....Note to my Parahearts 💌(my readers)
"आज कुछ बहुत अपना सा शेयर कर रही हूँ… खुद से जुड़ा, दिल से निकला।"
शायद आप सब मुझे मेरी कहानियों, कल्पनाओं, किरदारों के ज़रिए जानते हो...
लेकिन आज, जो लिख रही हूँ — वो एक छोटी सी याद है मेरी ज़िंदगी की।
एक ऐसा अहसास, जिसे मैंने कभी समझा नहीं,
बस वक़्त के साथ महसूस किया।
सच कहूँ, थोड़ी नर्वस हूँ।
क्योंकि यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं,
बल्कि मैं हूँ — मेरी मासूम सोच, बचपन की झलक, और वो अनकहा सा जुड़ाव।
मैं नहीं जानती कि आप क्या सोचोगे,
पर एक यकीन है —
आप समझोगे।
क्योंकि आप मेरे सिर्फ़ पाठक नहीं, Parahearts हो —
जो शब्दों से आगे महसूस करते हो।
अगर कभी आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ हो...
तो प्लीज़ मुझे ज़रूर बताना।
क्योंकि शायद हमारी कहानियाँ अलग हों,
पर दिल की धड़कनें अक्सर एक सी होती हैं।
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"वो जो चुपके से देखा करता था..."
✨✨✨समर्पण✨✨✨✨
इस कहानी को समर्पित करती हूँ—
उस अनजान लड़के के नाम,
जिसकी खामोश नज़रों ने
मेरे बचपन को एक कविता बना दिया।
और उन सभी दिलों के लिए
जिन्होंने कभी कुछ कहे बिना
सब महसूस किया।
✨ प्रोमो✨
कभी-कभी सबसे गहरी कहानियाँ वही होती हैं जो कभी कही नहीं जातीं।
ये कहानी है उस चुप नज़र की, जो पाँचवीं कक्षा में चुपचाप एक लड़की को देखती थी...
ना कोई इज़हार, ना कोई शब्द,
बस एक मासूम-सी उपस्थिति, जो सालों बाद भी दिल को छू जाती है।
“ वो जो चुपके से देखा करता था..."
...एक ऐसी अधूरी याद से शुरू हुई यात्रा है, जो वक्त के साथ परिपक्व होती गई—
बचपन की अनकही भावनाओं से लेकर बड़े होने की समझ तक।
शायद आप भी किसी बिना नाम वाले चेहरे को इस कहानी में पहचान लें।
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भाग 1 – "पहली नज़र की मासूमियत"
💗"कुछ नज़रों की बातों में वो एहसास छुपा होता है,
जो शब्द कभी बयां नहीं कर पाते।"🫣
पाँचवीं कक्षा थी। दो चोटी वाली एक लड़की थी—क्लास की टॉपर, बेहतरीन डांसर, आज्ञाकारी और सभी टीचर्स की फेवरिट। वो जहाँ जाती, महफ़िल वहीं सजती। स्कूल की चमकती हुई रोशनी थी वो—जिसे सब देखते थे, लेकिन वो बस मुस्कुराकर आगे बढ़ जाती थी।
वहीं दूसरी तरफ, एक लड़का था—बिलकुल सामान्य, न ज़्यादा बोलने वाला, न ही किसी नोटिस में आने वाला। वो पूर्वोत्तर भारत ( northeast)से था। पहली बार देखकर मुझे लगा कि वो शायद चाइनीज़ है, लेकिन फिर हमारे टीचर्स ने समझाया कि वे सब नॉर्थ ईस्ट इंडिया से हैं।
(कितनी बेवकूफ़ थी मैं, उसे चाइनीज़ समझ बैठी! हम भारतीय ही अपने भारत को नहीं जानते...)
मगर उसकी आँखें कुछ कहती थीं... और वो बात बस उसी लड़की के लिए थी।
उसके दो दोस्त थे—जिनका नाम आज भी मेरी यादों में दर्ज़ है। एक था वो, जिसे मैं छिपकली स्पेशलिस्ट कहती थी। उसे न जाने क्या हुनर आता था, छिपकली को हाथ में पकड़कर ऐसे फेंकता था जैसे कोई जादूगर हो! और दूसरा दोस्त... वो मेरा कॉम्पिटिटर था। मैं पहले आती तो वो दूसरे नंबर पर, वो पहले आता तो मैं उसे घूरती रह जाती। लेकिन मज़े की बात ये थी—वो भी मुझे देख कर मुस्कुराता था।
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तीनों की दुनिया अलग थी... मगर न जाने क्यों, जब भी मैं पास से गुज़रती, उनकी नज़रों की दिशा एक जैसी हो जाती थी—मेरी तरफ।
वो लड़का कुछ नहीं कहता था, मगर उसकी खामोश आँखें बहुत कुछ कहती थीं... वो एक चुपचाप सी मासूम पसंद, जिसे शब्दों की ज़रूरत ही नहीं थी।
जब भी वो लड़की कक्षा में दाखिल होती, उसकी नज़रें सबसे पहले उसी पर टिक जातीं। ना मुस्कान, ना इशारा... बस एक चुपचाप सी नज़र जो हर दिन उसके पीछे चलती थी।
वो लड़का हॉस्टल में रहता था, बहुत दूर अपने घर से। स्कूल उसका नया घर था, और शायद उस लड़की की मौजूदगी उस घर में कुछ रंग भर देती थी।
लड़की को तब यह सब अजीब लगता था।
“ये हर बार मुझे ही क्यों देखता है?”
“उसके दोस्त मुझे देखकर क्यों हँसते हैं?”
—ऐसे सवाल उसे परेशान करते थे।
वो अक्सर साइकिल से स्कूल जाती। रास्ते में उसका हॉस्टल पड़ता। हर बार वो देखती—उसके दोस्त बाहर खड़े होते, जैसे टाइम टेबल में उसका निकलना तय हो। और वो? हमेशा पर्दे के पीछे। कभी दिखता नहीं, मगर एहसास हमेशा रहता।
कई बार लड़की को गुस्सा आता, वो मुँह फेर लेती।
उसे वो 'घूरना' बिलकुल पसंद नहीं था।
फिर एक दिन स्कूल बदल गया। छठी कक्षा में सब कुछ नया था—नई किताबें, नए दोस्त, नया माहौल। मगर हॉस्टल वाला रास्ता अब भी वही था।
और हर दिन वो साइकिल से गुजरती रही।
कुछ महीनों तक उसकी पुरानी परछाइयाँ अब भी दिखती रहीं—वही दोस्त, वही मुस्कानें। मगर लड़का? अब भी चुप। अब भी छुपा।
आठवीं कक्षा तक आते-आते वो चेहरे भी दिखने बंद हो गए।
वो सब अचानक बंद हो गया—जैसे कुछ कभी था ही नहीं।
पर लड़की के मन में एक सवाल हमेशा रह गया—
"आख़िर वो मुझे देखता क्यों था?"
समय गुज़रा। उम्र बड़ी। समझ आई।
अब जब वो उस उम्र को देखती है,
तो हँसी भी आती है... और हल्का सा सूनापन भी।
शायद वो बस एक मासूम सा 'पसंद करना' था।
ना इश्क़ था, ना इकरार।
बस एक चुप्पी थी...
जो हर रोज़ आँखों के ज़रिए कुछ कहती थी।
©Diksha
जारी(...)
~लेखिका: Diksha
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