गांव की प्रेम कहानी
बिहार का एक छोटा सा गांव जिसका नाम सोनपुर था जो एक नदी किनारे बसा था । एक सुंदर, हरा-भरा परिदृश्य, जहां सुबह की पहली किरण के साथ कोयल की मीठी कुहुक और खेतों में किसानों की हलचल जीवन को संगीतमय बना देती थी। इस गांव में दो परिवार बड़े प्रसिद्ध थे—एक था चौधरी बलराम सिंह का, जो जमींदार थे, और दूसरा था रामस्वरूप काका, जो एक साधारण किसान थे। लेकिन इन दोनों परिवारों के बीच बहुत पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी।
इसी गांव में वीरेंद्र नाम का एक नौजवान था, जो चौधरी बलराम सिंह का इकलौता बेटा था। लंबा-चौड़ा शरीर, आंखों में आत्मविश्वास और दिल में गांव के लिए प्रेम। दूसरी ओर, रामस्वरूप काका की बेटी गौरी थी, जो सुंदरता और सरलता की मिसाल थी। उसका सौम्य स्वभाव और मीठी वाणी पूरे गांव को अपनी ओर आकर्षित करती थी।
एक दिन गांव के नदी के किनारे मेला लगा हुआ था। पूरा गांव मेले की रौनक में खोया था। बच्चे झूले झूल रहे थे, औरतें चूड़ियां खरीद रही थीं, और पुरुष अपने दोस्तों संग गप्पे मार रहे थे। वहीं, गौरी भी अपनी सहेलियों के साथ मेले में आई थी। वह एक चूड़ी की दुकान पर खड़ी थी कि अचानक एक शरारती लड़का आकर उससे टकरा गया और उसकी चूड़ियों का डिब्बा गिर गया। वीरेंद्र वहीं पास में था, उसने तुरंत आगे बढ़कर चूड़ियां उठाकर गौरी को दे दीं।
गौरी ने सिर उठाकर वीरेंद्र की ओर देखा। उनकी आंखें मिलीं, और मानो समय जैसे वहीं ठहर गया। दोनों के दिलों में एक अजीब-सी हलचल हुई मानो एक दूसरों को वर्षों से जानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं था कि एक गांव में होने के बावजूद भी एक दूसरे से कभी नहीं मिले थे ऐसा इसीलिए था क्योंकि वीरेंद्र बचपन से ही वह अपने मामा का घर शहर में ही रहता था और वहीं से उसने अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की । यह पहली मुलाकात थी, पर दोनों के दिलों में कुछ खास एहसास जगा गया था।
इसके बाद, गांव की पगडंडियों पर अक्सर वीरेंद्र और गौरी की मुलाकात होने लगी। कभी नहीं किनारे, तो कभी खेतों के पास आते जाते हो जाया करती थी। वीरेंद्र तो गांव में कुछ महीनों के लिए घूमने आया था लेकिन उसके दिल में गौरी की सादगी अपना घर बना चुकी थी। इसीलिए वो गांव में ही रहने का मन बना लिया था । कई दिनों तक गौरी से बात करने की असफल कोशिश वीरेंद्र करता रहा। लेकिन उसकी कोशिश एक दिन रंग लाया , गौरी को नदी किनारे अकेला पाकर उससे बात करने की कोशिश की तो वीरेंद्र द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब भी गौरी उस दिन दिया। क्योंकि गौरी भी वीरेंद्र के प्रति आकर्षित थी , वक्त के साथ साथ
दोनों की बातचीत धीरे-धीरे गहरी दोस्ती में बदलने लगी और फिर यह दोस्ती प्रेम में बदल गई। वीरेंद्र अपने घोड़े पर सवार होकर खेतों की ओर जाता, जहां गौरी पनघट से पानी भरने आती थी। दोनों की मुस्कुराहटें और इशारे ही उनकी बातें कह जाते।
समाज की बंदिशें
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लेकिन यह प्रेम आसान नहीं था। जब गांव में दोनों के प्यार की खबर फैली, तो दोनों परिवारों में कोहराम मच गया। चौधरी बलराम सिंह को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि उनका बेटा एक साधारण किसान की बेटी से प्यार करे। उधर, रामस्वरूप काका भी डर गए कि यह प्रेम उनके परिवार के लिए मुसीबत बन सकता है।
चौधरी बलराम सिंह ने वीरेंद्र को डांटा और धमकी दी कि अगर उसने गौरी से कोई रिश्ता रखा, तो उसे घर से निकाल दिया जाएगा। वीरेंद्र ने अपने पिता को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन जमींदार की कठोर सोच नहीं बदली।
गौरी के घर भी हालात कुछ अच्छे नहीं थे। उसके पिता ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी, ताकि यह प्रेम कहानी हमेशा के लिए खत्म हो जाए। गौरी रोई, गिड़गिड़ाई, लेकिन गांव की रस्मों और परिवार की इज्जत के आगे उसकी एक ना चली।
प्रेम की अग्निपरीक्षा
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शादी का दिन नजदीक आता जा रहा था, लेकिन वीरेंद्र और गौरी एक-दूसरे से जुदा होने के लिए तैयार नहीं थे। वीरेंद्र ने अपनी मां से मदद मांगी, जो अपने बेटे से बहुत प्रेम करती थी। उसने वीरेंद्र को आशीर्वाद दिया और कहा, "अगर तुम्हारा प्रेम सच्चा है, तो दुनिया की कोई भी ताकत तुम्हें जुदा नहीं कर सकती।"
शादी की रात, जब गौरी मंडप में बैठी थी, तभी वीरेंद्र अपने कुछ दोस्तों के साथ वहां पहुंचा। उसने गौरी का हाथ पकड़ा और उसे लेकर भाग निकला। पूरा गांव हक्का-बक्का रह गया। लोगों ने उनका पीछा किया, लेकिन वीरेंद्र और गौरी जंगल के रास्ते निकल गए।
सच्चे प्रेम की जीत हुई .....
कुछ दिनों बाद, जब गांव वालों को पता चला कि वीरेंद्र और गौरी एक साधु के आश्रम में शरण लिए हुए हैं, तो चौधरी बलराम सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने सोचा कि उनका बेटा प्यार के लिए घर-बार छोड़ सकता है, तो यह प्रेम सच्चा ही होगा।
गांव के बुजुर्गों ने बैठकर निर्णय लिया कि दोनों को माफ कर देना चाहिए और उन्हें विवाह की अनुमति देनी चाहिए।
फिर, एक दिन वीरेंद्र और गौरी गांव लौटे। इस बार कोई रोकने वाला नहीं था, बल्कि पूरा गांव उनका स्वागत कर रहा था। बड़े-बुजुर्गों ने दोनों का विवाह करवाया, और इस तरह दो दुश्मन परिवार प्रेम के बंधन में बंध गए।
प्रेम विवाह गांव में नया सवेरा लेकर आया,,,,
वीरेंद्र और गौरी की प्रेम कहानी सिर्फ उनकी नहीं रही, बल्कि यह पूरे गांव के लिए एक मिसाल बन गई। इस प्रेम कहानी ने यह साबित कर दिया कि प्रेम के आगे न जाति की दीवारें टिक सकती हैं, न समाज की बंदिशें।
आज भी, जब गांव के बुजुर्ग बैठकर कहानियां सुनाते हैं, तो वीरेंद्र और गौरी की प्रेम कहानी हर दिल को छू जाती है। वह तालाब, वह खेत और वह पनघट आज भी उनकी प्रेम कहानी की गवाही देते हैं, जहां कभी दो दिल मिले थे और एक अमर प्रेम कहानी लिखी गई जो सदियों तक उस गांव में पीढ़ी दर पीढ़ी के जुबा पर जिंदा रहेगी।
ये समाज नाइंसाफी हमेशा से करते आई है.... कभी जाति तो कभी अमीरी गरीबी तो कभी धर्म ऐसे कारण बताकर दो प्रेम करने वाले लोगों को एक दूसरे से अलग करते रहे जो कि ये गलत है।।
सभी को अपने जिंदगी के फैसले लेने के अधिकार है....पर ये समाज ये हक छीन लेती है ।।।।
थैंक्स for reading.....❤️