> वो लड़का हर सोमवार मंदिर के बाहर खड़ा होकर उसी लड़की को देखा करता था।वो लड़की हमेशा सफेद सलवार-सूट में आती थी, माथे पर काली बिंदी और आँखों में एक अजीब सी खामोशी लिए हुए।वो आती, पूजा करती, कुछ देर बैठती, और फिर चली जाती।लड़का कभी उससे बात नहीं कर पाया। शायद डर था — नकारे जाने का, या शायद सिर्फ इस खामोश मोहब्बत को देखने की आदत पड़ गई थी।हफ्ते बीतते गए।धीरे-धीरे वो लड़की उसके लिए हवा की तरह ज़रूरी हो गई थी।सुबह उठकर सबसे पहले यही ख्याल आता – "आज सोमवार है, वो आएगी ना?"वो उसके लिए चुपचाप प्रसाद लाने लगा, लेकिन कभी दे नहीं पाया।एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर एक चिट्ठी लिखी —> "तुम्हें देखा तो कुछ महसूस हुआ... जैसे खुद को देख लिया हो। ये बात कहनी तो बहुत बार चाही, लेकिन जुबान साथ नहीं देती। सिर्फ इतना कहूंगा — तुम्हें पसंद करता हूँ।"लेकिन वो चिट्ठी कभी दी नहीं गई।उसी हफ्ते वो लड़की नहीं आई।फिर अगला हफ्ता... फिर महीना...मंदिर वही था, हवा वही थी... पर अब वो लड़की नहीं थी।लड़का हर सोमवार आता रहा। हर बार वही चिट्ठी जेब में होती, और वो उम्मीद आँखों में।एक दिन वो समझ गया — शायद अब वो कभी नहीं आएगी।पर फिर भी आना बंद नहीं किया।तीन साल गुजर गए।फिर एक सोमवार, वो फिर आई — लेकिन अब अकेली नहीं।उसके साथ एक आदमी था — उसका पति।उसके हाथों में शादी की लाल चूड़ियाँ थीं, माथे पर सिंदूर।लड़का कुछ देर उसे देखता रहा।वही आँखें थीं, लेकिन अब उनमें और भी गहराई थी — जैसे कुछ छुपा हो, या कुछ छूट गया हो।लड़की ने लड़के को देखा।दोनों की नज़रें मिलीं, पर कुछ नहीं कहा।फिर लड़का मुस्कराया और धीरे से बोला,“कैसी हो?”लड़की चौंकी नहीं, बस हल्के से मुस्कराई।आँखों में नमी सी झलक गई, पर चेहरे पर सुकून था।लड़का आगे बढ़ा, जेब से वही पुरानी चिट्ठी निकाली, कुछ पल उसे देखा...और बिना कुछ कहे उसे पास के दीए के साथ जला दिया।जलती हुई चिट्ठी की रोशनी में उसका चेहरा और भी शांत दिखने लगा।फिर उसने कहा —“मोहब्बत अगर पूरी हो जाए तो कहानी खत्म हो जाती है... मैं चाहता हूँ ये दास्तान कभी खत्म न हो।”लड़की कुछ नहीं बोली, लेकिन उसकी आँखों ने बहुत कुछ कह दिया।लड़का मुस्कराया, पलटा... और भीड़ में खो गया।लड़की वही खड़ी रही... अधूरी, लेकिन संजीदा।वो कहानी वहीं खत्म नहीं हुई थी... वो अधूरी थी, और शायद इसी वजह से सबसे ज्यादा खूबसूरत। भी थी वो पर कर क्या सकते है विधि का जो विधान है उस को तो नहीं बदल सकते , जिस करण उन दोनो को एक दूसरे से जुड़ा होना पड़ा । इसमे गलती किसी की भी नई थी जो होना था वो हो गया करण को छोड़ के हो गई तो फिर क्या बात नहीं कर रहे हे की हार्दिक शुभकामनाएँ भाई का नाम तो फिर क्या हुआ था वो सब कुछ तो फिर से पहले से भी हो रही थी ना यार भाई का क्या हुआ जी को नही तो फिर क्या बात नहीं कर रहे हे की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं भैया जी की है।