Pishachani ka Shraap - 2 in Hindi Horror Stories by Ashutosh Moharana books and stories PDF | पिशाचनी का श्राप - 2

Featured Books
  • उड़ान (2)

    शाम से बातें शुरू हो गईं।उन्होंने लिखा—'दिव्या, तुम्हारी...

  • अनकही मोहब्बत - 6

    Part 6 — ‎‎Simmi के घर अब शादी की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं...

  • आनंद टूट गया

    आनंद टूट गया। ईश्वर की महिमा अपरम्पार हैं। उनकी कृपा से ही ज...

  • Shadows Of Love - 16

    कहानी आगे—रात का अंधेरा गहराता जा रहा था।सन्नाटे में बस झींग...

  • BTS Femily Forever - 9

    Next Ep,,,,  Suga उसके करीब गया तो काजल पीछे हट गई। Suga को...

Categories
Share

पिशाचनी का श्राप - 2

धवलपुर कभी एक ऐसा गाँव था, जिसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते थे। वहाँ की अमावस्या की रातें किसी श्राप से कम नहीं थीं। वर्षों तक लोगों ने उस पुरानी हवेली से आती चीख़ों को सुना था — वो हवेली, जो अब भी गाँव के उत्तर में, पीपल के पेड़ों के झुंड के पीछे, जर्जर हालत में खड़ी थी। लोग कहते थे वहाँ एक "पिशाचनी" रहती है। न जाने कितनी औरतें गायब हुईं, न जाने कितनी माताएँ अपनी बेटियों की रक्षा के लिए हर रात जागती रहीं।

लेकिन फिर वह आई — विद्या।

विद्या कोई योद्धा नहीं थी, न ही कोई साध्वी। वह तो बस अपनी माँ, शांता को ढूँढते-ढूँढते, वर्षों बाद उस गाँव में लौटी थी, जहाँ उसका जन्म हुआ था और बचपन बीता था। माँ वर्षों पहले अचानक गायब हो गई थीं, और सबने मान लिया था कि वे भी पिशाचनी की भेंट चढ़ गई होंगी। लेकिन विद्या ने हार नहीं मानी।

उसने हवेली की ओर कदम बढ़ाए, उस रात जब अमावस्या थी और हवा में धुएँ और डर की गंध घुली हुई थी। हर कदम पर गाँव वालों ने उसे रोका, पर उसकी आँखों में कुछ और ही आग थी — वह डर से परे जा चुकी थी।

हवेली में घुसते ही उसने देखा — दीवारों पर खून के निशान, फर्श पर टूटी चूड़ियाँ, और हवा में घुली एक पीड़ा। और फिर, वह आई।

पिशाचनी।

पर वो वैसी नहीं थी जैसा लोगों ने कहा था। उसकी आँखों में भय नहीं था — वहाँ दर्द था। उसकी चीखों में क्रोध नहीं, करुणा थी। और तभी विद्या ने देखा — उसकी माँ शांता, ज़मीन पर गिरी हुई, होश में आने की कोशिश कर रही थीं।

विद्या दौड़ी, माँ को सीने से लगाया और ज़ोर से रो पड़ी —
"माँ... माँ! मैंने कहा था न, मैं तुम्हें वापस लाऊँगी...!"

पर तभी वह पिशाचनी उनके पास आई — पर हमला करने नहीं, बस देखने के लिए। विद्या डरी नहीं। उसने उसकी ओर देखा और पूछा —
"तुम कौन हो?"

उस स्त्री की आत्मा काँप उठी। वर्षों से किसी ने यह सवाल नहीं पूछा था। और फिर, टूटे शब्दों में उसने अपनी कहानी सुनाई।

वह कभी नैना थी — इस गाँव की ही एक युवती। जबरन ब्याह, हिंसा, और सामाजिक उत्पीड़न के बीच उसकी जान ले ली गई थी, और आत्मा उसी हवेली में भटकती रह गई। धीरे-धीरे, वह जो पीड़िता थी, एक श्रापित आत्मा बन गई — क्योंकि उसका दर्द कभी सुना ही नहीं गया।

विद्या रो पड़ी।
उसने नैना की ओर हाथ बढ़ाया —
"तुम्हें अब डरने की ज़रूरत नहीं। मैं तुम्हें सुन रही हूँ।"

शब्दों की यह सरल शक्ति नैना को मुक्त करने लगी। वर्षों का बोझ जैसे उसकी आँखों से आँसुओं के रूप में बह निकला। हवेली की दीवारें गूंज उठीं — पर डर से नहीं, मुक्ति की आवाज़ से।

नैना की आत्मा एक प्रकाश में बदल गई — हल्की, शुद्ध, शांत।

उस रात, विद्या न सिर्फ़ अपनी माँ को लेकर लौटी, बल्कि एक आत्मा को उसकी पीड़ा से मुक्ति देकर भी आई।

अब वहाँ की औरतें हर अमावस्या को मंदिर में दीप जलाती हैं, आरती गाती हैं — एक स्वर में, एक संगठित चेतना के रूप में।

हर दीप की लौ में नैना की मुस्कान छिपी होती है। और जब हवा में एक धीमी सी हँसी गूंजती है, तो सब जानते हैं —

"अब डर नहीं लगता..."

धवलपुर अब डर की गाथा नहीं, नारी चेतना और मुक्ति की कहानी बन चुका है।