे।
गाँव का नाम था सोनपुरा—छोटा-सा, मगर जीवन से भरा हुआ।
यहाँ हर आँगन में नीम और पीपल की छाँव थी, हर गली में बच्चों की किलकारियाँ गूँजती थीं।
बरसात की पहली फुहार में औरतें घरों के चौखट पर आ जातीं, बच्चे मिट्टी में कूदने लगते और खेतों में किसानों की आँखें चमक उठतीं।
इन्हीं सब के बीच, नीम के पेड़ के नीचे बैठा था राघव।
पतला-दुबला, साँवला-सा लड़का, जिसकी आँखों में जाने कैसा आत्मविश्वास चमकता था।
उसके हाथ में था एक पुराना गिटार, जिसकी लकड़ी जगह-जगह से घिस चुकी थी, मगर तार अब भी सुरों से भरे हुए थे।
गाँव में गिटार देखना वैसे भी अजीब बात थी, लेकिन राघव की उँगलियों से जब धुन निकलती, तो वह अजीबपन भी जादू में बदल जाता।
उसने धीरे-धीरे तारों को छेड़ा।
धुन आसमान में घुल गई और बूंदें उसके सुरों के साथ ताल मिलाने लगीं।
“आज फिर वही धुन?”
पीछे से एक मीठी आवाज़ आई।
राघव ने पलटकर देखा।
वह थी अवनि।
गुलाबी सलवार-कमीज़ में भीगी हुई, चेहरे पर बारिश की बूँदें, और आँखों में एक मासूम चमक।
वह पास आकर नीम के नीचे खड़ी हो गई।
“हर बार पहली बारिश पर तुम यही धुन बजाते हो। कभी कुछ नया क्यों नहीं?”
उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
राघव ने धीमे से जवाब दिया—
“कुछ धुनें पुरानी नहीं होतीं, अवनि।
वे हर साल उतनी ही नई लगती हैं, जितनी पहली बार।”
अवनि हँस पड़ी।
उसकी हँसी जैसे पूरी हवा को रोशन कर देती थी।
राघव उस हँसी को सुनते ही खो जाता, मगर आज उसके मन में एक हलचल थी।
बरसों से वे दोनों दोस्त थे।
साथ ही स्कूल गए, साथ खेतों में दौड़े, गाँव के मेले देखे।
पर राघव के दिल में दोस्ती से कहीं आगे की भावना जन्म ले चुकी थी।
और हर बरसात के साथ वह भावना और गहरी होती जा रही थी।
अवनि ने बारिश से बचने के लिए दुपट्टा सिर पर ओढ़ लिया और पास बैठ गई।
“राघव, तुम्हें सच में लगता है कि बारिश हमें बदल देती है?”
राघव ने उसे देखते हुए कहा—
“बारिश इंसान को नहीं बदलती, अवनि।
बस दिल में छुपी बातें बाहर ला देती है।”
वह कुछ पल चुप रहा, फिर साहस जुटाकर बोला—
“जानती हो, मैं जब भी पहली बारिश देखता हूँ… एक ही ख्वाहिश करता हूँ।”
अवनि ने उत्सुक होकर पूछा—
“कैसी ख्वाहिश?”
राघव की आँखें उसकी आँखों से मिलीं।
उसने बहुत धीमे स्वर में कहा—
“कि एक दिन, ये बारिश हमें… एक कर दे।”
अवनि चौंक गई।
उसके होंठों पर मुस्कान तो थी, लेकिन आँखों में एक अनजाना सवाल भी।
जवाब देने से पहले ही अचानक तेज़ आवाज़ गूँजी—
“अवनि!”
दोनों ने मुड़कर देखा।
दरवाज़े पर खड़े थे अवनि के पिता—गोपाल प्रसाद।
सख्त चेहरे वाले, पूरे गाँव में सम्मानित व्यक्ति।
उनकी आँखों में संदेह और गुस्सा दोनों था।
“तुम यहाँ? और ये लड़का?”
उनका स्वर कठोर था।
अवनि घबराकर बोली—
“बाबा… ये राघव है। बचपन का दोस्त।”
गोपाल प्रसाद ने राघव की ओर देखा और ठंडी आवाज़ में बोले—
“दोस्ती तक ठीक है, लेकिन मेरी बेटी के भविष्य के बारे में सपने देखना भूल जाओ। समझे?”
उनका स्वर बिजली-सी कड़क गया।
राघव का चेहरा पीला पड़ गया, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
अवनि ने आँचल सँभाला और चुपचाप पिता के साथ घर चली गई।
बरसात अब भी हो रही थी,
मगर नीम के नीचे खड़ा राघव महसूस कर रहा था—
उसके दिल में कहीं और ही तूफ़ान उठ चुका है।