jay johar in Hindi Anything by Dr. Ashmi Chaudhari books and stories PDF | जय जोहार

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जय जोहार

  “जोहार” शब्द किसी एक व्यक्ति या राजा द्वारा नहीं दिया हैं , यह आदिवासी समाज जनजातियों की सांस्कृतिक चेतना और परंपरा से निकला है, विशेष रूप से संथाल, मुंडा और हो जैसी जनजातियों में यह शब्द सबसे पहले प्रयोग हुआ है, यह एक सामूहिक विरासत है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
  “जोहार” केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह भारत की आदिवासी परंपरा, आदर, और सांस्कृतिक की पहचान का प्रतीक है।
 “जोहार” शब्द का उपयोग हजारों वर्षों से आदिवासी संस्कृतिक जीवन में होता आया है।
 इसका मूल उद्देश्य होता है "बड़ों को सम्मान देना, अतिथियों का स्वागत करना, और प्रकृति तथा पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करना" ।जब कोई किसी बुज़ुर्ग या मेहमान से मिलता है, तो "जोहार" कहकर सम्मानपूर्वक सिर झुकाया जाता है।
                " जोहार का इतिहास "
     1899 में बिरसा मुंडा का उलगुलान- महान जन-आंदोलन भी “जोहार ” की पुकार के साथ आरंभ हुआ।
    इतिहास में जब आदिवासी समाज ने अंग्रेजों और बाहरी शोषण के खिलाफ संघर्ष किया था , तब जोहार एकता का प्रतीक बना , आदिवासी समाज ने एक-दूसरे को “जोहार” कहकर एकता दिखाई थी,इन आंदोलनों में “जोहार” न केवल अभिवादन, बल्कि सांस्कृतिक गौरव और प्रतिरोध का प्रतीक बना था।
  “जोहार” कोई सामान्य नमस्ते नहीं है, यह एक संस्कृति, इतिहास, और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। यह आदिवासी समाज की जड़ों से जुड़ा हुआ ऐसा शब्द है जो पूर्वजों की परंपरा, प्रकृति प्रेम, और समुदाय के आपसी सम्मान को दर्शाता है।
  “जोहार” सोशल मीडिया से लेकर सरकारी समारोहों तक में आदिवासी समाज की पहचान के रूप में गूंज रहा है।    
      “जोहार” भारत के कई आदिवासी समुदायों द्वारा प्रयुक्त एक पारंपरिक अभिवादन करता हैं , जैसे कि, 
1) गुजरात मैं आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि वासवा, डांग, राठवा, भील, चौधरी, वे त्योहारों, बड़ों को अभिवादन, ग्राम सभाओं में जोहार का बड़े सम्मान के साथ का उपयोग करते हैं।
2) पश्चिम बंगाल में आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि, संथाल वे, सांस्कृतिक नृत्य-संगीत, उत्सवों में जोहार का बड़े सम्मान के साथ का उपयोग करते है।

3) मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि,भील, कोरकू वे ,विवाह, परंपरागत कार्यक्रमों में जोहार का बड़े सम्मान के साथ का उपयोग करते हैं।
4) झारखंड में आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि, संथाल, मुंडा, उरांव, वे त्योहारों, धार्मिक रीति-रिवाजों, बुजुर्गों के अभिवादन करते हैं।
5) ओडिशा में आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि, संथाल, बोंडा वे पूर्वज पूजन, सामूहिक उत्सवों में जोहार का बड़े सम्मान के साथ का उपयोग करते है।
6) छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के लोग जैसे कि,गोंड, बैगा वे ग्राम सभाओं, पूजन विधियों, मेलों में जोहार का बड़े सम्मान के साथ का उपयोग करते है।
            "  जोहार और प्रकृति पूजन "
         “जोहार” केवल मनुष्य को नमस्कार करने का शब्द नहीं है, यह धरती माता, नदियाँ, पहाड़, पेड़-पौधों और पूर्वजों को भी सम्मान देने के लिये भी होता हैं।
  सामाजिक एकता और जोहार:- जोहार का प्रयोग समुदाय के सभी लोगों के बीच समानता और सम्मान का भाव जगाता है।इस में ऊँच-नीच,अमीरी-गरीबी का भेदभाव नहीं होता।जब कोई “जोहार” कहता है, तो वह बताता है, कि हम सब एक हैं, एक मिट्टी से बने हैं।
 आदिवासी युवाओं के लिए प्रेरणा आज का आदिवासी युवा “जय जोहार” को केवल एक शब्द नहीं मानता, बल्कि: यह उसकी पहचान का प्रतीक है, भाषा और परंपरा को बचाने का संकल्प है, कि हम गर्व से कह सकते हैं – हम आदिवासी हैं।