इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
राहुल सन्न था।
वह ऐसे भाव से मुड़ी जैसे उसने अपनी किस्मत को स्वीकार कर लिया हो, "तुम्हारे बॉस की अगली योजना क्या है? मैं तैयार हूँ।",
"क्या?", नर्स दिशा को लगा वो कुछ गलत सन रही थी,
"अगर तुम्हारी बहन मेरे जाने से बच सकती है तो मैं तैयार हूँ।", उसने उससे कहा।
"क्या?", नर्स दिशा ने चौंक कर पूछा,
"उसने मेरे कारण जो भी यातनाएं सही है मैं उसके लिए तैयार हूँ। मैं निर्दोष लोगों को हर पल कीड़ों की मौत मरते नहीं देख सकती।", उसने कांपती आवाज़ में कहा। यह ज़्यादातर ऐसा था जैसे वह खुद को सहानुभूति दे रही हो।
तभी राहुल अपने सुन्न दिमाग से बाहर आया, "तुम क्या बकवास कर रही हो?!", वह अचानक वृषाली पर चिल्लाया जिससे वृषाली और नर्स दोनों डर के मारे उछल पड़े।
वे दोनों उसकी ओर मुड़े।
"मैं... वापस... जा रही हूँ... समीर के पास...", वह हकलाते हुए बोली,
"और फिर?", उसने पूछा,
वह बड़बड़ाई, हकलाते हुए अपने गले से आवाज़ निकालने की कोशिश कर रही थी। उसने एक बार, दो बार, तीन बार प्रयास किया लेकिन असफल रही।
उसने अपनी भौं ऊपर कीं और अपनी पीठ सीधी कर पूछा, "क्या?
इतने में बोलती बँद हो गयी?", उसने ताना मारते हुए कहा, "तुम क्या करने जा रही हो पता है? एक प्रसव मशीन बन जाओगी और उसे उस आदमी से बच्चा दोगी जिसे वह चुनता है?",
वृषाली के चेहरे पर भय साफ़ झलक रहा था।
"या तुम सोच रही थी कि तुम रहस्यमयी तरीके से वृष-, किसी के द्वारा बचा ली जाओगी?", उसने तर्क दिया,
"मैं... मैं, मैं कर लूँगी।" (वृषा को वक्त चाहिए और समीर को वृषा।), उसके पास कोई तर्क नहीं था बस बकवास था,
"अच्छा? तो तुम संभाल लोगी?", राहुल स्थिर नहीं लग रहा था। मानो वो इंसान से जानवर बन गया हो, "इसे संभाल सकती हो?", उसने गहरी आवाज़ में कहा। उसका पूरा व्यवहार खतरे में बदल गया।
उसने अपने नग्न शरीर के ऊपरी भाग पर जो शॉल पहना था उसे नीचे गिरा दिया और वह उसके करीब, बहुत करीब चला गया। वह उसकी घबराई हुई साँसों को अपने सीने पर लगते महसूस कर सकता था। तेज़ चल रही साँसें।
उसने एक कदम पीछे हटने कि कोशिश की लेकिन उसने अपने मज़बूत हाथ से उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया, जो उसने पहले कभी नहीं किया था।
उसने उसे हैरानी से देखा।
हमेशा वाला सौम्य राहुल वहाँ नहीं था।
समीर के सामने हो या पूरे दुनिया के सामने, हमेशा अपनी दूरी बनाए रखने वाला राहुल वहाँ नहीं था। वहाँ एक अलग राहुल खड़ा था।
उसने उसे कभी भी अनुचित तरीके से नहीं छुआ था लेकिन उस दिन.....उसमें कुछ बदल गया था।
वह निर्दयी था!
उसके इज़्ज़त वाले स्पर्श बेइज्जती से भर हुआ था।
सज्जन आदमी जानवर बन गया था।
डर के मारे वह वहीं अकड़ गई।
उसने उसे घसीटा और सोफे पर फेंक दिया। नर्स दिशा डर के मारे रोने लगी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, वह बस कोने में खड़ी रही।
इस बीच राहुल अब और अधिक आक्रामक हो गया और उसे निर्दयतापूर्वक सोफे पर फेंककर उसके ऊपर कूद गया। वृषाली ठीक उसके नीचे, उसके चंगुल में डर के मारे वह एकदम खामोश हो गई थी।
"तुम्हें लगता है कि तुम इसे संभाल सकती हो?!", वृषाली के शरीर पर भय साफ झलक रहा था। उसने प्रतिरोध करने कि कोशिश की लेकिन उसके शरीर ने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अपने शरीर ने ही उसे धोखा दे दिया हो। तेज़ साँसों के साथ उसके चेहरे पर बस आँसू बह रहे थे।
"क्या तुम्हें लगता है कि तुम ऐसे एक आदमी नहीं आदमियों के अधीन खिल सकती हो जो तुम्हें इंसान भी नहीं समझते?!"
राहुल ने उसके दोनों हाथों को जकड़ लिया था और उसकी हल्की सी भी हरकत पर रोक लगा दी थी। ताना, आँसू और भ्रम के बीच वह अपने होंठ खोलने में सफल रही, लेकिन कुछ भी बाहर नहीं निकला। फिर उसने अपने एक हाथ से उसकी दोनों कलाइयों को पकड़ लिया और अपना दूसरा हाथ उसकी ओर बढ़ाया। भयभीत होकर उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और अपनी आँखें बँद कर लीं। वृषाली ने खुद को राहुल के हाथों पर छोड़ दिया। उसकी आँखों से अभी भी आँसू बह रहे थे जो उसके लिए विरोध कर रहे थे। अचानक उसने अपने हाथ पीछे खींच लिया और उसे धीरे से छोड़ दिया। वो उसके ऊपर से हटा। वो सिर पकड़कर उसके बगल खड़ा था। राहुल की आँखे खोखली थी।
ठीक उसी समय कान्हा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। यह उसका दूध पीने का समय नहीं था। वह उठा और उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन हाथ पीछे कर शॉल लपेटकर कान्हा को लेने कमरे की तरफ जाने लगा।
"दिशा उसकी मदद करो।", उसने गला साफ़ करते हुए कहा। उसकी आवाज़ गले में अटकी हुई थी।
वह अंदर गया। थोड़ी देर बाद कान्हा ने रोना बँद कर दिया। वह अकेला बाहर आया।
दिशा उसके बगल में घुटनों के बल बैठी सिसक रही थी और वृषाली पागलों की तरह सिकुड़कर सोफे के कोने में रोए जा रही थी। उसे ऐसा देख उसे अपना पिछला याद आया और सिर पकड़कर नर्स दिशा से, "तुम अपने कमरे में जाओ और हाँ, कान्हा को भी अपने साथ ले जाओ।",
वो चुपचाप अपनी सिसकी दबाकर, सिर झुकाकर कान्हा को ध्यान से गोद मे ले अंदर गई।
उसने अपने हाथ उसकी ओर बढ़ाया लेकिन पीछे हट गया और वह फर्श पर पश्चाताप की भावना ले सोफे के पास बैठ गया। वह केवल पैंट पहने और ऊपरी शरीर पर शॉल ओढ़े हुए ठंडी टाइल पर बैठा था। वह बुरी तरह से सिसक-सिसककर रो रही थी लेकिन उसकी साँस बिगड़ी हुई नहीं लग रही थी।
वह स्थिर होने तक इंतजार किया। एक बार जब वह शांत होने लगी, तो उसने अपनी सामान्य, कोमल आवाज़ में बात की। इस बार उसमें हमेशा सहजता नहीं बल्कि भावनात्मक भाव था। वह आवाज़ कमरे में गूँज उठी, "वह मैं हूँ जिसे तुम्हारे साथ यह भयानक काम करने का आदेश दिया गया था, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका। इसलिए समीर...",
उसने एक लम्बी साँस ली और छोड़ी। उसने आह भरी, ऐसा लग रहा था जैसे उसके कंधों पर भारी वजन था, "मेरी बड़ी बहन भी इस पैसे, ताकत और बदले के खेल में मारी गई।",
उसके कान खड़े हो गए, उसकी सिसकियाँ कम हो गईं, "मैं बिजलनी कॉर्पोरेशन के लिए काम करने वाले दूसरे पीढ़ी के परिवार से नहीं हूँ। मैं भी उनके लालच, स्वार्थ, अत्याचार का ही उत्पाद हूँ।
मेरे पिता, पृथ्वी घोष उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे। जब मैं और मेरी दीदी बारह और सत्रह वर्ष के थे, तब समीर बड़े प्लान मर्डर के आरोपों से घिर गया था।", राहुल की नज़रे नीचे थी,
"यह सब रेड्डी कंस्ट्रक्शन के मालिक और उनकी धर्म-पत्नी की अचानक हुई दुर्घटना में मौत से शुरू हुई थी। पहले तो यह महज एक दुखद दुर्घटना थी और उनके पीछे उनका एकमात्र वारिस शिवम रेड्डी दस साल की उम्र में अनाथ हो गया था।
संदेह मिटाने के लिए जाँच शुरू हुई, गहन जाँच में पुलिस को रीवा रेड्डी और समीर बिजलानी के बीच एक दिलचस्प संबंध का पता चला।
उनकी ओर से बाहरी वैवाहिक संबंध की कोई बात नहीं थी, लेकिन शिया रेड्डी की ओर से एक घोटाला सामने आया और चीजें बदसूरत हो गईं। जनवरी 1994 में उनके पहले बच्चे के जन्म के कुछ ही दिनों बाद, एक महिला अचानक कहीं से प्रकट हुई और एक नवजात उसके गोद में था। तभी अचानक कही से शिया रेड्डी के दूर का चचेरा भाई आया और उनके साथ रहने लगे।
इसे सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं किया गया लेकिन मुझे इसके कुछ अंश पता हैं, वह चचेरा भाई उनकी चचेरे भाई नहीं था, बल्कि एक अभिनेता था जिसे उसकी चचेरा भाई बनने के लिए पैसे दिए गए थे और वह महिला उनकी वन नाइट स्टैंड थी जो उनकी भाई की पत्नी का रोल आज भी अदा कर रह रही है। और रीवा रेड्डी कई साल सब झेलते हुए आखिरकार इस बड़े घोटाले का खुलासा करने की योजना बना रही थी और इन सबका सूत्रधार समीर बिजलानी था लेकिन इससे पहले कि सच उजागर होते,उनकी मृत्यु हो गई। दावा किया गया कि इसके पीछे समीर का हाथ था। शिया रेड्डी की निजी डायरी में दुर्घटना से कुछ महीने पहले उनके द्वारा की गई प्रविष्टि लिखी थी।
'वे मेरी सच्चाई जानते थे और मैं उनकी। समीर की-', जब यह पहली बार मिला था तो पृष्ठ वहाँ से फट हुआ था और परीक्षण के दौरान यह गायब हो गया। यह हवा में गायब हो गयी थी।
केस दो साल तक चला पर साक्ष्य की कमी के कारण अंततः इसे खारिज कर दिया गया और मामले को अप्रिय दुर्घटना के रूप में खारिज कर दिया गया।",
"यह आपकी कहानी से मेल नहीं खाता। पूरी तरह से समझाएँ।", उसने कहा। आवाज़ अभी भी रोने जैसी थी।
उसने उसकी ओर नहीं देखा, बस टाइल को घूरता रहा और आगे बोला, " मेरे डैड उस केस के जज थे और सरकारी वकील के रूप में समीर के वकील को प्रस्तुत किया गया।
वह एक महंँगा वकील था जो केवल अमीर लोगों के लिए लड़ता था और जिस क्षण उसने अपना प्रारंभिक बयान शुरू किया, यह सिर्फ शिया रेड्डी की लापरवाही से गाड़ी चलाने और महत्वपूर्ण सबूतों को गलत दिखाता और अपनी इच्छानुसार गवाह को भ्रमित करता था।
मेरे डैड को यकीन हो गया था कि यह एक हत्या का मामला था पर सबूतों के कमी के कारण इसे लापरवाही से निर्मित सड़क दुर्घटना करार करना पड़ा।
उन्होंने और कुछ और वकील और जज इससे खुश नहीं थे तो उन लोगों ने अपनी तरीके से इसकी गहन जाँच की। वे लोग सच के काफी करीब पहुँच गए थे। तभी एक-एक कर उनके ग्रुप के लोग और उनके परिवार के सदस्य रहस्यमयी तरीके से मौत होने लगी। दीदी और माँ पर भी हमले हो चुके थे। दो दिन के लिए डैड कही गायब हो गए थे और जब आए तभी लोगों की गुस्साए भीड़ ने हमारे घर पर हमला कर दिया और भीड़ ने उन्हें क्रूरता से अपने पैरों से कुचलकर उन्हें हमारे आँखो के सामने मौत के घाट उतार दिया। हम लोग वहाँ से बचते बचाते भागे। डैड को मरता देखर माँ पागल हो गई और चलती ट्रक के सामने कूदकर अपनी जान दे दी। दीदी और मैं खुद को जंगली आदमियों से छिपाते हुए अलग-अलग इलाकों में फिके हुए खाने पर ज़िंदा रह घूमते रहे थे।
हमने पुलिस तक पहुँचने कि कोशिश की लेकिन वे समीर के साथ थे। हमारे जाने-माने परिवार के सदस्यों और पारिवारिक मित्रों ने हमसे मुँह मोड़ लिया और हमें समीर को सौंपने कि कोशिश तक की। कुछ लोगों की बुरी नज़र दीदी पर थी। बीच बचाव में मैं चोटिल भी हो गया था। हम शहर छोड़कर राज्य से भागने की कोशिश कर रहे थे, तभी एसीपी कुमार ने हमें देख लिया। उसने मेरी स्थिति का उपयोग किया और दीदी का विश्वास जीत लिया। वह हमें सीधे समीर बिजलानी के एक ठिकाने को एक सुरक्षित गुप्त स्थान बताकर वहाँ पर ले गया। हम नहीं जानते थे कि वह जगह कहाँ थी। वहाँ हमारी मुलाकात कुछ लोगों से हुई जो खुद को पुलिस बता रहे थे और हमारे परिवार, डैड के काम, उनके कार्यस्थल और उनके गुप्त स्थान के बारे में अजीब-ओ-गरीब सवाल पूछ रहे थे। हमें ज्यादा कुछ पता नहीं था, सिवाय इसके कि वह उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे और सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति के कगार पर थे। वे हमारे उत्तरों से संतुष्ट नहीं हुए, तब उन्होंने अपनी रणनीति को नरम से बदलकर धमकी पर ला दी जिसके तहत उन्होंने हमें लॉज के रूप में प्रच्छन्न एक वेश्यालय में काम करने के लिए भेज दिया
वहाँ मैं वेटर था और दीदी मेनू की आईटम थी। हर रोज़ अनजान लोग उसे उठा लेते और.... और....", वह सहम गया। उसका पूरा शरीर भय और क्रोध से काँप रहा था। वृषाली ने उसके कंधे पर हाथ रखा,
"वो इसकी भी कीमत चुकाएंगे!" उसकी आवाज़ अचानक बोल्ड लगने लगी।
बीस वर्षों में पहली बार उसने अपनी कहानी, अपनी सच्ची कहानी के बारे में बताया। उसने महसूस किया कि उसके सीने से एक भार तरल का रूप ले उसकी आँखों से बाहर निकल रहा था।
वह रोते हुए उसे गले लगा लिया।
वह डरकर चौंकी, फिर तुरन्त शांत हो गई, "एक अज्ञात साक्ष्य के कारण, जिसकी कोई पहचान और मूल्य नहीं था। उन्होंने मेरी दीदी को हर दिन, हर मिनट, हर सेकंड, सिर्फ अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए मार डाला! उन्होंने मुझे क्यों छोड़ दिया?", वह उसकी गोद में बहुत देर तक रोता रहा।
फिर उसने रोते हुए कबूल किया, "दीदी की हत्या के बाद लोंगो ने मुझे छोड़ दिया पर भूल नहीं थे। मैं वही काम कर रहा था तब मेरी मुलाकात प्रिया से हुई। वही डर, वही मुस्कान, वही सौम्यता जो दीदी और माँ में थी। हम दो टूटे हिस्से एक-दूसरे को जानने लगे।
एक दिन, उस काली रात को सब बदल गया।",
वह अपनी ज़बान रोकने के लिए रुका पर उसकी ज़बान, दिल, दिमाग ने वृषाली उर्फ मीरा पर भरोसा कर दिया और जारी रखा, "मैंने एक, नहीं दो आदमियों को उस काली रात को अपने हाथों से मार डाला था। वो लोग हमेशा की तरह प्रिया और सीमा को अपने साथ ज़बर्दस्ती ऊपर ले गए। वह एक सामान्य शाम थी पर मैं खुद को रोक नहीं सका और अंदर घुस दोंनो अमीरों को मार प्रिया और सीमा को ले वहाँ से भाग निकला। आधे रास्ते में समीर के आदमियों ने हमे पकड़ लिया।
उस दिन समीर भी वहाँ अपने तेरह साल के बेटे के साथ आया था।",
"वृषा?", वृषाली के मुख से निकला,
राहुल ने हामी भरते हुए कहा, "हाँ। वृषा बिजलानी जो तेरह साल का था। आज की तरह मरी हुई आँखे बस फर्क इतना था कि उसमें डर मिली हुई थी। समीर के आदमियों ने मुझे एक बंदूक पकड़ा दी थी। मुझे लगा वो हमदर्दी दिखा रहे थे। समीर ने वृषा के हाथों में बंदूक दी जिसे वो पकड़ भी नहीं पा रहा था। बंदूक देख मैंने पीछे रखी बंदूक को लोड किया। समीर के आदेश पर उसने बंदूक मेरे ऊपर दागी पर चला नहीं सका। उसने बंदूक नीचे की और कहा जो मुझे आज भी याद है, 'मुझे मार लो! पर मैं इन्हें नहीं मारूँगा।' समीर ज़ोर से हँसा और सीमा के ऊपर गोली दाग दी और एक झटके में वो खत्म।
समीर उसे चेतावनी देते हुए कहा, 'अगर तुमने इसे नहीं मारा तो एक और मासूम मारी जाएगी। शायद शिवम और राज भी।' यह सुन उसने बंदूक मेरी तरफ दागी।
पता नहीं मैं मरने के लिए तैयार नहीं थी या क्या, मैंने समीर पर गोली दाग दी। आवाज़ तो आई पर कोई मरा नहीं। वहाँ खड़े सब लोग हँसने लगे।
समीर मुझसे खुश था और मुझे उसी क्षण अपने शरण में ले लिया। उसने प्रिया की भी जान बख्श दी। उसके बाद से मैं उसके लिए काम कर रहा हूँ। भागने की कई नाकाम कोशिशे। अब मेरा बेटा भी उसके कब्ज़े में है। मैं उसे बचाऊँ या सच का साथ दूँ? मैं क्या करूँ समझ नहीं आ रहा है।", वह तब तक इंतजार करती रही और उसका साथ देती रही जब तक वह शांत नहीं हो गया।
जब वह शांत हुआ तो उसने उससे पूछा, "मुझे वैसे एक सुनसान इलाके में ले चलो।"