Health Causes and Prevention in Hindi Health by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | स्वास्थ्य कारण और निवारण

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स्वास्थ्य कारण और निवारण

सर्व विदित हैं स्वस्थ शरीर ही सुख सवृद्धि एवं पराक्रम पुरुषार्थ योग भोग का माध्यम है.शरीर काया ईश्वरीय संरचना है जिसे यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो यांत्रिक  संरचना कहना अनुचित नहीं होगा. जो आंतरिक एवं वाह्य अंगों का समन्वय सामंजस्य है. जिसमें प्राणि कि प्राण वायु प्रवाहित होती है शारीरिक क्रिया कलाप को तंत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो निम्नानुसार है--1- श्वसन तंत्र  2- तंत्रिका तंत्र 3- पाचन तंत्र 4- उत्सर्जन तंत्र 5- प्रजनन तंत्र आदि सारे के सारे तंत्र अंगों द्वारा संचालित होते है श्वास तंत्र फेफड़े से सम्बंधित  है तो तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क एव शरीर मे बिछे नसों के जाल से सम्बंधित है पाचन तंत्र यकृत आमाशय से सम्बंधित है तो उत्सर्जन तंत्र शरीर की गंदगियों को बाहर उत्सर्जन एव सफाई से सम्बंधित है जिसमे गुर्दा मुख्य है तो रक्तसंचार तंत्र हृदय धमनियों शिरावो से सम्बंधित है प्रजनन तंत्र उतपत्ति से सम्बंधित है जैसा कि पहले ही स्प्ष्ट किया गया है कि सारे तंत्र एक दूसरे पर निर्भर रहते हुए समन्वय ताल मेल के साथ कार्य करते हैं जिसमे वाह्य एव आंतरिक अंगों का बहुत महत्व पूर्ण योगदान होता है आंतरिक अंगों में सिर के पिछले भाग में मेडुला आबलांगेटा होता है जो शरीर को तंत्रिका तंत्र के माध्यम से संतुलित करता है एव नियंत्रित करता है हृदय रक्त संचार के लिए उत्तरदायी होता है जिसके दो भागों अलिन्द और निलय एक साथ कार्य करते है और शरीर मे समुचित रक्त प्रवाह को निर्धारित करते है फेफड़े श्वास के आवागमन को निर्वाध निर्धारित करते है पाचन तंत्र आहार को पचाने एव उससे शरीर के उपयोगी तत्वों के निर्माण कि प्रक्रिया जैसे रक्त सुक्रोज ग्लुगोज  महत्व महत्वपूर्ण कार्य करता है जिसके लिए एक लंबी रासायनिक प्रक्रिया निर्धारित है जिसमे जिसमे क्षार एव अम्लों का निर्माण एव उनकी उपयोगिता सम्मिलित है.सभी आंतरिक शारिरिक गतिविधियों में आंतरिक अंगों की महत्वपूर्ण  भूमिका है तो वाह्य अंगों जैसे मुख, नाक, जीभ ,गुदा एव जननेद्रियों के साथ- साथ हाथ पैर गला सिर सभी का योगदान एव दायित्व निर्धारित है! यदि शरीर के वाह्य या आंतरिक अंगों में कोई भी विकृति आती है तो उसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है ठीक उसी प्रकार जैसे किसी इंजन का कोई छोटा से छोटा पार्ट खराब होने पर उसका प्रभाव उसके पूरे शरीर अर्थात इंजन पर पड़ता है .वर्तमान काल समय सम्पूर्ण मानवता क़े लिए अभिशाप कि तरह है समाजिक विकृतियो विसंगतियों एवं गिरती नैतिकता मर्यादा तथा छरण होती संस्कृति संस्कार क़े कारण प्रति दिन सम्पूर्ण मानवता जोखिम के अंतर्गत जीवन यापन करने को विवश हैं पता नहीं किसी को क़ब कहाँ से कोई अकल्पनीय अनजाना जोखिम जीवन के लिए चुनौती बन जाए.  सामाजिक चुनौतियो के साथ साथ जीवन के आपा धापी  भाग दौड़ और तेज जीवन शैली के अपने जोखिम है जिसमे दुर्घटनाओ कि प्रमुखता है माता पिता अपनी संतानो को उनकी सुविधा के लिए अपनी इच्छाओ को दरकिनार कर उनके लिए कार मोटरसायकिल खरीद कर देते हैं आज कि युवा किशोर संताने सड़को पर ऐसे फर्राटे से  दौड़ते अक्सर दिख जाएंगे जैसे समय दुनिया दोनों उनकी मुट्ठी मे हों ना अपने भविष्य जीवन के प्रति संवेदना ना ही दुसरो के प्रति सिर्फ आधुनिकता कि दौड़ मे स्वंय को सर्वश्रेष्ठ दिखाने कि होड़ कि ही प्रमुखता परिलाक्षित होती है जिसके कारण अनेको प्रकार के जोखिमो का सामना करना पड़ता हैं.एक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार भारत वर्ष मे एक वर्ष में  लगभग नै से दस करोड़ जीवन काल कलवित होते हैं जिसमे लगभग चालीस से पचास प्रतिशत जीवन बिभिन्न दुर्घटनाओ के शिकार होते हैं इन दुर्घटनाओ मे पचास प्रतिशत सड़क दुर्घटनाए होती हैँ अर्थात लगभग दो करोड़ जीवन प्रति वर्ष सड़क दुर्घटनाओ के कारण जीवन गंवा देते है.भारत वर्ष मे 1947 से लेकर 1980 तक औसत जीवन अर्थात आयु 40 वर्ष से 60 वर्ष तक थी स्वास्थ्य सुविधाओ के विकास एवंआम व्यक्ति कि स्वास्थ्य के प्रति  जागरूकता के बाद भारत में  औसत आयु 70 वर्ष है. स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास   एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के साथ साथ जीवन एव स्वास्थ पर नए नाकारात्मक कारक कारणों ने जन्म ले लिया हैँ जिसमे निम्नवत हैं --1- क़ृषि उपज वढाने एवं खाद्यान्न समस्या के निवारण हेतु हरित क्रांति से प्रत्येक  मनुष्य को भर पेट भोजन तो मिलना सुनिश्चित हो रहा हैं किन्तु उपज बढ़ाने के लिए प्रयोग कि जाने वाली आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक जिसमे फर्टीलाजर एवं रसायनो से धीरे धीरे जँहा पृथ्वी कि उर्वरा शक्ति को छीड़ हो रही हैं तो मनुष्य के जीवन में धीरे जहर बनकर घुलता जा रहा हैं.जिसके कारण नई नई बीमारिया जन्म ले रही है जो मानवता एवं मानव समाज को धीरे धीरे अपना ग्रास बना रही हैं!2- मानव जीवन एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण कारक है पर्यावरण प्रदूषण विकास कि अंधी दौड़ ने प्रकृति के संतुलन को विगाड़ दिया है जिसमे एक महत्वपूर्ण कारण मांग और संसाधन के सिद्धांत के मध्य असंतुल का कारण जनसंख्या बृद्धि है जिसके कारण प्रकृति के प्राणी वाद सिद्धांत को ही परिणाम भुगतने पड़ रहे है. मौसम ऋतुओ का परिवर्तन  ग्रीष्म में वर्षा,वर्षा मे ग्रीष्म आदि जिसके कारण प्राकृतिक असंतुल ने जन्म ले लिया है जल श्रोतो का सुखना वन जंगलो का कटना जीवन पर नए जोखिमो को जन्म देता है गलेशियरों का पिघलना पृथ्वी का तापमान बढ़ना एक तरफ प्राकृतिक असंतुलन का कारण है तो दूसरी तरफ प्रदूषण ने प्राकृतिक पर्यावरण को खतरे मे डाल रखा है ध्वनि प्रदूषण वायु प्रदूषण जल प्रदूषण मानवीय कृत्य से व्यथित प्रकृति परिवर्तन का बिगुल बजाती जलवायु परिवर्तन तक पहुंच चुकी है जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण के कारण प्राणी प्राण को नित नए जोखिमो से जूझना पड़ रहा है जो प्राकृतिक प्रकोप बनकर प्राण प्राणी के लिए चुनौती बन चूका है जिसके कारण सूखा, बाढ़, तूफ़ान,सुनामी,भूकंप, चक्रवात आदि का कारक कारण है तो कोरोना जैसे संक्रमण का जन्मदाता. स्पष्ट है कि सम्पूर्ण विश्व एवं प्राणी प्राण एक से बढ़कर एक जीवन जोखिमो जिनका कारण वह स्वंय है मे उलझ कर फड़फड़ा रहा है और  कोई निराकरण नहीं प्रतीत हो रहा है अतः प्राणी प्राण पर तीन प्रमुख कारण कारण है जो उसके स्वास्थ को प्रभावित करते हुए उसके जीवन के लिए जोखिमो कि नई नई संभावनाओ को जन्म देते है 1- क़ृषि उपजो हेतु उर्वरको एवं रसायनो का अतिरेक प्रयोग 2- जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण 3- असंतुलित एव बदलती प्रकृति.भारत के महत्वपूर्ण  शहरों मे पर्यावरण से हालात इतने बदतर हो चुके है उनके निदान के सभी मार्ग लगभग बंद कर चूका है शहरों के आस पास नदिया सुख कर नाले मे परिवर्तित हो चुंकि हैँ  शहर कि गंदगी एव अद्योगिक कचरा नदियों मे प्रवाहीत होकर नदियों को विष का प्रवाह बना चुका है उदाहरण के लिए यदि भारत कि राजधानी दिल्ली के वतावरण एवं प्रकृति को देखा जाए तो वायुप्रदूषण से वहां मनुष्य का सांस लेना मुश्किल है दिल्ली का प्रत्येक व्यक्ति औसतन दो से पांच मिलीग्राम बिभिन्न प्रकार के जहर नित्य प्रतिदिन ग्रहण करता हैं स्थिति इतनी भयावह होती जा रही हैं कि दिल्ली मे जन्म लेने वाले किसी भी बच्चे कि आयु उसकी निर्धारित आयु से कम से कम दस वर्ष कम जीवन सिर्फ पार्यावरण एव प्रदूषण के कारण होंगी एक से बढ़कर एक विचित्र बीमारियों का प्रकोप वैज्ञानिक एक का निदान खोजता हैं तो दूसरी ख़डी हो जाती हैं साथ ही साथ बदलते मौसम मे अनेक बीमारिया जन्म लेती हैंसमान्यतः स्वस्थ जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव- सूर्योदय से पूर्व सिर्फ स्नान नियमित किया जाए तो लगभग सौ से अधिक स्वस्थगत समस्याए स्वतः समाप्त हो जाती हैं एव मनुष्य को प्रसन्नचित्त एव ऊर्जावान बनाए रखती हैंयदि सूर्योदय से पूर्व स्नान कर पाना सम्भव ना हो सके तो सुबह नीद से उठने के बाद अपनी रूचि एव सुविधा के अनुसार कम से कम दो गिलास ठंठा या गरम जल का सेवन भी लगभग सौ शारीरिक विकृतियों से मुक्त रखता हैं आयुर्वेद के मतानुसार व्याधि के मूल तीन ही कारण कारक होते हैँ  पहला बातव्याधी दुसरा कफ व्याधि पित्त व्याधि उक्त दोनों नियम इन तीनो कारक कारण का मूल रूप से शमन करते हैं प्रति दिन सुबह चाय के पूर्व काली मिर्च सोंठ या अदरख लौंग अजवाइन तुलसी के पत्ते को पानी मे खौलाकर सेंथा नमक एव नीबू मिलाकर कम से कम एक कप नियमित सेवन करनाऐसे खान पान एव रहन सहन उपाय हैँ जिससे शारीर स्वस्थ ऊर्जा से परिपूर्ण एवं मन प्रसन्न रहता हैं जैसे नियमित प्रातः टहलना दूसरा संतुलित आहार जिसमे सलाद सब्जियों का प्रयोग अधिक एवं मिलेट अन्न का सेवनसोने जागने एव कार्य का निर्धारित एव अनुशासित समय जटिल बीमारिया जो वर्तमान मे असाध्य हैं उनमे कैंसर पार्किंसन एड्स गुर्दे एव लिवर कि बीमारियों मे प्रत्यारोपण कि नव चिकित्सा प्रणाली अवश्य हैं वर्तमान चिकित्सा प्रणाली मे दवा ऑपरेशन प्रत्यारोपण रेडिओ थिरेपी प्लाज़्मा थिरेपी आदि प्रचलित हैं समय समय पर नए नए अंवेषण भी चिकित्सा प्रणाली मे सम्मिलित हो रहे हैँ प्रत्यारोपण मे घुटने गुर्दे सफल हो रहा है लिवर का प्रत्यारोपण अब भी बहुत सफल सुरक्षित नहीं हैं गंभीर बिमारी कि चिकित्सा बहुत महंगी हैं और अनेक सरकारी सुविधाओं के वावजूद इसकी पहुंच जरुरत मंदो तक बहुत सिमित हैं वर्तमान समय मे शुगर एवं रक्तचाप ऐसी बिमारी हैँ जो लगभग सभी बीमारियों कि जननी हैं और भरत मे लगभग 70-से 75 प्रतिशत जनसंख्या इन जननीय बीमारियों से ग्रसित हैं अतः प्रत्येक व्यक्ति का प्रयास यही होना चाहिए कि वह रोग मुक्त रहे जिसके लिए नियमित दिनचर्या एवं खान पान नियात्रित एवं संतुलित रखना आवश्यक हैं साथ ही साथ फ़ास्ट फ़ूड जंक फूड आदि का सेवन ना करे एवं घर निर्मित आहार ही ले साथ ही साथ अहार मे उपयोग कि जाने वाले अनाज दाल मसाले तेल आदि कि शुद्धता को सुनिश्चित करते हुए उपयोग करे बंद संस्कृति अर्थात पैक्ड वस्तुओ का बहिष्कार करे जैसे पैकेट आटा मसाले तेल अनाजो मसालो को घर पर साफ सफाई करने के बाद पीस कर या पिसवा कर प्रयोग करे भाग दौड़ कि जिंदगी से कुछ समय जीवन स्वास्थ्य के लिए अवश्य निकाले वासी भोजन विल्कुल ना करे फल सब्जी गरम गुनगुने जल से धो कर प्रयोग करे इस प्रकार कि छोटी छोटी सावधानिया परिवार एवं समाज राष्ट्र को स्वस्थ्य एवं निरोग रखने मे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक हैं मौसमी बीमारिया एवं बचाव के उपाय --(क )गर्मी के मौसम कि बीमारियां एवंबचाव के उपायगर्मी का मौसम चल रहा हैं जिसमे   तेज गर्मी एवं तापमान का एका एक बढ़ना जिसे लू लगना कहते गर्मी के मौसम मे बीमारी के प्रमुख कारण है वातानूकुलित कृत्रिम ठंठ से एकाएक बाहर ना निकले क्योंकि ऐसा करने से शारीरिक तापमान असंतुलित हो जाता हैँ और सीजनल बुखार से लेकर लू तक के शिकार हो सकते है गर्मी के मौसम मे बाहर निकलने के साथ सर पर टोपी या तौलिया अवश्य रंखे तथा एका एक धुप या गर्मी मे बहुत ठंठा पानी पिने से  बचे आहार मे जलीय वस्तुओ का प्रयोग अधिक करे जैसे खीरा तरबूज आम का पना आदि सावधानी सतर्कता ही सुरक्षा एवं बचाव का मुख्य शस्त्र शास्त्र हैंलू लगने पर कच्चे आम को पका कर सेवन करे साथ ही साथ कच्चे प्याज़ का सेवन करने से लू के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता हैं हिट स्टोक् से बचाव ही कारगर उपाय हैं बहुत तेज धुप मे बहुत आवश्यक या अनिवार्य ना हो तो विल्कुल बाहर मत निकले विशेषकर वातानुकूलित से निकल कर जाने से पूर्व शारीरिक तापमान को सामान्य वातावरण योग्य बनाने के बाद अर्थात कम से कम दस मिनट बाद निकलेकच्चे आम प्याज़ एवं जलीय फल खीरा खरबूजा ककड़ी नारियल पानी आदि का भरपूर उपयोग करे आहार पर नियंत्रण एवं सुपाच्या आहार लें सतर्कता बचाव ही विजयी व्यवहार हैं!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!