झारखंड के एक घने जंगलों के बीच एक गाँव था — राखापुर। सूरज वहाँ देर से उगता था और जल्दी डूब जाता। गांव के बाहर एक टूटी-फूटी झोपड़ी थी, जिसे लोग काली कुटिया कहते थे। कहते हैं वहां एक तांत्रिक रहता था — भैरवनाथ।
भैरवनाथ की उम्र कोई नहीं जानता था। कोई कहता सौ साल से ऊपर है, कोई कहता वह इंसान ही नहीं — काले श्मशान से निकला है। वह दिन में कभी दिखाई नहीं देता, पर रात के अंधेरे में उसकी छाया गांव की झील के पास देखी जाती, कभी हड्डियां चबाते हुए, कभी हवा से बातें करते हुए।
गांव में अजीब घटनाएं होने लगी थीं — दूध अपने आप खौल जाता, लोग बिना कारण बीमार पड़ जाते, बच्चों की हंसी रात को सुनाई देती लेकिन वे कमरे में होते ही नहीं।
सबसे डरावना था — काला धागा।
जो भी भैरवनाथ की कुटिया के पास से गुजरता, उसके गले में एक काला धागा बंधा मिल जाता। और अगले सात दिनों में उसका या उसके किसी अपने का अंत हो जाता।
गांव वालों ने कई बार झोपड़ी जलाने की कोशिश की, पर हर बार आग अपने आप बुझ जाती। फिर एक दिन गाँव में एक नया आदमी आया — रुद्र।
रुद्र बनारस का था, पर उसके पास कुछ ऐसा था जो किसी और के पास नहीं — एक उल्टा यंत्र, जिसे सिर्फ़ तांत्रिकों से लड़ने के लिए बनाया गया था। उसकी माँ एक देवी उपासक थी, और उसे बचपन से सिखाया गया था कि काला जादू कैसे पहचाना और तोड़ा जाता है।
रुद्र रात को अकेला काली कुटिया की ओर गया। झोपड़ी के अंदर घना धुंआ था। दीवारों पर अजीब निशान, उल्टी लिपि में मंत्र, और बीच में एक मिट्टी की मूर्ति — बिना आंखों की, पर हँसती हुई।
तभी झोपड़ी के कोने से एक आवाज़ आई — "तू आया है मुझे मिटाने? तेरी आत्मा जल जाएगी... अभी यहीं..."
भैरवनाथ निकला — काले लबादे में, उसकी आंखें सफ़ेद थीं, और उसके चेहरे पर इंसानों की उंगलियों से बनी माला थी।
रुद्र ने यंत्र निकाला और ज़ोर से बोला — "ॐ कालभैरवाय नमः!"।
पर भैरवनाथ हंसा। "तेरे मंत्र यहाँ नहीं चलते, ये भूमि मेरी है। ये भूमि काली की है!"
जमीन हिलने लगी। झोपड़ी का फर्श खुला और नीचे से सैकड़ों कटे हुए हाथ बाहर निकलने लगे। रुद्र चिल्लाया नहीं — उसने अपनी कलाई काट कर खून से यंत्र को सिंच दिया। वह यंत्र जल उठा।
भैरवनाथ चीख पड़ा — "तूने ये क्या किया! ये यंत्र तो... देवी का है!"
रुद्र बोला — "हाँ, और तू अब श्मशान की ओर जा, भैरवनाथ। तेरी कथा आज समाप्त होती है!"
पूरा जंगल चीख उठा। कुटिया जलने लगी, और उसी के साथ भैरवनाथ की आत्मा भी। सुबह जब गांव वाले वहाँ पहुंचे, वहाँ बस राख बची थी। और राख के बीच रुद्र का यंत्र — जो अब काले से सुनहरा हो चुका था।
पर गांव के कुएं में अब भी कुछ फुसफुसाता है...
"मैं तो गया... पर अब तेरा नम्बर है..."