एपिसोड 1: "घर की सुबह, एक नई शुरुआत"
(सुबह का समय है। छोटा सा शहर, एक शांत मोहल्ला। नारायण जी का घर एक सामान्य लेकिन सजीला घर है, जिसमें अनुशासन और अपनापन दोनों साथ रहते हैं।)
(सीन 1 – रसोईघर)
(रश्मि रसोई में नाश्ता बना रही है, अनीता चाय कप में डाल रही है। दोनों की बातचीत चल रही है।)
रश्मि:
"दीदी, पापा जी की दवाई आपने दे दी क्या?"
अनीता (मुस्कुराते हुए):
"हाँ, अभी दी थी। रोज़ की तरह 6 बजे उठे और अखबार पढ़ने लग गए। पता नहीं इतनी सर्दी में कैसे उठ जाते हैं।"
रश्मि (हँसते हुए):
"हम तो गर्म रजाई से निकलने का नाम ही नहीं लेते… और पापा जी, जैसे आर्मी वाले हों अब भी।"
(सीन 2 – आँगन में नारायण जी अखबार पढ़ रहे हैं, समीर पास बैठा है)
नारायण जी:
"समीर, आज अखबार में देखा? हमारे स्कूल में फिर से एक शिक्षक की भर्ती निकली है। अजय को कहो आवेदन कर दे।"
समीर:
"पापा, अजय स्कूल में खुश है, लेकिन आप जैसा मार्गदर्शन तो उसको रोज़ चाहिए।"
नारायण जी (गंभीर होकर):
"हमेशा याद रखना, सरकारी नौकरी सिर्फ रोज़गार नहीं होती, वो ज़िम्मेदारी होती है।"
(सीन 3 – राहुल की एंट्री, देर से उठा है, बाल बिखरे हुए हैं)
राहुल (नींद में):
"पापा... चाय मिली क्या?"
नारायण जी (गुस्से में):
"अब सुबह के 8 बजे हैं! ये कॉलेज वाले कब सीखेंगे वक्त की कीमत!"
रश्मि (पास से बोलती है):
"पापा जी, आज उसकी क्लास लेट है। मैं देती हूँ चाय।"
नारायण जी (धीरे से मुस्कुरा कर):
"ठीक है… पर वक्त की आदत बचपन से डालो तो अच्छा होता है।"
(सीन 4 – डाइनिंग टेबल पर सभी साथ नाश्ता करते हैं)
अनीता:
"आज बच्चों को स्कूल छोड़ना है समीर, टाइम पे निकलना होगा।"
अजय (आते हुए):
"मैं छोड़ देता हूँ, वैसे भी मेरी पहली क्लास 9:30 की है।"
नारायण जी (सबकी तरफ देख कर):
"मुझे अच्छा लगता है जब तुम लोग एक-दूसरे की मदद करते हो। यही तो असली परिवार है – जहाँ हर काम बँट जाता है, और कोई बोझ नहीं लगता।"
(कैमरा धीरे-धीरे पूरे घर पर घूमता है – चाय की खुशबू, बच्चों की हँसी, और नारायण जी की संतुष्टि से भरी मुस्कान...)
नैरेटर (वॉयस ओवर):
"एक आम-सा परिवार, लेकिन रिश्तों की गरमाहट से खास। ये है नारायण परिवार – जहाँ हर दिन एक नई सीख होती है।"
एपिसोड 2: "रविवार की कहानी"
(सुबह की शुरुआत थोड़ी देर से होती है। आज रविवार है – काम का दिन नहीं, लेकिन रिश्तों को सहेजने का दिन ज़रूर।)
(सीन 1 – आँगन में नारायण जी तुलसी को पानी दे रहे हैं)
नारायण जी (खुद से बड़बड़ाते हुए):
"रविवार हो या सोमवार, दिन की शुरुआत तो नियम से ही होनी चाहिए। लेकिन ये बच्चे… आज तो सबके कमरे बंद हैं!"
(सीन 2 – अंदर कमरे में अनीता और समीर)
अनीता (समीर को जगाते हुए):
"उठिए साहब, आज तो आप छुट्टी पर हैं… बच्चों को पार्क ले जाना है ना?"
समीर (मुस्कुराते हुए):
"हाँ हाँ, लेकिन पहले चाय… और हाँ, पापा जी को साथ ले चलेंगे क्या?"
(सीन 3 – रश्मि रसोई में हलवा बना रही है, राहुल घुसता है)
राहुल (खुश होकर):
"वाह भाभी! आज तो सुबह-सुबह हलवे की खुशबू ने उठा दिया!"
रश्मि (हँसते हुए):
"रविवार है, कुछ मीठा बनाना बनता है। और तुम्हारे लिए चाय अलग से रखी है – अदरक वाली!"
(सीन 4 – सब डाइनिंग टेबल पर)
(बच्चे, समीर-अनीता, अजय-रश्मि और नारायण जी – सब एक साथ बैठे हैं। प्लेट में गरमागरम पूड़ी, हलवा और आलू की सब्ज़ी।)
अजय:
"पापा, आज पार्क चलें? बच्चे बहुत कह रहे हैं।"
नारायण जी (थोड़ा हिचकिचाते हुए):
"अब उम्र हो गई है बेटा, लेकिन हाँ… अगर तुम लोग साथ हो तो चल सकता हूँ।"
(सीन 5 – पार्क में, बच्चे खेल रहे हैं, समीर-अजय बेंच पर बैठे हैं, नारायण जी पास में ही हैं)
नारायण जी:
"तुम लोग भाग्यशाली हो, साथ रहते हो। आजकल तो हर कोई अपने-अपने रास्ते चला जाता है।"
समीर:
"पापा, हम सब आपकी ही देन हैं। आपने जो संस्कार दिए हैं, वही हमें एक साथ रखे हुए हैं।"
(बच्चे दौड़ते हुए आते हैं और नारायण जी को खींचकर झूले की तरफ ले जाते हैं। सब हँसते हैं।)
रश्मि (अनीता से धीरे से):
"पापा जी भी मुस्कुरा रहे हैं। उन्हें बाहर लाकर अच्छा लगा।"
अनीता:
"हाँ, और हमें भी। ये पल… यादों में बस जाने वाले हैं।"
नैरेटर (वॉयस ओवर):
"रविवार सिर्फ आराम का दिन नहीं होता, ये रिश्तों की मिठास को महसूस करने का दिन होता है। नारायण परिवार ने आज फिर एक साथ हँसकर जिया, जी भर के।"
एपिसोड 3: "बदलाव की आहट – समीर का ट्रांसफर"
(शुरुआत सुबह के दृश्य से होती है। समीर ऑफिस से लौटता है, चेहरे पर उलझन साफ झलक रही है। अनीता समझ जाती है कि कुछ तो बात है।)
(सीन 1 – समीर और अनीता का कमरा)
अनीता:
"क्या बात है समीर? आज कुछ परेशान लग रहे हो।"
समीर (धीरे से):
"ट्रांसफर लेटर आ गया है… अगले महीने की पहली तारीख से मुझे लखनऊ जॉइन करना होगा।"
अनीता (चौंकते हुए):
"लखनऊ? लेकिन हमारा पूरा परिवार यहीं है… बच्चे, पापा जी… हम सब कैसे मैनेज करेंगे?"
समीर (गहरी सांस लेते हुए):
"मुझे खुद समझ नहीं आ रहा कि क्या सही है… नौकरी छोड़ना भी नहीं आसान, और परिवार से अलग होना भी मुश्किल।"
(सीन 2 – डाइनिंग टेबल पर, नारायण जी सबके चेहरों पर गंभीरता देखकर पूछते हैं)
नारायण जी:
"क्या बात है, सब इतने चुप क्यों हैं?"
समीर (संकोच के साथ):
"पापा… मेरा ट्रांसफर लखनऊ हो गया है।"
(सन्नाटा। कुछ देर कोई कुछ नहीं बोलता। फिर…)
नारायण जी (शांत स्वर में):
"ये तो बहुत अच्छा अवसर है, बेटा। सरकारी नौकरी में ऐसे मौके मिलना आसान नहीं होता।"
अनीता (धीरे से):
"पर पापा, हम सब यहाँ हैं… आप भी। अकेले कैसे रहेंगे?"
नारायण जी (मुस्कुराकर):
"मैं बूढ़ा ज़रूर हो गया हूँ, लेकिन अकेला नहीं हूँ। यहाँ अजय है, रश्मि है, राहुल है… तुम चिंता मत करो। जब जिम्मेदारियाँ बुलाएँ, तो जाना ही चाहिए। यही तो सिखाया है मैंने तुम सबको।"
(सीन 3 – राहुल और अजय आपस में बात करते हैं)
राहुल:
"समीर भैया के बिना घर सूना लगेगा।"
अजय:
"हाँ… लेकिन पापा जी ने कितना सधा हुआ जवाब दिया ना? अंदर से वो भी टूटा होगा, पर बच्चों को उड़ना सिखाने वाले पंख नहीं बांधते।"
(सीन 4 – रात को समीर अपने पिता के पास बैठा है)
समीर:
"पापा, आप हमेशा इतने मज़बूत कैसे रहते हैं?"
नारायण जी:
"जब बच्चे आगे बढ़ते हैं, तो माता-पिता का काम पीछे से दुआओं की दीवार बन जाना होता है। मेरी ताकत तुम लोग ही हो, बेटा।"
(समीर नारायण जी के हाथ पकड़ लेता है… आँखों में हल्का सा आंसू…)
नैरेटर (वॉयस ओवर):
"कभी-कभी बदलाव ज़रूरी होता है, और उससे जुड़े जज़्बात भी। लेकिन जब परिवार साथ खड़ा हो, तो हर विदाई भी एक नई शुरुआत बन जाती है।"
एपिसोड 4: "बिछड़ने की चाय – दफ़्तर की आख़िरी दोपहर"
(दफ़्तर का एक साधारण कमरा, टेबलों पर फाइलें, पुरानी अलमारी, और कोने में चाय वाला। समीर अपनी कुर्सी पर बैठा है, तभी एक सहकर्मी कमरे में आता है।)
(सीन 1 – ऑफिस में समीर और उसके साथी)
शिवपाल (हँसी में):
"तो साहब, अब आप बड़े शहर के बड़े अफसर हो गए?"
समीर (मुस्कुराते हुए):
"अरे शिवपाल जी, ट्रांसफर हुआ है, प्रमोशन नहीं।"
सुनीता (सहकर्मी):
"अब कौन हमारी कॉमन टी-टाइम मीटिंग्स में मज़ेदार किस्से सुनाएगा?"
मिश्रा जी (वरिष्ठ क्लर्क):
"समीर, तुम जैसे समझदार और शांत स्वभाव के अफसर कम ही मिलते हैं। लखनऊ वालों की किस्मत खुल गई।"
(सीन 2 – कैबिन के अंदर, चाय के साथ अनौपचारिक विदाई की तैयारी चल रही है)
शिवपाल:
"यार, तुम्हारी टेबल खाली देखकर अजीब लगेगा। लेकिन एक बात है – तुम जाते-जाते एक खालीपन छोड़ जाओगे।"
समीर (थोड़ा भावुक होकर):
"आप सब मेरे सिर्फ साथी नहीं, एक परिवार जैसे बन गए थे। यहाँ मैंने काम से ज़्यादा रिश्ते कमाए हैं।"
सुनीता:
"और हाँ, हमारी आदत खराब करके जा रहे हो – अब कोई बिना चिल्लाए काम कैसे करवाएगा?"
(सब हँसते हैं)
(सीन 3 – मिश्रा जी समीर को एक पेन और डायरी भेंट करते हैं)
मिश्रा जी:
"ये छोटा सा तोहफ़ा… ताकि कभी भूल ना जाओ कि इस छोटे से दफ़्तर में भी कुछ लोग थे, जो तुम्हें दिल से चाहते थे।"
समीर (डायरी लेते हुए):
"इस दफ़्तर की यादें मेरे जीवन की सबसे कीमती पूंजी हैं। मैं इन्हें हमेशा साथ लेकर चलूँगा।"
(सीन 4 – बाहर निकलते समय, ऑफिस की घंटी बजती है – लंच ब्रेक की – लेकिन आज वो घंटी विदाई की तरह सुनाई देती है)
नैरेटर (वॉयस ओवर):
"एक दफ़्तर जहाँ हर दिन फाइलों के साथ रिश्ते भी पलते हैं… और जब कोई साथ छोड़ता है, तो सिर्फ कुर्सी खाली नहीं होती – दिल भी थोड़ा सा भर आता है।"
एपिसोड 5: "जो जाना था, वो रुक गया"
(सुबह का दृश्य – समीर अपना बैग पैक कर रहा है। अनीता बच्चों के कपड़े सहेज रही है। बाहर नारायण जी चाय पीते हुए शांत बैठे हैं, पर आँखों में थोड़ी बेचैनी है।)
(सीन 1 – समीर को फोन आता है)
समीर (फोन उठाते हुए):
"हाँ सर… जी सर… क्या? ट्रांसफर कैंसल? जी… जी सर… धन्यवाद…"
(फोन कट होते ही समीर कुछ देर खामोश रहता है। अनीता चौंककर देखती है।)
अनीता:
"क्या हुआ?"
समीर (हैरानी से):
"ट्रांसफर कैंसल हो गया… लखनऊ नहीं जाना। मैं यहीं रहूँगा।"
(सीन 2 – समीर भागते हुए आँगन में आता है)
समीर:
"पापा! एक बड़ी खबर है – मेरा ट्रांसफर रद्द हो गया है!"
नारायण जी (धीरे मुस्कुराते हुए):
"अरे वाह… भगवान ने मेरी सुनी! लेकिन बेटा, तुम दुखी तो नहीं?"
समीर:
"नहीं पापा… उल्टा अब और भी लगाव हो गया है इस जगह से। जाने का जो एहसास था, उसी ने घर की कीमत और बढ़ा दी।"
(सीन 3 – अजय, रश्मि, राहुल सब इकट्ठा हो जाते हैं)
अजय (हँसते हुए):
"भैया को गए बिना ही ‘घर वापसी’ हो गई।"
रश्मि:
"मतलब अब विदाई में रोने का सीन कैंसल?"
राहुल:
"और अब भाभी के हाथ का हलवा फिर से हर रविवार मिलेगा!"
(सब हँसते हैं। अनीता चाय लेकर आती है, सब मिलकर बैठते हैं।)
नारायण जी (गंभीर होकर):
"जाना और रुकना – दोनों ही ज़िंदगी के हिस्से हैं। लेकिन जो बदलता है, वो है हमारा नजरिया। और समीर, आज तुमने बहुत कुछ सीखा – और सिखाया भी।"
(सीन 4 – समीर ऑफिस पहुँचता है, सब साथी हैरान होते हैं)
शिवपाल (चाय का कप हाथ में):
"अरे! ये भूत नहीं है ना? ट्रांसफर कैंसल?"
समीर (हँसते हुए):
"हूँ… और अब तुम्हारी मीठी बातें और तीखी चाय, दोनों से पीछा नहीं छूटेगा।"
सुनीता:
"मतलब अब हमारी वो विदाई वाली डायरी वापसी गिफ्ट बन जाएगी!"
(सब मिलकर हँसते हैं।)
नैरेटर (वॉयस ओवर):
"कभी-कभी किस्मत हमें वहाँ लौटाती है, जहाँ से हमने सोचा था कि दूर जा रहे हैं। और वही मोड़… हमारे रिश्तों को और भी मजबूत कर जाता है।"
एपिसोड समाप्त।