पछतावा (कहानी) ✍️ जितेंद्र शिवहरे
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साहिल और लीना एक ही कंपनी में थे। कॉलेज के साथ शुरू हुई दोनों की आपसी समझ को देखते ही कोई भी कह सकता था की ये जोड़ी फ्यूचर की बेस्ट कपल होगी।
बावजूद इसके साहिल ने लीना से कभी कोई उम्मीद नहीं की। वह तो लीना के साथ आज भी उतना ही कंफरटेबल था जितना कॉलेज के टाइम पर हुआ करता था। लीना के स्वतंत्र विचार आज भी पहले की तरह ताज़ा थे। शायद साहिल के साथ इसलिए भी उसकी खूब जमती थी।
समाज और दुनियां वालों की परवाह करने वाले शादी शुदा हो गए थे। और बाकी बचे साहिल और लीना जैसे लोग, उनका जीवन तो सोशल गेदरिंगस में गॉसिप का विषय होता था। इतनी परवाह कोई किसी की नहीं करता, जितनी इस बैचलर जोड़ी की जाती।
प्रबुद्ध रहवासी अपने बच्चों को साहिल और लीना समान नहीं बनने की सलाह देना कभी नहीं भूलते। उन दोनों से मेल मिलाप कभी अच्छा नहीं माना गया।
साहिल को यह जानकर हंसी आ जाती।
ये साहिल ही था जो अब भी अडिग था। उसे बातों का जवाब देना आता था। अब तो यह आए दिन की बात हो गई। लीना को पहले-पहल बहुत बुरा लगता, मगर अब उसने भी अपना मन कठोर कर लिया था। धीरे- धीरे वह भी जली-कटी बातों का बदला लेना सीख गई। परिणाम ये हुआ कि जरूरत पड़ने पर ही साहिल और लीना से बात की जाती। जान बूझकर कोई उन्हें परेशान करने की हिम्मत नहीं दिखता। उन दोनों का व्यक्तिगत जीवन अब एकदम शांत था। जिसका दोनों मिलकर आनंद ले रहे थे।
दो साल का लव लीना की गोद में चैन की नींद सो गया। ये आश्चर्य की बात थी। लव के चेहरे की मीठी मुस्कान ने लीना को वह सुखद आनंद दिया जिसके आगे सबकुछ फीका था। साहिल लीना की आखें पड़ चुका था। इससे पहले की कुछ अनर्थ हो उसने लव को अपनी बांहों में ले लिया। जैसे करंट के खुले तार को छू लिया हो। शरीर की रग-रग में सिहरन दौड़ गई। उसने तुरंत लव को लीना के हवाले कर दिया। इस एहसास को बयां करने में उसे बहुत परेशानी हुई।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर दोनों ठहरने की सोचने लगे। एक बच्चें के स्पर्श ने उनके ममत्व को जीवंत कर दिया था। सारी उम्र खुद की मन मर्जी से जिए। आगे भी जीते रहेंगे। अब बस मॉम-डैड बनने के लिए खुद को मानना था। इसके लिए भी बहुत समय लगा। आखिरकार वह दिन भी आ गया जब लीना दुल्हन बनकर पत्नी की वैधता हासिल करने मंडप में बैठ गई।
साहिल का पूरा परिवार आ पहुंचा। नियमों में बंधना इतना भी दुष्कर नहीं था जितना कभी दोनों समझ रहे थे। शादी के बाद ही साहिल की प्रतिष्ठा में चार चांद लग गए। लीना को सोसाइटी की किटी पार्टी में जबरियां शामिल कर लिया गया। इतिहास को भूलकर समाज ने वर्तमान में उन्हें वह सब दिया जिसके दोनों अधिकारी थे।
खुशी का जन्म होते ही एक ऐसी चिंता का जन्म हुआ जिसमें लीना परेशान हो उठी। साहिल ने समझाते हुए कहा "यही परवाह यदि समय रहते की होती तो शायद ये चिंता हमें आज नहीं होती।"
लीना का गला भर आया था। वह बोली "यदि खुशी भी अपने पेरेंट्स के पद चिन्हों पर चल पड़ी तो?"
यह प्रश्न साहिल भी खुद से पूंछ रहा था। इसका उत्तर बहुत डरवाना था। और साहिल, लीना से कभी इस बात पर चर्चा नहीं कर पाया। अपनी पूर्व गलती पर सिवाए पछतावे के उनके पास कोई चारा नहीं था।
The End
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लेखक ~
जितेंद्र
शिवहरे, इंदौर
Mo. 7746842533