इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ ज़बरदस्ती के रिश्ते हैं। पाठकों, यदि आप आघात नहीं चाहते तो इसे छोड़ दें।
रहस्य
उसकी चेतना एक शिशु की तरह सो गई, लेकिन उसका शरीर नहीं। उसके शरीर में परिवर्तन होने लगे। जिस स्थान पर उसने काले गुलाब के रस का रस, उसके खून और अनजान रक्त के मिश्रण को सील बँद किया था वहाँ मच्छर के काटने जैसा धब्बा बन गया जो सवेरे होते हुए थोड़ा धब गया।
सुबह वृषाली कंधे दर्द के साथ उठी। वह अपने हाथ को मसलने वाले ही हो रही थी कि उसकी नर्स दिशा वहाँ आई, "मीरा। ऐसे नहीं। अपने हाथ को तकिये का सहारा देकर रखो।", वह भागकर उसके पाह गयी, "दर्द कहाँ है?",
"दाहिना कंधा पर।", उसने अपनी गर्दन पर हाथ रखकर कहा,
उसने उसके कंधे को देखा। दांई तरफ एक काला धब्बा दिखा जो नसों की तरह फैला हुआ था। उसने चौंककर उसकी कमीज़ निकाली। उसने उस धब्बे को दबाया।
"आह!", वह दर्द से करहाई,
उसके कंधे से काला रंग का गाढ़ा द्रव्य निकला। नर्स दिशा ने उसे निकालने के लिए थोड़ा ज़ोर लगाया। उसे सौ तेज़ खंजर घोपने जैसा दर्द लगा। वह पीड़ा में चिल्लाई। असहनीय दर्द के कारण उसने नर्स को पीछे धक्का मार दिया जिससे वो दो कदम पीछे गिरी और वृषाली अपना हाथ पकड़कर दर्द से रोई जा रही थी। उसका हाथ भट्टी की तरह धधक रहा था।
नर्स तुरंत ऐक्शन में आई।
उसने वृषाली से कहा, "बस एक बार ये तरल निकल जाए।",
उसने उसे हैडबोर्ड का सहारा ले बिठा दिया और उसके हाथों के नीचे दो तकिये रखे जिससे उसे थोड़ा आराम मिल सके। वृषाली असहनीय दर्द से रोए जा रही थी।
"बस कुछ पल और।", कह वह बिस्तर पर चढ़ उसे पकड़ने के लिए एक तकिया दिया। उसने तकिये को अपनी छाती से कसकर पकड़ लिया और दर्द सहते हुए अपनी आँखें बँद कर लीं। उसकी दाहिनी ओर से नर्स ने उस काले बहते तरल पदार्थ पर अपनी उंगली फेरी। वृषाली को हल्के से स्पर्श मात्र से ही पीड़ा से तड़पी।
"बस एक मिनट। एक मिनट।", उसने सांत्वना दिया,
उसने उसे छुआ।
"आह!", वह दर्द से करहाई,
वह कठोर होने लगा।
"बस हो गया। मीरा मुझे पता है कि तुम असहनीय दर्द में हो पर थोड़ा धैर्य और रखो। तकिये को कसकर पकड़ो और अपनी बँद करो। गहरी साँस लो।",
वृषाली ने दाँतो से अपने होंठ को दबा लिया, "मम्म!"।
उसने तुरंत ही सारा तरल पदार्थ बाहर निकालने के लिए ज़ोर से दबाया। काला गाढ़ा तरल एक सेकंड में ठोस हो गया। एक छोटा सा बड़ा रेत का दाना काले मणि की तरह बाहर आया। वह असमंजस में रुक गई।
"अच्छा। बस थोड़ा सा और।", उसने उसके सिर पर थपथपाया,
वृषाली लगभग बेहोश हो गई थी और उसका दर्द और भी बढ़ गया। उसके दाँत उसके होठों में गहराई तक गढ़ गये।
"अब!",
उसने फिर ज़ोर से दबाया। इस बार गुलाबी जेली जैसा पदार्थ बाहर आया...मांसपेशियों की तरह। वह घबरा कर रुक गई। जैसे वह तरल पदार्थ प्रकट हुआ, वैसे ही वह गायब हो गया। वह असमंजस में पड़ गई। वह काला पदार्थ अभी भी वहाँ था। उसने उस क्षेत्र को साफ़ किया और स्वच्छ किया। हैरान होकर उसने काले दानों को सुरक्षित तरीके से उठाया और एक जीवाणुरहित जार में भर दिया। फिर उसने वृषाली की जाँच की। वह दर्द और तनाव से बेहोश हो गई थी। उसने उसकी नाड़ी और साँस की जाँच की। वह तेज़ थी। उसने एक-दो मिनट तक इंतजार किया, धीरे-धीरे सामान्य हो गई। उसने राहत की साँस ली। उसने उसके होंठ पोंछे। उसके होठों पर दाँतों के निशान रह गये। उसने उसका शरीर चादर से ढक लिया। उसने निर्देशानुसार अधीर को बुलाया।
"...यह वह काली चीज़ है। मुझे उसका शरीर पोंछने के लिए एक सहायक की आवश्यकता है।", उसने वह देकर पूछा,
"ठीक है।", उसने एक सहायक को उसकी सहायता करने का आदेश दिया।
उन्होंने उसके शरीर को पोंछा और उसे गर्म कपड़े पहनाए। उसका शरीर बर्फ सा ठंडा था।
इस बीच अधीर उस जार के साथ समीर के घर कार्यालय में गया।
"यही वह चीज़ है जो उसने निकाली है।", उसने उसे जार दिया,
उसने जार को बहुत सावधानी और सटीकता से जाँचा। उसने जार खोला। खून और गुलाब के मिश्रण की हल्की गंध उसकी नाक में गई। फिर सावधानीपूर्वक उसने चिमटी से एक दाना निकाला। उसने अपनी उंगलियों से उसे कुचलने कि कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर उसने अपनी हथेली की गर्मी से दाने को गर्म किया, कुछ नहीं हुआ। फिर उसने अपनी लार का इस्तेमाल किया, वह पिघल गई और पीछे गुलाबी रंग का पानी रह गया जो सिर्फ उसे दिखाई दिया।
वह पूरी तरह से पागल हो गया था। उसने अधीर की ओर देखा, "इस प्लेट पर थूको।", उसने आदेश दिया, अधीर अनिच्छुक था, लेकिन उसके स्वभाव को जानते हुए उसने दी गई प्लेट पर थूक दिया और उसे दे दिया।
समीर ने फिर उस थूक को दो अलग-अलग प्लेटों में बाँटा।
थूक पर एक और ताज़ा दाना डाला।
कुछ नहीं हुआ लेकिन जब उसने गुलाबी रंग की थूक वाली पहली प्लेट पर अधीर की थूक डाली तो वह चमकीली नीली हो गई। इससे वह उत्साह से उछल पड़ा। उसने अपनी दराज से कुछ निकाला और जल्दी से उसके कमरे की ओर भागा। उसे अपनी सत्ता की प्यास बुझाने का सबसे अच्छा तरीका मिल गया जिसमे उसे कवच की आवश्यकता नहीं थी।
वह अंदर घुस आया।
डरी हुई नर्स दिशा ने समझाने कि कोशिश की, "उसे तेज़ बुखार है। उसे आपातकालीन उपचार की आवश्यकता हो सकती है और वहाँ जेली जैसा पदार्थ है-", उसने समीर को टिश्यू दिखाए। इससे पहले कि वह आगे कुछ बता पाती, उसने उसे कमरे से बाहर निकाल दिया।
वह उत्साहित होकर उसके पास गया, उसकी अंगूठी देखी, वह लाल थी। उसने उसकी अंगूठी छूने कि कोशिश की। कुछ नहीं हुआ लेकिन जैसे ही उसने अंगूठी निकालने की कोशिश की, इसने उसकी एक चौथाई ऊर्जा छीन ली और पीछे दीवार पर पटक कर फेंक दिया। यह देखकर वह चौंक गया। फिर उसने लॉकेट की जाँच करनी चाही पर फिर से उस अंगूठी ने नकार कर बिजली का झटका दिया। वह चिढ़ गया लेकिन अपने लक्ष्य के लिए उसने अपना धैर्य बनाए रखा। उसे बस उसे और अधिक कमज़ोर करने की ज़रूरत थी, इस बार शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से। उसकी योजना कुछ ही सेकंड में उसके दिमाग में तैयार हो गई। उसने अपना फोन उठाया और बिना किसी को बताए बाहर चला गया। इससे अधीर और ज़ंजीर के मन में कई सवाल उठने लगे।
नर्स दिशा को जैसे ही अनुमति मिली वह अंदर भागी। उसने देखा कि कही उसे किसी विशेष देखभाल की आवश्यकता तो नहीं। अधीर अपने सवालों के जवाब जानने के लिए आया था। हालांकि वह समीर बिजलानी का दाहिना हाथ था, लेकिन वह इस तथ्य से अनजान रखा गया कि शक्ति जैसे विशेष समुदाय भी उसी दुनिया में रहते हैं, जिसमें सामान्य लोग रहते हैं, वही सामान्य सपने और संघर्ष के साथ।
रात को समीर के निर्देश पर स्वेटर और कम्बल ओढ़ वृषाली को लिविंग रूम में बैठने के लिए मज़बूर किया गया था। समीर की ऊर्जा के कारण वह सुबह से अब काफी बेहतर थी। सुबह उठने पर उसे पिछली यातनाओं का दर्द ही महसूस हो रहा था। वह सोफे पर वह उसे खून से नहाया हुआ देखकर दंग रह गई। वह खून से सना हुआ था। झटके से उसके हाथ ढीले पड़ गए और उसका कम्बल खिसक कर नीचे उसका बैंगनी स्वेटर दिखने लगा।
आस-पास के नौकर चुप हो गए।
किसी ने कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की।
वह अचानक अस्थिर हो गया, चलने में परेशानी होने लगी। वह उसके पैंरो के सामने आकर गया। वह चौंक गई। लंगड़ाते हुए शरीर के साथ वह उसे देखने के लिए बैठ गई, "मिस्टर बिजलानी? मिस्टर बिजलानी क्या आप ठीक हैं?", उसने उसका शरीर हिलाया,
वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था।
"कृपया कोई मदद करें, मिस्टर बिजलानी बेहोश हो गए हैं।", अचानक, जो नौकर उसके साथ थे और उसे अजीब निगाहों से देख रहे थे, वे सभी आश्चर्यजनक रूप से एक साथ गायब हो गए। वह खून से लथपथ एक बेहोश अधेड़ उम्र के आदमी के साथ अकेली रह गई थी। उसने उसके शरीर को पलटने कि कोशिश की ताकि वह ठीक से साँस ले सके। समीर ने जानबूझकर यह सुनिश्चित किया कि वह बिना जाने उसके गले का लॉकेट छू ले। उसे घुमाते समय उसने वृषाली के लॉकेट को छुआ, उसे उसमें एक कमज़ोर ऊर्जा का अहसास हुआ। अपनी चिंताओं को स्पष्ट करने के लिए फिर से उसने उसके लॉकेट के रत्न को छुआ। उसे फिर से सुबह जैसा ही झटका लगा लेकिन उसे वह जानकारी मिल गई जिसकी उसे ज़रूरत थी, रत्न की ऊर्जा विभिन्न रंगों जैसे हरे, गुलाबी और नीले का मिश्रण थी और इसमें दो रंग छूट गए जो थे लाल और भूरे। उसे भूरे रंग का स्त्रोत पता था बस लाल को खोजना बाकि था।
झटके से उसका हाथ झुलस गया। उसी समय अधीर और ज़ंजीर मौके पर आ गए। ज़ंजीर ने समीर को उसके कमरे में ले जाने के लिए कंधे पर उठाया, अधीर उसे ले गया। ज़ंजीर ने वृषाली को खड़े होने में मदद की। "तुम ठीक हो?", उसने पूछा,
उसने हाँ में सिर हिलाया।
फिर वह उसे उसके कमरे में ले गया।
चलते-चलते उसने बाते शुरू कर दी,
" 'दीवारों के कान होते हैं!', मुझे वह किताब बहुत पसंद है, तुम्हें भी इसे एक बार ज़रूर पढ़ना चाहिए। 'खतरे और बचाव आपके बगल में छिपे हो सकते हैं।' मुझे भी वह किताब भी पसंद थी। पर मुझे एक भी कभी पूरी पढ़ने नहीं मिली।", उसने हँसते हुए कहा,
"क्यों?", वृषाली ने पूछा,
"मेरी भाग्यवान थी ना! मुझे कभी कोई किताब पूरी पढ़ने ही नहीं देती। दवाइयाँ खाने और सोने के लिए मज़बूर टोकती रहती थी।", वह अपने भार्या के बारे में शिकायत करने लगा,
"वो आपकी चिंता कर रही थी।", उसने मुस्कुराते हुए कहा,
"हाँ भाई! अब तुम भी लो उसकी साइड। वैसे मुझे वह नारंगी वाली दवाई विशेष रूप से नापसंद थी, उसका स्वाद कड़वा है, पर उस हरियाली से तो बढ़िया था।
पीला इधर-उधर था पर लाल खतरनाक था।", उसने उसे कमरे के बाहर छोड़ा,
"धन्यवाद ज़ंजीर जी।", उसने दरवाज़ा खोलते हुए कहा,
"कोई बात नहीं। किताब पढ़ने का मज़ा तो उजाले में ही आता है।", कह वो निकल गया।
कुछ देर बाद नर्स उसकी दवाइयाँ लेकर आई।
पाँच टेबलेट, पीली, गुलाबी, केसरी, नारंगी, हरी, सफेद रंग की, बिना किसी लेबल के।
"ले लो इन्हें।", उसने उसे दवा पकड़ाई,
"क्या मैं इसे बाद में खा सकती हूँ? उल्टी जैसा लग रहा है।", उसने दवा बगल में रखी,
"ठीक है। मैं बाद में आकर तुम्हारा हालचाल पूछूँगी।", वह बाहर चली गई,
वह सोफे पर बैठ गई और उल्टी से अपना ध्यान हटाने के लिए किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करने लगी। वह दीवारों और छतों को घूरते हुए बार-बार ऐसा चेहरा बनाती थी जैसे उसे उल्टी आ रही हो। दस-बीस मिनट तक घूरने के बाद जब उसे आराम महसूस हुआ तो वह उठी और सभी बोतलों से एक-एक गोली निकाली और एक-एक करके पी गई हरे को छोड़कर। उसे दिन में तीन बार सभी की एक-एक गोलियाँ लेनी पड़ती थीं।
बदलाव जानने के लिए वह हर रोज़ एक रंग की गोली लेना छोड़ देती। उसने हर रंग की गोली के साथ ये प्रयोग किया। उसने देखा कि ज़ंजीर ने जिस रंग की ओर इशारा किया था, उसके सेवन से वह बेचैन रहती थी और उसका दिमाग धुंधला रहता था।
दोपहर को जब दिशा उसे दवा दे रही थी,
"इस पीली गोली का काम क्या है?", उसने पीले रंग की टैबलेट की ओर इशारा करते हुए पूछा,
"यह कुछ भी नहीं है। यह आपके स्वास्थ्य के लिए है।", उसने कहा,
"लेकिन किसलिए। उसे नहीं लगता ये काम कर रही है। ये दवाएँ मुझे सुस्त महसूस कराती हैं।", उसने शिकायत की,
वह गुस्सा हो गई थी। उसने उसके सवाल को अनसुना करते हुए कहा, "यह आपके तंत्रिका तंत्र के लिए है। ज़हर और ड्रग्स ने आपके शरीर को बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है। आपके दैनिक कार्यों के लिए यह आवश्यक है।",
इसके बाद वह चुप हो गई, उसने नारंगी और हरे रंग की गोलियाँ लेना बँद कर दिया और उन्हें हर बार फ्लश कर दिया। उसे मोर्स कोड के रूप में दूसरों के सामने कैसे व्यवहार करना है, इसका संकेत मिलता था। उसे हर सुबह काढ़े का प्याला मिलता था जिसे वह अस्वीकार नहीं कर सकती थी। यह उसे ऊर्जा पुनः प्राप्त करने में मदद करने के लिए आयुर्वेदिक मिश्रण था। हर दिन उसे लाल या पीला रंग का कप मिलता था। लाल का मतलब था बदतर, पीला का मतलब था हल्का, जैसा ज़ंजीर ने कहा था। उसने अपनी हालत उसी के अनुसार बना ली। उसने स बात का वही अर्थ निकाला था।
इस तरह दो महीने बीत गए।
उसने अपने कमरे के हर अजीब विवरण पर ध्यान दिया। उसने पाया कि उसके कमरे में हर जगह कैमरे लगे हुए थे और कमरे के हर कोने उनके सामने था। इससे उसकी पुरानी याद ताज़ा हो गईं, उस समय तो उसके साथ सका भैय्या र कवच था लेकिन अब.... अब वह समीर की कठपुतली थी। कैमरो को अनदेखा कर जीती थी। उसके पुनर्वास से लेकर दैनिक दिनचर्या तक समीर तय करता था। उसके साथ नाश्ता करना प्रथागत था, आज का दिन हमेशा की तरह ही था। नाश्ते के बाद अधीर एक सहायक के साथ कुछ व्यावसायिक कपड़े, जींस और शर्ट और ब्लेज़र लेकर उसके पास आया।
"तैयार हो जाओ।", उसने आदेश दिया,
जैसा उसने कहा था, वह तैयार हो गई, फिर उसने उसे कार में बैठने का आदेश दिया। यह एक लंबी यात्रा थी जो एक इमारत के सामने समाप्त हुई।