ताज़ा व्यंग्य
रचना - पाठ का कुरता
यशवंत कोठारी
जिन्दगी में पहली बार व्यंग्य –पाठ करने का निमंत्रण आया ,सो सोचा एक अदद कुरता तो पाठ करने के लिए होना ही चाहिए .कवि सम्मेलनों में मुशायरों में मैं कई ख्यातनाम शायरों कवियों को महंगे शानदार कुर्तों ,शेरबानियों में मंच पर देख चुका था.अचकनों का शानदार समय अब नहीं रहा .मेरा अध्ययन ये भी रहा कि श्रंगार का कवि अलग और महंगा कुरता पहनकर आता है जबकि वीर रस का कवि अपने कुरते में ही आग लगा देने की हिम्मत रखता है ,हास्य व्यंग्य का कवि हरे या लाल रंग के कुरते में जमता है, ऐसा भी महसूस किया.कवयित्रियों के क्या कहने वे हर मंच को गरबा डांस का मंच समझती भी है और बना भी देती हैं उनके पहनावे पर कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाना है .अंध भक्त कवि नारंगी कुरते में जमता है ,यदि लेडीज दुपट्टा भी गले में हो तो क्या कहना! क्रान्तिकारी कवि का कुरता समय के अनुसार रंग बदलता रहता है .सत्ता के साथ चलने के तरीके कोई मंचीय कवि से पूछे .वैसे जींस पर कम लम्बा कुरता ,भारी चश्मा और महंगे जूते हो तो क्या कहने कभी राजेश खन्ना ने कुर्तों को फेशन में ला दिया था ,बेल बोटम पर छोटा कुरता खूब चला .
संचालक का कुरता मज़बूत कपडे का होना चाहिए क्योकि उसकी जेब हर कोई फाड़ने को उतावला रहता है .सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहे कवि का कुरता हमेशा शाल से ढका रहना चाहिए .आयोजक को कुरते के उपर जिरह बख्तर पहनना चाहिए ,ऐसा सयानों का कहना है .प्रगतिशील व जनवादी अपने कुरते से ही पहचान पा जाते हैं .
लेकिन बात अपने लिए कुरते की है,खादी का कुरता आज कल कौन पहनता है ?और अब खादी भंडार वाले भी वैसे नहीं रहे जैसे गाँधी जी के ज़माने में थे .
मैंने पुराने वीडियो देखे , परसाई जी बंद गले के कोट में जमते थे गोपाल प्रसाद व्यास भी कुरता धारण करते थे .शरद जोशी ने हमेशा पेंट बुशर्ट पहन कर ही व्यंग्य पढ़ा और कवियों से भारी लिफाफा प्राप्त किया ,के पी भाई ने भी कुरते के बजाय रचना पर ध्यान दिया कभी कभी सूट टाई भी लगा ली . नया कोई अन्य गद्य पढने वाला याद नहीं आ रहा .
कुर्तों के अध्ययन में यह भी पता चला की कुरते पूरी बाह का , आधी बाह का ,बाह पर बटन वाला ऊँची कालर वाला या केवल चोडीपट्टी वाले हो सकते हैं .कुर्तों का रंग मौसम और राजनीति के मिजाज़ के अनुसार बदल सकते हैं ,सब से बड़ी बात ये की आप के श्रोता और दर्शकों को कुरता चाहिए या अच्छा व्यंग्य ,वैसे हिंदी में सब चल जाता है .एक मित्र से सलाह ली –उसने कहा आजकल लम्बे कुर्तों का फैशन है तुम लम्बा कुरता सिलवा लो उसने आगे राय दी व्यंग्य छोटा पढना नहीं तो हूट हो जाओगे ,कुरता लम्बा चल सकता है व्यंग्य लम्बा नहीं चलता .मुझे उसकी बात जम गयी.वैसे कुरते में जेब होने से दर्शकों से प्राप्त अंडे टमाटरों को भी रखा जा सकता है .
नयी पीढ़ी की एक कवयित्री से पूछा तो बोली –
-बूढी घोड़ी लाल लगाम आप कुछ भी पहन लो महफ़िल तो मैं ही लुटूंगी.और वास्तव में उनके लटके झटकों के सामने हम सब फीके.
जैसा की रिवाज़ है आदमी अंत में अपनी घरवाली से भी अनुमति लेता है ,उसने लम्बे कुरते की ही ताईद की, ये भी कहा की उसके नीचे एक ठो पाजामा भी होना चाहिए ,ताकि आप की इज्ज़त ढकी रहे .घरवाली की बात भी सही थी मेरे व कुरते के कारण व्यंग्य की इज्ज़त ख़राब न हो,इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए . सस्ते से सस्ता कुरता भी भाई साब चार अंकों की कीमत में था और व्यंग्य पाठ निशुल्क था ,समझ में ये आया की कुरते के स्थान पर पुराने पेंट कमीज़ से ही काम चलाया जाय . वैसे भी व्यंग्यकार के कुरते में नहीं व्यंग्य में दम होना चाहिए .
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