मुंबई पहुँचते ही राहुल को थोड़ी राहत मिली। सुबह के तीन बज रहे थे, और शहर की नीरवता उसे सुकून दे रही थी। गाड़ी को अपनी पार्किंग में लगाते ही, उसने एक गहरी साँस ली और फ्लैट की ओर बढ़ गया। थकावट इतनी ज़्यादा थी कि वह सीधा बिस्तर पर लेट गया और एक गहरी नींद में खो गया। उसे लगा कि सारी परेशानी बस इसी थकान की देन है, जो एक अच्छी नींद के बाद छूमंतर हो जाएगी।
अगले दिन, राहुल देर से उठा। सूरज की किरणें खिड़की से अंदर आ रही थीं, और एक पल के लिए उसे लगा कि सब कुछ सामान्य है। वह फ्रेश होने बाथरूम में गया, और तभी उसने नोटिस किया। उसके माथे पर पसीने की बारीक बूँदें थीं, जबकि बाथरूम में अच्छी खासी ठंडक थी और एसी भी चल रहा था। उसने सोचा, "शायद कल रात की थकान अभी पूरी तरह उतरी नहीं है।" उसने इस बात को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी और ऑफिस जाने के लिए खुद को तैयार करने लगा।
ऑफिस में दिन भर उसे थोड़ी चिड़चिड़ाहट महसूस होती रही। उसकी एकाग्रता भंग हो रही थी। आमतौर पर, वह अपने कोड में पूरी तरह डूब जाता था, लेकिन आज उसका दिमाग भटक रहा था। छोटी-छोटी बातों पर उसे गुस्सा आ रहा था – कभी किसी सहकर्मी की धीमी आवाज़ पर, तो कभी कॉफी मशीन के धीमे होने पर। शाम तक उसे फिर से पसीना आने लगा, जो इस बार पहले से ज़्यादा था। उसकी टी-शर्ट हल्की-हल्की भीगने लगी थी। उसने खुद को समझाया, "गर्मी का मौसम है और शायद काम का तनाव भी ज़्यादा है।"
अगले दो दिनों में, स्थिति और बिगड़ती गई। पसीना रुकने का नाम नहीं ले रहा था, चाहे वह एसी में हो या दिन के किसी भी समय। चिड़चिड़ापन इतना बढ़ गया था कि वह अपने सहकर्मियों से भी हल्की बात पर बहस करने लगा था, और घर पर भी उसकी माँ को उसकी बदली हुई आदत महसूस होने लगी थी। रात में उसे ठीक से नींद नहीं आ रही थी, और जब आती भी थी तो बेचैन करने वाले सपने उसे जगा देते थे – कभी उसे खुद को एक अँधेरी सड़क पर दौड़ते हुए देखता, तो कभी बिना चेहरे वाले लोग उसके पीछे होते। सुबह उठने पर उसे सिर्फ़ इन डरावने सपनों की धुंधली याद ही रह जाती।
राहुल, जो अपनी तार्किक सोच और समस्याओं को हल करने की क्षमता पर बहुत भरोसा करता था, अब चिंतित होने लगा था। यह सिर्फ़ थकान नहीं हो सकती थी। उसके शरीर और दिमाग में कुछ ऐसा हो रहा था जो उसके काबू से बाहर था। वह अपने लैपटॉप पर अपने लक्षणों को सर्च करने लगा, लेकिन कोई भी सटीक जवाब नहीं मिला। अंततः, उसने डॉक्टर से मिलने का फैसला किया।
क्लिनिक में डॉक्टर ने उसकी बात ध्यान से सुनी। राहुल ने अपने सभी लक्षण बताए – लगातार पसीना, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, और वो अजीब सपने। डॉक्टर ने उसका पूरा चेकअप किया, ब्लड प्रेशर नापा, और कुछ सामान्य सवाल पूछे। अंत में, डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, "राहुल, मुझे नहीं लगता कि कोई गंभीर समस्या है। कभी-कभी थकान और तनाव की वजह से ऐसा होता है। आप थोड़े स्ट्रेस्ड लग रहे हैं, और आपकी नींद पूरी नहीं हो रही है। मैं कुछ विटामिन और हल्के सेडेटिव लिख रहा हूँ। आप बस थोड़ा आराम कीजिए, तनाव कम कीजिए और अपनी डाइट का ध्यान रखिए, सब ठीक हो जाएगा।"
डॉक्टर की बात सुनकर राहुल को थोड़ी तसल्ली हुई। उसे लगा, चलो कम से कम कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है। उसने दवाएँ लीं और घर आकर डॉक्टर की सलाह का पालन करने की कोशिश की। कुछ दिनों के लिए उसे लगा कि शायद डॉक्टर सही थे, लक्षण थोड़े कम हुए। लेकिन फिर वे फिर से लौट आए, और इस बार पहले से भी ज़्यादा प्रबल होकर। अब राहुल को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। डॉक्टर ने भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं दिया था। वह सामान्य दिखने की पूरी कोशिश कर रहा था, इसीलिए उसने अपने घर पर एक छोटी सी पार्टी भी रखी, जहाँ उसके सभी दोस्त आए। वह उनके सामने खुश दिखने का नाटक करता रहा, हँसता-बोलता रहा, लेकिन अंदर ही अंदर एक अजीब सी बेचैनी उसे घेरे हुए थी, जिसका उसे अभी तक कोई अंदाज़ा नहीं था कि वह कहाँ से आ रही है।