जय श्री राम
जय श्री गणेशाय नमः
ओम् नमः शिवाय
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
रामचरितमानस एक मनोहर ग्रन्थ है। इसके प्रत्येक पद्य को श्रद्धालु मन्त्रवत् आदर देते हैं और इसके पाठ से लौकिक एवं पारमार्थिक अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। यही नहीं, इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने तथा इसमें आये हुए उपदेशों का विचारपूर्वक मनन करने एवं उनके अनुसार आचरण करने से तथा इसमें वर्णित भगवान की मधुर लीलाओंका चिन्तन एवं कीर्तन करने से मोक्षरूप परम पुरुषार्थ एवं उससे भी बढ़कर भगवत्प्रेम की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है। क्यों न हो, जिस ग्रन्थकी रचना स्वयं गोस्वामी तुलसीदासजी जैसे अनन्य भगवद भक्त के द्वारा की गई हो, जिन्होंने भगवान श्री सीतारामजी की कृपासे उनकी दिव्य लीलाओं का प्रत्यक्ष अनुभव करके यथार्थ रूप में वर्णन किया है, साक्षात भगवान श्रीगौरीशंकरजी की आज्ञा से तथा जिसपर उन्हीं भगवान ने स्वयं 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' लिखकर अपने हाथ से हस्ताक्षर किया है। उसका इस प्रकार का अलौकिक प्रभाव कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसी दशा में इस अलौकिक ग्रन्थ का जितना भी प्रचार किया जायगा, जितना अधिक पठन-पाठन एवं मनन-अनुशीलन होगा, उतना ही जगत का मङ्गल होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। वर्तमान समय में तो, जब सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है, सारा संसार दुःख एवं अशान्ति की भीषण ज्वाला से जल रहा है, जगत के कोने-कोने में मार-काट मची हुई है और प्रतिदिन हजारों मनुष्यों का संहार हो रहा है, करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति एक-दूसरे के विनाश के लिये खर्च की जा रही है, विज्ञान की सारी शक्ति पृथ्वी को श्मशान के रूप में परिणत करने में लगी हुई है, संसार के बड़े-से-बड़े मस्तिष्क संहार के नये-नये साधनों को ढूँढ़ निकालने में व्यस्त हैं, जगत में सुख-शान्ति एवं प्रेमका प्रसार करने तथा भगवत कृपा का जीवन में अनुभव करने के लिये रामचरितमानसका पाठ एवं अनुशीलन परम आवश्यक है। और इसी उद्देश्य से हम आपके लिए लाए हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित संपूर्ण रामचरितमानस।
जैसे उस युग में तुलसीदास जी ने संस्कृत के स्थान पर जनमानस की सरल भाषा अवधी में, श्रीराम जी के पावन चरित्र का चित्रण किया था ताकि हर कोई सहजता से श्रीराम के आदर्शों को आत्मसात कर सके, उसी भावना के साथ, हमने भी संपूर्ण रामचरितमानस को हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी में, अत्यंत सरल और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि श्रीराम जी के चरणों में अर्पित यह छोटी सी सेवा आप सभी रामभक्तों के हृदय में स्थान पाएगी। तो आइए, इस दिव्य यात्रा का शुभारंभ करते हैं
श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित, रामचरितमानस के प्रथम भाग — बालकांड — से।
🙏जय श्रीराम🙏
श्री रामचरितमानस का विधिपूर्वक पाठ शुरू करने से पूर्व श्री तुलसीदास जी, श्री वाल्मीकि जी, श्री भोलेनाथ और श्री हनुमान जी का आहवान करना जरूरी है। तो मेरे साथ आप भी बोलिए ..
ॐ तुलसीदासाय नमः
ॐ वाल्मीकाय नमः
ॐ गौरीपतये नमः
ॐ हनुमते नमः
"श्री गणेशाय नमः"
श्री रामचरितमानस
प्रथम सोपान
बालकाण्ड
श्री रामचरितमानस के प्रथम सोपान को शुरू करने से पूर्व गोस्वामी तुलसीदास जी सभी देवी देवताओं की वंदना करते है।
अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छंदों की रचयिता मां सरस्वती और श्री गणेश जी की वंदना करता हु।
श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वती जी और शंकर जी की वंदना करता हु।
ज्ञानमय, नित्य, शंकररूपी गुरु की वंदना करता हु। जिनके आश्रित होने से टेढ़े चंद्रमा की भी सर्वत्र वंदना होती है।
श्री सीतारामजी के गुण रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कविश्वर श्री वाल्मीकि जी और कपिश्वर श्री हनुमान जी की वंदना करता हु।
उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणो को करनेवाली श्रीरामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ।
जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जो नील कमल के समान श्यामवर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर में शयन करते हैं, जिनके केवल चरण स्पर्श से भवसागर पार हो जाता हैं, वे भगवान हरि विष्णु की मैं वन्दना करता हू।
जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुन्दर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम श्री गणेश जी मुझ पर कृपा करें।
पृथ्वी पर रहने वाले देवता स्वरूप ब्राह्मणों और सर्वगुण संत समाज की में वंदना करता हु।
संतों का चरित्र कपास के चरित्र के समान शुभ है, कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पापरूपी अन्धकार से रहित होता है, कपास में गुण ( तन्तु ) होते हैं, इसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भण्डार होता है, इसलिये वह गुणमय है। जैसे कपास का धागा सूई के किये हुए छेद को अपना तन देकर ढक देता है, चरखे से काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढकता है उसी प्रकार संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के दोषों को ढकता है, जिसके कारण उसने जगत में वन्दनीय यश प्राप्त किया है
अब मैं संत और असंत दोनों के चरणों की वन्दना करता हू। दोनों संत और असंत जगत में एक साथ पैदा होते हैं; लेकिन फिर भी कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं। कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है। साधु अमृत के समान मृत्यु रूपी संसार से उबारने वाला और असाधु मदिरा के समान मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करनेवाला है, दोनों को उत्पन्न करनेवाला जगरूपी अगाध समुद्र एक ही है। शास्त्रों में समुद्र मन्थन से ही अमृत और मदिरा दोनों की उत्पत्ति बतायी गयी है।
जगत में जितने जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राम मय जानकर मैं उन सबके चरण कमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर वन्दना करता हू।
देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गन्धर्व, किन्नर और निशाचर सबको मैं प्रणाम करता हू। आप सब मुझ पर कृपा कीजिये।
श्रीरघुनाथजी की कथा कल्याण करनेवाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है। मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र गंगा जी की चालकी भाँति टेढ़ी है। प्रभु श्रीरघुनाथजी के सुन्दर यश के संग से यह कविता सुन्दर तथा सज्जनों के मनको भानेवाली हो जायगी। श्मशान की अपवित्र राख भी श्रीमहादेवजीके अंगके संगसे सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करनेवाली होती है।
रामचरित्र पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों के समान सभी को सुख देनेवाले हैं, जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्रीशिवजीने विस्तार से उसका उत्तर कहा, वह सब कारण मैं पवित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा।
अब मैं आदरपूर्वक श्री शिवजी को सिर नवाकर श्री रामचन्द्रजी के गुणोंकी निर्मल कथा कहता हूँ। श्री हरि के चरणों पर सिर रखकर चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्या जी में संवत् 1631 में इस कथा का आरम्भ करता हू।
श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजीने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुन्दर श्रीरामचरितमानस' नाम रखा
मैं उसी सुख देनेवाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ, हे सज्जनो! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिये॥
To be continued....🙏 जय श्री राम 🙏
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