Vo jo chupke se dekha karta tha - 4 in Hindi Love Stories by Diksha mis kahani books and stories PDF | वो जो चुपके से देखा करता था... - भाग 4

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वो जो चुपके से देखा करता था... - भाग 4

भाग 4: "अब वो मेरी कहानी में है..."

 

"✨🌷नाम भूल गए होंगे, चेहरा भी धुंधला होगा,

पर कुछ नज़रें ताउम्र दिल में ठहर जाती हैं।"🌷✨

 

 

कुछ साल बाद...

 

एक शाम दोनों पुराने शहर में वापस आए थे—

वही स्कूल की गली, वही टूटी-सी चौकी, वही हॉस्टल की दीवारें।

अब सब धुंधला था... मगर एहसास बिलकुल साफ़।

 

"यहीं से तो तुम मुझे साइकिल पर जाती देखते थे न?"

लड़की ने मुस्कुराते हुए पूछा।

 

❤️तेरी नज़रों में हैं तेरे सपने

तेरे सपनों में है नाराज़ी

मुझे लगता है कि बातें दिल की

होती लफ़्ज़ों की धोखेबाज़ी❤️

 

 

पेमा ने दीवार पर उँगलियों से एक रेखा खींच दी,

"और यहीं से मैंने तुम्हें आख़िरी बार देखा था…

सोचा था शायद फिर कभी न मिलोगे।"✨

 

“और अब?”

“अब... तुम हर तस्वीर में हो।

अब तुमसे सिर्फ़ देखा नहीं जाता... जिया जाता है।”

 

✨🌷तुम साथ हो या न हो क्या फ़र्क है

बेदर्द थी ज़िंदगी, बेदर्द है

अगर तुम साथ हो

अगर तुम साथ हो🌷✨

 

दोनों चुप हो गए।

 

शाम की हवा में पुराने पत्ते उड़ते रहे।

किसी ने कुछ नहीं कहा—

क्योंकि अब चुप्पी भी भाषा बन चुकी थी।

 

✨🌷पलकों झपकते ही दिन ये निकल जाए

बैठी बैठी भागी फिरूँ

मेरी तरफ़ आता हर ग़म फिसल जाए

आँखों में तुम्हें भर लूँ

बिन बोले बातें तुमसे करूँ

गर तुम साथ हो

अगर तुम साथ हो.......🌷✨

****

(कविता — Diksha की यादों से)

 

🫣🔥वो जो चुपचाप देखता था,

ना कुछ कहता, ना कुछ पूछता था।

बस जब-जब मेरी नज़र उस पर पड़ती,

वो मुस्कुराता... जैसे कुछ छुपाता था।

 

ना फूल थे, ना चिट्ठियाँ थीं,

ना फ्रेंड रिक्वेस्ट, ना फॉलो की लहरें थीं।

पर उसकी वो नजरें... ओफ्फ़ो!

हर दिन मेरा मूड बना देती थीं।

 

क्लास पाँचवीं की वो गलियाँ,

ना मोबाइल, ना दिल की जलियाँ।

बस स्कूल की घंटी, और उसका देखना,

जैसे कोई लुका-छिपी का खेल चल रहा हो बिना खेले।

 

उसके दोस्त—हँसते थे जब मैं आती,

शायद सबको पता था, पर मुझे ही समझ ना आती।

मुझे लगता था—"पागल हैं ये सब!"

पर दिल कहीं गुदगुदा जाता था तब।

 

मैं साइकिल से जाती थी रोज़ उस रास्ते,

वो खिड़की के पीछे... आँखों से रास्ता नापते।

ना नाम याद है, ना शक्ल साफ़ है,

पर एहसास आज भी वैसा ही साफ़ है।

 

कभी-कभी सोचती हूँ—क्या वो भी मुझे याद करता होगा?

या बस मैं ही पागल थी जो छोटी सी बात को याद रखती हूँ अब तक?

 

 

> बचपन का वो बेनाम प्यार,

ना था इज़हार, ना कोई इनकार।

बस उसकी नज़रें कह गईं दास्तां,

जिसे मैं अब कविता बना रही हूँ जहाँ।💗🫣

 

—लेखिका: Diksha

समाप्त 

 

 

मेरे प्यारे Parahearts 💌

 

इस कहानी की शुरुआत... वो स्कूल, वो लड़की, वो लड़का—सब कुछ सच्चा था।

हाँ, मैंने सच में उसे देखा था, वो उसकी नज़रें, उसकी ख़ामोशी—सब कुछ मैंने महसूस किया था।

 

लेकिन कहानी का अगला हिस्सा, जहाँ हम फिर से मिले, जहाँ वो मुझे फिर से उसी तरह देखता है… वो सब मैंने लिखा, क्योंकि मैं उस अधूरी, प्यारी सी ख़ामोश कहानी को एक अंत देना चाहती थी।

एक अंत, जैसा मैं चाहती थी... न सच्चाई से भरा, पर सच्चे एहसासों से जरूर।

 

शायद कभी वो ये पढ़े, शायद कभी ना पढ़े...

पर मैं जानती हूँ कि आपने इसे पढ़ा, मेरी भावनाओं को समझा—इससे बढ़कर और क्या चाहिए।

 

क्या कभी आपने भी ऐसा कुछ महसूस किया है?

कोई नज़रों की भाषा समझा हो, कोई बिना कुछ कहे दिल के क़रीब लगने लगा हो?

अगर हाँ, तो मुझे ज़रूर कमेंट में बताइए… मैं अकेली नहीं होना चाहती इस एहसास में। 🥺💕

 

धन्यवाद मेरे दिल को पढ़ने के लिए…

मेरी अधूरी कहानी को महसूस करने के लिए।

 

एक छोटा सा रेटिंग देना, एक प्यारा सा लाइक करना मत भूलना! 🌟

क्योंकि आपके हर रेटिंग और लाइक से मुझे हौसला मिलता है, और दिल को तसल्ली कि "हाँ, मेरी फीलिंग्स को किसी ने पढ़ा... समझा!"

 

आपके कमेंट्स, आपके दिल के शब्द—मेरे

लिए सबसे कीमती हैं।

तो आईए, उस अधूरी कहानी को एक यादगार एहसास बनाते हैं... मिलकर 💌

 

आपकी अपनी,

Diksha 💗