who is wrong in Hindi Thriller by Lalit Kishor Aka Shitiz books and stories PDF | गलत कौन

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गलत कौन

 तेज़ तर्रार महाराजा एक्सप्रेस दूर से आ रही थी।  पूरे स्टेशन पर सबकी नजर उसी की तरफ अटक गई। जयपुर जंक्शन पर लगे वेंडर्स भी सारे एक तरफ निगाह डाले खड़े थे। तभी लाल रंग के डब्बों वाली सिंह की डिजाइन बनी महाराजा एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर आ कर रुकी। 

फारुख अपना बिल्ला नम्बर तीन सौ अठारह हाथ पर बांध रहा था। असलम उसे देखकर बोला "बीड़ी सुलगा ले थोड़ी जान आ जाएगी।" फारुख ने पीछे खड़े आरपीएफ गार्ड की ओर इशारा किया। असलम  बंडल जेब में रखते हुए कैंटीन की ओर चला गया। ट्रेन के शीशे पार दर्शी नहीं थे; ना ही गेट खुले थे। यह गाड़ी भले ही महँगी सवारियों को ले जाती हो पर कुली के लिए यह किसी काम की न थी। फारुख और बाकी कुली भी इसके जाने का ही इंतजार कर रहें थे। 

शाम होने को थी। दस ट्रेनों में से महज़ चार सवारियों का कुल सामान उतारा गया। मजदूरी केवल चार सौ रुपए फारुख साइकिल पर सवार हो घर  की ओर जा रहा था। लेकिन दिमाग में शाजिया की ट्यूशन फीस और जुबेर के मोबाइल में रिचार्ज की कवायद चल रही थी।जैसे तैसे मस्जिद चौराहे से घर की ओर मुड़ा, किसी की खिड़की से किशोर कुमार का "ओ मेरे दिल के चैन" सुनाई दे रहा था। दिसंबर का महीना और कड़कड़ाती सर्दी में फारुख कांप रहा था। पेट में भूख कब से अपना सायरन बजा रही थी जिसे फारुख ने उदयपुर सिटी एक्सप्रेस का लालच दे रखा थापर वह रोज़ की तरह आज भी देरी से चल रही थी।

साइकिल को लॉक लगाकर बाहर चैन से बाँधकर फारुख अंदर गया। रसोई से आलू-प्याज़ की सब्जी और दाल की ख़ुशबू आ रही थी। फारुख को आते देख जुबेर गुस्से में बोलने लगा,"अब्बू आपने आज भी रिचार्ज नहीं करवाया मेरा ! मैं रोज़-रोज़ सलीम के घर वाई-फाई के लिए जाता हूॅं, अब तो शर्म आती है। फारुख हाथ धोते धोते बोला "कोई न, सलीम तुम्हारा दोस्त है। और तुम थोड़ा बाहर  खेला करो" जुबेर फिर रसोई में जाकर  अमीना के बगल में खड़ा हो गया और उससे सिफारिश करने लगा।

शाजिया अंदर पढ़ रही थी, फारुख ने शाजिया को देखकर कहा "देखो बेचारी बच्ची अभी तक पढ़ रही है, स्टेशन पर सभी कहते हैं तुम्हारी बच्ची बहुत आगे जाएगी, स्टेशन मास्टर बनेगी!" अमीना अंदर से प्लेट में खाना ले कर आई और फारुख को देते हुए बोली "इसे भी अपनी तरह स्टेशन पर ही रखोगे या बाहर भी जाने दोगे इन रेलगाड़ियों से?" फारुख चिढ़ते हुए कहने लगा "क्यों, इसमें क्या है? इसे कौनसा हमारी तरह माल ढुहाई करनी है! ये तो कुर्सी-मेज़ पर बैठी रहेगी और उस बत्ती वाली मशीन पर हाथ चलाएगी जो सारी रेलगाड़ियों को संभालती है।"

अमीना अंदर जाते हुए बोली "यह तो शुक्र मनाओ मेरे सिलाई के काम की वजह से घर खर्च चल जाता है, वरना तो तुम्हारे भरोसे  ईदी तक न दे पाते हम।" फारुख अमीना के कड़वे ताने सुन खाना खाने लगा और चुप चाप खा कर सीधा छत पर चला गया। 

तारों में अपनी खुशी ढूँढते हुए  आग जला ली और कम्बल ओढ़ कर वहीं बैठ गया। थोड़ी देर सेक करके नीचे उतरा तब तक सभी सो चुके थे। शाजिया अभी भी पढ़ रही थी। इस साल दसवीं जो है शाजिया की सो प्री बोर्ड के एग्जाम के चलते दिन रात लगी रहती है। फारुख अपनी कम्बल ओढ़ शाजिया के पास बैठ गया। धीरे से उसे बोला " अम्मी आज खाला के यहां जा कर आई थी क्या इतना उबल क्यों रही है, उसने कान भरे होंगे खुदका घर तो संभलता नहीं "  शाजिया धीरे से हंसते  हुए बोली " खाला ने कल जुबेर के रिचार्ज कराने का बोला है, मम्मी ने जुबेर को मना किया है बताने से।"

फारूख को गुस्सा आ रहा था पर मजबूरी के चलते कुछ नहीं कर पाया। सभी सो चुके थे, शाज़िया भी अब सो गई थी। फारुख लेटा था पर नींद नहीं आ रही थी, वह आंखे बंद करता रहा पर नींद नहीं आई फिर देर रात ढाई बजे वह आखिरकार सो गया। सुबह हो चुकी थी, शाजिया और जुबेर स्कूल चले गए। फारुख नौ बजे उठा, अमीना अभी कपड़े धो रही थी, फारुख जल्दी से तैयार हो टिफिन ले कर निकल गया। इधर अमीना ने फारुख के जाते ही सलीमा आपा को फोन लगा लिया और स्पीकर पर रख बाते करने लगी। उसे इस बात की बिल्कुल ही सुध नहीं थी कि फारुख अपना फोन बिस्तर में ही भूल गया। वह वापिस लौटा पर फोन की आवाज सुन धीरे धीरे सीधा कोठडी में जा कर खड़ा हो गया। 

फोन पर अमीना अपनी बहन से फारुख की ही बातें कर रही थी। सलीमा उसकी हर बात में फारुख को गलियां दे रही थी। फारुख ये सब छिप कर सुन रहा था। तभी कुछ ऐसा हुआ जो शायद किसी ने सोचा न था। सलीमा ने अमीना से कहा " देख अमीना में तेरी बड़ी बहन हूं इसलिए तुझे एक बात कह रही हूं,इसे छोड़ दे तेरे लिए कहीं और देख रखा है हमने" फारुख के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, उनके निकाह को पंद्रह साल हो गए और आज उसे ये सुनने को मिल रहा था।

वह संभल पाता उससे पहले सलीमा ने फिर कहा "वैसे भी जब तू इस भिखारी से परेशान होकर हमे फोन करती थी तो हमारा मन करता था मस्जिद चौक में इसकी पिटाई करते हुए जुलूस निकाले" अमीना सलीमा की बात पूरी होते ही कपड़े धोते हुए बोली " बस कैसे भी कर के इससे तलाक़ हो जाए तो कंगले पे थूक कर जाऊं मेरा तो जीना हराम कर दिया इसने,  ईद को वो आया था मुझसे मिलने मीनाकारी बाजार वाला अहमद" सलीमा ने हंसते हुए कहा "ओह तो अहमद मियां अभी तक आपके साथ ही है क्या हमे लगा तुमने उसे छोड़ दिया" अमीना धीरे से छिटक कर बोली "उसे कैसे छोड़ दूं, और है ही कौन इस ग़रीब के पास तो सुखी रोटी भी नहीं है, अहमद ने तो मुझे कई बार घुमाया है फिल्म दिखा कर भी लाया है एक बार तो में इसे अब्बा के घर का बोल उसके साथ सीकरी घूम के आ गई और खूब खरीदारी भी की" सलीमा ने और जोर से हंसते हुए कहा " वैसे भी इसके पास जो कुछ है उससे तो तेरे घी भी न लगे और पिछले रमजान में तो तूने इफ्तिहारी भी अहमद के भिजवाए हुए से की थी ना" फारुख शांति से ये सब सुन रहा था वह बस चुप था ताकि उसे और जानने को मिले गुस्से में आग बबूला हो चुका था कभी भी उसका गुस्सा निकल सकता है।

अमीना अंदर आई और बोली "आज जल्दी चला गया कुत्ता शायद रैलगाड़ियों की गंदगी खाने गया होगा।" सलीमा हंसते हुए बोल ही रही थी कि कुत्ता ही है वो तो , तू रोटी दे देती  और बाकी स्टेशन पे लोग खाना फेंकते है वही खा लेता होगा" अमीना गीले हाथों को सलवार से पोंछ  कर गैस पर कुकर चढ़ाने लगी ढक्कन बंध करते हुए सलीमा से कहा "आपा मेरा तो मन करता है अहमद के साथ भाग जाऊं, उसकी लुगाई ने तो उसे छोड़ दिया अब तो वो निकाह भी पढ़वा देगा मेरा।" सलीमा हामी भरते हुए कहने लगी "वो सब तो ठीक है पर शाज़िया और जुबेर का क्या?" जोर से गुर्राते हुए अमीना ने कहा "इसमें उसका हक है ही क्या बच्चे मेरे हैं उसके नहीं मेरे साथ रहेंगे " सलीमा ने हंसते हुए फिर तंज कसा " तू माने या न माने कागजों में तो उसके ही है।"


सलीमा ये सब  बोल ही रही थी कि तभी कोठडी में फारुख का फोन बजा, अमीना चौंक कर बाहर आई तो देखा कोठडी से फारुख आंखों को तिलमिलाता हुआ बाहर निकल कर आया। अमीना उसके सामने थी सलीमा लगातार बोले जा रही थी " मैं तो तुझे रोज कहती हूँ तू अहमद से कर ले या शौकत से, तुझे दोनों खुश ही रखेंगे।" फारूख का फोन बज रहा था पूरे घर में फारुख के फोन और सलीमा की आवाज ही सुनाई दे रही थी। फोन की घंटी बंद हुई, सलीमा अभी तक बोल रही थी, अमीना और फारुख चुप चाप स्तब्ध से एक दूसरे को देख रहे थे, वह फारुख का गुस्सा देख डर गई उसके पांव हिल नहीं रहे थे। फारुख सलीमा की बाते लगातार सुन रहा था, तभी सलीमा ने उसी गति में कहा " खैर यह तो उसे पता ही नहीं कि शाज़िया अहमद की पैदाइश है।" ऐसा कह कर सलीमा ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। यह सुनते ही फारूख ने पास में ही पड़ा अपना पुराना बूचड़खाने का बड़ा वाला चाकू लिया और अमीना के गले पर लगातार सोलह से सत्रह बार चल दिया। इस तेज धार से उसने गला काटा कि अमीना की चीख भी नहीं निकल पाई। खून से लतपत वह चौखट के बीच में बैठ गया।

उसके चेहरे पर खून के छींटे लगे हुए थे, दाढ़ी खून से भरी हुई थी, कुली का चेहरे से पैर तक लाल रंग ही दिख रहा था। अपने कुर्ते से उसने बंडल निकाला और बीड़ी सुलगा के बैठ गया। वह कांपते हुए हाथो से बीड़ी पी रहा था। उसकी निगााहे चाकू पर टिकी हुई थी…… सलीमा अभी तक हँस रही है… रसोई से कुकर की सीटी आई और सलीमा हैलो.. हैलो... कर रही है………