बरगद का बृक्ष सृष्टि ब्रह्माण्ड के लिए बहुत उपयोगी एवं लाभ करी होता है प्रथम तो बरगद का बृक्ष एक बार लगाने के बाद हज़ारों लाखो वर्ष तक जस का तस रहता है बरगद पीपल पाकड़ ऐसे बृक्ष है जो सर्वाधिक आक्सीजन प्रदान करते है! वर्तमान मेँ पश्चिम बंगाल के कोलकाता के चिड़िया घर के पास हज़ारों वर्ष पुराना बरगद का बृक्ष है दूसरा इलाहबाद बाद मेँ है जो महाप्रलय काल से ही खड़ा है जिसे अक्षय बट बृक्ष के नाम से जाना जाता बरगद बृक्ष कि विशेषता यह है कि यदि एक बार लगा दिया जाए तो तनो से जड़ जड़ से नए बृक्ष कि उतपत्ति होती रहती है अर्थात सौ वर्षो बाद यह पता लगाना असम्भव हो जाएगा कि मूल बट बृक्ष कौन है यही कारण है कि सनातन मे अखंड एहीवात के लिए बरगद कि सुहागिनो द्वारा पूजा कि जाती है जिसे बट सावित्री के नाम से जाना जाता है!महाभारत काल मेँ ज़ब महाराज परीक्षित दक्षक दंश के भयंकर श्राप श्रपित होना पड़ा तब एक ऋषि पुत्र द्वारा महाराज परीक्षित को बचाने का संकल्प लेकर हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान किया गया लम्बी यात्रा कि थकान के कारण ऋषि पुत्र बरगद कि छाँव मेँ विश्राम कर रहे थे ठीक उसी समय दक्षक मनुष्य वेष मेँ वहां पहुंचा और उसने ऋषि कुमार से प्रश्न किया कहाँ जा रहे हो?ऋषि कुमार नें बतया महाराज परीक्षित को दक्षक दंश से बचाने जा रहा हूँ!दक्षक नें ऋषि कुमार से कहाँ तुम्हे यह प्रमाणित करना होगा कि तुममेँ महाराज परीक्षित को बचाने कि शक्ति क्षमता ज्ञान है ऋषि कुमार नें कहाँ आप जो परीक्षा लेना चाहो हम देने के लिए तैयार है!दक्षक नें अपना परिचय देते हुए बरगद के बृक्ष पर फूंकार मारी पलक झपकते ही बरगद का बृक्ष सुख गया और पल्लव बिहीन हो गया!ऋषि कुमार नें अपने कमंडल से जल लेकर अभिमन्त्रीत करते हुए उसे बट बृक्ष पर छोड़ दिया पलक छपकते ही बरगढ़ का बृक्ष ज्यो का त्यों हरा भरा हो गया!दक्षक नें ऋषिकुमार को ज्ञान का उपदेश दिया और कहा ऋषिकुमार यदि तुम महाराज परीक्षित तक पहुंच गए तो महाराज परीक्षित मेरे दंश के बाद भी जीवित रहेंगे और ऋषि का श्राप झूठा हो जायेगा!तुम किस उद्देश्य से महाराज परीक्षित को बचाने जा रहे हो ऋषि कुमार नें कहा धन हेतु तक्षक नें बहुत सारा धन दौलत देकर ऋषिकुमार को वापस भेज दिया! एक और सनातन मेँ सत्य प्रचलित है सनातन मेँ सुहागिनो को आशीर्वाद मेँ कहा जाता है -बट बृक्ष जस आँचल गंग जमुन धारा जस एहीवात तुम्हार महाभारत के युद्ध से पूर्व अठारह दिनों के निर्धारित युद्ध समाप्त करने की छमता के संदर्भ मे युद्ध मे सम्मिलित हो रहे दोनों पक्षो के महार्थियों से प्रश्न किया गया तो किसी तीन दिन किसी ने दस दिन किसी ने एक माह सभी म्हरोथियों ने अपनी अपनी क्षमता के अनुसार बताया ज़ब प्रश्न बर्बरीक से पूछा गया तब बर्बारीक ने उत्तर दिया पलक छपकते ही तब नारायण भगवान श्री कृष्ण ने बर्बारीक की परीक्षा लेने के लिए कहाँ की बरगद के बृक्ष के सभी पत्ते का भेदन करके अपनी योग्यता सिद्ध करो और भगवान श्री कृष्णा ने बट बृक्ष का एक पत्ता अपने पैर के निचे दबा लिया बर्बारिक ने बाण छोड़ा और उसके बाण बट बृक्ष के सभी पत्तों को भेदता हुआ बर्बारीक के तुणीर मे लौट आया बर्बारीक बोला प्रभु देखिए मैंने एक ही बाण से बट बृक्ष के सभी पत्तों का भेदन कर दिया भगवान कृष्ण बोले एक पत्ता शेष बच गया है बर्बारीक बोला प्रभु वह पत्ता आपके चरणों के निचे पाताल के रास्ते पत्ते को भेदन करता हुआ एवं आपके चरण स्पर्श करता हुआ लौटा है भगवान श्री कृष्ण ने ज़ब देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ!
सनातन धर्म एवं समाज मे बट बृक्ष का बहुत महत्व है अनेको प्रकरण बट बृक्ष से सम्वन्धित है जो सनातन धर्म से जुड़े है पर्यावरण के लिए बट बृक्ष का महत्वपूर्ण योग दान है!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!