Swayamvadhu - 49 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 49

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स्वयंवधू - 49

इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।  
साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।

पत्र
राहुल चिंता के मारे कमरे में कुछ और आवाज़ सुनने के लिए ड्रेसिंग रूम के बाहर घूम रहा था।
अंदर ड्रेसिंग रूम में वृषाली ने मोनिका का मुँह बँद कर दीवार से सटाकर चुप रहने का इशारा कर दिया था। फिर उसने यहाँ-वहाँ देखा और मैग्ज़ीन की ओर इशारा कर पूछा, "ज़रूरी?",
उसने ना में सिर हिलाया।
उसने हँसकर कहा, "ये ग्रीन टॉप बहुत भड़कीला है।",
उसने फिर पन्ने पलटने और कागज़ो को टुकड़ो में फाड़ने लगी।
उसे देख वो उलझन में पड़ गयी।
राहुल को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।
उसने कागज़ों को टुकड़ो में इकठ्ठा किया और बगल में रखी कॉफी टेबल पर एक क्रम में फैलाया और चुपचाप पढ़ने का इशारा किया।
मोनिका उसे हैरत में देख सामने आई और सामने बिछी पन्नों को देखा।
राहुल बाहर चिंता से मरा जा रहा था। उसने आवाज़ निकालने के लिए मुँह खोला पर रुक गया।
कॉफी टेबल पर रखे चिथड़ो पर लिखा था, "मेरा असली नाम मत लेना और वृषा का ज़िक्र मत करना। मैं अब जैसा राहुल ने कहा, मीरा पात्रा हूँ, एक वैश्या, जो समीर बिजलानी के रहमोकरम पर है।",
उसे पढ़ उसने उसे देखा और कहा, "मुझे पता है कि ये थोड़ा भड़कीला है पर तुम पर जचेगा।",
"मूझे नहीं पता मैम। यह सब मेरे लिए नया है।", वृषाली ने सिर पकड़कर कहा,
उसने उसे कपड़े बदलने का इशारा किया।
राहुल उसे सुन वापस अपनी जगह बैठ गया।
"चिंता मत करो। मेरे पास ये बुक है जिसमे फैशन से जुड़ी हर एक जानकारी लिखी हुई है। कैसे कपड़े किस आकार के शरीर के लिए उत्तम है और गहने कैसे पहनने चाहिए।", कह उसने उसे दो किताब दी।
'फैशन भाग 1' और 'फैशन भाग 2', लेखिका मोनिका मित्र। कवर पर गाउन, जीन्स,कफ्तान, पाजामे, हार, चश्में, लाल, सफेद और नीले रंग के मोटे प्लास्टिक के चित्र में कटा हुआ था जिसे अलग किया जा सकता था।
वृषाली ने उसे खोलकर देखा।
उसमे सारी तस्वीरे लाल और नीले रंग से बनी हुई थी। दोंनो रंग एक दूसरे के ऊपर खिचड़ी बनाए बैठे थे। मोनिका ने बुक बँद कर कहा, "इसमे फैशन से जुड़ी सारी जानकारी है। तुम्हारे हर सवाल का हल इसमे होगा। इसे लो।",
उसने उसके गले में एक धातु की चेन पहनाई और उसके हाथ में एक चिठ्ठी रखी।
उसने उस चिठ्ठी को देखा।
उसमे पंख के निशान थे।
उसने पंख को अपने अंगूठी से तुलना की फिर ड्रेसिंग रूम के आईने में देख उस पंख को तौला।
"धन्यवाद।", उसे उसके आँखो में पानी आ गया।
"तुम रुको मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ खास कपड़े है।", वो बाहर गयी,
वृषाली ने खुद के भावनाओं पर काबू कर गहरी साँस ली जैसे वो कह रही हो का वो कर सकती है।
उसने उस चिठ्ठी को खोला।
अंदर दो पन्नों थे।
उसने काँपती हाथों से मुड़े पन्नों को खोला।
उसमे लिखा था,
"कैसे हो बच्चे?
अगर तुम यह पढ़ रही होगी तो तुम चल-फिर पा रही होगी।
डरो मत। तुम्हारे माता-पिता सुरक्षित एक अज्ञात जगह पर है। मेरे आदमी उनकी रक्षा चौबीसों घंटे कर रहे है। उनकी सेहत अभी स्थिर है।
तुम्हारा भाई...इससे पहले कि मैं उस तक पहुँच पाता, तुम्हारा भाई सुरक्षित भाग निकला। वह पुलिस विभाग में अपनी टीम के साथ सुरक्षित और स्वस्थ काम कर रहा हैं।",
वृषाली को वृषा पर भरोसा नहीं हो रहा था। उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसू आ गए। उसे वो दिन याद आया, उसका चौबीसाँ जन्मदिन! जब राज ने उसे उसके पूरे परिवार का बेरहमी से सिर धड़ से अलग करने की धमकी दी थी। वह तो बस एक नज़राना था। जब तक वह समीर ने उसे अगवा नहीं किया, तब तक उसे वास्तविकता की गहराई और उसके खुंखारपने का अंदासा नहीं था। उसने सोचा कि वह कुछ ही हफ्तों में सारे सबूत एकत्र कर सकती थी और उसे दण्डित कर इसे समाप्त कर सकती थी।
उसने इसका अहसास नहीं था कि उसे अपने पंजों में रखने के लिए वह किस हद तक गिर सकता था।

सबसे पहले, वृषा बिजलनी द्वारा मीरा के यातनापूर्ण अतीत को साबित करने के लिए उसे दस महीने तक ना-ना प्रकार के अवैध ड्रग्स, ज़हर, हर घातक रसायन से नशा दिया गया। उसके ऊपर प्रताड़ना हुई थी दिखाने के लिए उसके दाई टखने को तोड़ा गया कुछ दिन ठीक होने दिया, फिर एक बार और उसका टखना तोड़ा गया था और रस्सी को कसकर उसके चमड़े के अंदर धसाकर बाँधा गया था। फिर उसके आदमी अधीर ने उसके इशारे में उसे बचाया था और एकांत में उसका इलाज कराया और उस पर दया दिखाकर अपने पास रख लिया।
उसे अब भी बाकि का हालात की जानकारी नहीं थी। सिर्फ इतना पता है कि वो अब शादी-शुदा है।
आगे कवच लिखता है,
"सुहासिनी को छोड़ तुम्हारे परिवार में सब सुरक्षित है।",
वह डर गयी,
"डरो मत। सुहासिनी अब रेड्डी परिवार की लक्ष्मी है। उन दोंनो की शादी हो चुकी है छह महीने पहले। आर्य और दिव्या ने भी एक साल पहले शादी कर ली है।",
(दी? शादी? क्यों? मतलब सब जानते हुए भी? कैसे?)
"ज़्यादा मत सोचो, बच्चे। यहाँ हर कोई मजबूर है, सुहासिनी भी। उसे और शिवम को, आर्य और दिव्या को मजबूरन जल्दबाज़ी में शादी करनी पड़ी।",
उसने दूसरा पन्ना निकाला।
दूसरे पन्ने पर लिखा था,
"दोनों के सभी परिवार वाले समीर के कैद में है। यहाँ तक राहुल की भी!
राहुल का नवजात शिशु की ज़िंदगी भी समीर के हाथों में है इसलिए वो जो चाहे उसे करने दो। उसके पीछे समीर होगा।",
('जो चाहे उसे करने दो'?)
डर से वह सिहर उठी।
"ध्यान से सुनो वृषाली, मैंने जो किताब मोनिका के हाथों भिजवाई है उसे ध्यान से पढ़ना और बिना किसी को भनक लगे जला देना। यहाँ तक कि ज़ंजीर को भी नहीं। वो तुम्हारी मदद बस तुम्हें ना मरने तक की करेगा। तुम्हारी इज़्ज़त और आत्मसम्मान तुम्हारे हाथों में है इसलिए तुम्हें कैसे भी कर इस प्रोजेक्ट और अपने शेयरस् के बलबूते पर बिजलानी कॉरपोरेशन में घुसो।
मीरा तेज़ थी, वो सब जानती थी। बचने के लिए वो कुछ भी कर सकती थी।",
उसे पढ़ वृषाली की बत्ती जली।
आगे लिखा था,
"तुम खुद को और समीर से तुम्हारे रिश्ते को जितना हो सके समाज में फैला दो। तुम अपनी कहानी जो भी समीर ने तुम्हें बताई है उसे वायरल कर दो। कैसे? मौका तुम्हें मिल जाएगा। कैसे पकड़ना है वो तुम्हारे हाथ में है।
बस एक ध्यान रखना, समीर को किसी भी परिस्थित में अपने महाशक्ति वाले लॉकेट और अंगूठी को छूने मत देना। हल्का स्पर्श भी नहीं।",
इसपर वृषा का खत संपन्न हुआ।
एक ही समय में वह, भावुक, खुश, डर, उदासीनता, दुःख, आशावान, खोई हुई, असहाय, क्रोधित और आत्मघाती जैसी भावनाओं से ग्रस्त थी।
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कहीं ये सच में वृषा था या वृषा के भेष में समीर?
कहीं ये उसकी चाल तो नहीं उसे परखने के लिए?
कहीं वृष का असली ख़त समीर के आदमियों ने पकड़ लिया और इसे खिसका दिया? या क्या होगा यदि यह सब सच हो? वह अनेक विकल्पों के कारण उलझन में थी तभी उसके कंधे पर एक स्पर्श से उछल पड़ी। मुड़ी तो मोनिका अपना हाथ पीछे कर रही थी।
"हो गया?", मोनिका ने पूछा,
उसने बिना जवाब दिए अपना गला साफ किया और अपने आँसू पोंछे और कहा, "मुझे सफेद कपड़े चाहिए।", मतलब सच्चाई।
मोनिका ने बेखौफ बिना झिझक के बोला, "सब सच है। तुम्हारा भाई, तुम्हारे माता-पिता सब सुरक्षित इसी देश में समीर के नाक के नीचे रह रहे है।",
वृषाली का चेहरा पीला पड़ गयी। वह उठकर मोनिका को चुप कराने गयी पर उसके पैंरो ने उसका साथ नहीं दिया। वो लड़खड़ा के नीचे बैठ गयी। मोनिका उसके सामने खड़ी नीचे देखकर कहा, "चिंता मत करो। इस धातु के चेन ने तुम्हारे गर्दन पर लगे चिप के सिग्नल को रोक रखा है।",
वृषाली खड़े हो, "क्यों?",
उसने बस हाथ लिया, "इस हफ्तावसूली से परेशान हो गई हूँ या कहो उसे सलाखो के पीछे सड़ता देखना चाहती हूँ।",
"क्यों?", उसने दोंनो बुक को मोनिका के हाथ में देते हुए कहा,
मोनिका ने अपना गुलाबी क्रॉप टॉप हटाया। फिर उसके चमड़े की रंग वाली और टेक्सचर वाली बॉडी सूट की जिपर को नीचे की तरफ खींचना शुरू किया। जिपर जैसे-जैसे नीचे जाता नीचे एक पिघला हुआ शरीर उजागर करता जाता। उसके हाथ, उसकी छाती, उसकी गर्दन, सब कुछ पिघल गया था। वृषाली चौंक गई और भयभीत होकर पीछे हट गई।
"क्या...", उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे।
"यह बुटीक तुम्हारे जन्म से आठ साल पहले शुरू हुआ था। तब वह एक छोटी कपड़ो की दुकान थी। यह हम दोनों, मेरे पति और मैं चलाते थे। उस वक्त हर गैंग वाले, हम जैसे छोटे व्व्यापारियों से हफ्तावसूली करते थे। हम भी इससे अछूते नहीं थे। हम भी हर हफ्ते अपने जमा करे पैसे उन्हें ऐसे ही दे देते थे। एक हफ्ते हमारी बिक्री ना के बराबर हुई थी। हमारा किराया भी बाकि था। हमने जैसे-तैसे, ऊपर-नीचे कर उन्हें पैसा देते रहे पर हम उनकी बढ़ती माँग पूरी नहीं कर पा रहे थे, फिर भी हम कर रहे थे।
उन्होंने फिर भी प्रियांश को पचास रुपये के लिए बीच बाज़ार में, पूरे मौहल्ले के सामने अधमरा होने तक मारा गया-",
उसकी आँखे लाल थी।
मोनिका की आवाज़ काँप उठी। वो लड़खड़ाकर, सहारा ले कुर्सी पर बैठ गयी पर आँखों में एक आक्रोश था। दबी जीभ, दाँत पीसते हुए कहा, "मेरे मरते हुए पति की मौत को और दर्दनाक बनाने के लिए वो लोग मुझसे बदसलूकी करने लगे फिर अचानक कही से मेरा पूरा ज़िस्म गलने लगा।",
वृषाली को समझ नहीं आया,
मोनिका ने जारी रखा, "मुझे कही से ज़ोर की चीख सुनाई दी। मैं इतने झटके में थी कि मुझे अहसास ही नहीं हुआ था कि वो मेरी अपनी आवाज़ थी। मैं ऐसिड अटैक से वही सदमे से जम गयी।",
ऐसिड अटैक सुन वह सहम गयी।
"मुझे बस प्रियांश दिख रहे थे जो चिल्लाकर, मेरा नाम पुकारते हुए मेरी तरफ अपने टूटे पैंरो से उनसे लड़ घसीटते हुए आ रहे थे। मुझे मेरे धुंधली आँखो से दिखा कि वो मेरी तरफ आ रहे थे। मैंने जब उन्हें सीने से लगाया और उन्हें देखा तो उनकी आँखे बाहर निकली हुई थी और उनकी शक्ल, पिघल... मेरे हाथों में उनका कटा हुआ सिर पिघल रहा था।",
वृषाली सब सुनकर भौचक्की रह गयी पर मोनिका शाँत रही।
उसने गहरी साँस ली, "यह सब समीर के आदमियों ने किया था। इस बर्बरता का शिकार मैं अकेली नहीं हूँ। कई चुप करा दिए गए, कई अपनी हिस्से की कहानी बताने के लिए बचे ही नहीं।",
मोनिका ने अपनी दृढ़ आवाज़ में कहा, "मैं बस उसे सलाखों के पीछे सड़ता हुआ देखना चाहती हूँ।",
"पर आप उसे मार भी तो सकती है?", वृषाली ने अपने आँसू रोकते हुए कहा,
"एक बार मरना भी क्या मरना। उसके पाप इतने घिनौने है कि वो हज़ार जन्म भी ले और मरे, निम्न है! उसे भी मेरी तरह हर रोज़ तिल-तिलकर मरना होगा। ", मोनिका पत्थर बन गयी,
"मैंने तीन-चार कपड़े निकाल दिए है। उसे पहनो और बाहर चलो।",
वृषाली अचानक बदले माहोल को समझ काली जीन्स और सफेद रेशमी टॉप पहना। निकलने के पहले मोनिका ने उसके गले से चेन हटा दिया। दोंनो ने एक दूसरे को आखरी बार देखा वृषाली मोनिका की तरह देखा।
बाहर राहुल बेसब्री से फोन पर बात करते हुए उनका इंतज़ार कर रहा था। उसने फोन में कहा, "मैंने कहा था ना वो यही मेरे सामने ही है।", और फोन रख मीरा के पास गया,
"इतनी देर?", उसने पूछा,
"लड़कियों की बात है मिस्टर राहुल। कैसी लगी ये?", मोनिका ने व्यवसायिक मुस्कान के साथ पूछा,
"इतनी गर्मी में जीन्स...",
मोनिका ने उसे स्ट्रेट पेन्ट और सफेद ब्लाउज शर्ट के साथ एक रंग बिरंगा स्टेटमेंट ज्वेलरी के साथ तैयार किया।
राहुल को ये पसंद आया।
उन्होंने कुछ देर और शॉपिंग की।
फिर राहुल उसे ले खाने बिजलानी रेस्टोरेंट में ले गया। वहाँ उन्होंने खाने पर लंबी बातचीत की। बातो-बातो में वृषाली ने बच्चों की खाने की बात छेड़ी और धीरे-धीरे उस प्रोजेक्ट के बारे में और जानने कि कोशिश की।
"अच्छा राहुल आपका परिवार-",
राहुल ने उसे बीच मे टोककर, "अ-हम!",
"तुम्हारा! तो राहुल तुम्हारा परिवार और बिजलानी परिवार काफी अच्छे दोस्त लगते है? तुमने पूछा और समीर ने सीधे हाँ कर दिया।",
झूठी मुस्कान हँस, "हे, हे हे! हाँ। मैं उनकी कंपनी के लिए काम करने वाला उपठेकेदार की दूसरी पीढ़ी हूँ। हम अक्सर प्रयोगात्मक परियोजनाएँ करते है और बाज़ार का सर्वेक्षण करते हैं और शहर में इसे बड़े पैमाने पर लॉन्च करने में बिजलानी कॉरपोरेशन की मदद करते हैं। यह आकर्षण उनमें से एक है।",
वह कड़वी मुस्कान के साथ बोली, "प्रोजेक्ट मैनेजर कौन है?",
वो हँसा, "कोई नहीं जानता।",
उसने केचप से टिशू पर 'विषय' का नाम लिख दिया।
नीचे लिखा, 'मुझे पता है'।
उन दोंनो ने थोड़ी देर अपने शौक के बारे में बात किया।
मीरा का पता नहीं पर राहुल का शौक गेम खेलना था,
"ऑनलाइन कई गेम्स है जो तुम गोपनीय होकर खेल सकती हो। इसे आज़माना चाहोगी?",
"क्या तुम्हारे जैसे अमीर बच्चे इस तरह के खेल खेलते हैं?", उसने मज़ाक में पूछा,
"अब तुम्हें पता चल जाएगा।",
उसने उसका हाथ पकड़ा और पास के इंटरनेट कैफे की ओर भागा।
वहाँ उन्होंने ऑनलाइन शतरंज, लूडो, मर्डर मिस्टी गेम और सब खेला। यह सब उसके लिए बुनियादी परिचय था। 
मीरा नहीं, परंतु वृषाली को गेमिंग पसंद है, हालाँकि वह इसमें इतनी अच्छी नहीं है।
राहुल और वह, समीर के बारे में भूलकर देर रात तक खेलते रहे। वह जानबूझकर समीर के बारे में भूली। समीर ने उसे कई मैसेजस् किए लेकिन उसने नज़रअंदाज़ कर दिया। समीर ने उसे फ़ोन किया लेकिन उसने फिर से नज़रअंदाज़ कर दिया। अंत में समीर ने राहुल को फोन किया लेकिन वह खेल में इतना व्यस्त था कि उसकी कॉल छूट गई। चिढ़कर समीर ने अधीर को उनकी तलाश करने के लिए भेजा। वृषाली की गर्दन पर प्लेटड चिप के माध्यम से उन्हें ट्रैक करने के बाद वो 'माया इंटरनेट कैफे' पर गया।