Chutkun ki cycle in Hindi Short Stories by Chanchal Tapsyam books and stories PDF | चुटकुन की साइकिल

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चुटकुन की साइकिल

  चुटकुन की साइकिल 

 

जून मास की चिलचिलाती धूप में पछुआ बयार बह रही थी। सागर अपनी पत्नी ललता और अपने बारह वर्ष के लड़के चुटकुन (लोग प्यार से चुटकुन कहते थे उसका असली नाम चंदप्रकाश था), के साथ एक दूर के खेत में जैविक खाद फैला रहा था तभी एक आवाज आती है।

 "ए चुटकुन गोली खेले चलबा " चुटकुन झट से तैयार हों जाता है।

अपने पिता जी के पास जाकर "बाऊ हम गोली खेले जाई"

उधर से जवाब आता है "न "

बच्चे का मन उदास हो जाता है लेकिन फिर कुछ सोचकर अपने काम ने लग जाता है क्योंकि उसके पिता जी उसे नई साइकिल दिलाने का वादा किए थे। तभी एकाएक गांव के रघु चाचा आ जाते है उनकी स्थिति देखकर लग रहा था कि ओ काफी तेजी में थे उनको देख कर सागर बोलता है "अरे रघु चाचा कहा जात हवा इतना तेजी में "

 रघु चाचा "अरे सागर बाबू काका के भैंसिया मर दीहिस हो, चला तनिका डांकडर के यिहाँ पहुंचा द ठेलवा से "

सागर दौड़ा भागा गांव जाता है और अपने टूटे ठेले पर काका को बैठाकर डॉक्टर के पास चल देता है । डॉक्टर साहब कुछ दवाई देते है मरहम पट्टी करते है फिर सागर काक को लेकर घर आ जाता है उधर उसका लड़का चुटकुन अपनी साइकिल की आश में पिता की रह देख रहा था। उधर इन घटनाओं से अनजान चुटकुन पिता को अपने साथ साइकिल लाता न देख वह निराश हो जाता है वह बछड़े के पास जाकर पुचकारता है कुछ मन की बातें करता है । फिर मन शांत होने पर वापस घर आकर अपने पिता से लिपट जाता है , उसके पिता के आंखों में आंसू आ जाते है आखिर पिता तो पिता ही होता है।

अगली सुबह सागर, काका के पास पिछवाड़े उनका हाल–चाल जानने और दवा देने जाता है काका पुकारने पर जब काका द्वारा जवाब न मिलने पर काका के पास जाता है तो देखता है कि उनकी नजरे एकटक आसमान को निहार रही है काका चीर काल के लिए इस धरती की गोद में सो चुके थे । यह देखकर सागर एकदम सुन्न हो गया फिर अपने आप को संभालते हुए लकड़ी का इंतजाम करने जमींदार के बगीचे से लकड़ी लाने जाता है लकड़ी भी सोने के भाव का। सागर मजबूर था लकड़ी खरीदने को, सागर के ऊपर एक और कर्ज लद जाता है वह पहले से ही फसल और बीमारी के लिए कर्ज ले चुका था । वह लकड़ी लेकर दाहसंस्कार और क्रियाकर्म में जुट जाता है तेरहवीं करने के लिए अलग से कर्ज लेना पड़ता है ।अब सागर का कमर कर्ज के बोझ तले झुक जाता है ।

धीरे– धीरे बीमार वह होने लगता है उधर बच्चे की साइकिल की जिद्द उसको हर रोज कचोटती थी वह अंदर से भंगुर हो चुका है जिस पर केवल एक चोट काफी थी उसे यमलोक पहुंचाने के लिए।

बरसात का महीना आता है खेतों में जुताई–बुआई चल रही थी सागर भी खेतों को हल से जोतने जाता है और दोपहर के खाने में सूखी रोटी और आम का आचार ले जाता है। दोपहर का समय था सागर हल से खेत जोतकर भोजन करने के लिए पेड़ की छांव में जाता है कुछ खाता है कुछ बचाता है और जैसे ही आराम करने के लिए लेटता है वैसे ही तेज आंधी तूफान के साथ बारिश आ जाती है सागर मन ही मन घबराता है... भला एक किसान धान की रोपाई के लिए आवश्यक बरखा को क्यूही काल मानेगा इसका कारण था उसका टूटा हुआ घर जिसमें उसकी पत्नी और बच्चे है जो एक बारिश में ढह जाने की कगार पर है। वह जल्दी ही खेत से बैलों को लेकर घर की तरफ निकलता है लेकिन जैसे वह घर पहुंचा आगे की लकड़ी के दो खंभे चरमराकर धराशाई हो गए उसी के सामने ही उसका बच्चा और पत्नी टूटी झोपड़ी तले दब गए वह जल्दी-जल्दी गांव वालों की मदद से उनको बाहर निकालता है पत्नी की कमर और पसलियों में चोटे आई लड़के के सिर से खून के फव्वारे फूट पड़े यह देख कर वह बेहोश सा हो गया.. आनन फानन में डॉक्टर साहब के पास ले जाया गया । डॉक्टर साहब ने पट्टी बांधकर खून का बहना तो रोक दिया लेकिन बच्चे जीवन की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया और कुछ दवाईयों के नाम लिखकर पर्ची सागर के हाथ में थमा दी ! अब सागर उस जानवर के समान था जिसे एक शेर ने अधमरा करके तड़प–तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया हो सागर जाता भी तो कहा उस पर्ची को लेकर, उसके पास न तो धन था न ही अनाज की जिसे बेचकर दवाई लाए। 

 लौट हार कर साहूकार ये यहा पहुंचा और दहाड़े मारकर रोने लगा "हे माईबाप हम पे दया करी हमरा बच्चा मृत्यु से लड़ रहल बा दया करके हमरा के कुछु पैसा उधार दे दीही हम धान बचके कर्ज उतर देहब "। साहूकार कुछ सोचविचार कर दवाई के लिए पैसे दे देता है सागर पैसा लेकर दवाई ल देता है उधर पत्नी की चोट का इलाज वह जड़ी बूटियों से करता हैं।खेत में धान की रोपाई भी कर्ज लेकर कर देता है। समय बीतता है बच्चा ठीक हो जाता है पत्नी भी ठीक हो जाती है । धान की कटाई होती है इस वर्ष ईश्वर की कृपा से कुछ अच्छी फसल होती है लेकिन इतनी अच्छी भी नहीं की कर्ज भी उतर दे और साइकिल भी ला दे। इसी चिंता में वह रात भर नहीं सोता है अगले दिन सुबह वह कुछ अनाज घर के लिए अलग कर शेष को बाजार ले जाता है रास्ते में जमींदार के आदमी उसको कर्ज न चुका पाने पर घर गिराने की धमकी देते है और बाज़ार में साहूकार भी वही धमकी देता है अब सागर अपने बच्चे की मांग को पूरा करने में असहाय महसूस करता है। छाती पर पत्थर रखकर वह कर्ज चुकता करने का निर्णय लेता है वह घर वापस आता है चुटकुन पिता को साईकिल न लाता देखकर रुआसा चेहरा लिए कोने में जाकर मन भर रोता है फिर बिना कुछ खाए पीए रात को सो जाता हैं। सागर चुटकुन के चेहरे पर हाथ फेरता है और अपनी पत्नी से कहता है कि "वह इस बार की गेहूं की कटाई के बाद गेहूं के बदले साइकिल अवश्य लाएगा" फिर वह सोने चला जाता है। अगली सुबह चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी खूंटों बधे बैल अपने मालिक के जागने का इंतजार हर रहे थे लेकिन नियति की मांग कुछ और ही थी उस सुबह सागर नहीं जगा। साइकिल की आश लिए चुटकुन और उसकी मां लाश को द्वारा पर रखकर एकटक निहार रही थी और मन ही मन अपने भाग्य को कोश रही थी। यह न तो सागर के भाग्य में था साईकिल दिलाना... न ही चुटकुन के भाग्य में था साईकिल पाना और पत्नी इन दोनों की आशा और निराशा के बीच में दबी चली जा रही थी।