Jung aur Umeed in Hindi Love Stories by Rajiv Kumar books and stories PDF | जंग और मोहब्बत

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जंग और मोहब्बत

शीर्षक: जंग और मोहब्बत (या जो भी तुम चुनो)
लेखक का नाम: अपना नाम डालो
श्रेणी: रोमांस, युद्ध, थ्रिल
भाषा: हिंदी
रचना: (ऊपर दी गई summary कॉपी कर लो)शीर्षक: जंग और मोहब्बत (या जो भी तुम चुनो)
लेखक का नाम: अपना नाम डालो
श्रेणी: रोमांस, युद्ध, थ्रिल
भाषा: हिंदी

 

कहानी का नाम: जंग और उम्मीद

साल था 1944। पूरा देश युद्ध की आग में जल रहा था। आसमान हर रोज़ बमों की गूंज से कांपता, और धरती हर कोने पर खून से भीगती जा रही थी। शहरों के ऊपर से लड़ाकू विमानों की आवाजें आती थीं—तेज़, गर्जन करती हुई। घरों की छतें उड़ चुकी थीं, गलियों में सिर्फ राख और खामोशी बची थी।

रोहित, एक साधारण कॉलेज छात्र, जो कभी लाइब्रेरी में किताबों के पन्नों के बीच अपनी दुनिया ढूंढ़ता था, आज खुद ज़िंदगी की किताब का सबसे भयावह अध्याय जी रहा था। उसकी आंखों के सामने उसके माता-पिता और छोटा भाई युद्ध के एक हवाई हमले में मारे गए थे। जलता हुआ घर, धुएं की गंध, और चारों ओर पसरा मातम—ये सब कुछ उसकी यादों में आज भी ज़िंदा था।

उसका शहर अब एक खंडहर बन चुका था। वहाँ से निकलना ही एकमात्र विकल्प था।

सैकड़ों लोग किसी सुरक्षित स्थान की ओर भाग रहे थे। सड़कों पर रोते-बिलखते बच्चे, कांपते बुज़ुर्ग, और उन सबके बीच अकेला रोहित—जिंदा तो था, पर अंदर से मर चुका था।

उसके सफर में एक विशाल जंगल पड़ा। वो जंगल, मानो खुद किसी युद्ध का मूक गवाह हो। हज़ारों साल पुराने पेड़, जिनके तनों पर बारूद के निशान थे। पत्तों पर सूखी खून की बूंदें, और ज़मीन पर बिखरी टूटी हुई सैन्य टोपियाँ, गिरे हुए हथियार, और कभी-कभार कोई अधजला बैग।

जंगल इतना घना था कि सूरज की रोशनी तक पूरी नहीं पहुंचती थी। पेड़ों की शाखाएं जैसे एक-दूसरे से लिपटी हुई हों, और बीच-बीच में कोई गिद्ध या उल्लू अजीब-सी आवाज़ निकाल कर वातावरण को और भयावह बना देता।

इन्हीं पेड़ों के बीच से गुजरते वक्त रोहित की नज़र पड़ी—एक लड़की, ज़मीन पर बैठी थी, सहमी हुई, कांपती हुई। उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।

रोहित ठिठक गया। वो इंसान नहीं, बस एक जिंदा मलबा था, फिर भी किसी और के आंसू देखकर उसके भीतर की मानवता जाग गई।

“तुम रो क्यों रही हो?”—उसने धीमी आवाज़ में पूछा।

लड़की ने उसकी तरफ देखा, उसकी आंखों में सिर्फ डर नहीं था, मौत के इंतज़ार का सन्नाटा था।

“मैंने अपना पैर लैंडमाइन पर रख दिया है…”—उसके शब्दों ने रोहित को झकझोर दियa
रोहित की नज़र उस लड़की—आरोही—के पैरों पर गई। घुटनों तक मिट्टी में सनी हुई, काँपते हुए होंठ, और चेहरा सफेद... जैसे उसकी रूह अभी-अभी शरीर से निकलने को तैयार हो।

उसके पैर के नीचे, ज़मीन में हल्का उभार था—एक लैंडमाइन।

“कितनी देर से खड़ी हो?” रोहित ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में नर्मी थी, लेकिन आँखों में डर की स्पष्ट झलक।

“छह घंटे...” लड़की ने थरथराते होंठों से जवाब दिया।

छह घंटे! इतनी देर तक मौत को अपने पैरों के नीचे महसूस करते रहना, और जिंदा रहना—ये हिम्मत थी, या मजबूरी? रोहित सोच में डूब गया।

लेकिन वक्त नहीं था सोचने का। रोहित ने अपना बैग खोला—उसमें एक पुराना सर्वाइवल टूल किट था। उसके पिता ने कभी दिया था—“मुसीबत के वक़्त ये काम आएगा,” उन्होंने कहा था।

उसने एक पतली मेटल रॉड, एक पेचकस (screwdriver), और छोटा पर्सनल मैप निकाला। फिर धीरे-धीरे घुटनों के बल बैठ गया।

"मुझ पर भरोसा करोगी?"
आरोही ने सिर्फ हां में सिर हिलाया, उसकी आंखें अब भी रो रही थीं।

रोहित ने लैंडमाइन के चारों ओर की मिट्टी को चुपचाप साफ करना शुरू किया। हर बार जब उसका हाथ ज़रा सा भी कांपता, तो उसे अपने मरे हुए परिवार की याद आती—और उसका हाथ फिर स्थिर हो जाता।

लैंडमाइन दिख चुकी थी—एक पुरानी जर्मन माइन, जो वजन कम होते ही फट सकती थी।
उसने पेचकस से धीरे-धीरे उसकी ढ़क्कननुमा सतह को छेड़ा। पसीना उसकी गर्दन से बहकर कॉलर तक आ चुका था।

"अब जब मैं कहूं, तब ही पैर हटाना..."

दोनों की सांसें थमी हुई थीं।

"एक... दो... तीन... अब!"

आरोही ने आंखें बंद कीं और धीरे से पैर हटाया। रोहित ने एक जटिल मूवमेंट से माइन को लॉक कर दिया।

...कुछ नहीं हुआ।

लैंडमाइन निष्क्रिय हो चुकी थी।

दोनों कुछ क्षण वैसे ही खड़े रहे, जैसे समय रुक गया हो। फिर आरोही रोहित की ओर झपटी, और उसे कसकर गले लगा लिया।

“तुमने मेरी जान बचा ली...”
“अब ये सिर्फ तुम्हारी नहीं, हमारी है,” रोहित ने धीमे से कहा।


रात गहराने लगी थी।
जंगल अब और भी डरावना हो गया था—सन्नाटा इतना गहरा कि पत्तों की सरसराहट भी किसी साजिश जैसी लगती। कहीं दूर, भेड़ियों की आवाज़ आती। रात में हल्का कुहासा भी था, जिससे पेड़ों की आकृति और भयानक लगती थी।

रोहित ने एक हैम्मॉक-टाइप रज्जु निकाली—जंगल में ज़मीन पर सोना खतरे से खाली नहीं था।

दोनों ने एक साफ जगह चुनी, जहाँ ऊपर घना पेड़ था जो बारिश या जानवरों से थोड़ी हिफाजत दे सके। रोहित ने पेड़ों के बीच वो रज्जु बांधी और पहले खुद लेटा। आरोही अब भी डरी हुई थी—वो चुपचाप रोहित के ऊपर आकर लेट गई, उसे पकड़ लिया।

"तुम्हें डर नहीं लगा मुझे बचाते वक्त?" उसने फुसफुसाकर पूछा।

रोहित ने अंधेरे में उसकी आंखों की तरफ देखा और कहा:
"डरता तो तब जब जीने की कोई वजह होती... पर अब शायद मिल गई है।"

आरोही की आंखों में आंसू थे, लेकिन इस बार वो डर के नहीं थे—किसी के साथ होने का सुकून था उसमें।

“I love you,” उसने धीमे से कहा, और फिर रो पड़ी।

रोहित ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए पहली बार मुस्कुराया:
"I love you too...”