कॉलेज कैंपस की सुबह
बारिश के बाद की सुबह कुछ खास होती है। नमी से भरी हुई मिट्टी की खुशबू, पत्तों पर ठहरे पानी के कतरे और धीमी-धीमी ठंडी हवा मन को सुकून देती है। वहीं कॉलेज के गेट पर, अनया एक पेड़ की छांव में खड़ी थी, हाथों में वही किताब जो पिछले दिन आयुष ने उसे दी थी।
आयुष थोड़ी देर में साइकिल से आता है, उसके चेहरे पर वही संकोच भरी मुस्कान।
"गुड मॉर्निंग!" अनया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"गुड मॉर्निंग!" आयुष ने भी जवाब दिया, "किताब पढ़ ली?"
"हाँ, और तुमसे एक सवाल भी पूछना है," अनया ने किताब उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
"पूछो ना…"
"तुमने ये किताब क्यों दी थी? कहानी तो अच्छी थी, पर उसमें वो वादा... जो हीरोइन ने हीरो से किया था बारिश में... क्या वही बताना चाहते थे तुम?"
आयुष थोड़ा सकपकाया, पर फिर खुद को संभालते हुए बोला, "शायद... मैं चाहता था कि तुम समझो, वादे तब मायने रखते हैं जब दिल से किए जाएं।"
"फिर तो तुम्हें एक और किताब देनी पड़ेगी," अनया ने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा, "क्योंकि ये सवाल अभी अधूरा है।"
दोनों हँस पड़े। और ये हँसी… उनकी दोस्ती की बुनियाद में एक और ईंट जोड़ गई।
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कक्षा का पहला साथ
अब दोनों एक ही क्लास में साथ बैठते थे। प्रोफेसर की बातें तो चल रही थीं, पर उनकी नजरें अक्सर एक-दूसरे की तरफ होतीं। अनया की कॉपी पर अक्सर छोटे-छोटे स्केच बनते रहते – एक छाता, बारिश की बूँदें, और एक अनाम चेहरा।
"तुम इतना अच्छा स्केच करती हो!" आयुष ने एक दिन क्लास के बाद कहा।
"सीख रही हूँ," अनया ने जवाब दिया, "पर तुम्हारी तरह सोच नहीं सकती। तुम्हारी बातें... गहराई में जाती हैं।"
"शायद इसीलिए हम दोनों एक-दूसरे को समझते हैं," आयुष ने कहा।
और यहीं से शुरू हुआ — उनका हर दिन साथ बिताना।
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कॉलेज फेस्ट की तैयारी
कॉलेज फेस्ट नज़दीक था। आयुष को हिंदी कविता प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था, और अनया को ड्रामा में मुख्य भूमिका मिली थी। दोनों व्यस्त थे, फिर भी एक-दूसरे के लिए समय निकाल ही लेते।
"तुम्हारी कविता का विषय क्या है?" अनया ने पूछा।
"बारिश," आयुष मुस्कराया।
"फिर से?" अनया चौंकी।
"हाँ," उसने आंखें झुका लीं, "क्योंकि बारिश में ही तो तुम मिली थी…"
अनया चुप हो गई। वो जानती थी कि अब उनकी कहानी किसी अनकहे रिश्ते की तरफ बढ़ रही थी। वो हल्के से मुस्कुराई, और आयुष की ओर देखती रही।
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पहली जलन
एक दिन, फेस्ट के रिहर्सल के दौरान अनया की सीन पार्टनर रोहित, जो कॉलेज का हैंडसम और स्मार्ट लड़का था, उससे कुछ ज़्यादा ही फ्रेंडली होने लगा। अनया ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन आयुष की नजरों में वो चुभने लगा।
कॉमन रूम में, जब आयुष ने देखा कि रोहित अनया के बहुत करीब आकर उसका संवाद दोहरा रहा है, तो उसका चेहरा उतर गया।
शाम को उसने अनया से बात की — "तुम्हें रोहित से दूरी बनाकर रखनी चाहिए…"
"क्यों?" अनया ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, "वो मेरा को-एक्टर है। तुम हर किसी से जलते क्यों हो?"
"मैं नहीं जलता, बस… मुझे अच्छा नहीं लगता," आयुष ने नजरें झुका लीं।
"अच्छा नहीं लगता या तुम मुझे खोने से डरते हो?" अनया ने सवाल कर दिया।
इस सवाल का जवाब आयुष के पास नहीं था। वो चुप रहा।
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एक अधूरी मुलाकात
उसी शाम बारिश होने लगी। अनाया ने उम्मीद की थी कि आयुष छाता लेकर उसे कॉलेज गेट पर लेने आएगा — जैसे वो अक्सर आता था। लेकिन वो नहीं आया।
अनया अकेले भीगते हुए घर गई। उसके मन में कई सवाल थे — "क्या हमारी दोस्ती इतनी कमज़ोर है? क्या वो मुझसे दूर हो रहा है?"
दूसरे दिन कॉलेज में, आयुष भीगकर आया और सीधा अनया के पास पहुंचा।
"मैं कल नहीं आ सका… दादी की तबीयत खराब थी…" उसकी आवाज़ में थकान थी।
"तुम बता तो सकते थे… मैं इंतज़ार करती रही," अनया की आंखें नम थीं।
"मैंने फोन किया था… पर शायद नेटवर्क नहीं था," उसने सफाई दी।
दोनों चुप हो गए। वो पहली बार था जब उनके बीच दूरी महसूस हुई थी।
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मन की गिरहें
उस दिन के बाद, दोनों ने बात तो की, पर पहले जैसी बात नहीं रही। आयुष ने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया, और अनया ड्रामा की तैयारी में व्यस्त हो गई।
कॉलेज की लाइब्रेरी में भी जब दोनों मिले, तो नज़रों की भाषा वही थी, पर लफ्ज़ ग़ायब थे।
फिर एक दिन, जब लाइब्रेरी में बारिश की आवाज़ गूंजने लगी, अनया ने धीमे से कहा — "आयुष, क्या हम पहले जैसे नहीं हो सकते?"
"क्या तुम चाहती हो कि हम पहले जैसे हों?" आयुष ने सवाल में जवाब दिया।
"हाँ… क्योंकि पहली बारिश में जो वादा था… वो अधूरा रह गया है," अनया की आवाज़ भर्राई।
आयुष ने उसकी आंखों में देखा — वही मासूमियत, वही गहराई, वही इंतज़ार।
"तो चलो," उसने कहा, "वो वादा फिर से निभाते हैं। इस बार पूरी ईमानदारी से।"
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फेस्ट की रात – एक नई शुरुआत
कॉलेज फेस्ट की रात थी। अनया का ड्रामा और आयुष की कविता, दोनों ने सभी का दिल जीत लिया। स्टेज पर आयुष की कविता की अंतिम पंक्तियां थीं:
> "वो पहली बारिश थी, जब तू साथ थी,
हर बूँद में तेरा नाम था,
आज भी जब बादल गरजते हैं,
मैं उस वादे को याद करता हूँ,
जो तेरी आंखों में बिना बोले था…"
पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। पर आयुष की नजरें सिर्फ एक जगह थीं — अनया पर। और अनया की आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन वो आंसू दर्द के नहीं थे… वो स्वीकार के थे।
जब कार्यक्रम खत्म हुआ, अनया सीधा आयुष के पास आई।
"तुम्हारी कविता… दिल छू गई।"
"क्योंकि उसमें तुम ही थी," आयुष ने कहा।
और इस बार, बिना कुछ कहे, अनया ने उसका हाथ थाम लिया।
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एपिसोड 3 समाप्त – आगे क्या होगा?
क्या ये सिर्फ कॉलेज का प्यार है या वाकई कोई गहरा रिश्ता बनने जा रहा है? क्या अनया और आयुष अपने रिश्ते को अपने परिवारों से साझा कर पाएंगे? क्या जीवन की अगली बारिशों में भी ये साथ रह पाएंगे?
जानिए आगे एपिसोड 4 में…
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Writer: rekha rani