Clay Diya in Hindi Motivational Stories by mood Writer books and stories PDF | मिट्टी का दीया

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मिट्टी का दीया

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में, सूरज नाम का लड़का रहता था। उसके पिता एक साधारण कुम्हार थे, जो मिट्टी के बर्तन और दीये बनाकर घर चलाते थे। घर की हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन सूरज के पिता हमेशा कहते —
"बेटा, गरीबी बुरी नहीं, बुरा होता है हार मान लेना।"

सूरज बचपन से पढ़ाई में तेज था, लेकिन उसे लगता था कि इतनी कमाई में उसकी पढ़ाई ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगी। कई बार वह सोचता कि पढ़ाई छोड़कर पिता का काम संभाल ले, ताकि घर में थोड़ी मदद हो सके। लेकिन हर बार उसकी माँ उसे समझाती —
"बेटा, दीया जलाने से अंधेरा मिटता है, और पढ़ाई वो दीया है जो जिंदगी का अंधेरा मिटाएगा।"


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पहला संघर्ष

दसवीं कक्षा का रिज़ल्ट आया तो सूरज पूरे जिले में दूसरा आया। पूरा मोहल्ला खुश था, लेकिन घर की आर्थिक हालत वहीं की वहीं थी। किताबें खरीदने के पैसे नहीं थे। सूरज उदास बैठा था, तभी उसके पिता ने उसे एक पुराना दीया दिया और कहा —
"देख, ये दीया मैंने तब बनाया था जब तेरे जन्म की खबर मिली थी। तब सोचा था, ये रोशनी तेरे नाम कर दूँगा। अब तू ही इस रोशनी को आगे बढ़ाना।"

पिता की आंखों में विश्वास देखकर सूरज ने तय किया कि वो पढ़ाई नहीं छोड़ेगा।


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छोटा काम, बड़ा सपना

गर्मियों की छुट्टियों में सूरज ने मिट्टी के दीये और बर्तन बनाकर बाज़ार में बेचना शुरू किया। सुबह जल्दी उठकर वो बर्तन पकाने में पिता का हाथ बंटाता और दोपहर को पढ़ाई करता। स्कूल के बच्चे मस्ती करते, लेकिन सूरज की दुनिया सिर्फ़ पढ़ाई और मेहनत थी।

उसने अपने ट्यूशन की फीस खुद दीये बेचकर जुटाई। कई लोग कहते — "पढ़ाई छोड़, कोई नौकरी कर ले।" लेकिन सूरज हर बार कहता —
"नौकरी के पीछे नहीं, अपने सपनों के पीछे भागूँगा।"


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असफलता का थप्पड़

बारहवीं के बाद सूरज ने इंजीनियरिंग के लिए प्रवेश परीक्षा दी। पहली बार में वो पास नहीं हुआ। यह उसके लिए सबसे बड़ा झटका था। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया, लगा जैसे सारी मेहनत बेकार हो गई।

तभी उसकी माँ आई और चुपचाप उसके सामने मिट्टी का वही पुराना दीया रख दिया। दीये में धूल जमी थी, लेकिन जब उसने उसे साफ़ किया और जलाया — कमरे में रोशनी फैल गई। माँ बोली —
"देख, ये दीया अगर बुझ भी जाए, तो दोबारा जल सकता है। तू भी जल सकता है, बेटा।"

ये सुनकर सूरज की आंखों में चमक लौट आई।


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दूसरी कोशिश

सूरज ने और मेहनत की। इस बार उसने दिन-रात की कोई परवाह नहीं की। सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई, फिर कॉलेज की क्लास, शाम को पिता के साथ बर्तन बेचना और रात को फिर पढ़ाई।
उसकी मेहनत रंग लाई — अगली बार परीक्षा में उसका चयन एक बड़े सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया।


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शहर में नया सफर

शहर जाकर सूरज को लगा कि ज़िंदगी आसान नहीं होगी। हॉस्टल और खाने का खर्च खुद उठाने के लिए उसने पार्ट-टाइम जॉब की। वो एक लाइब्रेरी में किताबें लगाने का काम करता और वीकेंड पर मिट्टी के क्राफ्ट बेचता।

उसके दोस्त महंगे मोबाइल और कपड़े पहनते, लेकिन सूरज के पास सिर्फ़ दो जोड़ी कपड़े थे। वो जानता था कि असली “ब्रांड” उसकी मेहनत और ईमानदारी है।


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सपना सच होना

चार साल बाद सूरज ने इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया। कैंपस प्लेसमेंट में उसे एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी ने नौकरी दी — सालाना पैकेज इतना कि उसने सोचा भी नहीं था।

जब वो पहली बार गांव लौटा तो अपने साथ सिर्फ़ एक चीज़ लाया — वो पुराना मिट्टी का दीया। उसने अपने पिता को गले लगाया और कहा —
"पापा, ये दीया सिर्फ़ मिट्टी का नहीं था, ये मेरे सपनों का रास्ता दिखाने वाला था।"

पिता की आंखों में आंसू थे, माँ मुस्कुरा रही थी। मोहल्ले के बच्चों ने उसे घेर लिया और सूरज ने हर बच्चे से कहा —
"सपना चाहे छोटा हो या बड़ा, उसे जलाए रखना, जैसे ये दीया जलता है।"


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सीख

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है:

हालात कितने भी खराब हों, अगर आप मेहनत और विश्वास बनाए रखें तो रास्ता मिल ही जाता है।

असफलता बस एक विराम है, अंत नहीं।

छोटी-सी प्रेरणा भी जिंदगी का रुख बदल सकती है।



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अंत में, सूरज की तरह हर इंसान के पास अपना एक “मिट्टी का दीया” होता है — कोई सपना, कोई वादा, या कोई छोटा-सा कारण, जो अंधेरे वक्त में रोशनी देता है। बस उसे बुझने मत दो।