पंचतंत्र से प्रभावित आज की कहानी _
जंगलग्राम
जंगल में इन दिनों "जंगलग्राम" का खुमार छाया हुआ था। सब जानवर अपनी तस्वीरें, वीडियो और विचार शेयर करने में व्यस्त थे। और लोमड़ी लुब्धिका ने इसे एक सुनहरा अवसर समझकर अपनी "वर्चुअल मार्केटिंग कंपनी" शुरू कर दी।
मायाजाल की शुरुआत
हिरण हिरनी अपने साधारण घास से खुश थी, लेकिन लुब्धिका ने उसे समझाया कि असली रॉयल्टी तो "ग्लोइंग ग्रीन ग्रास" खाने में है, जिससे वह और आकर्षक दिखेगी।
खरगोश को "सुपर स्पीड शूज" बेच दिए गए—"अगर जंगलग्राम पर तेज़ दौड़ते हुए वीडियो नहीं डाले, तो कौन मानेगा कि तुम सबसे तेज़ हो?"
शेर को भी "रॉयल रोर माइक्रोफोन" खरीदना पड़ा—"बिना माइक्रोफोन के दहाड़ लोग सुनेंगे ही नहीं!"
धीरे-धीरे, जंगल के सारे जानवर इस मायाजाल में फँस गए। सबकी असली ज़रूरतें पीछे छूट गईं, और दिखावे की दुनिया हावी हो गई।
बंदर बबलू का विद्रोह
बंदर बबलू को यह सब देखकर शक हुआ। उसने जंगलग्राम पर एक वीडियो डाला:
"दोस्तों, क्या हमें सच में इन चीज़ों की ज़रूरत है, या हमें ऐसा महसूस कराया जा रहा है?"
वीडियो जंगल में आग की तरह फैल गया। लेकिन लुब्धिका भी होशियार थी। उसने अफवाह फैला दी—
"बबलू दरअसल इसलिए बोल रहा है, क्योंकि उसकी खुद की कोई कंपनी नहीं चल रही! जलन हो रही है इसे!"
अब जंगल दो हिस्सों में बंट गया। कुछ जानवर बबलू को सपोर्ट करने लगे, तो कुछ ने उसे "नेगेटिव एनर्जी" कहकर ब्लॉक कर दिया।
साजिश का जाल
एक दिन, बबलू के पास हाथी बलराम आया।
"बबलू, मुझे लगता है तुम सही कह रहे हो, लेकिन हमारे पास कोई सबूत नहीं है। अगर सच में यह सामान सिर्फ दिखावा है, तो इसे परखना होगा।"
बबलू को आइडिया आया। उसने जानवरों को एक "रिवर्स चैलेंज" दिया—
"एक हफ्ते के लिए अपने सारे खरीदे हुए सामान छोड़ दो और देखो कि क्या तुम्हारी ज़िंदगी में कोई फ़र्क आता है!"
हकीकत का पर्दाफाश
पहले तो सब झिझके, लेकिन जब कई जानवरों ने ऐसा किया, तो उन्हें एहसास हुआ—
हिरण हिरनी को अपनी पुरानी घास में भी वही स्वाद मिला।
खरगोश बिना शूज़ के भी उतनी ही तेज़ दौड़ सकता था।
शेर की दहाड़ बिना माइक्रोफोन के भी गूंज रही थी।
अब सच्चाई सामने आ चुकी थी। लुब्धिका का खेल खत्म हो गया।
अंतिम चाल
पर लुब्धिका हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने जंगलग्राम पर एक पोस्ट डाली—
"अगर आप गरीब रहना चाहते हैं, तो बबलू की सुनिए। लेकिन अगर आपको तरक्की चाहिए, तो नई चीजें अपनाइए!"
पर इस बार जंगल के जानवर समझदार हो चुके थे। उन्होंने बबलू का साथ दिया और तय किया कि वे सोच-समझकर ही कोई चीज़ खरीदेंगे।
लुब्धिका की कंपनी धीरे-धीरे बंद हो गई, और जंगल फिर से अपने असली स्वभाव में लौट आया—जहाँ जरूरतें हकीकत पर टिकी थीं, न कि दिखावे पर।
__ Falguni Doshi
6/3/2025
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