Teri Meri Khamoshiyan in Hindi Love Stories by Mystic Quill books and stories PDF | तेरी मेरी खामोशियां।

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तेरी मेरी खामोशियां।

"अम्मी! मेरा सफ़ेद दुपट्टा नहीं मिल रहा!"
नायरा ने कमरे से आवाज़ लगाई, तो रसोई से अम्मी की सधी हुई टोन आई—
"अरे! तेरी अलमारी में अगर कुछ मुक़ाम पर रखा होता, तो शायद तलाश ना करनी पड़ती।"

नायरा बालों में कंघी करते हुए आईने में अपनी ही आँखों से झल्लाई।
"अम्मी जान, आज का दिन बहुत अहम है… और मै ऐसे बिखरे-बिखरे से नहीं जा सकती! पहली इंप्रेशन का मामला है।"

अब्बू ने अपने अख़बार के पीछे से बिना चेहरा निकाले हल्की सी तंज़ भरी मुस्कान के साथ टोका—
"बेटी, कॉलेज पढ़ने जाती हो या किसी फ़िल्मी जलसे में शिरकत करने?"

नायरा ने नकचढ़े लहजे में जवाब दिया—
"बाबा, इल्म तो ज़रूरी है ही, लेकिन अंदाज़ भी तो हुनर का हिस्सा होता है। और फिर लखनऊ की लड़कियाँ हों और नफ़ासत का जिक्र न हो, ये भला कैसे मुमकिन है?"

अम्मी ने टिफ़िन उसके हाथ में थमाते हुए कहा—
"जा अब… नफ़ासत बाद में दिखा लेना, पहले वक्त से क्लास पहुँच जाना। मास्टरनी बनोगी तभी, जब घड़ी से दोस्ती रखोगी!"

नायरा ने टिफ़िन थामते हुए होंठ बिचकाए—
"आप ये सब कुछ थोड़े प्यार से भी कह सकती थीं… एक लोरी की तरह।"

अम्मी मुस्कराईं और उसके माथे को हल्के से चूमा—
"प्यार ही तो है जो हर रोज़ तुझसे झुंझलाहट में भी नाता नहीं तोड़ता, जान-ए-अलमारी!"

बस स्टॉप पर हलचल थी।
जैसे हर सुबह कुछ हँसी लेकर आती हो, और कुछ ग़फ़लतें।
नायरा हमेशा की तरह अपने दोस्तों की बातों में आधी शामिल, आधी गायब थी।
हँसी के बीच उसकी निगाहें कहीं दूर थीं—शायद ख़्वाबों की गलियों में।

तभी अचानक हवा ने करवट बदली।
तेज़ झोंका आया, और उसका सफ़ेद दुपट्टा उड़कर पीछे किसी के चेहरे पर जा गिरा।

"अरे! ओह!"
नायरा हड़बड़ाई, एक झटके में पीछे मुड़ी।

दुपट्टा हटाते ही जो चेहरा सामने आया, वह आम न था।
लंबा कद, सधे हुए नैन-नक्श, और वो आँखें... जैसे ख़ामोश जज़्बात की ज़ुबान हों।

अमन..!

उसने न तो कोई तंज़ कसा, न कोई शिकवा किया।
बस दुपट्टा उसके हाथ में लौटाते हुए एक नज़र नायरा पर डाली—ठंडी, मगर असरदार।

नायरा कुछ कहने ही वाली थी,
"ओह सॉरी!"
कि तभी उसका संतुलन बिगड़ा और पैर सीधे अयान के जूते पर जा पड़ा।

एक हल्की सी साँस निकली—जैसे किसी ने दर्द को तहज़ीब में लपेट दिया हो।

नायरा ने नज़र उठाई—
अयान ने उसकी तरफ देखा, मगर वो नज़र कोई शिकायत नहीं थी।
वो नज़र एक सवाल थी, जिसका जवाब शायद उसे खुद भी नहीं मालूम था।

"आपको लगी तो नहीं?"
उसने धीमे, मुलायम लहजे में पूछा।

"नहीं,"
अयान ने संक्षिप्त जवाब दिया, और फिर फोन की स्क्रीन पर लौट आया…
जैसे यह मुलाक़ात, यह टकराव… सब महज़ इक रोज़मर्रा की बात हो।

नायरा ने होंठ भींचे, अपने ही अंदाज़ में तंज़ मारा—
"वाह! इग्नोर करने का नया फ़ैशन है क्या?"

मगर वो चुप रहा।
कोई और होता, शायद कुछ कहता… मगर अयान जैसे लोग बोलते नहीं, बस महसूस कराते हैं।

उसी वक़्त स्टॉप पर खड़ी एक गाड़ी का दरवाज़ा खुला।
वो बग़ैर कुछ कहे उस ओर बढ़ गया—
जैसे कोई साया, जो कुछ पल के लिए ज़िंदगी में दाख़िल हुआ, और फिर बिना आवाज़ के वापस अंधेरे में चला गया।

बस आई, और नायरा उसमें सवार हो गई।
मगर उसकी मौजूदगी बस की सीट पर थी, और सोचें कहीं और।
आँखें तो खिड़की से बाहर थीं,
मगर दिल… उसी खामोश अजनबी की पहली नज़र में उलझ गया था।

तेज़ रफ़्तार सुबह के शोर में भी, उस पल की नज़ाकत बाकी थी।

खिड़की से झाँकते हुए उसने देखा—
अमन अपनी गाड़ी के पास जाकर ठिठका।
कोई भी वजह हो सकती थी, मगर वो ठहराव… कुछ कह रहा था।

और फिर—
उसकी नज़रें उठीं।
सीधा नायरा की आँखों से आकर टकराईं।

एक पल के लिए...
जैसे वक़्त ने साँस लेना छोड़ दिया।
ना कोई मुस्कुराहट, ना कोई इशारा…
बस दो निगाहें, और उनके बीच ठहरी हुई कोई अनकही दास्ताँ।

उस नज़र में शोर नहीं था, मगर असर था।
जैसे किसी ने बिना छुए, दिल के तार हिला दिए हों।

नायरा की साँसें एक लय से बाहर हो गईं।
धड़कनों ने रफ़्तार तेज़ कर दी।

"ये लड़का… कुछ अलग है,"
उसने खुद से कहा, इतने धीमे कि शायद हवा भी न सुन पाए।