💔 अनदेखा प्यार – एपिसोड 4
"मुनावर का राज़
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प्रारंभिक दृश्य: टूटे रिश्तों की परछाई
शाम ढल चुकी थी। शहर की सड़कें पीली लाइटों में चमक रही थीं, लेकिन फैजल के मन में अब भी एक धुंध सी छाई थी।
नाज़ से कुछ दूरी बनाए वो अब खुद से लड़ रहा था।
वो जानता था कि मुनावर अब फिर नज़दीक आ रहा है — और ये नज़दीकी उसकी और नाज़ की कहानी को उलझा सकती है।
दूसरी तरफ, नाज़...
अब भी सोच रही थी — मुनावर जो इतने साल बाद अचानक सामने आया है, क्या वाकई बदल गया है?
या अब भी वही है जो एक बार भरोसा तोड़ चुका था?
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फ्लैशबैक: 2 साल पहले
नाज़ और मुनावर एक ही यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे।
दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदली —
पर मुनावर का प्यार अधूरा था।
वो हमेशा छुप-छुप कर कॉल करता, कभी किसी के सामने इकरार नहीं करता।
नाज़ अक्सर पूछती –
"क्यों? क्या मैं तुम्हारी शर्मिंदगी हूँ?"
मुनावर हर बार टाल जाता।
और फिर एक दिन...
नाज़ ने उसे किसी और लड़की के साथ देखा — बहुत करीब... बहुत असली...
उस दिन के बाद नाज़ ने मुनावर से सारे रिश्ते तोड़ लिए।
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वर्तमान: फैजल का डर और मुनावर की चाल
लाइब्रेरी के बाहर फैजल और मुनावर की मुलाक़ात हुई।
मुनावर (व्यंग्य में): "तू उसे पसंद करता है ना?"
फैजल (थोड़ा घबराते हुए): "मैं… सिर्फ उसका ख्याल करता हूँ। बस इतना जानता हूँ कि वो टूट चुकी है, और मैं उसे जोड़ना नहीं चाहता, बस उसकी टूटी हुई खामोशी को समझना चाहता हूँ।"
मुनावर हँस दिया।
"तू भी वही गलती कर रहा है जो मैंने की थी… उसे समझना।
उससे प्यार नहीं करना चाहिए… क्योंकि वो कभी किसी पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाएगी।"
फैजल ने कुछ नहीं कहा। बस उसकी आँखों में एक ग़ुस्से से भरी शांति थी।
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टर्निंग पॉइंट: नाज़ को सच का पता चलता है
नाज़ को एक दिन अचानक अपने पुराने दोस्त रुहान से फोन आया।
"तुझे पता है ना कि मुनावर ने तेरे पीछे क्या किया था?"
नाज़ हैरान थी, "क्या मतलब?"
रुहान ने सब बताया —
कैसे मुनावर ने एक समय में दो लड़कियों के साथ अफेयर चलाया था,
कैसे वो यूनिवर्सिटी की एक और लड़की इरा के साथ भी जुड़ा था,
और नाज़ को सिर्फ “इमोशनल टाइमपास” कहा करता था।
फोन कटने के बाद नाज़ जैसे फर्श से ज़मीन पर गिर पड़ी।
"तो ये था उसका राज़…"
"मैं जिसे अपना पहला प्यार समझती थी, वो तो सिर्फ खेल खेल रहा था…"
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एक सन्नाटा – और फैजल की दूरी
उधर फैजल नाज़ से मिलने नहीं जा रहा था।
वो सोच रहा था —
"अगर नाज़ को मेरे लिए कुछ महसूस होता है, तो वो खुद आगे आएगी।
वरना मैं उसे मजबूर नहीं करूंगा।"
और यही दूरी… धीरे-धीरे नाज़ को सोचने पर मजबूर करने लगी।
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एपिसोड का क्लाइमैक्स: सामना
एक सुबह, नाज़ फैजल के स्टूडियो के बाहर खड़ी थी।
दरवाज़ा खुला। फैजल हैरान।
"तुम?"
"हाँ, मैं…
एक लड़की जो टूट गई थी, फिर से एक बार खुद से लड़ रही है।
तुम्हें आज सिर्फ शुक्रिया कहने आई हूँ…
क्योंकि तुमने कुछ मांगा नहीं, लेकिन बहुत कुछ दिया।
और माफ़ी… क्योंकि मैंने तुम्हें देखा तो,
पर कभी समझा नहीं…"
फैजल मुस्कुराया।
"मैं अब भी वही अजनबी हूँ, जो सिर्फ तुम्हारी मुस्कान की कहानी सुनना चाहता है।"
नाज़ की आँखें भर आईं,
"और मैं अब वो लड़की
नहीं हूँ जो डरती थी…
अब मैं सिर्फ सच देखती हूँ — और वो तुम हो।"
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💔 एपिसोड 4 समाप्त – "मुनावर का राज़"