Story of a Daughter in Hindi Book Reviews by Priyanka Singh books and stories PDF | एक बेटी की कहानी

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एक बेटी की कहानी




---मेरा नाम माया है। एक आम-सी लड़की, जिसके सपनों की कोई कीमत नहीं थी। जब पैदा हुई, तो घर में खामोशी थी – कोई खुश नहीं था कि एक और बेटी आ गई। माँ ने ज़रूर गले लगाया, पर उनकी आंखों में भी डर था – “अब इसको कैसे बचाऊंगी इस समाज से?”

बचपन में किताबों से बहुत प्यार था। हर बार जब कोई पूछता, “बड़ी होकर क्या बनोगी?” मैं कहती, “मुझे टीचर बनना है।” लोग हँसते और कहते, “अरे बेटा, पहले रसोई सीखो।” धीरे-धीरे मैंने भी सपनों को रोटियों के नीचे दबा दिया।

शादी जल्दी हो गई। 19 साल की थी जब ससुराल आई। नए घर में नए नियम थे – यहाँ एक औरत को सिर्फ बहू, बीवी और माँ बनकर जीना होता था। मेरी पहचान सिर्फ “किसी की पत्नी” बनकर रह गई। दो बेटियों की माँ बनी, और फिर तो लोगों ने और ताने मारने शुरू कर दिए – “बेटा नहीं हुआ? अब तो और भी कमजोर हो गई तू।”

मन अंदर से टूट रहा था। दिन-रात का फर्क मिट गया था। सपने अब भी आँखों में थे, लेकिन बंद पलकों के पीछे। कई बार आईने में खुद को देखती थी और पूछती – “माया, तू कहां खो गई?”

एक दिन छोटी बेटी ने पूछा, “माँ, क्या तुम कभी स्कूल गई थीं?” उस सवाल ने कुछ जगा दिया। मैंने पहली बार मोबाइल में यूट्यूब खोला और देखा कि महिलाएं ऑनलाइन पढ़ाई कर रही हैं, पैसे कमा रही हैं, अपनी पहचान बना रही हैं।

उस दिन मैंने खुद से वादा किया – “अब माया सिर्फ माँ या बहू नहीं, खुद की पहचान बनाएगी।” रातों को सबके सोने के बाद मैं चुपचाप कोर्स करती, फ्री वेबसाइट से सीखती। धीरे-धीरे लेखन में हाथ आज़माया। अपनी पहली कहानी लिखी – “एक बेटी की कहानी” – और पब्लिश की।

जब पहली बार लोगों ने सराहा, तो मैं घंटों रोई। खुशी के आँसू थे – शायद पहली बार अपने लिए रोई थी। अब मेरी कहानियां ऑनलाइन चलती हैं, कुछ कमाई भी होने लगी है। पर सबसे बड़ी जीत ये नहीं, बल्कि मेरी बड़ी बेटी का कहना – “माँ, मैं भी आपकी तरह बनना चाहती हूँ।”


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🌼 सीख:

मैं एक बेटी थी, जिसे नकारा गया। एक बहू बनी, जिसे समझा नहीं गया। पर जब माँ बनी, तो अपनी बेटियों के लिए उठ खड़ी हुई। मैंने सीखा – अगर हिम्मत हो, तो हालात बदल सकते हैं। पहचान खुद बनानी पड़ती है।
अब माया सिर्फ एक नाम नहीं, एक पहचान बन चुकी थी। जिस औरत को कभी “बेटियां ही हैं, कुछ नहीं कर पाएगी” कहकर टाल दिया गया था, अब वही औरत हज़ारों महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बन गई थी।

माया ने अपनी पहली कमाई से बेटियों को किताबें दिलाई थीं। पति ने तब भी कुछ नहीं कहा, बस नजरें फेर ली थीं। शायद उन्हें यकीन नहीं था कि एक औरत मोबाइल और इंटरनेट से भी कुछ कर सकती है। लेकिन माया ने चुपचाप काम किया, बिना शिकायत, बिना शोर।

धीरे-धीरे उसकी कहानियाँ “YourStory,” “Matrubharti,” और “Pratilipi” जैसे प्लेटफॉर्म्स पर छपने लगीं। “एक बेटी की कहानी” नाम से एक सीरीज़ शुरू की, जिसमें उसने अपने जैसे ही हर उस औरत की कहानी लिखी जो घर की चारदीवारी में छुपा बैठी थी – अपने सपनों के साथ।

एक दिन एक महिला ने मैसेज किया –
“दीदी, आपकी कहानी पढ़कर मैंने अपनी सिलाई मशीन फिर से निकाली। अब बच्चों की फीस भर पा रही हूं।”

उस दिन माया को एहसास हुआ कि शब्दों में ताकत होती है – औरत के आँसुओं से ज़्यादा, उसके हौसले से भी गहरी।

वो अब सिर्फ लेखक नहीं, एक लीडर बन गई थी। उसने “स्वरांजलि” नाम की एक ऑनलाइन कम्युनिटी शुरू की, जहाँ हर हफ्ते महिलाएं अपने सपने साझा करतीं, कुछ नया सीखतीं – सिलाई, लेखन, डिजिटल काम। वहाँ न कोई ताना होता, न कोई रोकने वाला – बस हिम्मत मिलती थी।

एक दिन गाँव के स्कूल में माया को बुलाया गया। वहाँ टीचर्स ने कहा, “आप हमारी लड़कियों को प्रेरणा दे सकती हैं।” माया की आंखें भर आईं। वो लड़की जिसे कभी बोलने की इजाज़त नहीं थी, आज मंच से सैकड़ों लड़कियों को बोलना सिखा रही थी।

स्टेज पर खड़े होकर उसने कहा,
“हमें पंख नहीं मिलते, पर उड़ना कोई नहीं रोक सकता। बस एक बार खुद पर यकीन करिए।”

तालियाँ बजीं, और आँखें भीगीं – माया अब सिर्फ माया नहीं रही। वो हर उस बेटी की आवाज़ बन चुकी थी,