आमतौर पर हर लेखक अपने आसपास के माहौल अथवा परिवेश से प्रभावित हो कर या फिर अपने देखे भाले सच या फिर सुनी सुनाई बातों से रूबरू हो कर ही नया कुछ रचता है। जिसमें ज़रूरत के हिसाब से कम या ज़्यादा की मात्रा में कल्पना का समावेश हो सकता है। दोस्तों आज मैं यहाँ देशी विदेशी माहौल में रची बसी कहानियों के जिस संकलन की बात करने जा रहा हूँ। उसे रचा है अमेरिका में रहने वाली लेखिका अनिलप्रभा कुमार ने और उनके इस संकलन को 'कथा-सप्तक' का नाम दिया है इस संकलन के संपादक आकाश माथुर ने।
इस संकलन की मानवीय संवेदनाओं और प्रैक्टिकलवाद के बीच के फ़र्क को दर्शाती एक कहानी उस जोड़े की बात करती है, जिसकी गाड़ी हाइवे पर एक हिरण के टकरा जाने से दुर्घटनाग्रस्त हो टूट-फूट चुकी है। जहाँ एक तरफ़ पत्नी हिरण के मारे जाने से व्यथित है तो वहीं दूसरी तरफ़ उसका पति अपनी गाड़ी के हुए नुकसान से। वहीं एक अन्य कहानी में अपने घर की तंगहाली से तंग आ कर समर अपनी माँ को अकेला छोड़ कर अमेरिका में स्टूडेंट वीज़ा पर चला जाता है। वहाँ उसे एक प्रतिष्ठित अख़बार में फ्रीलांस के तौर पर एक टास्क मिलता है जिसमें उसे हैरी ग्रोअर (हैरी ग्रोवर) की उसके घर में हुई गुमनाम मौत के बारे में तथ्यात्मक जानकारी जुटाने के लिए कहा जाता है। समर अनजाने में ही अकेलेपन से जूझ कर मृत्यु को प्राप्त कर चुके हैरी ग्रोअर के जीवन से भारत में अकेली रह रही अपनी माँ के एकाकीजीवन की तुलना करने लगता है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में सब कुछ फ़िर से सामान्य करने की चाह में जब बच्चों की ज़िद पर उनके साथ रहने आए पिता की बरसों बाद अलग रह रही पत्नी से मुलाकात होती है। जिसके बाद कुछ ऐसा घटता है कि पिता की इच्छा का मान रखते हुए उनकी बेटी स्वयं ही उन्हें जाने के लिए कह देती है।
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ एक तरफ़ कैंसर की वजह से कीमो थेरिपी के कष्ट झेलती तीस वर्षीय महक की दुनिया बस घर तक ही सिमट चुकी है। भीषण बर्फ़बारी और तूफ़ान के बीच बिजली चले जाने से अँधेरे घर में फँसे उसके माँ-बाप अपनी बच्ची की सेहत को ले कर परेशान हैं कि अगर इस बीच कोई दिक्कत हो गयी तो वे अपनी बेटी को अस्पताल कैसे ले कर जाएँगे। तो वहीं एक अन्य कहानी में दूसरे शहर में अपने पति के साथ सैटल होने पर ईशा अपने कुत्ते 'पेपे' को देखभाल के लिए अपने रिटायरमेंट ले चुके पिता के पास छोड़ जाती है। अनमने मन से ही सही मगर पिता को उसे अपनाना पड़ता है। पत्नी की दूसरे शहर में नौकरी होने की वजह से वह भी अपने पति के साथ रह नहीं पाती। ऐसे में पिता के अकेलेपन के साथी के रूप में पेपे उनके दिल में अपने लिए प्रेम और जगह बना तो लेता है मगर..
इसी संकलन की एक अन्य कहानी में विवाह के बाद विदेश जा कर बस चुकी माधवी, अपने पिता की मृत्यु के बाद, पुरानी यादों को फ़िर से संजोने के लिए वापिस अपने मायके लौटती तो है मगर रिश्तों में अब पहले सा अपनापन ना पा कर वापिस लौट जाती है।
तो वहीं एक अन्य कहानी में 20 वर्षीया प्रीत का पिता उसके जन्म लेने से पहले ही यह कह कर घर से गया था कि किसी ज़रूरी काम से जा रहा है, जल्द ही लौट आएगा। प्रीत की माँ वीरो अब भी उसके आने की बाट जोह रही है। ऐसे में एक दिन..
किताब को पढ़ते वक्त मुझे प्रूफरीडिंग की कुछ कमियाँ भी दिखाई दीं। उदाहरण के तौर पर पेज नंबर
7 में लिखा दिखाई दिया कि..
'यंइ तो वह अब स्थानीय सड़क पर ही थे'
यह वाक्य सही नहीं बना। सही वाक्य इस प्रकार होगा कि..
'यूँ तो वे अब स्थानीय सड़क पर ही थे'
पेज नंबर 10 में लिखा दिखाई दिया कि..
'पता नहीं इंश्योरेंस कंपनी कितना भरपाया करती है'
यहाँ 'भरपाया' की जगह 'भरपाई' आना चाहिए।
21 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सब जगह विज्ञापन दे रहे है'
यहाँ 'विज्ञापन दे रहे है' की जगह 'विज्ञापन दे रहे हैं' आएगा।
इसी पेज पर और आगे लिखा दिखाई दिया कि..
'समर के होंठ विद्रूप से सिकुड़े'
यहाँ 'विद्रूप से सिकुड़े' की जगह पर 'विद्रूपता से सिकुड़े' आएगा।
पेज नंबर 22 में लिखा दिखाई दिया कि..
'शायद तभी उन्हें हैरी के भारतीय मूल का होने में संदे है'
यहाँ ग़लती से 'संदेह' की जगह पर 'संदे' छप गया है।
पेज नंबर 43 में लिखा दिखाई दिया कि..
'सोहम ने फिर से सबके गिलस भर दिये'
यहाँ 'गिलस' की जगह पर 'गिलास' आएगा।
पेज नंबर 53 में लिखा दिखाई दिया कि..
'अभी इसके किमो के सैशन ख़त्म हुए हैं न'
यहाँ 'किमो के सैशन ख़त्म हुए हैं न' की जगह पर 'कीमो के सैशन ख़त्म हुए हैं न' आएगा।
पेज नंबर 62 में लिखा दिखाई दिया कि..
'उसके जन्मदिन पर एक पकेट भी भेजती'
यहाँ 'पकेट' की जगह पर 'पैकेट' आएगा।
पेज नंबर 82 में लिखा दिखाई दिया कि..
'कब आएगा वोह'
यहाँ 'वोह' की जगह पर 'वो' आएगा।
इसी पेज की अंतिम पंक्ति में लिखा दिखाई दिया कि..
'वीरो चुपचाप कोठरी में आँखें बद किए पड़ी है'
यहाँ 'आँखें बद किए पड़ी है' की जगह पर 'आँखें बंद किए पड़ी है' आएगा।
• प्रगट - प्रकट
• सान्तवना - सांत्वना
• स्वपन - स्वप्न
रोचक कहानियों के इस 84 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है शिवना पेपरबैक्स ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।