____________________ "सूरज की सेंक में/सुलगते हैं..... स्वप्न/ जिंदगी फिर भी/ रचती रहती है .....नए-नए ख्वाब" (पुष्पिता अवस्थी नीदरलैंड्स) की यह पंक्तियां इस डार्क वेब सीरीज के पात्रों के लिए ही लिखी गई हो मानो।
आपको वास्तविक जिंदगी, ढेरों टर्न न ट्विस्ट के साथ दिखाई जाए ऐसे पुलिस वालों की जिनकी आत्मा और जमीर अभी तक मरा नहीं है तो वह पसंद आएगा ही । साथ में आम व्यक्ति, किसान, थर्ड जेंडर का दर्द, पुलिस विभाग की अपनी राजनीति और मीडिया हाउसेस के पीछे की सच्चाई दिखाई भी बेबाकी से दिखाई गई थी इस अंडररेटेड वेब सीरीज में। इसी कारण भाग एक, 2021, बेहद सफल और यादगार रहा। टूटे हुए सपने, दबे कुचले लोगों की दास्तान और समानांतर चलती मीडिया कुबेरों की दुनिया की कड़वी सच्चाई। लेखक सुदीप शर्मा सब इतनी बारीकी से दिखाते हैं कि सारे संदेह मिट जाते हैं। सभी पात्र लोकप्रिय हुए चाहे ट्रेनी एस आई अंसारी, इक्ष्वाक सिंह हो, या गुल पनाग, या छोटे से रोल में राजू भाई। मुख्य नायक औसत बुद्धि पर बुद्धि को इस्तेमाल करने वाला हाथीराम चौधरी तो लोगों से सीधा कनेक्ट हो गया। इतना की इसने ठेठ हरियाणा के देसी बयालीस साल के एक्टर जयदीप अहलावत, जिनका कैरियर दस वर्षों में भी कोई मुकाम नहीं बना पाया, को स्टार बना दिया। और उसे ही क्यों?उसमें काम करने वाले हर एक्टर को फायदा हुआ। यह वेब सीरीज उस साल की टॉप थ्री वेब सीरीज में रही।
इसके दूसरे भाग की बहुत प्रतीक्षा थी और वह नए वर्ष में सत्रह जनवरी पच्चीस को प्राइम वीडियो पर रिलीज हुआ।
कहते हैं न फिल्में, सीरियल, और अब ओटीटी, देश काल से अलग रहकर एक अलग ही काल्पनिक दुनिया दिखाते हैं। जैसे बड़ी बड़ी गाड़ियां, गरीब लड़की भी महंगे ब्रांडेड फोन, ड्रेसेस पहनती हैं, हर दस मिनट बाद एक गाना और चाहे गांव के पात्र हो पर चेहरा बिल्कुल अभी अभी ब्यूटीपार्लर से आया हुआ। गरीब किसान का बेटा भी कभी दिखाया तो वह भी महंगा मोबाइल और जिम में बनी बॉडी दिखाता हुआ। जबकि हकीकत में किसान, देहात के लोग कैसे होते हैं सभी जानते हैं।
यह नए फिल्मकार और लेखकों (जिसमें नाचीज़ भी है)की ऐसी खेप आई है जो हकीकत के ठोस धरातल और सच्चाई से दो दो हाथ करके तैयार हुए हैं। यह सच्चाई और उससे जुड़ी विभिन्न कारणों और परत दर परत के पीछे छुपा सच सामने रखने का साहस रखते हैं। यह साहस ओटीटी प्लेटफॉर्म की स्वतंत्रता से आता है जहां सरकारों की सेंसरशिप लागू नहीं होती। वहां आप अपनी मर्जी और रोचकता, आमजन को ग्रिपिंग करने वाला कॉन्टेंट ला सकते हैं। कहानी के पीछे की कहानी कह सकते हैं।
कुछ वर्ष पहले आई एक वेब सीरीज में हिमांशु रॉय और देविका रानी के माध्यम से उस दौर की सच्चाई बताई गई थी कि किस तरह टैलेंटेड हीरो को दंगों में मार दिया गया, जिससे वह प्रेम करतीं थी। किस तरह एक औसत दर्जे के क्लर्क को नायक बना दिया जाता है। अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देव आनंद और निर्माता निर्देशक सभी उस सीरीज में पहचाने जा सकते थे।
पाताललोक सीजन दो:_ कहानी और ट्रीटमेंट
_____________________________ यह सीज़न पहले भाग से भी अधिक रोचक और कथा पटकथा में जबरदस्त पकड़ लिए हुए हैं। कहानी बिल्कुल नई और अछूती बैकग्राउंड पर है। यूं कहो कि बेहद चुनौतीपूर्ण सत्य और आजादी के बाद भारत की अस्सी फीसदी जनता से अलग थलग चल रहा घटनाक्रम है।जिसमें मानवता को किस तरह नुकसान पहुंचाया जा रहा, नए तरह से भारत की प्राकृतिक संपदा और उसके नागरिकों के हक की लूट की आवाज उठाई गई है।
कहानी और उसके बैकग्राउंड की आप कल्पना नहीं कर सकते।
नागालैंड, पूर्वोत्तर के प्रमुख राज्य की बात और सच्चाई बहुत रोचक और थ्रिलिंग सच्चाई के साथ की गई है।
अविनाश अरुण धावड़े के निर्देशन में भाग दो प्रारंभ होता है नागालैंड समिट की आहट से। जिसमें केंद्र सरकार और नागालैंड के प्रमुख नेता और उद्योग़पति कपिल रेड्डी के नेतृत्व में यह शांति समझौता कर रहे हैं। जिससे वहां के निवासियों के हकों की रक्षा हो और राज्य में विकास हो। उसी समझौते का कुछ लोग राज्य और दिल्ली में विरोध कर रहे हैं। यहीं एक दिन थाने में एक गरीब महिला अपने छोटे बच्चे के साथ पहुंचती है की उसका पति, जो फलों के व्यापारी के यहां काम करता है दो दिन से गायब है। हवलदार उसे भगा रहा होता है कि हाथीराम चौधरी उसके बच्चे की मासूम आंखों को देख रिपोर्ट लिखने को कहता है।उधर प्रथम दिन की रात को ही प्रमुख नेता थॉम की सिर काटकर हत्या हो जाती है।उद्देश्य लगता है इस शांति समझौते को रद्द करना। कैसे यह दोनों घटनाएं जुड़ती हैं और हाथीराम चौधरी अपने खास देसी अंदाज में जांच करते करते नागालैंड पहुंच जाता है यह रोमांचक कहानी देखने पर महसूस होगा। अंसारी ट्रेनी एस आई अब आईपीएस बन चुका है पर वह अपने तत्कालीन ट्रेनिंग अधिकारी चौधरी को नहीं भूला है। वह उसे जांच में शामिल करता है।फिर कहानी नागालैंड की राजधानी कोहिमा पहुंचती है। आंखों को ही नहीं रूह तक को राहत पहुंचे ऐसी हरियाली, प्रकृति की सुंदरता और लोक संस्कृति दिखाई है कि आप नागालैंड घूमने जाने का तय कर लेते हैं।
कहानी बेहद अच्छी पटकथा और कम शब्दों के संवादों के साथ पिरोई गई है। वहीं मिलती हैं कुछ स्त्रियां, जो अलग अलग घेरों में कैद हैं।तिलोत्तमा शोम, एसपी सिटी, जिस पर दबाब है घटनाओं को नजरअंदाज करने का पर वह कर नहीं पाती। रिबेल नेता थॉम की पत्नी रोजेल मेरु है जो अपने अय्याश पति द्वारा सताई लड़की को पैसों की मदद करती है। और पिता से नाराज बेटे को शांत और सहन करने को समझाती है। कई ऐसे चौंकाने वाले खुलासे और पात्र सामने आते हैं जो आपको हिलने नहीं देते। समझ आखिर में आता है कि हर घटना एक दूसरे से प्रारंभ से ही जुड़ी हुई थी बस हम ही उसे देख नहीं पाए। आंखों के आगे होते हुए भी अदृश्य दृश्य को किस तरह बुद्धि और थोड़ी से मेहनत से हम सभी अपने जीवन में भी समझ सकते हैं यह बात इसे देखकर सीखी जा सकती है।
"धरती पर/ उतरने से पहले /
बादल जी लेते हैं पूरा ____आकाश /
वे जानते हैं __/धरती में बूंद बन आएंगे/ फूल बन जाएंगे /
फसल बन जाएंगे/ या नदी बन जाएंगे/ और खुद को मिटा देंगे.(पुष्पिता अवस्थी) यह कविता मानो निर्देशक और कैमरामैन ने नागालैंड, कोहिमा शहर और उसकी प्राकृतिक सुंदरता में समूची उतार दी है।
यदि आप अभी तक पूर्वोत्तर के राज्यों में नहीं गए हैं तो यह वेब सीरीज आपको वहां की खूबसूरती, विपुल प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़, घाटियां, हरे भरे अथाह जंगल, पहाड़ी सड़कें और पूरे परिवेश में ले चलती है।
स्थानीय लोगों की बोली, भाषा, सादगी और उनकी जीवन शैली आपको बांध लेती है। वास्तविकता और भाषा के प्रति प्रेम है इन नए और अच्छे निर्देशक, लेखकों और अभिनेताओं का की नागालैंड की स्थानीय बोली में ही वहां के पात्र संवाद बोलते हैं। अमेजन प्राइम पर उपलब्ध यह वेब सीरीज हिंदी सहित दस भाषाओं में है।
निर्देशक की वास्तविकता दिखाने की चुनौती और हिम्मत की दाद देनी होगी। क्योंकि नागालैंड, कोहिमा में शूट की वेब सीरीज में अनेक महत्वपूर्ण रोल और अभिनेता आदि वहीं से लिए गए हैं। पूर्वोत्तर के लोगों ने भी इतने बड़े और अच्छे रोल में बेहतरीन अभिनय करके मन जीत लिया है। उन्हीं के मध्य के पात्र हैं तो स्वाभाविक है भाषा, बोली और चेहरा मोहरा भी वहीं का होना चाहिए।ऐसा नहीं कि हीरो, पठान या सुल्तान कुश्ती वाला है और दिख रहा है वह दूसरी तरह का।
या कुमारों की तरह एक जैसी फिल्म दर फिल्म एक्टिंग कर रहा बस। यह सीरीज बेहद परिश्रम और तैयारी के साथ नागालैंड के बहुत सारे अच्छे अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को सामने आने का अवसर देती है। यह जानना रोचक होगा कि नागालैंड और पूर्वोत्तर में, फिल्म, नाट्य निर्देशक और कथाएं, अभिनय के लिए क्या सुविधाएं हैं? लगता तो नहीं कि यहां के लोग इन सबसे वंचित हैं। क्योंकि सभी स्थानीय एक्टर्स का अभिनय बढ़िया है।
कथानक और अभिनय
___________________ कथानक यह बताता है कि राजनीतिक मजबूरी कहें या पूर्वोत्तर के लोगों को विशेष ख्याल देना, सरकार को ड्रग तस्कर कम नेता लोगों से हाथ मिलाना पड़ता है। समझाते विरोधी नेता और उसके सहयोगियों को हटाने में दो बड़े पुलिस अधिकारी मारे जाते हैं। पहली ऐसी कहानी जिसमें आखिर में कोई गिरफ्तार नहीं होता पांच खून के बाद भी।कीमत चुकाते हैं गरीब बैंड मास्टर रघु पासवान और उनकी पत्नी। यह एक बेहतरीन बिंब है जो बताता है कि बड़े राजनीतिक फैसलों में आखिरकार आम आदमी ही मारा जाता है।
अभिनय की बात करें तो पूर्वोत्तर के कई कलाकारों, प्रशांत तमांग (डेनियल शूटर), एलसी सेकहोस, (रुबेन थॉम), नागेश कुकनूर (घाघ बिजनेसमैन कपिल रेड्डी और दिखावे का राजनेता)
थेयी केदेसू, ग्रेस रेड्डी
रोजेल मेरु, औसेला थॉम के रोल में असर छोड़ती हैं। कहानी आगे ओपन एंड पर खत्म कर दी जाती है। खासकर कपिल रेड्डी, नागालैंड के बड़े बिजनेसमैन मिडलमैन और सरकार का गठजोड़ दिखता है पर सामने नहीं आता।
अपने नए कॉन्टेंट, पूर्वोत्तर की विस्तृत जानकारी और बढ़िया कहानी असरदार है। हाथीराम के रोल को जयदीप अहलावत ने जीवंत कर दिया है। गुल पनाग उनकी पत्नी की भूमिका में ठीक हैं।सीरीज का देसी अंदाज, वन लाइनर, "तुम मेरा काम कर दोगे तो मैं तुम्हे भूलूंगा नहीं। और नहीं करोगे तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता।" हवाला डीलर से कहा यह संवाद सीरीज को धार देता है।
मेरी तरफ से इसे थ्री स्टार ।
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(संदीप अवस्थी, जाने माने लेखक और फिल्म आलोचक हैं।)