हर आदमी की जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जिन्हें वह आजीवन नही भूलता।वो पल उसके दिल मे हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं।
यह सिर्फ मेरी बात नही है।हर एक की।आपकी जिंदगी के भी ऐसे पल होंगे जो हमेशा आपको गुदगुदाते होंगे।याद आते होंगे।वैसे तो याद रखने लायक अच्छे और बुरे दोनों पल होते हैं।लेकिन गुदगुदाते हसीन पल ही है।जिनकी याद दिल मे अमिट होती है।
यह पल घर या बाहर के हो सकते हैं।मेरे जीवन मे भी ऐसे पल आये हैं।उन पलों को कैसे भूल सकता हूँ।यहां मैं बात अपने दाम्पत्य या जीवन साथी की कर रहा हूँ।एक मैं पहले यह बता दूं कि हर कोई चाहे लड़का हो या लड़की अपने भावी जीवन साथी के बारे में सोचने लगता है या सपने देखने लगता है।मैने भी शायद देखा हो।यह तो अच्छी तरह याद नहीं लेकिन यह याद है, जब लडक़ी देखने गया था।
उस समय ज्यादा प्रचलन नही था।मां बाप ही देखते औऱ तय कर लेते थे।लेकिन मेरे पिता का देहांत हो चुका था औऱ मेरी शादी की जिम्मेदारी मेरे तीसरे नम्बर के ताऊजी पर थी।असल मे हमारे खानदान मे इस तरह के काम उनके ही जिम्मे थे।
उन दिनों में मोबाइल तो थे नही।लेंड लाइन भी हरेक के पास नही होते थे।सो सूचना नही दी जा सकती थी।अचानक ताऊजी के कहने पर बिना कोई सूचना जाना पड़ा।यह जरूर है ताऊजी ने एक पत्र जरूर दिया था।जिसे लेकर मैं अपने भाई के साथ लडक़ी के देखने गया था।
लडक़ी मतलब अब पत्नी उसे मालूम नहीं था कि हम उसे देखने आए हैं इसलिय वह उसी तरह घूम रही थी क्वाटर में जैसे रोज रहती होगी।और इस बात को50 साल से ज्यादा हो गए है लेकिन उसकी वो तस्वीर आज भी ज्यो की त्यों मौजूद हैं।
और दूसरा दिन जो यादगार है24 जून 73 समय था वरमाला का।पहली बार दुल्हन आपके भावी जीवन साथी को देखने का अवसर मिलता है।फर्क था लेकिन उस समय वह बिना किसी मेकअप के थी।लेकिन अब वह मेकअप में थी और उस साड़ी में जो मैने पसन्द की थी।नारंगी कलर की आज भी हमारे पास है।
वह वास्तव में बहुत सुंदर लग रही थी।और उसका वो रूप आज भी मेरे जेहन में बसा हुआ है।उस रूप को मैं नही भूलूंगा।
और तीसरा दिन
24 जून की शादी थी और 25 जून को बारात तो ट्रेन से आई थी।हमे जीप से भेजा गया था।जीप में पीछे की सीट पर आमने सामने मैं और दुल्हन बैठी थी।
आगे ताऊजी औऱ आगे बहनोई राम नरेश।जीप का रास्ता बांदीकुई होकर था।यहां बड़े ताऊजी का घर था।ताऊजी वहाँ उतर गए और ताई पानी लेकर आई थी।मैने पूछा था"पानी पियोगी।"
उसने मना कर दिया था।और 25 जून की रात।खाना खाने के बाद खानदानी परम्परा के अनुसार हमे रात अपने गुलदेवता के सामने बैठकर निकालनी थी।परिवार, मोहल्ले की औरते देवता के गीत गाती हैं।दुल्हन को तो रात को बैठा दिया गया लेकिन मैं नही मिल रहा था।मैं बैठना नही चाहता था।लेकिन मेरी कजिन मुझे ढूंढकर ले आयी थी और देवता के पूजा रूम में छोड़ गई थी।मममुझे बैठता न देखकर वह बोली,"बैठ जाओ।"
"मुझे नही बैठना है।",मेरी बात सुनकर वह बोली थी,"मैं कह रही हूँ बैठ जाओ।,
औऱ मुझे बेठन पड़ा था