and groom in Hindi Mythological Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | और वर

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और वर

"दुशासन
"आज्ञा भ्राताश्री।"
"तुम जाओ और द्रौपदी को सभा मे ले आओ
"जैसी आज्ञा
और दुशासन चल पड़ा।वह द्रौपदी को सभा मे लाने के लिय।उसने द्रौपदी के पास। जाकर बोला,"तुम्हे मेरे साथ सभा मे चलना है
द्रौपदी ने सभा मे जाने से साफ मना कर दिया था।
"तुम ऐसे नही चलोगी तो मैं तुम्हे जबरदस्ती ले जाऊंगा
"दुशासन जानते हो मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ "
"पांडव हमारे दुश्मन है और तुम हमारे दुश्मन की बीबी हो।पांच की एक।अब क्या कहूँ तुम्हारे बारे में,"दुशासन द्रौपदी के चरित्र पर हमला करते हुए बोला" तुम वेश्या के समान हो उसके ही एक से ज्यादा मर्द होते हैं
"शर्म नही आ रही तुम्हे ये बात कहते हुए।ये संस्कार तो तुम्हारी माँ के नही है।अरे कुछ तो रिश्ते का खयाल करो।
"कैसा रिश्ता।कौनसा रिश्ता",दुशासन, द्रौपदी की बात सुनकर कटाक्ष करते हुए बोला,"मेरा तुमसे कोई रिश्ता नही है।तुम्हारी भलाई इसी में है कि चुपचाप चलो।"
"कहाँ?"
"राजसभा में"
"क्यो?"
"भ्राताश्री का आदेश है कि तुम्हे राजसभा लेकर आऊं
"मैं नही  जाऊंगी
दुशासन उसे पकड़ने के लिये भागा।द्रौपदी, गांधारी के रनिवास की तरफ भागी।लेकिन वह औरत थी।और दुशासन मर्द।उसने द्रौपदी को पकड़ ही लिया।वह द्रौपदी के बाल पकड़कर उसे खींच कर ले चला।
"दुष्ट मैं रजस्वला हूँ।मुझे छोड़ दे।इस अवस्था में मैं सभा मे नही जा सकती
"तू चाहे जैसी भी हो मैं तुझ्रे लेकर ही जाऊंगा
द्रौपदी एक अबला नारी थी और दुशासन बलिष्ठ पुरुष।उसने द्रौपदी के खुले बालो को पकड़ लिया औऱ बालो को खींचकर द्रौपदी को राजसभा की तरफ ले चला।द्रौपदी दर्द से छटपटाती और चीखती हुई छोड़ने को कहने लगी।लेकिन दुशासन ने उसकी चीख पुकार नही सुनी और उसे जबरदस्ती खींचकर राजसभा मे  ले गया।सभा मे उपस्थित लोग सन्न रह गए।दुशासन गर्व से बोला,"भातश्री मैं आपको अंधा कहने वाली धर्म विरुद्ध पांच औरतों की पत्नी को ले आया हूँ।"
",दुर्योधन तूने मेरा अपमान करके रिश्तों की मर्यादा को ललकारा  है।तार तार कर दिया है।तूने मेरा नही स्त्री जाति का अपमान किया है।,"द्रौपदी बोली,"मैं आज इस कौरव सभा मे प्रण लेती हूँ।मैं तब तक अपने बाल नही बांधूंगी जब तक भीम दुशासन की छाती चीरकर उसका रक्त नही पियेगा।"
द्रौपदी की प्रतिज्ञा सुनकर सभा मे बैठे लोग स्तब्ध रह गए।और उस दृश्य की कल्पना करके सिहर उठे।सभा मे  खुसर पुसर होने लगीं।और तभी दुर्योधन बोला,"पांडव तुम्हे जुएं में हार चुके हैं।तुम अब हमारी दासी हो
"जब पांडव खुद को हार गए थे तो वह नुझे कैसे दाव पर पर लगा सकता है
"द्रौपदी अब तुम ये राजसी वस्त्र नही पहन सकती,"दुर्योधन बोला,"दुशासन इसके शरीर से साड़ी उतार लो
औऱ दुशासन भाई का आदेश मिलते ही भरी सभा मे द्रौपदी की साड़ी उसके शरीर से अलग करने के लिये बढ़ा तभी द्रौपदी बोली
"है कृष्ण मेरे साथ तेरे होते हुए क्या अत्यचार हो रहा है
 औऱ द्रौपदी की दारुण पुकार सुनते ही कृष्ण ने द्रौपदी के चीर को बढ़ा दिया।दुशासन साड़ी खिंचते खिंचते पस्त होकर गिर गया लेकिन साड़ी बढ़ती ही गयी।ससभा मे आलिओचना होने लगी।तब धृतराष्ट्र बोले,"पुत्री तुम मेरी पुत्र वधुओ में श्रेष्ठ हो।तुम इनके कर्मो के लिये क्षमा करो और वर मांगो
"मेरे पांचों पतियों को दासता से मुक्ति का वर दो
"तथास्तु,"धृतराष्ट्र बोले,"मैं तुम से अत्यंत प्रशन्न हूँ औऱ वर मांगो
"पांडवों के अस्त्र शस्त्र लौटा दिए जाएं
"तथास्तु, धृतराष्ट्र बोले,"औऱ वर मांगों,"उनके वस्त्र लौटा दिये जायें
"तथास्तु,"धृतराष्ट्र बोले,"पुत्री  मैं तुम्हारी योग्यता से प्रसन्न हूँ औऱ वर मांगों
"अगर पांडवों में पुरुषार्थ होगा तो वे सब वापस पा लेगे