नागेंद्र को जिस बात का डर था वही हुआ था और नाग गुरु ने उसे एक सजा देने का फैसला ले लिया था। वहीं दूसरी तरफ जब दिलावर से अपने दोस्तों को अस्पताल लेकर गया और वहीं पर बैठा हुआ था तब उसकी मां का फोन आया। उसकी मां ने बताया कि उसके पिता गजेंद्र सिंह सब जब से कर आए हैं तब से डरे हुए हैं और बार-बार यही कह रहे हैं कि ड्राइवर की आंखों का रंग बदल गया है।
दिलावर सिंह ने जब अपनी मां के मुंह से यह सुना के ड्राइवर की आंखों का रंग पीला हो गया है तो उसके दिल की धड़कन एक सेकंड के लिए रुक गई। उसे नागेंद्र की आंखों का रंग किया गया जब उसने गुस्से से उसकी तरफ देखा था।
" तुम टेंशन मत लो मां में आ रहा हूं।"
अपनी मां को दिलासा देकर दिलावर सिंह फोन रख दिया। उसने अपने दोस्तों की तरफ देखा जो अभी भी बेहोश थे। उसने डॉक्टर से बात की और डॉक्टर ने बताया कि उन्हें कोई चोट नहीं आई है वह सिर्फ शराब के नशे और अचानक हुए हमले के कारण बेहोश हो गए हैं।
डॉक्टर से बात करके और उनसे परमिशन लेकर दिलावर सिंह अपने घर के लिए निकल गया। उसके लिए यह बात अच्छी थी कि डॉक्टर को उसके वहां से जाने से कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि उनके दोस्तों को कुछ नहीं हुआ था वह सवेरे तक होश में आ जाने वाले थे। रास्ते पर उसके दिमाग में उसकी मां की बातें और आज जो कुछ भी हुआ था वह सारी बातें घूम रही थी।
उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि नागेंद्र जैसा डरपोक इंसान इस तरह से उसके दोस्तों के ऊपर हमला कर सकता है। उसे याद था की उसने दो-तीन बार अवनी के घर में जाकर धमकी दी थी तब तो नगेंद्र ने ऐसा कुछ नहीं किया था। कुछ करना तो छोड़ो उसने तो पलट कर किसी बात का जवाब तक नहीं दिया था।
पिछली रात को ही गजेंद्र सिंह ने बता दिया था कि वह सवेरे अवनी के खर्च कर हवेली के केस के बारे में बात करने वाले हैं। कहीं नागेंद्र को उनके ऊपर तो गुस्सा नहीं आया होगा? दिलावर सिंह को अपने पिताजी की आदतों का पता था कि वह वहां जाकर क्या-क्या बोल रहे होंगे। दिलावर सिंह को विश्वास हो गया था उसके पिताजी ने कुछ ऐसा बोला होगा जिससे नगेंद्र ने उसके ऊपर भी गुस्सा किया होगा।
यह सारी बातें सोचते सोचते वह अपने घर पर आ चुका था। घर के अंदर जाते ही उसने अपनी मां को परेशान हालत में सोफा पर बैठे हुए देखा।
" क्या बात है? पापा कहां है?"
अपने बेटे को देखकर दिलावर की मां शालिनी भागते हुए अपने बेटे के पास आई और उसे गले लगा कर रोते हुए कहने लगी।
" शाम को ड्राइवर उसे घर पर लेकर आया था। ड्राइवर ने बताया कि वह गाड़ी में बेहोश थे। जब डॉक्टर को बुलाया और जब होश में आए तब से पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाए जा रहे हैं। मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। तुझे कब से फोन कर रही हूं तेरा फोन भी नहीं लग रहा था।"
शालिनी परेशानी के मारे अपनी बात बताई जा रही थी। दिलावर सिंह उसको शांत किया और उसके ड्राइवर को आवाज दी। उसने ड्राइवर से पूछा कि क्या-क्या हुआ था तब ड्राइवर ने बताया।
" हम लोग वहां से वापस घर की तरफ आ रहे थे की गाड़ी गर्म हो गई और बंद हो गई। मैं साक्षी को बताया कि मैं पानी लेकर आता हूं और मैं पानी लेने के लिए चला गया। जब मैं वापस आया तो वहां पर गाड़ी नहीं थी। मुझे बहुत अजीब लगा क्योंकि गाड़ी तो चल ही नहीं रही थी। मैं अपने आसपास देखने लगा मुझे लगा कि कहीं टोल वाले तो नहीं लेकर चले गए। इधर-उधर देखने के बाद जब मैं वापस आया तब मुझे गाड़ी उसी जगह पर वापस मिली। गाड़ी तो सही सलामत थी बस साहब बेहोश थे। और मैं उन्हें सीधे घर लेकर आ गया।"
ड्राइवर से बात करके दिलावर अपने पिता के कमरे में गया जहां पर इस वक्त उसके पिता सो रहे थे। उसकी मां ने बताया कि डॉक्टर ने उनको नींद का इंजेक्शन दिया हुआ है। नींद में होने के बावजूद गजेंद्र सिंह धीमी आवाज में बड़बड़ा रहे थे।
" वह ड्राइवर गायब हो गया। ड्राइवर का... पीली आंखें... डरावनी... ड्राइवर नहीं। भूत... भूत... भूत।"
गजेंद्र सिंह नींद में धीमी आवाज में कह रहे थे। दिलावर सिंह कुछ देर के लिए वहीं पर बैठा रहा और फिर वहां से अपने कमरे में चला गया। दिलावर सिंह पिछले 4-5 सालों से कुछ ऐसे लोगों से मिल रहा था जो काला जादू परफॉर्म करते थे।
वह इन सब के पास इसलिए जाता था ताकि वह अवनी के ऊपर किसी वशीकरण का इस्तेमाल करके अपना बना सके। अभी तक वह सब कुछ काम नहीं आया था लेकिन इन सब के चक्कर में उसकी दोस्ती उन लोगों से काफी बढ़ गई थी। गजेंद्र सिंह के मुंह से भूत शब्द सुनने के बाद उसे उन लोगों का ख्याल आया।
उसे लग रहा था कि कहीं नागेंद्र के पास कोई भूतिया शक्ति तो नहीं है? कहीं वह कोई भूतिया कोई पिशाच तो नहीं है? उसने जल्दी से अपना फोन निकाला और अपने कांटेक्ट में उन लोगों के नंबर ढूंढने लगा। ढूंढते ढूंढते उसने एक नंबर निकाला और उसे देखने लगा।
" मार्को। आई थिंक यू कैन हेल्प मी।"
उसने कुछ देर के लिए उसे नंबर को देखा और फिर डायल कर दिया।
नागेंद्र अभी भी उनके नाम गुरु के सामने खड़ा था और उनकी तरफ देखते हुए उसने पूछा।
" गुरु जी आप जानते हो कि आप जो भी मुझे कहेंगे वह में करूंगा। मैं किसी भी शिक्षा के लिए तैयार हूं मुझे कोई आपत्ति नहीं है बस आप मुझे यहां से जाने के लिए मत कहना।"
नागेंद्र की बात सुनकर नाग गुरु ने उसे एक पल के लिए देखा और फिर कहा।
" नागेंद्र आप यहां किसी कारणवश आए हुए हैं आप स्वयं को बंधन में वशीभूत मत कर देना। अन्यथा यह स्थान त्याग करते वक्त आपको तकलीफ होगी।"
नागेंद्र उनके गुरु की बात को अच्छे से समझ रहा था लेकिन फिर भी उसे बात को टालते हुए उसने पूछा।
" मुझे क्या करना होगा आप मुझे यह बता दीजिए।"
नागेंद्र इस बात को करना नहीं चाहता था यह सोचकर नाग गुरु ने एक गहरी सांस छोड़ी और फिर कहा।
" इसी नगर में एक स्थान पर एक सर्प मंदिर है परंतु कुछ समय से वहां पर और मानवीय कार्य हो रहे हैं और इसी कारण बस वहां पर रह रहे सर्पो को मारा जा रहा है। इसी के कारण कुछ सर्प मनुष्य को भी हानि पहुंचा रहे हैं। हम सिर्फ आपसे यह चाहते हैं कि आप वहां जाकर इन सब के पीछे का कारण जानने का प्रयत्न कीजिए और इस समस्या का समाधान कीजिए।"
नगेंद्र ने पूरी बात सुनी और फिर पूछा।
" लेकिन मुझे पता कैसे चलेगा कि वह जगह कौन सी है?"
नाग गुरु ने नागेंद्र के जेब की तरफ इशारा करते हुए कहा।
" वह नीलमणि आपकी सहायता करेगा। वह निर्माणी आपको सिर्फ नागवंश की सूचना देने के लिए नहीं है, आपके पास कोई समस्या आ गई हो और उसका निराकरण आपके पास ना हो तो आप नीलमणि से सहायता ले सकते हैं। वह नीलमणि आपको हर समस्या का समाधान दे सकती है। परंतु हम आपसे यही कहेंगे कि आप पूरी तरह से उसके ऊपर आश्रित मत होना। ईश्वर भी उसकी सहायता करते हैं जो खुद की सहायता करने की क्षमता रखता हो।"
" नागेंद्र तेरे साथ कोई कमरे में है क्या? अरे भाई तू किस से बात कर रहा है?"
अचानक आवाज से दोनों खामोश हो गए और ना गुरु मां से अंतर्ध्यान हो गए। नगेंद्र ने देखा क्या वह कमरे में अकेला है तो उसने दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही गिरधारी लाल कमरे को चारों तरफ से देखते हुए अंदर आ गए। उनकी नजर कैमरे के चारों तरफ थी उन्होंने नागेंद्र की तरफ देखते हुए पूछा।
" यहां पर तो कोई नहीं है फिर मुझे तो बातें करने की आवाज सुनाई दे रही थी।"
नगेंद्र ने अपने फोन की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा।
" कुछ नहीं मैं बस वीडियो देख रहा था। लेकिन आपको कुछ काम था क्या मुझसे?"
गिरधारी लाल ने इस तरह से फोन की तरफ देखा जैसे कि उन्हें नागेंद्र की बात पर विश्वास हो गया हो। फिर उन्होने नागेंद्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
" मैं बस तुम्हें खाना खाने के लिए बुलाने आया था। अकेले खाने का मन नहीं हो रहा था।"
नागेंद्र कुछ कहे उसके पहले ही गिरधारी लाल ने हाथ दिखा कर कहा।
" अवनी ने खाना खा लिया है गायत्री ने उसे खाना खिला दिया है। अब जल्दी से चलो मुझे भी भूख लगी है।"
नागेंद्र जानता था कि गिरधारी लाल उसे छोड़कर खाना नहीं खाएंगे इसलिए नगेंद्र ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला कर हां कहा और वह दोनों किचन की तरफ चले गए। खाना खाते वक्त भी नागेंद्र के दिमाग में यही बातें घूम रही थी कि कल उसे किस तरह से उन सांपों की समस्याओं का वह क्या समाधान निकलेगा और किस तरह की घटनाएं वहां पर हो रही है। नागेंद्र को इस बात से भी ज्यादा परेशानी यह थी कि वह घर के कामों में से समय कैसे निकलेगा। गायत्री जी बगैर काम से किसी को खास कर के गिरधारी लाल और नागेंद्र को घर के बाहर कदम तक नहीं रखने देती थी फिर नागेंद्र कल के लिए क्या ठोंस बहाना बनाएगा।
क्या नागेंद्र अपना काम कर पाएगा? गायत्री जी उसे बाहर जाने की परमिशन देगी या नहीं? दिलावर सिंह जिस मार्को को फोन कर रहा था वह कौन है और वह किस तरह का कल्ट है जो तंत्र विद्या करता है
? क्या उससे नागेंद्र को खतरा हो सकता है?