भक्ति कि बहुत लंबी श्रृंखला है वेदों में कई स्थानों पर राम शब्द का उध्दरण आया है ।राम से संबंधित प्रथम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण के रूप में जन मानस द्वारा स्वीकार किया गया यही से राम काव्य कि परम्पराओ का शुभारंभ हुआ ।जिससे भारत ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व प्रभावित हुआ महर्षि वाल्मीकि भगवान श्री राम के समकालीन सीता माता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर ही लव को जन्म दिया था जिससे भगवान राम के विषय मे ब्रह्मर्षि वाल्मिकी जी द्वारा लिखित महाकाव्य के संदर्भ में संसय हो ही नही सकता ना ही किसी भी अन्य शाक्ष्य कि आवश्यकता है ।ब्रह्मर्षि वाल्मीकि के राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे जिसे भविष्य के विद्वानों द्वारा अवतार के रूप में स्वीकारोक्ति प्रदान की गई।उपनिषदों में राम को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार किया गया सोनटकजी के अनुसार अगस्त सुतीक्षण संवाद संघीता में भगवान राम के अलौकिक गुणों के वर्णन के साथ महत्व प्रदान किया गया है।आनंद रामायण ,अवधूत रामायण,युशुण्डी रामायण ,हनुमत संघीता ,राघोल्लास, आदि ग्रंथों में राम कथा की धार्मिक एव दार्शनिक व्यख्या प्रस्तुत की गई है ।वाराह ,अग्नि ,लिंग, वामन,ब्रह्म,गरुण, स्कंध ,पद्मावर्त पुराणों में राम कथा के अनेक प्रसंग दृष्टीगोचर होते है बौद्ध जैन आदि ग्रंथों में भी राम कथा का प्रसंग है धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त अन्य संस्कृत ,प्राकृत ,अपभ्रंस साहित्य में राम कथा कि सुदीर्घ् परंपरा रही है।ब्रह्मर्षि वाल्मीकि के बाद राम भक्ति कि काव्य धारा का निरन्तर प्रवाह बिभिन्न सन्तो द्वारा किया गया ।राम कथा का उद्भव वाल्मीकि रामायण से ही शुरू हुआ तत्पश्चात रामभक्त रामानन्द द्वारा विकसित होकर तुलसी के रामचरित मानस द्वारा हिंदी भक्ति साहित्य में प्रसारित प्रवाहित हुआ। वाल्मिकी जो अपने जीवन काल मे असमाजिक कार्यो में लिप्त थे महर्षियों के द्वारा उन्हें जीवन कि दिशा दृष्टि प्राप्त हुई और कठिन तपस्या द्वारा उन्होंने ब्रह्मर्षि पद प्राप्त कर भक्ति ज्ञान कि ज्योति प्रज्वलित की और वाल्मीकि रामायण कि रचना किया।तुलसीदास से पूर्व विष्णुदास ,अग्रदास ,ईश्वर दास आदि ने भी रामकथा लिखी है लेकिन काव्य के मुख्य प्रवर्तक तुलसी ही थे।भक्ति काल हिंदी सगुण भक्ति काव्य के अंतर्गत राम भक्ति काव्य के प्रमुख प्रवर्तक तुलसीदास जी है ।इसके अतिरिक्त अग्रदास, ईश्वर दास ,जसवंत,नाभादास,केशवदास, प्राण चंद चौहान आदि प्रमुख है।(क) महाकवि तुलसीदास--तुलसी दास जी के जन्म के विषय मे विद्वानों में मतभेद है फिर भी तुलसी दास जी कि जन्मतिथि सन 1532 युक्तिसंगत प्रतीत होती है जन्म स्थान राजापुर पिता का नाम आत्माराम दुबे एव माता का नाम हुलसी बताया गया है दीन बन्धु पाठक कि कन्या रत्नावली से तुलसी दास जी का विवाह हुआ था ।बचपन विपन्नता में बीता एक किविदन्ति के अनुसार तुलसी दास जी का जन्म बारह माह गर्भ में रहने के उपरांत हुआ जब तुलसी का जन्म हुआ उस समय दांत एव बड़े बड़े केश थे जिसे अशुभ मानते हुए माता पिता द्वारा तुलसी दास का त्याग कर दिया गयादूसरी किवितंति के अनुसार तुलसीदास के जन्म के पश्चात माता पिता कि मृत्य हो जाने के बाद तुलसी का लालन पालन दासी द्वारा किया गया ।निष्कर्ष यही है कि तुलसीदास जी का बचपन बहुत ही विपन्नताओं एव कठिन संघषों के दौर से गुजरा ।दूसरे मत के अनुसार तुलसीदास का भरण पोषण माता पिता द्वारा त्यागे जाने के बाद नरहरि दास जी द्वारा किया गया और ज्ञान भक्ति कि शिक्षा दी गयी ।अल्पायु में ही विवाह दीनबंधु पाठक कि कन्या रत्नावली से हुआ एव संतान प्राप्ति हुई जिसकी मृत्यु हो गयी पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्ति के कारण किसी भी परिस्थितियों में पत्नी प्रेम पिपासु तुलसी दास जी को पत्नी ने ही वास्तव में भक्ति का मार्ग दिखाया जिसे कुछ इस प्रकार से वर्णित किया गया है पत्नी रत्नावली ने तुलसीदास के अत्यधिक आशक्ति का परिहास उड़ाते कहा# हाड़ मांस के देह से ताते ऐसी प्रीत होती जो श्री राम से होत भय भव भीत# # लाज आहुआपको दौरे आयहु साथ# पत्नी के तिरस्कार के बाद तुलसी दास दाम्पत्य जीवन से विमुख होकर प्रभु भक्ति में लीन हुए तीर्थयात्राए किया अंत मे काशी को अपना स्थाई निवास बनाया यही से साहित्य सृजना का आरंभ तुलसीदास जी द्वारा किया गया गुरु नरहरिदास जी द्वारा ही राम कथा सुनाकर राम भक्ति के लिए तुलसीदास को प्रेरित किया गया ।किवदन्तियां- यह भी कहा जाता है कि तुलसी दास जी कि प्रेत से मुलाकात हुई जिसने उन्हें बताया कि काशी में हनुमान जी कोढ़ी के वेष में प्रतिदिन रामकथा सुनने आते है वहाँ जाए हनुमान जी ही उन्हें भगवान राम के मिलने का मार्ग बताएंगे तुलसी दास जी नित्य राम कथा श्रवण करने हेतु काशी में अस्सी घाट पर जाते वहाँ जीर्ण सिर्ण बूढ़ा व्यक्ति सबसे पीछे कथा सुनने आता और कथा सुनकर चला जाता एक दिन तुलसी दास जी के हठ करने पर उस कोढ़ी बृद्ध द्वारा अपना वास्तविक रूप राम भक्त हनुमान के रूप में दिखाया गया और बताया गया कि चित्रकूट में भगवान राम से मुलाकात होगी जिसका उद्धरण कुछ इस प्रकार है# चित्रकूट के घाट पर भई संतन के भीड़ तुलसी दास चंदन घिसत तिलक देत रघुबीर#उक्त किविदंति के साक्ष्य तो नही है लेकिन उल्लेख अवश्य मिलते है।कुल बारह ग्रंथो कि रचना तुलसी दास जी द्वारा कि गई जो इस प्रकार है- वैराग्य सांदीपनि, रामाज्ञा प्रश्न,राम लला नहछू,जानकी मंगल,रामचरित मानस,पार्वती मंगल,कृष्ण गीतावली, विनयपत्रिका, दोहावली,वरेण्य रामायण और कवितावलीवैराग्य संदीपनी संत महिमा का वर्णन है जानकी मंगल राम जनकी विवाह प्रसंग ,पार्वती मंगल पार्वती जन्म एव विवाह प्रसंग ,कृष्ण गीतावली में भगवान श्री कृष्ण कि बाल लीलाओं एव गोपियों विरह प्रसंग का वर्णन है ,विनय पत्रिका भगवान राम के प्रति भक्ति का वर्णन है ,कवितावली कवित्त शैली में लिखा गया कविता संग्रह है ,रामचरित मानस भगवान श्री राम के चरित्रों का वर्णन है ।निश्चित रूप से किसी भी कवि लेखक के लेखन में उसके समकालीन परिस्थितियों का प्रभाव पड़ना लेखन कि वास्तविकता को प्रमाणित करता है तुलसीदास जी के लेखन पर भी यही सत्य परिलक्षित होता है गोस्वामी तुलसीदास जी का समय काल समाज नैतिक धार्मिक सांस्कृतिक आर्थिक रूप से एव सनातन कि दृष्टिकोण से ह्रासोन्मुख था जिसे गोस्वामी जी ने वर्णित किया है ।#गोड़ गंवार नृपाल महि यवन महामहिपाल साम न दाम न भेद कलि केवल दण्ड कराल#तुलसी दास जी ने अपने काल के उच्च वर्ग शासक वर्ग कि विलासिता जाती पांति कि कठोर प्रथा मुस्लिम शासकों के अत्याचार धार्मिक ह्रास आर्थिक विपन्नता पर अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से लिखा है-# खेती न किसान को भिखारी को न भीख बलि बनिक को न बनिज न चाकर को चाकरी#गोस्वामी तुलसीदास जी का स्प्ष्ट मत है कि सभ्य एव अच्छे समाज राष्ट्र के लिए वर्ण व्यवस्था होना आवश्यक है।#वर्णाश्रम निज निज धरम निरत वेद पथ लोग तल ही सदा पावहि सुख जाहि भय सोक न रोग#गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में लोक भाषाओं को ही महत्व दिया है पूर्वी पश्चिमी अवधि पर समान अधिकार परिलक्षित है कहीं कहीं ब्रज भाषा का भी प्रयोग मिलता है संस्कृत पण्डित होने के कारण पदावली कि मधुर झंकार है।गोस्वामी जी ने अपनी रचनाशैली महाकाव्य मुक्तक गीति का प्रयोग किया है।तुलसीदास के सम्पूर्ण साहित्य में समन्वय भवनाओं का प्रयोग है डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है - #गोस्वामी जी का सारा काव्य विरोह कि चेष्टा है लोक एव शास्त्र का समन्वय गृहस्थ एव बैराग्य का समन्वय भक्ति एव ज्ञान का समन्वय भाषा और संस्कृति का समन्वय निर्गुण एव सगुण समन्वय कथा एव तत्वज्ञान समन्वय पण्डित एव पांडित्य रामचरित मानस शुरू से आखिर तक समन्वय काव्य है और गोस्वामी तुलसीदास जी जनचेतना के नायक(ख) स्वामी रामानंद--स्वामी रामानंद जी के जन्म के विषय मे भी स्प्ष्ट प्रमाण उपलब्ध नही है फिर भी उनके जन्म को 1400 से 1470 ईस्वी काशी में माना गया है रामानन्द जी द्वारा वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य राघवानंद जी द्वारा दीक्षा ग्रहण कि गयी वर्णाश्रम में आस्था रखने वाले रामानंद जी द्वारा भक्ति मार्ग में सभी को समान मानते हुये निन्म वर्ग के लोंगो को अपना शिष्यत्व प्रदान किया गया रामानन्द जी के शिष्यों में कबीर ,रैदास ,धन्ना ,पीपा आदि प्रमुख थे ।संस्कृति के पण्डित स्वामी रामानंद के द्वारा वैष्णव मताबाद भाष्कर,और श्री रामार्जुन पद्धति प्रमुख ग्रंधो को लिखा गोस्वामी तुलसी दास जी भी इनके विचारधारा से प्रभावित रहे।रामानन्द जी द्वारा हिंदी में हनुमान जी कि आरती लखी गयी है।#आरती कीजे हनुमान लला कि दुष्ट दलन हनुमान कला कि#(ग)स्वामी अग्रदास जी --- स्वामी रामानंद जी कि संत परंपरा के राम भक्त कवि स्वामी अग्रदास द्वारा कृष्णदास पयहरी से दीक्षा लेकर शिष्यत्व ग्रहण किया गया अग्रदास जी के शिष्य भक्त माल रचयिता नाभादास जी थे कृष्ण दास पयहारी जी जयपुर के निकट गलता नामक स्थान में अपनी गद्दी स्थापित की अग्रदास जी 1566 मे गलता गद्दी पर विराजमान थे।अग्रदास जी द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ ध्यान मंजरी, आष्टायाम,हितोपदेश उपखांर्ण बावनी ,राम भजन मंजरी,उपासना बावनी,कुंडलनिया आदि है ।पदों रचनाओं के पढ़ने के बाद रचयिता के उच्चस्तरीय साहित्य ज्ञान का सत्यार्थ मिलता है।पद-#पहरे राम तुम्हारे सोवत ।मैं मतिमन्द अंध नही जोवत तिनकों निरखि प्रकाश लज़त राकेश दिनेसा#अग्र दास जी ने अग्रअली स्वंय को जानकी सखा मानकर काव्य रचनाएं कि है रामाष्टयाय सीता वल्लभ दैनिक लीलाओं का सुंदर चित्रण अग्रदास जी द्वारा किया गया है।(घ)नाभादास जी-- नाभादास जी तुलसीदास जी के समकालीन रामभक्त कवि थे संवत 1657 के लगभग नाभादास जी के वर्तमान को माना जाता है नाभादास जी अग्रदास जी के शिष्य थे ।नाभादास जी का प्रसिद्ध ग्रंथ भक्त माल सम्वत 1642 के आस पास लिखा गया और प्रियदास जी ने उसकी टिका लिखी ।नाभादास जी की अष्टयाम कि रचना रसिक भवनाओं से ओतप्रोत है जिसमे राम कि लीलाओं का वर्णन है।(च)ईश्वर दास--ईश्वर दास जी का जन्म 1480 माना जाता है ।ईश्वर दास जी कि सुप्रसिद्ध कृति सत्यवती कथा है जिसका रचनाकाल 1501ईसवी है ।रामकथा से सम्बंधित ईश्वर दास जी कि भरत मिलाप और अंगद पैर है ।भरत मिलाप में राम वनगमन के उपरांत भरत राम भेंट को मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया गया है यह एक प्रसंग काव्य है ।ईश्वर दास जी कि दूसरी रचना अंगद पैर रावण सभा में अंगद के पैर जमाकर चुनौती को वीर रस भाँवो में वर्णित किया गया है।(छ)केशव दास--केशव दास जी का जन्म 1555 ईस्वी में एव मृत्यु 1617 ईसवी में हुआ केशव दास जी द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथो में कवि प्रिया, रसिकप्रिया, रामचन्द्रिका, वीरसिंह चरित्र, विज्ञान गीता,रतन वावनी और जहांगीर जस्चन्द्रिका आदि है ।केशवदास जी कि राम चंद्रिका 1601राम काव्य परंपरा के अंतर्गत प्रमुख कृति है।उक्त संत कवियों के अतिरिक्त रामकाव्य लिखने वाले अन्य कवि प्राण चंद चौहान कृत रामायण महानाटक सेनापत्रिकृत रत्नाकर,कपूरचंद कृत रामायण आदि रचनाएं प्रमुख है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।