भाग 5: जब वक़्त थम सा गया था
थैरेपी रूम में सब कुछ जैसे थम गया था।
दीवार की घड़ी की सुइयाँ अब भी चल रही थीं, लेकिन उस वाक्य के बाद — पूरा कमरा जैसे सुनने की हिम्मत खो बैठा था।
"मैंने उसे मरते देखा है।"
डॉ. मेहरा की उंगलियाँ नोटबुक के पन्ने पर रुकी रहीं। उनका हाथ धीमे-धीमे काँप रहा था। उन्होंने एक लंबी साँस ली और बहुत नर्मी से पूछा:
“कब देखा था तुमने उसे मरते हुए, आरव?”
आरव ने उनकी तरफ नहीं देखा। उसकी पुतलियाँ स्थिर थीं, जैसे भीतर किसी और समय का दरवाज़ा खुल गया हो। उसकी आँखों में झील जैसी गहराई थी, और उस झील पर अब लहरें नहीं — जमी हुई बर्फ़ थी।
उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके भीतर एक दिन फिर से जागने लगा।
18 जून, 2017
वो तारीख़ जिसे आरव भूलना चाहता था — पर भूल नहीं पाता।
हर थैरेपी के बाद, हर नींद के बाद — वही तारीख़ उसके सामने आकर खड़ी हो जाती थी।
वो दिन… जब बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। आसमान में गरजती बिजली, हवा में नमी, और एक पुराना बंगला — जहाँ हर दीवार किसी पुरानी चीख की गूंज लगती थी।
आरव भीगता हुआ उस बंगले की सीढ़ियों पर चढ़ता है। दरवाज़े के पीछे से आती है एक धीमी, टूटी सी आवाज़…
"सना…?"
उसकी आवाज़ काँप रही होती है।
वो दरवाज़ा खटखटाता है, कोई जवाब नहीं।
दूसरे ही पल वो दरवाज़ा तोड़ देता है — और अंदर जो दृश्य था, वही दृश्य अब उसके हर सपने का अंत बन चुका है।
फर्श पर — सना पड़ी थी।
सफ़ेद कुर्ता लाल हो चुका था। उसका सिर एक ओर झुका हुआ, बाल भीगे हुए। चेहरा पीला, ज़र्द — और आँखें… अधखुली, लेकिन स्थिर।
उसने बमुश्किल कुछ कहा:
“तुम… तुम यहाँ क्यों आए…”
आरव भागता हुआ उसके पास जाता है। काँपते हाथों से उसका चेहरा थामता है।
“सना… कुछ नहीं होगा तुम्हें।
मैं हूँ… मैं यहीं हूँ…”
लेकिन तब तक शायद कुछ पीछे छूट चुका था।
वो क्षण, वो साँस, वो स्पर्श — सब कुछ वहीं ठहर गया। समय चल रहा था, लेकिन चेतना ठहरी हुई थी।
उसी पल के बाद… सब धुँधला हो गया।
उसे याद नहीं कि एम्बुलेंस आई या नहीं, वो उसे बचा सका या नहीं। वो ज़िंदा रही या मर गई — कुछ नहीं।
बस हर सपना, हर रात — उसी एक फ्रेम पर रुक जाता है।
सना… उसकी गोद में।
आँखें बंद होती हुई। और समय… जैसे उसी एक तस्वीर को बार-बार पॉलिश करता रहे।
थैरेपी के बाद, डॉ. मेहरा ने अपनी नोटबुक में एक वाक्य लिखा:
“Repetitive trauma lock —
मरीज़ उस क्षण में फँसा है
जहाँ चेतना आगे बढ़ने से इनकार कर चुकी है।”
लेकिन अब भी एक सवाल गूँजता है…
अगर सना मर चुकी थी…
तो फिर हर रात वो आरव के सपनों में कैसे लौटती है?
क्या वो सिर्फ़ एक याद है?
या कहीं… वो अब भी ज़िंदा है?
अगली कड़ी में पढ़िए:
भाग 6: अस्पताल की खिड़की से बाहर
(जब एक बंद खिड़की… सच का दरवाज़ा बनती है।
और आरव पहली बार अपने कमरे से बाहर झाँकता है…)