Part 1बनारस, गंगा घाट का दृश्य, रात 12:47 बजे
गंगा नदी की लहरें बनारस घाट पर थपकियां दे रहीं थे, और आसमान पर बादल घिरे हुए थे। हवा में नमी और ठंडक थी। दूर जलते हुए दीपक ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने सितारों को सचमुच में जमीन पर उतार दिया हो।
इन सबसे थोड़ी ही दूर पर थी वो वीरान खंडहर पड़ी हवेली, जिसके बारे में कहा जाता था कि उसके अंदर जो भी गया वो वापस नहीं लौटा। किनारे से थोड़ी ही दूर एक ऊंचे चबूतरे पर खड़ी वो हवेली कभी आलीशान हुआ करती थी। आए दिन हवेली में उत्सव मनाए जाते थे लेकिन अब वीरान पड़ी थी, मकान कम भूत बंगला ज्यादा लगता था। खिड़कियों से आती हवा जब भी पुरानी पड़ी खिड़की के दरवाजों से टकराकर अंदर आती थी तो उसके भीतर से कर्र.... कर्र.... की आवाज आती थी। दीवारों पर पपड़ी उखड़ी हुई थी और छत के कई हिस्सों से आसमान साफ दिखाई दे रहा था। गंगा का पानी इसके पास में ही बहता था लेकिन हवेली के चारों ओर एक अजीब सी खामोशी थी, जैसे सांस रोक कर किसी का इंतजार कर रही हों और कह रही हों - कि आओ और इस खामोशी को तोड़ दो।
इसी खामोशी को तोड़ती हुई जूते की आवाज हवेली के नजदीक आ रही थी। काले रंग की जींस, भूरे जैकेट और कंधे पर चमड़े का बैग टांगे, आर्यन हवेली के मुख्य दरवाज़े के सामने खड़ा था।
उसके हाथ में टॉर्च थी और आंखों में एक अजीब-सा उत्साह।
आर्यन(अपने मन में) – "अगर प्रोफेसर शर्मा सही कह रहे थे, तो इस हवेली के तहख़ाने में वही पांडुलिपि है, जिसकी खोज में तीन सौ साल से लोग मरते आए हैं।"
उसने धीरे से दरवाजा खोला,चूंऽऽ… की आवाज करता हुआ दरवाज़ा खुल गया।
अंदर अंधेरा घना था, जैसे रोशनी ने यहां आने से इंकार कर दिया हो।
टॉर्च की रोशनी में मोटी परतों वाले जाले चमक रहे थे, और फर्श पर जगह-जगह लकड़ी उखड़ी हुई थी।
आर्यन टॉर्च को यहां वहां घूम कर सब जगह देख रहा था, उसे दिखाई दिए - पुराने फर्नीचर, दीवार पर धुंधले पड़े चित्र, और एक टूटा हुआ झूमर जो छत से झूल रहा था। वह यहां वहां देखा हुआ आगे बढ़ता जा रहा था।
अचानक ठाक! — कहीं से आवाज़ आई।
आर्यन ने टॉर्च घुमाई — एक टूटा हुआ फोटो-फ्रेम फर्श पर गिरा पड़ा था, खिड़की से आई हवा के झोंके ने उसे गिरा दिया था।
वह हल्की-सी मुस्कान के साथ आगे बढ़ा, लेकिन तभी....
उसे अपनी पीठ पर किसी ठंडी वस्तु का एहसास हुआ, और साथ में किसी महिला की तेज़ और ठंडी आवाज आई
“हिलना मत… और हाथ ऊपर करो।”
आर्यन एकदम से वहीं पर जम गया। जैसे बर्फ में जम गया हो।
आर्य ने धीरे से अपने हाथ ऊपर उठाए, टॉर्च अभी उसके हाथ में ही था।
टॉर्च की रोशनी सामने वाली महिला पर पड़ी।
काले टैक्टिकल सूट में, कमर पर पिस्तौल की होल्स्टर, और आंखों में शिकारी जैसी चौकसी।
ये मायरा थी। जो देश में एक प्राइवेट गुप्तचर एजेंसी की अफसर थी और तलवार और आधुनिक हथियारों में निपुण भी।
आर्यन (धीरे से): “देखो… मैं बस यहाँ रिसर्च के लिए आया हूँ, मैं एक पुरातत्वविद हूं।”
मायरा: “रिसर्च? आधी रात को? और इस हालत में?”
आर्यन: “इतिहास का शौक… कभी समय देखकर नहीं आता।”
मायरा: “नाम?”
आर्यन: “आर्यन मल्होत्रा।”
मायरा: “अगर झूठ बोला तो… गंगा में फेंक दूंगी।”
आर्यन (हल्की हंसी): “और अगर सच बोला… तो?”
मायरा: “तो भी गारंटी है कि नहीं बचोगे।”
आर्यन ने हल्का सिर झुकाया, जैसे वह उसकी चुनौती स्वीकार कर रहा हो।
अचानक ऊपर की मंज़िल से ठप… ठप… की आवाज़ आई। दोनों ने एक साथ ऊपर देखा।
टूटी छत से आती चांदनी में दीवार पर एक अजीब-सी परछाईं दिखाई दी , इंसान जैसी, लेकिन सिर पर सींग, और आंखों में हल्की नीली चमक।
आर्यन (फुसफुसाते हुए): “ये क्या था?”
मायरा: “अब ये भी पता लगाना पड़ेगा।”
उसने धीरे से पिस्तौल नीचे की, लेकिन उंगली अब भी ट्रिगर पर थी।
मायरा: “नाम मायरा… और अगर सच में ज़िंदा रहना चाहते हो, तो मेरे पीछे आओ।”
दोनों हवेली के एक साइड वाले गलियारे की ओर बढ़े।
गलियारा संकरा था, फर्श पर गिरी लकड़ियों और पत्थरों के बीच से उन्हें होकर जाना पड़ा।
हर कदम के साथ पुरानी लकड़ी कराह रही थी, जैसे उसे याद हो कि यहां कभी और भी लोग आए थे… और लौटकर नहीं गए।
आर्यन: “तुम यहां क्यों हो?”
मायरा: “तुम्हारे जैसे सवाल पूछने के लिए नहीं।”
आर्यन: “तो फिर?”
मायरा: “जिस चीज़ को तुम खोज’ कह रहे हो… उसे गलत हाथों में जाने से रोकने के लिए।”
वे दोनों चलते हुए गलियारे के अंत में पहुंचे, जहां एक संकरी सीढ़ी नीचे जाती थी। उन सीढ़ियों पर धूल इतनी मोटी थी कि हर कदम पर वह बर्फ़ जैसी उड़ रही थी। दीवारों से नमी बूंद बनके टपक रही थी, और नीचे से आती एक हल्की धातु-सी गंध, पुरानी थी , लेकिन अजीब तरह से ताज़ा
मायरा ने एक आखिरी बार ऊपर की तरफ देखा,वो जांच रही थी कि कोई पीछा तो नहीं कर रहा।
फिर उसने फुसफुसाकर कहा,,
मायरा: “तहख़ाना… यहीं से।”
आर्यन ने हां में सिर हिलाया।
दोनों ने सीढ़ियाँ उतरनी शुरू कीं, लेकिन न जाने क्यों, हर कदम के साथ हवा और भारी लगने लगी। जैसे वे सिर्फ़ नीचे नहीं जा रहे, बल्कि किसी और समय में प्रवेश कर रहे हों।
सीढ़ियाँ समय से भी पुरानी लग रही थीं। हर कदम पर लकड़ी की हल्की-सी कराह और पत्थर की ठंडी सतह का एहसास दिला रही थीं। टॉर्च की पीली रोशनी में उड़ती धूल ऐसे घूम रही थी जैसे छोटे-छोटे भूत अंधेरे में तैर रहे हों।
आर्यन (धीमे स्वर में): “यहाँ नीचे आने वाला आखिरी इंसान कौन रहा होगा?”
मायरा: “शायद वही… जिसे ऊपर की परछाईं देख रही थी।”
उसका जवाब ठंडे पानी जैसा था।
आर्यन (धीरे से): “और यहाँ नीचे आने वाला आखिरी इंसान… कभी ऊपर नहीं गया।”
बातें करते करते वे सीढियों के अंत में पहुंचे।
सीढ़ियों के अंत में एक चौड़ा, गोलाकार कक्ष खुला।
जिसकी छत पर अष्टकोणीय गुम्बद था, और जिसके बीचों-बीच पत्थर में गहराई से उकेरा गया वह अष्टचक्र जिसे खोजने दोनों यहां आए थे।
टॉर्च की रोशनी पड़ते ही उसकी धारियाँ हल्के नीले रंग में झिलमिलाईं — जैसे पत्थर के भीतर से रोशनी निकल रही हो।
दीवारों पर नक्काशियां थीं —
एक में, लोग एक विशाल द्वार से गुजर रहे थे, और उनके पीछे तारे जैसे चिन्ह।
दूसरी में, एक योद्धा तलवार थामे, आग और पानी के बीच खड़ा था।
तीसरी में, वही अष्टचक्र, लेकिन बीच में लाल बिंदु और उसके चारों ओर लिखे कई मंत्र — संस्कृत, ब्राह्मी, और कुछ अज्ञात लिपियाँ।
दीवारों पर उकेरे गए चित्र पुराने नहीं, बल्कि अमर लग रहे थे।
मायरा ने चारों तरफ देखा, उसकी पिस्तौल तैयार थी।
मायरा: “ये दीवारें… कहानियां कह रही हैं।”
आर्यन: “कहानियां नहीं, चेतावनियां। देखो… हर चित्र में कोई बलिदान दे रहा है।”
आर्यन की आंखें उस नक्काशी पर ठहर गईं जिसमें एक आदमी पांडुलिपि उठाए खड़ा था, और उसके पीछे एक काला साया उसे घेर रहा था। उसकी उंगली उस चित्र पर टिक गई जिसमें एक आदमी पांडुलिपि थामे खड़ा था और उसके पीछे एक काला साया, जिसकी आंखें चमक रही थीं।
कमरे के बीचों-बीच एक विशाल लोहे का संदूक रखा था, चारों कोनों में भारी, कलात्मक ताले, और बीच में वही अष्टचक्र का प्रतीक।
ताले जंग लगे थे, लेकिन अजीब बात — वे टूटे फूटे नहीं लग रहे थे, वे ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने उन्हें अभी कल ही लगाया हो।
आर्यन ने अपना चमड़े का बैग खोला, और एक पीतल का, घुमावदार औज़ार निकाला-- नुकीला, गोल घुमावदार, जैसे किसी घड़ीसाज़ का औज़ार।
वह पहले ताले के पास झुका, ध्यान से टक…टक… की ध्वनि सुनते हुए औज़ार घुमाने लगा।
मायरा (हल्का कटाक्ष करते हुए): “इतिहासकार हो… या चोर?”
आर्यन: “दोनों का थोड़ा-थोड़ा… ज़रूरत के हिसाब से।”
वह पहले ताले के पास झुका, और कुछ सेकंड में टक! ताला खुल गया। उसी पल हवा में हल्की-सी लहर दौड़ गई, जैसे कमरे ने लंबी नींद के बाद गहरी सांस ली हो।
मायरा की उंगलियां पिस्तौल के ट्रिगर पर कस गईं।
मायरा: “ये हवा… आ कहां से रही है? तहख़ाने में तो खिड़की भी नहीं।”
आर्यन ने कोई जवाब नहीं दिया, बस दूसरा ताला खोला।
दीवारों के लाल बिंदु हल्के-हल्के चमकने लगे, जैसे वहां कोई अदृश्य हाथ चला हो।
इसी तरह तीसरा ताला भी खुल गया।
कमरे में हवा चलने लगी, लेकिन तहख़ाने में हवा? यह संभव नहीं था।
तीसरा ताला खुलते ही हवा में एक गूंज उठी —
“Samaya-dwara… na avam… pravesh…”
आर्यन ने सुनकर चौंकते हुए कहा,
आर्यन: “संस्कृत… या शायद कोई प्राचीन बोली। इसका मतलब है ‘समय के द्वार में प्रवेश मत करो।’”
मायरा: “और हम…?”
आर्यन: “हम पहले से ही उसके दरवाज़े पर हैं।”
उसने चौथा ताला भी खोल दिया।
चौथा ताला खुलते ही ढक्कन भारीपन के साथ ऊपर उठा।
भीतर से सुनहरी रोशनी का एक धीमा-सा बहाव बाहर निकला, जैसे किसी ने सूरज की एक किरण कपड़े में बांध दी हो।
अंदर लाल कपड़े में लिपटी पांडुलिपि थी जिसके किनारों पर सोने की महीन नक्काशी की गई थी।
कपड़े के केंद्र में वही अष्टचक्र, और उसके बीच चमकता लाल बिंदु।
आर्यन का हाथ धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा, उसकी आंखों में ऐसा भाव था जैसे वह किसी भूली हुई दुनिया को छूने जा रहा हो।
लेकिन तभी…
सीढ़ियों के मुहाने पर एक लंबा साया नजर आया।
टॉर्च की रोशनी ने उसे उजागर किया काले नकाब में ढका हुआ चेहरा, आंखें कोयले जैसी काली लेकिन नीली लपटों से जलती हुई, और हाथ में तलवार जिसकी धार पर नीला धुआं नृत्य कर रहा था। तलवार पर टॉर्च की रोशनी पड़ते ही उसकी धार नीले रंग से चमचमा उठी।
नकाबपोश: “पांडुलिपि मेरे हवाले करो… वरना समय यहीं थम जाएगा।”
उसकी आवाज़ धीमी थी और भारी भी साथ में गूंजती हुई लगी। इसी के साथ कमरे में सन्नाटा और भी भारी हो गया।
अब उस कमरे में सिर्फ़ तीन आवाज़ें थीं - आर्यन की धीमी सांसें, मायरा की उंगलियों का ट्रिगर पर कसना, और नकाबपोश के कदमों की गूंज।
उसकी तलवार से नीली लपटें उठ रहीं थीं, जो पत्थर की दीवारों पर भूतिया परछाइयाँ बना रही थीं।
मायरा की पिस्तौल की नली सीधे उसकी छाती पर तनी हुई थी।
नकाबपोश (धीमे, लेकिन गूंजते स्वर में):
“वो वस्तु मेरे हवाले करो… यह आखिरी चेतावनी है।”
आर्यन: “ये पांडुलिपि तुम्हारी नहीं है।”
नकाबपोश: “यह किसी की नहीं, यह समय की है। और समय… सिर्फ़ मेरा आदेश मानता है।”
और फिर...........
बिना एक भी शब्द गंवाए, नकाबपोश ने तलवार घुमाई।
नीली लपटों का चक्र हवा में घूमता हुआ सीधे आर्यन की ओर आया।
आर्यन झुका, तलवार का वार उसके सिर के ऊपर से निकल गया, और दीवार में जा लगा। दीवार में लगे पत्थर पिघलकर काले पड़ गए।
मायरा (चिल्लाकर): “आर्यन! कवर लो!”
मायरा ने फायर किया, लेकिन गोली तलवार के नीले आवरण से टकराकर पिघल गई, जैसे मोम की बनी हुई गोली हो।
नकाबपोश ने एक छलांग लगाई, पलक झपकते वह आर्यन और मायरा के बीच में पहुंच गया
आर्यन ने पांडुलिपि का कपड़ा खींचकर बैग में डाल दिया और बैग मायरा की ओर फेंक दिया।
आर्यन: “इसे लेकर भागो!”
मायरा: “और तुम्हें छोड़ दूं? ये नहीं हो सकता, भूल जाओ!”
मायरा ने पिस्तौल छोड़ दी और बेल्ट से चाकू खींच लिया, फिर नकाबपोश की तरफ वार किया।
तलवार और चाकू टकराए, उनके टकराने से हवा में चिंगारियां उड़ीं
उसके वार की ताकत से मायरा तीन कदम पीछे खिसक गई, लेकिन नकाबपोश एक इंच भी नहीं हिला। उसकी आंखों की नीली चमक और तेज़ हो गई।
नकाबपोश: “तुम दोनों इस जगह के नियम तोड़ चुके हो। अब सिर्फ़ एक रास्ता बचा है… मृत्यु।”
आर्यन ने पास पड़ी लोहे की छड़ उठाई और नकाबपोश की पीठ पर जोर से मारी।
छड़ उसकी पीठ से टकराते ही टूट गई, जैसे वह कांच की छड़ हो
अचानक अष्टचक्र का निशान नीली और लाल रोशनी में तेजी से चमकने लगा। दीवारों के चित्र जीवित हो गए उनमें के लोग हिलने लगे। गुंबद के ऊपर से धूल की बारिश होने लगी, और एक ठंडी लहर ने कमरे को घेर लिया।
आर्यन (तेजी से): “मायरा, हमें अभी यहां से निकलना होगा!”
मायरा: “और ये…?”
आर्यन: “अगर ये जो है, वही है जो मैं सोच रहा हूं… तो ये समय का प्रहरी है। और ये हमें जिंदा नहीं जाने देगा।”
दोनों सीढ़ियों की ओर दौड़े, और नकाबपोश उनके पीछे उसकी तलवार की नीली रोशनी सीढ़ियों की दीवारों पर बिजली सी चमक रही थी।
मायरा ने पीछे मुड़कर दो-तीन गोलियां चलाईं, वे दीवार से टकराकर बेकार गईं।
आर्यन ने बैग को कसकर पकड़ा, और सीढ़ियों के ऊपर पहुंचते ही उसने भारी लकड़ी का दरवाज़ा खींचकर बंद कर दिया
नीचे से नकाबपोश की गूंजती आवाज़ आई:
“समय के ऋण से कोई बच नहीं सकता…”
भारी लकड़ी का दरवाज़ा जैसे ही बंद हुआ, तहख़ाने की गूंज अचानक थम गई।
आर्यन और मायरा कुछ पल वहीं टिककर सांसें संभालते रहे, दोनों के चेहरों पर पसीना था, कपड़ों पे धूल थे, और आंखों में वही सवाल:: अभी जो हुआ… वो सच था या सपना?
मायरा (धीरे से): “ये… जो भी था… इंसान नहीं था।”
आर्यन: “और जो हमने लिया है… वो किसी भी इंसान के लिए था?”
आर्यन ने अपना बैग कसकर पकड़ा। दोनों ने चुपचाप हवेली के अंधेरे गलियारों में कदम बढ़ाए।
ऊपर की मंज़िल से टूटे कांच पर पैर पड़ते ही चर्र… की आवाज़ गूंजी, और दोनों रुक गए।
उस खंडार पड़ी हवेली का मुख्य दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था, और बाहर रात का आसमान, बादलों के बीच चांद ऐसे दिख रहा था जैसे किसी ने उसे जंजीरों में बांध रखा हो। गंगा के किनारे ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उसमें भी तहख़ाने की वही ठंडी धातु जैसी गंध थी।
मायरा ने चारों ओर अपनी नजर दौड़ाई।
मायरा: “साफ़ है।”
आर्यन: “नहीं… साफ़ तो कभी था ही नहीं।”
दोनों ने हवेली के मुख्य गेट को पार किया। पीछे हवेली एक काली, मौन दीवार की तरह खड़ी थी। लेकिन जैसे ही वे सड़क पर पहुंचे, आर्यन ने हवा में हल्की-सी कंपन महसूस की, जैसे उनके पीछे कोई बहुत धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा हो। उसने पीछे मुड़कर देखा, कुछ भी नहीं था, फिर भी, उसके रोंगटे खड़े हो गए।
तभी आसमान में बिजली कौंधी, और उसी क्षण आर्यन ने देखा -- दूर, हवेली की टूटी खिड़की पर वही नीली चमकती आंखें। सिर्फ़ एक सेकंड के लिए… लेकिन इतनी देर में उसके भीतर तक ठंड उतर गई।
मायरा: “चलो… अब यहां से जितनी दूर जा सकते हैं, चले चलते हैं।”
दोनों तेज़ कदमों से अंधेरे में खो गए।
लेकिन हवेली के भीतर, उस टूटी खिड़की पर, नीली आंखें और उस नीली चमकदार तलवार वाला साया अब भी उन्हें देख रहा था................................................Continues ...................................... The Story Begins
Ashtachakra: The Gate of Time
Part 1 completed.......