नफरत से बना तावीज.....
अब आगे...........
अदिति के बेहोश होते ही तक्ष उसके पास जाता है .....तक्ष के चेहरे पर एक शैतानी हंसी आ गई.....
तक्ष : अब बस अदिति....आज तो मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.....
तक्ष अदिति के हाथ को उठाकर अपने नुकीले दांतों से दबा देता है.....तक्ष अदिति के खून से अपनी प्यास बुझाता है..
तभी दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आई....." अदिति दरवाजा खोलो मैं हूं विवेक..."...तक्ष गुस्से में बड़बड़ाता है....." इसे भी अभी आना था...." तक्ष अदिति को छोड़कर खिड़की से बाहर कूद जाता है...
काफी देर दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से कोई जबाव नहीं आता तब विवेक घबरा जाता है और दरवाजे को जोर से धक्का देता है... जिससे खुल जाता है.....
विवेक : इतनी जल्दी सो गई अदिति.... तुम्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं है चलो कल बात करते हैं....
विवेक अदिति के पास जाता है फोरहेड किस के लिए तभी अचानक उसे ध्यान आया कि अदिति दो बार बेहोश हो चुकी है इसलिए विवेक पीछे हट जाता है....
विवेक : नहीं मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं..... मेरी वजह तुम्हारी तबियत बिगड़ी थी....और अब मैं फिर वही गलती करने जा रहा था....एम सॉरी अदिति.... लेकिन क्या करूं अपने प्यार के आगे मजबूर हो जाता हूं......
(विवेक अदिति के हाथ को अपने हाथ में लेता तभी उसकी नज़र अदिति के हाथ पर हल्की खून की बूंदों को देखकर हैरान सा रह जाता है..)...." खून कैसे आया हाथ पर ..." (विवेक चारों तरफ देखता है ...)...." बड़ी अजीब बात है.. अदिति सो रही है लेकिन इतनी गहरी नींद में मेरे छूने का एहसास भी नहीं हुआ इसे..." (विवेक जल्दी से काॅटन से अदिति के हाथ को साथ करता है....साफ करने की वजह से अदिति के हाथ पर बने दो छोटे छोटे छेद देखें जा सकते थे...)
विवेक जो अभी तक परेशान था इन पास पास बने दो छोटे छेद ने विवेक की परेशानी और बढ़ा दी.....
विवेक : आखिर ये सब हो क्या रहा है....?...ये निशान माॅस्किटो के काटने के तो नहीं है..... फिर क्या है ये....? ... मुझे अदिति को उठाना चाहिए ...... नहीं रहने दे थक गई होगी .... कुछ तो ग़लत हो रहा है और मुझे लगता है इस सबका कनेक्शन कहीं न कहीं तक्ष से जुड़ा हुआ है.....(तभी अचानक याद करके कहता है)... हां अघोरी बाबा.... वहीं कुछ बता सकते शायद महाकाल ने इसलिए उन्हें सेफ रखा है.... मैं कल उनसे मिलने जाऊंगा....(विवेक अदिति को सोते हुए छोड़कर उसके रुम से चला जाता है)...
विवेक जैसे ही कमरे से बाहर आता सामने आदित्य को देखकर हड़बड़ा जाता है...." भ भ भाई....आप .."
आदित्य : क्या बात है विवेक इतनी रात को अदिति के रूम में....
विवेक : वो भाई....वो मैं अदिति को मेडिसिन देने के लिए आया था....
आदित्य : अच्छा ठीक है...दे दी मेडिसिन...?
विवेक : हां भाई दे दी अब वो सो गई....
आदित्य : (हंसकर)..तुम मुझे देखकर इतना डर क्यूं गये....(विवेक के कंधे पर हाथ रखता है)... वैसे थैंक्स विवेक अदि का ध्यान रखने के लिए....तुम हो इसलिए मुझे टेंशन नहीं थी...
विवेक : भाई आपको मुझे थैंक्स बोलने की जरूरत नहीं है...उसका ध्यान तो मैं हमेशा रखूंगा और ( विवेक कहते कहते चुप हो जाता है)...
आदित्य : और क्या विवेक.....?
विवेक : कुछ नहीं भाई मैं जाता हूं बड़ी मां बुला रही थी...(विवेक वहां से चला जाता है)...
आदित्य हंस जाता है....." तुम मुझसे छुपाना चाहते हो...खैर अदिति ने कोई ग़लती नही की है तुम्हें चुनकर .... पता नहीं दोनों अपनी बात कब बताएंगे.... देखते हैं...." आदित्य हंसता हुआ चला जाता है.....
जहां सब चैन की नींद सोये थे वहीं तक्ष और उबांक इधर उधर घूम रहे थे...
उबांक : दानव राज आप इतने गुस्से में क्यूं हो....?
तक्ष : गुस्सा नहीं हूं तो क्या करूं उस विवेक को जभी आना था मेरी आधी प्यास बाकी रह गई थी......
उबांक : शांत हो जाइए दानव राज..... बहुत जल्द आपको इस बैचेनी से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी.....
तक्ष : वो तो मिलनी है क्योंकि अब मेरे रास्ते में कोई नहीं आ सकता बहुत जल्द मेरी ये आखिरी बलि पूरी होगी और मैं आजाद हो जाऊंगा..... बहुत जल्द आदिराज तेरी बेटी मेरे अधूरे काम को पूरा करेगी... बहुत बचाया तूने देविका अब शुरू हुआ है दानव राज.... मेरा वचन कभी ग़लत नहीं होता बहुत जल्द बहुत जल्द उबांक मैं मुक्त हो जाऊंगा फिर कौन बचाएगा उन गांव वालों को......
उबांक : दानव राज आपने इतनी जल्दी वो तावीज क्यूं पहनाया....
तक्ष : वो विवेक ज्यादा ही प्यार लुटा रहा था अब नफ़रत से भरी उस आग का वो तावीज उन्हें कभी पास नहीं आने देगा.... मैंने कहा था ...अब शुरू हुआ है जोखिम भरा प्यार.. देखते जा अब तू ...चल जल्दी इसे ख़त्म कर सुबह होने वाली है...
उबांक : दानव राज मैं अब इसे नहीं खा सकता.....
तक्ष : छोड़ इसे यहीं चल यहां से....
उबांक : जी दानव राज......
अगले दिन.......
सब थके हुए थे इसलिए काफी देर तक सो रहे थे पूरे घर में शांति छाई हुई थी बस एक घंटी की आवाज गूंज रही थी क्योंकि सुविता जी सुबह की आरती कर रही थी साथ ही मालती जी उनके साथ खड़ी थी...... थोड़ी देर बाद सुविता जी नाश्ते के लिए सबको बुलाती है...बारी बारी सब डाइनिंग हॉल में आकर बैठते हैं...... विवेक जो रात को काफी देर बाद सोया था इसलिए अभी तक नाश्ते के लिए हाॅल में नहीं पहुंचा था ... विवेक को उठाने के लिए इशान उसके कमरे में पहुंचता है.....
इशान : ओ कुंभकरण के चाचा उठ जा अब कितना सोयेगा...
इशान विवेक के ऊपर से ब्लैंकेट को हटा देता है... लेकिन विवेक दोबारा से ब्लैंकेट खिंचते हुए कहता है ....." भाई सोने दो थोड़ी देर और ...."
इशान ने विवेक को समझाते हुए कहा...." बिल्कुल नहीं उठ जा अब .....मां ने सबके लिए हल्वा बनाया है अगर तू नीचे आया न तो तुझे कुछ नहीं मिलेगा...."
विवेक तुरंत उठकर चिल्लाया..." हल्वा बनाया है बड़ी मां ने..."
इशान : हां....चल अब ....
विवेक : आप चलो मैं फ्रेश होकर आता हूं.....(इशान बाहर चला गया और विवेक बाथरूम की तरफ..)
थोड़ी देर बाद विवेक भी डायनिंग टेबल पर पहुंच गया....सब आपस में बातें कर रहे थे और नाश्ते का मजा ले रहे थे....
तभी अचानक एक नौकर भागता हुआ आया......
" बड़े मालिक....गजब हो गया....?..."
कामननाथ : हुआ क्या है तू इस तरह क्यूं हाफ रहा है....?
" बड़े मालिक वो......रतन माली ....मरा पड़ा है...?..."
कामनाथ जी हैरानी से टेबल पर हाथ पटकते हुए खड़े होते हैं..." क्या लेकिन कैसे मारा गया....?...."
.............to be continued.........
रतन माली कैसे मारा गया...?.. जानेंगे अगले भाग
जब तक जुड़े रहिए कहानी से.....