एक सामान्य सुबह🌄
सर्दियों की सुबह थी। स्टेशन पर कोहरा छाया हुआ था।लोग अपने बैग और सपनों को लिए ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे।कहीं किसी के चाय के कप से भाप उठ रही थी,तो कहीं कोई स्टेशन की बेंच पर ऊँघता नजर आ रहा था।
उन्हीं में एक औरत खड़ी थी — शाल में लिपटी हुई,और उसके साथ एक नन्हा बच्चा था — पाँच-छह साल का।बच्चे का नाम था आरव। मासूम आँखें, गोल सा चेहरा।उसने नीली टोपी पहन रखी थी, और हाथ में एक लाल कार थी।
2. स्टेशन की भीड़
घंटा बजा, और ट्रेन के आने की घोषणा हुई।लोग अचानक तेज़ी से चलने लगे।धक्का-मुक्की शुरू हो गई, बैग गिरने लगे।भीड़ उमड़ पड़ी जैसे सब कुछ यहीं छूट जाएगा।
आरव अपनी माँ का हाथ पकड़े खड़ा था।मगर एक पल आया — शोर बढ़ा, भीड़ और ज़ोर से धकीली।उसका छोटा सा हाथ माँ के हाथ से छूट गया…और वो वहीं खड़ा रह गया — अकेला, असहाय।
3. बिछड़ने का डर
आरव ने माँ को ढूँढना चाहा।उसकी आँखों में डर तैरने लगा।"माँ?" उसने पुकारा — धीरे, फिर तेज़।मगर भीड़ में उसकी आवाज़ कहीं खो गई।
वो धीरे-धीरे चलने लगा, अपनी लाल कार को कस के पकड़े हुए।हर चेहरा अनजान, हर कदम डरावना।वो किसी से कुछ कह नहीं पा रहा था।उसके गाल ठंड से सुर्ख हो चुके थे।
4. एक उम्मीद की किरण
स्टेशन के एक कोने में एक चाय वाला बैठा था।उसकी उम्र पचपन के पार होगी।उसकी आँखों ने देखा — एक बच्चा, अकेला, सहमा हुआ।"अरे छोटू, तू अकेला है?" — उसने पूछा।
आरव ने सिर हिलाया, आँखें भर आईं।“माँ खो गई…” — उसका गला भर्रा गया।चाय वाले अंकल ने उसे पास बिठाया।उसके हाथ में गरम चाय का कप था, उसने बच्चे को बिस्किट दिया।
5. मदद का हाथ
अंकल ने तुरंत स्टेशन मास्टर को सूचना दी।स्टेशन पर अनाउंसमेंट हुआ —“एक पाँच वर्षीय बच्चा मिला है, जो अपनी माँ से बिछड़ गया है।वह प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर सुरक्षित है।”
आरव की आँखें बार-बार गेट की ओर देख रही थीं।उसे अब भी उम्मीद थी — माँ दौड़ती हुई आएगी।हर गुजरते पल में उसका धैर्य कम हो रहा था।मगर अंकल ने उसका हाथ थामे रखा — “घबराना नहीं।”
6. माँ की तलाश
उधर उसकी माँ — स्नेहा, प्लेटफॉर्म से उतरते ही चीखने लगी थी।“आरव! आरव!!” — उसकी आवाज़ काँप रही थी।हर कोना देखा, हर बोगी में झांका।उसे अपना बच्चा कहीं नहीं मिला।
वो स्टेशन मास्टर के पास पहुँची — “मेरा बेटा खो गया है…”वहीं से उसे जानकारी मिली — “एक बच्चा मिला है… आइए।”उसने दौड़ लगाई — थकते हुए, रोते हुए, डरते हुए।आख़िर वो आई — प्लेटफॉर्म तीन पर।
7. मिलन का क्षण
जैसे ही उसकी नज़र आरव पर पड़ी —वो चिल्लाई — “आरव!”बच्चा मुड़ा, उसकी आँखों में पहचान चमकी।“माँ!” — वो दौड़ा, और उसकी गोद में समा गया।
माँ ने उसे कस के बाँहों में भर लिया।दोनों की आँखों से आँसू बह निकले —एक डर के, दूसरा राहत के।अंकल ने मुस्कराकर कहा — “भगवान का शुक्र है।”
8. कहानी यहीं खत्म नहीं होती
आरव तो अपनी माँ को वापस मिल गया,मगर उस स्टेशन पर हर दिन सैकड़ों बच्चे आते हैं,कुछ खोते हैं, कुछ कभी नहीं मिलते।हर खोया हुआ बच्चा, बस अपनी मासूमियत के साथ चलता रहता है।
चाय वाले अंकल ने उसी दिन से एक छोटा बोर्ड लगा दिया —“अगर कोई बच्चा खो जाए, तो यहीं लाएं।”और स्टेशन प्रशासन ने भी सहयोग करना शुरू किया।
9. एक सच्ची सीख
भीड़ में खोया हुआ बचपन सिर्फ एक कहानी नहीं है,ये हर उस माँ-बाप की सच्चाई बन सकता है,जो एक पल की लापरवाही में अपना सब कुछ खो बैठते हैं।और हर वो बच्चा — जिसे बचपन में ही डर और अकेलापन मिल जाता है।
मासूम चेहरों को खोने से पहले, उन्हें थाम लीजिए।बचपन अगर खो जाए, तो वो ज़िंदगी भर लौटता नहीं।इसलिए, ज़िम्मेदारी हमारी है —हर हाथ जो छोटा है, उसे कभी छूटने न दें।
अंत:भीड़ में खोया बचपन सिर्फ एक लड़के की नहीं,हर उस मासूम की कहानी है,जिसे दुनिया की तेज़ रफ्तार मेंअपना आसरा ढूंढना पड़ता है।