(वह आखरी खौफनाक लम्हें)
दर्द भरी पहलगाम की दास्ता और 'ऑपरेशन सिंदूर' की वारदात तो बच्चे - बच्चे की जुबान पर है। परंतु बात यही तक सीमित नहीं हुई। बात थोड़ी आगे बढ़ाई जाए,तो पूंछ की हसीन वादियां,हरे-भरे खेत खलियान,शहरों की रौनक गम में बदल गई थी और खौफ भरा माहौल,लोगों के चेहरों पर उदासी और डर साफ नजर आ रहा था।
6 ओर 7 मई की रात को "ऑपरेशन सिंदूर" के बाद हमारे ही पड़ोसी ने सीमा से महज 2 से 3 किलोमीटर की दूरी पर बसे शहर पूंछ पर गहरा आघात किया। जहां इस देश को अपने पड़ोसी देश भारत से मिलकर मानवता के विरुद्ध कार्य कर रही विरोधी ताकतों का सामना करना चाहिए था। वही हमारा पड़ोसी हमारे ही खिलाफ होकर हमें जख्म देने,हमारे विरुद्ध खड़ा हो गया। जिसके चलते हमारे पड़ोसी देश "पाकिस्तान ने सीमावर्ती इलाके पूंछ को निशाना बनाकर वहां कई निर्दोष व्यक्तियों की जिंदगियां तबाह कर दी। तीन बच्चों समेत कुल 16 जिंदगियों को इस संसार से अलविदा कहना पड़ा। और कई जिंदगियां मृत्यु और जीवन के बीच संघर्ष कर रही थी। हजारों की संख्या में लोगों के चेहरे पर उदासी और खौफ बना हुआ था। नई पीढ़ी के लिए यह पहली बार ऐसा था कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने कुछ पल के लिए मौत को सामने खड़ा देखा और अनुभव किया कि आज के समय में टेक्नोलॉजी और देश कितनी तरक्की कर गए हैं,कि कुछ पलो में ही मानवता का अस्तित्व मिट सकता है।
यह एक ऐसा खौफनाक मंज़र था, जहां किसी से कुछ पूछने और बताने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि सब आंखों देखी वारदात थी।.....
इस सारी दास्तां के कुछ समय पूर्व में एक पिता दूर-दराज़ गांव से उठकर अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ यह सपने संजोए शहर आना चाहता है, कि गांव में बच्चों की शिक्षा में कोई कमी ना रह जाए। इसलिए वह अपने बच्चों को शहर में किसी बड़े स्कूल में दाखिल करवाना चाहता है। हर माता-पिता का यह सपना होता है कि उस के बच्चे पढ़- लिखकर एक दिन बड़े ऑफिसर बन जाए।और हमारी जिंदगी सफल हो जाए,इसी सोच के साथ इस कहानी का आगाज होता है। जहां पति-पत्नी दोनों अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए,और उन का भविष्य उज्वल करने के लिए तैयारी कर रहे हैं।
तोसीफ पत्नी से..तुम क्या सोचती हो?
अमीना...वैसे घर,घर ही होता है..
..आप भी तो इसी गांव में पड़े हो,मास्टर तो लग ही गए हो..
..यह भी पढ़ लिखकर कुछ ना कुछ बन जाएंगे…..
तोसीफ..आजकल वह बात कहां?
आजकल बहुत मॉडर्न जमाना हो गया है,कंपटीशन बढ़ गया है..
हमारे वक्त तो ट्यूशन भी नहीं होती थी.. परंतु आजकल बिना ट्यूशन के हमारे बच्चे कहीं पीछे ना रह जाए..
आमीना..यह साल बीत जाने दो..
अब अगले साल ही देखेंगे क्या करना है..
तोसीफ.. हां हां..
.. अब जो भी बात होगी अगले साल ही होगी...
अगला साल आते_आते पति-पत्नी दोनों में सहमति बन जाती है कि हम अब गांव छोड़कर अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए शहर में चले जाएंगे और वहां किराए पर रहकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे। इन के दो बच्चे थे, दोनों एक साथ पैदा हुए थे। एक लड़का, जिसका नाम जैन था। और दूसरी लड़की जिसका नाम उरफ़ा था। दोनों भाई-बहन शहर को लेके बहुत खुश थे।
जैन...मैंने तो सब कुछ बैग में डाल दिया ..
.. परंतु मेरा लंच बॉक्स नहीं मिल रहा ???
कहीं तूने तो नहीं अपने बैग में डाल लिया...
उरफ़ा..मैंने अपना लंच बॉक्स ही बैग में डाला है... मैं तेरा क्यों डालूंगी.?????
जैन... अरे माँ!
... मेरा लंच बॉक्स नहीं मिल रहा
मैं क्या करूं..??? कहाँ डुंडु...?????
अम्मीना... तुम दोनों अपने-अपने बैग को छोड़ो और जल्दी तैयार हो जाओ....
... तुम्हारी मौसी तुमसे मिलने आ रही है....
..लंच बॉक्स इधर ही होगा मैं ढूंढ लेती हूं....
..पता नहीं तुम्हारे अब्बू कहां गए...????
..बाहर गए थे,
बहुत देर हो गई .. न जाने कब तक आएंगे?????
तोसीफ...मैं आ गया..
.. तुम लोग अभी तक तैयार नहीं हुए क्या????
जैन... मैं तैयार हो गया हूं,उरफ़ा अभी तैयार नहीं हुई..
इतनी देर में बच्चों की मौसी भी आ जाती है।
जैन... हम तो शहर जा रहे हैं। आप भी चलोगे क्या हमारे साथ मौसी...
आफरीन ( मौसी) आज तो तुम बहुत ही खुश लग रहे हो...
शहर जो जा रहे हो.....
उरफ़ा.... मौसी आप भी आया करना हमसे मिलने...
आफरीन.... क्यों नहीं...????
परंतु खूब मन लगाकर पढ़ना...
अमीना.. पढ़ेंगे नहीं तो जाने का फायदा ही क्या है।
तोसीफ..... जल्दी-जल्दी अपने बैग बाहर निकालो गाड़ी आ गई है....
.... देखना कुछ रह ना जाए।
अमीना.... कोई बात नहीं..
... रह जाएगा तो घर में तो चक्कर लगता ही रहेगा...
कौन सा हम सदा के लिए जा रहे हैं....????
सभी घर के बाहर आ जाते हैं बाहर गाड़ी लगी होती है और वहां पर अपने रिश्तेदारों से मिलकर गाड़ी में बैठ जाते हैं और शहर पहुंच जाते हैं।
शहर आकर वह किराए पर रहने लगते हैं। बच्चों की एडमिशन एक निजी स्कूलों में करवाते हैं। जहां वह बच्चे अपनी आगे की पढ़ाई की शुरुआत करते हैं। दोनों भाई- बहन पढ़ाई में बहुत अच्छे होते हैं। अब सब सामान्य हो गया था। बच्चों के पिता अपनी नौकरी पर चले जाते थे और बच्चे स्कूल, मां घर का कामकाज देख लेती थी। सब अच्छा चल रहा था। 22 अप्रैल को पहलगाम अटैक के उपरांत, दोनों देशों में वाद विवाद तेज हो गया था। इस वाद विवाद में भारत की मीडिया भी अपना एहम रोल निभा रही थी। दोनों मुल्क शांत ना हो जाए,इसलिए मीडिया पेट्रोल और डीजल की भूमिका निभा रही थी। हालांकि भारत के हर एक व्यक्ति के दिल पर गहरा आघात हुआ था। सारा देश इस वारदात को देखकर सहम सा गया था। दोनों देशो के तनाव को देखकर धड़कनें तेज हो गई थी। ऐसे माहौल के बाद सीमावर्ती इलाको मे तो डर की स्थिति बनी ही रहती है। हालात धीरे-धीरे बिगड़े, भारत सरकार ने पड़ोसी मुल्क पर दबाव बनाने के लिए कई ठोस कार्रवाई की, परंतु भारत की मंशा एकदम साफ थी कि अब इस तरह की वारदात को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, इस बार मुंह तोड़ जवाब देने का मन बना ही लिया था, 6 की देर शाम को मौक ड्रिल के लिए भारतीय सरकार त्यार थी। परंतु सरकार ने अपनी गुप्त रणनीति के तहत आधी रात को पाकिस्तान पर हमला करके पहलगाम अटैक का बदला लेने की कोशिश की, और अटैक किया भी और सफलता भी प्राप्त की। परंतु कहते हैं ना (मरता क्या नहीं करता ) यही हुआ,पड़ोसी मुल्क ने आगे से जवाबी कार्रवाई के चलते निर्दोष लोगों पर बम दागना शुरू कर दिए। हालांकि भारत ने पड़ोसी मुल्क में आम जनमानस को नुकसान पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की, जैसा सरकार द्वारा बताया गया कि उन्होंने केवल और केवल मानवता विरोधी कार्य कर रही तंज़ीमो को ही निशाना बनाया। परंतु पड़ोसी मुल्क ने अपने को डरा हुआ ना महसूस करवाने के लिए पूँछ शहर पर बड़े-बड़े गोले दाग दिए।
आमीना... यह क्या?
... यह आधी रात को क्या हो गया है????
तोसीफ.. घबराने वाली कोई बात नहीं
...यह मॉक ड्रिल है..
सो जाओ..
सुबह उठकर ड्यूटी भी जाना है..
थोड़ा समय बिता तो यह महसूस होने लगा कि यह मॉक ड्रिल अब मॉक ड्रिल न रहकर कुछ और ही स्थिति बन चुकी है। बड़े-बड़े बम से शहर पूरा दहल उठा
तोसीफ... या अल्लाह रहम कर...
अमीना.... या अल्लाह मैहर कर....
इन बच्चों पर रेहम कर...
अमीना- तौसीफ से.. यह क्या हो गया है...????
गर्जना से मकान पूरा हिल रहा है।
तोसीफ- हां मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा है
कहा तो मॉक ड्रिल के लिए गया था परंतु यह कैसी मॉक ड्रिल जिसमें कान फट रहे हैं।
..... इतनी देर में मोबाइल पर कॉल आती है........
आमीना..फोन उठाओ...
तोसीफ...हेलो....
...बाहर मत निकलना क्योंकि पाकिस्तान द्वारा गोले दागे जा रहे हैं... हालत खराब हो गए हैं। बच्चों का खास ध्यान रखना। अब अल्लाह ही रेहम करें।
तौसीफ को उसके रिश्तेदारों द्वारा फोन पर साफ हो चुका था कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान दोनों आपस में लड़ पड़े हैं। रात बहुत मुश्किल से कटी.. अब जिंदगी और मौत का तांडव जारी हो गया था। सुबह होते होते कई जगह से कॉल आ चुकी थी और यह सुनने को मिल रहा था कि कई जगह तबाह हो गई हैं। जिस जगह पर तौसीफ का परिवार रह रहा था वह जगह ओर भी पाकिस्तान की सेध में थी।
जैन.... अब क्या होगा पापा...?
तोसीफ... कुछ भी नहीं होगा आप डरो मत...
उरफ़ा और जैन दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं डर और खौफ के माहौल से दोनों के मुंह से कोई शब्द नहीं निकलता है।
अमीना की आंखों में आंसू.... डर का माहौल.... सभी एक दूसरे की तरफ देखते हैं परंतु कहने को कुछ नहीं....
मोबाइल पर कॉल........
तोसीफ... हेलो...
आदिल ( बच्चों का मामा)....आप बाहर मत निकलना....जैसे ही गोलाबारी थोड़ी कम होगी.
.. मैं खुद कोशिश करूंगा आप तक पहुंचाने की...
तोसीफ... बच्चे डर रहे हैं... घर के इर्द-गिर्द बम ब्लास्ट हो रहे हैं... अब अल्लाह ही रेहम करें...अल्लाह हाफिज
बच्चों के मामा (आदिल) को नींद कहा पढ़ती,क्योंकि शहर का बच्चा-बच्चा इस त्रासदी को जेल रहा था..क्योंकि वह भी जानता था शहर में अंधाधुंध गोलीबारी हो रही है। वह किसी भी तरह सुबह होते ही वहा पहुंच जाता है...
आदिल... तुम सभी लोग आ जाओ...
हम बाहर ही खड़े हैं...
जल्दी करना क्योंकि कुछ पता नहीं है... हम गलियों से जल्दी ही निकल चलेंगे...
.. लेकिन जल्दी करना...
अमीना... मेरा मन नहीं मान रहा है...
तोसीफ.... बाहर के हालात देखकर मन तो मेरा भी नहीं मान रहा है परंतु यहां रहे तो मारे जाएंगे....
जैन और उरफ़ा दोनों एक दूसरे को देखे जा रहे थे परंतु मुंह से कुछ नहीं बोल पा रहे थे क्योंकि गोले की आवाज़ से जमीन हिल रही थी।
आदिल... कितना समय और लगेगा..???..जितनी जल्दी हो सके बाहर निकालो और हम जल्दी निकले...
अमीना, तोसीफ, जैन, उरफ़ा... चारों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं परंतु कुछ नहीं बोल पाते हैं...
आमीना.. थोड़ी सी हिम्मत से.. तुम निकलो मैं दरवाजे को लॉक करके आता हूं...
तोसीफ..जैन और उरफ़ा का हाथ पड़के थरथराटे हुए जैसे ही तीनो गेट के पास पहुंचते हैं... और गेट से बाहर निकलने वाले होते हैं। तभी गेट के पिलर के ऊपर ज़ोर दार कलेजा चीर देने वाला दमाका हुआ..जिस से चारो ओर एक प्रकाश के बाद दुआ ही दुआ छा गया, किसी को कुछ समझ नहीं आया। सब बेहोश हो गए, कुछ समय बीत जाने पर इस वारदात में जब मामा और अमीना को होश आया। तो वह देखते हैं कि तोसीफ तो बहुत बुरी तरा घायल पड़ा है,परन्तु जैन और उरफ़ा एक साथ जो इस संसार में आए थे वह दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ के एक साथ ही इस धरती की गोद में सदा के लिए समा के उस रब को प्यारे हो गए.. अमीना की आँखों से आंसू की एक धार बह रही थी। रोती बिलखती मां की ममता की चिखों से पहाड़िया गूंज रही थी, हाय-हाय ये क्या हो गया....ये क्या हो गया... कहां है मेरे दोनों बच्चे। बताओ तो...अब कौन बताए के इस दर्द और खोफ़ भरे माहौल में जैन और उरफ़ा दोनों की रुहे हमसे सदा के लिए जुदा हो गई। और हम से अलविदा हो गयी।
इन चार दिनों के संघर्ष मे,
न जाने क्या-क्या खो गया,
तुम क्या जानो उसे दर्द को,
जिस मां का सीना छन्नी हो गया।
क्या-क्या सपने संजोए थे,
क्यों आधे-अधूरे छोड़ गए,
रूदन करती मां की ममता को देख,
सब पत्थर दिल भी रो गए।
बड़े चाव से तुमको पाला था,
इतना जल्दी क्यों हमसे रूठ गए,
यही छोड़कर हम सब को,
तुम दोनों धरती की गोद में सो गए।
पूछता नहीं कोई इस मन से,
इस हृदय में उठते उबालों का,
कैसे द्वन्द करूं अपने अंतर मन से,
गम के इन तूफानों का,
इन तूफानों के आते ही,
मेरा आंचल सुना हो गया,
इन चार दिनों के संघर्ष में,
न जाने क्या-क्या खो गया।
~हरीश कुमार