Deviyaam in Hindi Mythological Stories by Deben Ki Kahaniya books and stories PDF | Deviyaam

Featured Books
Categories
Share

Deviyaam






---

🌑

रात का पहला पहर था। शहर सो रहा था, लेकिन देबेन के अंदर कुछ जाग रहा था।

चाँद उसके कमरे में खिड़की के ऊपर लटक रहा था - जैसे किसी ने उसका चेहरा काटकर उसका आवरण छोड़ दिया हो। हवा में कुछ था... कुछ अजीब। जैसे ज़मीन ने कुछ दबा रखा हो और आसमान उसे ठंडा करके जगाए रख रहा हो।

देबेन ने जम्हाई ली। माथे पर पसीना था। एक सपना... फिर वही सपना।

वह मंदिर। वह जंगल। वह आग जिसमें कोई जल रहा था। और उस धधकती रोशनी के बीच में - एक औरत। उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी आँखें... उन आँखों में तीन रोशनियाँ थीं। तीन आँखें। तीनों एक साथ देख रही थीं - देबेन के दिल के अंदर।

> “समय आ गया है…”

“तुम वापस आ गए हो…”

देबेन ने ज़ोर से आँखें खोलीं। घड़ी बजने वाली थी। वह बिस्तर से उठकर पानी पीने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसके हाथ काँप रहे थे। हर रात यह सपना बढ़ता जा रहा था। पहले उसमें सिर्फ़ आग थी। फिर मंदिर। अब... एक आवाज़ भी थी। एक औरत की।

लेकिन आज पहली बार... उस सपने में एक लड़की थी।

सफ़ेद कपड़ों में, बालों में चाँदी की चमक और आँखें... मानो उसे रोक रही हों।

> “मत आओ... यह मौत का रास्ता है…”

देबेन ने पानी का गिलास मेज़ पर रख दिया।

उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था।

उस रात उसने एक फ़ैसला किया।

“अब बहुत हो गया। मुझे पता लगाना है कि यह सपना है या हक़ीकत।”

---

☀️ सुबह - एक खामोश ख़याल

अगली सुबह देबेन नाश्ते की प्लेट को छुए बिना उठ गया। उसके चाचा अख़बार पढ़ रहे थे। चाची रसोई से उसे आवाज़ लगाती हुई आईं, लेकिन उनकी आँखों में कोमलता से ज़्यादा चिंता थी।

> “बेटा, क्या हुआ? लगता है तुम इतने दिनों से सोये नहीं हो?”

देबेन ने चाची को ध्यान से देखा, फिर कहा:

> “मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ। हमारा असली गाँव कौन सा है?”

एक पल में चाची का चेहरा पीला पड़ गया।

> “क्या हुआ? तुम यहाँ शहर में पैदा हुए थे…”

> “नहीं चाची। मुझसे झूठ मत बोलो। मुझे वो जगह याद है… या मैं उसे अपने सपनों में देख रहा हूँ। जहाँ एक मंदिर है। वहाँ आग है। और एक देवी है… जिसकी तीन आँखें हैं।”

चाचा ने अख़बार को हाथ से झटक दिया।

> “तुमने ये सब कहाँ सुना?”

देबेन ने धीरे से कहा:

> “मैंने नहीं सुना… मैंने देखा है। मैं इसे रोज़ देखता हूँ। अपने सपनों में। बचपन से।”

एक लंबी खामोशी के बाद। फिर चाची ने पहली बार उसका हाथ थामा।

> “तुम्हारे पिताजी भी ऐसे ही सपने देखते थे। और एक दिन वे वहाँ गए।”

> “उन्हें क्या हुआ?”

> "उसका शव देवी मंदिर के पीछे मिला। जलता हुआ।"

देबेन का गला सूख गया।

> "क्या उस जगह का नाम कलवन है?"

चाचा ने आँखें उठाकर देखा। और धीरे से कहा:

> "हाँ। कलवन।"

---

🚞 कोई व्यवधान नहीं, चले जाओ

देबेन ने तीन दिन में ही सारी तैयारियाँ पूरी कर ली थीं। उसने चाचा और चाची को सम्मानपूर्वक विदा किया। चाची ने उसके हाथ पर काला धागा बाँध दिया।

> "यह तुम्हें बचाएगा। मंदिर के अंदर मत जाना... जब तक तुम्हें कोई आवाज़ न सुनाई दे।"

देबेन ने बस पकड़ी। शहर से दूर, जंगल के बीच में, कलवन छिपा था - एक ऐसा नाम जो नक्शे पर नहीं दिखाई देता था। एक ऐसी जगह जहाँ से लोग शहर के रूप में कभी वापस नहीं लौटे।

जब देबेन जीप से उतरा, तो चारों तरफ घना जंगल था। एक पतली सड़क उस गाँव की ओर जाती थी। उस सड़क पर एक मृत-सा सन्नाटा था। मानो हवा भी अपनी साँस अंदर रोके हुए चल रही हो।

---

🏚️ गांव का पहला नजारा

जैसे ही देबेन ने कलवन में प्रवेश किया, उसे लगा कि समय यहीं रुक गया है।

एक छोटा सा घर, जिसकी पुरानी दीवारों पर त्रिशूल और सिंदूर के निशान थे। घर के बाहर पीपल के पेड़ थे, जिसके नीचे कुछ महिलाएं आंखें बंद करके बैठी थीं, जैसे किसी से माफ़ी मांग रही हों।

देबेन के रहने के लिए एक पुरानी हवेलीनुमा घर रखा गया था। उसका दरवाज़ा अपने आप खुल जाता था, जैसे उसे अंदर बुलाया जा रहा हो।

रात हो चुकी थी। देबेन ने अंदर से खिड़की बंद कर ली, लेकिन उसके बगीचे में एक अजीब सी ठंड बढ़ रही थी।

तभी उसने उसे पहली बार देखा।

---

👁️ पहली नज़र – पहली नज़र

मंदिर के रास्ते में एक छतरी के नीचे - एक लड़की खड़ी थी। सफ़ेद लहंगा, बालों में चांदी की चमक और उसकी आँखें... देबेन की साँस एक पल के लिए रुक गई।

> "तुम?"

"तुम्हें नहीं आना चाहिए था," उसकी आवाज़ बर्फ़ की तरह ठंडी थी।

> "तुम्हारा नाम?"

> "…आकुर्ती।"

उसने एक पल के लिए देबेन को देखा, फिर उसकी आँखें बिजली की तरह चमक उठीं। मानो उनमें तीन आँखें छिपी हों, सिर्फ़ लौ दिखाई नहीं दे रही थी।

> "जितनी जल्दी हो सके वापस चले जाओ। कलवन तुम्हें जीने नहीं देगा।"

> "लेकिन मैं मरने नहीं आई हूँ। मैं अपने सवाल पूछने आई हूँ।"

उस लड़की ने सिर्फ़ इतना कहा:

> "तो तैयार हो जाओ... उस जवाब के लिए... जिसमें प्यार भी होगा... और श्राप भी।"

आकुर्ती ने मुझे छुआ और जंगल के बीच में गायब हो गई।

देबेन वहीं खड़ा रहा - मानो उसके सारे सपने उसी पल हकीकत बन गए हों।

लेकिन उस हकीकत में प्यार कम... और मौत ज़्यादा थी।