बांग्ला हिन्दू
[हिन्दी नाटक]
रचयिता - व्रजेश दवे
पात्र – मैं, रिक्शावाला, इतिहास, एक ध्वनि
मैं – [भारत के पूर्वी नगर कछुबेड़िया से गंगासागर जाने के लिए रिक्शावाले से ] गंगासागर चलोगे क्या, भैया?
रीक्षावाला – क्या आप बांग्लादेश चलोगे?
मैं – बांग्लादेश क्यों?
री – वहाँ के हिंदुओं को साथ देने के लिए।
मैं- क्यों? क्या हो गया है बांग्लादेश के हिंदुओं को?
री- आपको कुछ भी जानकारी नहीं है या ?
मैं- थोड़ी थोड़ी जानकारी तो है।
री- तो पूरी जानकारी क्यों नहीं है? हिन्दू हो ना आप? आपको क्या? जब तक आपके वस्त्र जलते नहीं, आग होने को आप स्वीकार नहीं करोगे। तब तक चेन से सोते रहना हमारा स्वभाव है। ऐसे ही कब तक सोते रहोगे?
मैं- हं वह .. ।
री- चलिए, रिक्शा में बैठिए। गंगासागर जाइए और सो जाइए लंबी नींद।
मैं- [कुछ विचार कर] तुम्हारी पीड़ा क्या है? कुछ विस्तार से कहोगे?
री- मेरी यह पीड़ा आपको स्पर्श करेगी ?
मैं- क्यों नहीं करेगी? कुछ खुलकर बताओ।
री- आपका वहाँ कौन है जो आपको पीड़ा होगी?
मैं- तुम्हारा वहाँ कोई है क्या?
री- वैसे तो मेरा वहाँ कोई नहीं है। किन्तु वहाँ जो जो हैं सभी मेरे हैं, हमारे हिन्दू हैं। क्या इतना पर्याप्त नहीं है?
मैं- [गहन विचार में मौन]
री- क्या विचार कर रहे हो?
मैं- तुम्हारी बात पर ही विचार कर रहा हूँ। वहाँ का प्रत्येक हिन्दू अपना है। यही कहा था ना? बहुत बड़ी बात कह दी ।
री- हम बातें ही करते हैं बड़ी। हम हिन्दू कुछ नहीं करते, कुछ नहीं कर सकते, सिवा बातों के।
मैं- ऐसा क्यों कह रहे हो?
री- इतिहास साक्षी है। जब जब बंगाल पर विपदा आई है, हिन्दू सोया ही रहा है। और हर बार बंगाल का हिन्दू ठगा गया है। [निश्वास के साथ] इस बार भी।
[वह बोलत्ते बोलते रुक गया]
मैं- कैसे ठगा गया है अब तक?
[किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला]
व्यक्ति - सुनना चाहो तो मैं बताता हूँ। सुनोगे?
मैं – [पीछे मुड़कर उसे देखा। मेरे मुख पर प्रश्न था।] तुम कौन हो?
व्यक्ति- बता दूँ मैं कौन हूँ ?
मैं – हाँ , बता दो कि तुम कौन हो?
व्यक्ति- मैं बंगाल का इतिहास हूँ । मेरे मुख को देखो। मेरे इन घावों को देखो। घाव स्वयं सारी बातें कह रहे हैं किन्तु कोई सुनता कहाँ है?
मैं- मैं सुनूँगा। कहो, कहो।
इतिहास- देस विभाजन से दो प्रजाओं ने सबसे अधिक दु:ख सहे हैं। एक पंजाबी और दूसरे बंगाली। विशेष रूप से बंगाली हिन्दू। स्वतंत्रता के यज्ञ में भी मराठियों के साथ साथ पंजाबी और बंगाली प्रजा ने शस्त्र उठाए थे। इन्होंने ही अपने बच्चों का बलिदान दिया। तथापि सबसे दुर्भाग्य रहा बंगालियों का। इनके भाग्य में हर बार छलना आई। उसे हर बार ठगा गया, विशेष रूप से बंगाली हिन्दू।
[मैं उसे ध्यान से देख रहा हूँ, सुन रहा हूँ।]
इतिहास- बात है 1905 की। बंगाल की धरती को दो हिस्सों में चीर दिया गया। 20 जुलाई 1905 । तत्कालीन ब्रिटिश वाईसरॉय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के दो टुकड़े कर दिए- पूर्व बंगाल जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र था जिसे हम आज बांग्लादेश के नाम से जानते हैं; दूसरा पश्चिम बंगाल, जहां आज इसी समय तुम खड़े हो।
[ मैंने धरती पर दृष्टि डाली, बस उसे देखता रहा- सिर झुक रहा।]
बैठ जाओ। बात लंबी है।
[मैं बैठ गया।]
धर्म के नाम पर भारत का यह प्रथम विभाजन था। किन्तु बंगाल ने प्रशासन के उस निर्णय का उग्र विरोध किया जिसके फल स्वरूप 1911 में छ: वर्षों के पश्चात किंग ज्योर्ज पंचम द्वारा बंगाल विभाजन को निरस्त कर दिया गया।
बंगाल के उस जोश को शत शत नमन जिससे बंगाल का एकत्रीकरण हुआ और देस का प्रथम विभाजन विफल हो गया।
किन्तु, बंगाल में हिन्दू और मुस्लिम का विभाजन करने में ब्रिटिश सरकार सफल रही। 1909 में धर्म आधारित हिन्दू और मुस्लिम के अलग अलग चुनाव हुए। इसी ने भविष्य के देस विभाजन की नींव रखी।
[वह रुका, मेरे मुख के भावों को देखने लगा।]
मैं – यह तो पुरानी बात है, इसका अभी क्या?
इतिहास – इसे पुरानी बात नहीं कहते, इतिहास कहते हैं। इतिहास से जो कुछ भी नहीं सीखता वही ऐसे प्रश्न करता है की – इसका अभी क्या?
हिन्दू हो ना तुम? इतिहास से सीखना तुम्हारा चरित्र ही नहीं है। [वह मौन हो गया।]
मैं – हाँ, हमने अपने इतिहास से कुछ नहीं सीखा।
इतिहास - तो आज भी नहीं सीखोगे क्या?
मैं – सीखूँगा। हम सब सीखेंगे। आप बताओ, बताते रहो।
इतिहास – तो सुनो दूसरी घटना।
10 अक्टूबर 1946. कोजागरी लक्ष्मी पूजन कर रहे हिंदुओं पर मुस्लिमों द्वारा आक्रमण होता है और रक्त रंजीत नोआखली हत्या कांड का प्रारंभ होता है।
300 से अधिक हिंदुओं का संहार होता है। हिन्दू स्त्रीयों के चरित्र भंग किए जाते हैं।
उस समय सत्ता की तरफ सहायता की आश लगता हैं हिन्दू ! किन्तु ठगा जाता है हिन्दू। महात्मा ने भी हिंदुओं के घावों को भरने के बदले उसे अधिक पीड़ा में धकेल दिया।
तभी. तभी एक वीर हिन्दू जागा- गोपालचन्द्र मुखर्जी उर्फ गोपाल पाठा। उसने शस्त्र उठाए, विधर्मियों का प्रतिकार किया, हिंदुओं में आत्मविश्वास जगाया तब जाकर वह तूफान शांत हूआ।
[वह रुका, गहन प्रश्वास भरा।]
मैं – गोपाल पाठा को मैं नमन करता हूँ। मैं.. हम ... ।
इतिहास – तुम अभी पूरे जागे नहीं हो, तुम्हें मैं और भी सुनाता हूँ। हो सकता है उसे सुनकर तुम कुछ अधिक जाग जाओगे। सुनो।
15 अगस्त 1947. देस का विभाजन, बंगाल का भी विभाजन । पूर्व बंगाल का भाग भारत से छूट गया। बन गया पूर्व पाकिस्तान। देस विभाजन से पंजाबी और बंगाली सबसे अधिक प्रभावित हुए। लाखों पंजाबी और बंगाली लाशें बनकर ही भारत में प्रवेश कर सके। पंजाब का टुकड़ा तो पाकिस्तान में चला गया किन्तु बंगाल का टुकड़ा भारत की छाती पर पूर्व पाकिस्तान बनकर बंगाल के हिंदुओं को क्षण प्रतिक्षण अपमानित करता रहा।
पूर्व पाकिस्तान के हिंदुओं पर अत्याचार होने लगे। नरसंहार होता रहा। भारत से सहायता की आश लगाता बंगाली हिन्दू पुन: ठगा गया। उसे कोई सहायता नहीं मिली। वे उस नरक में यातनाएं सहता रहा।
[वह रुका। मेरे मुख को देखने लगा। मेरे मुख पर क्रोध के भाव स्पष्ट उभर आए थे।]
तुम्हारे क्रोध का भाव अभी कच्चा है। उसे पकने दो।
मैं – जी ... जी ... ।
इतिहास – आगे सुनो।
1971, दिसंबर का महिना। पाकिस्तान के विरुद्ध पूर्व पाकिस्तान में आंदोलन प्रारंभ होता है। जिसके कारण जब स्थिति अत्यंत गंभीर हो जाती है तो भारत सशस्त्र हस्तक्षेप करता है। पाकिस्तान की सेना को परास्त कर पूर्व पाकिस्तान अर्थात पूर्व बंगाल को भारतीय सेना जीत लेती है।
हिन्दू बंगाली प्रसन्न होते हैं। उन्हें आशा होती है की अब वह पुन: अपने देस भारत का हिस्सा बन जाएंगे। शांति और सुख लौट आएंगे। सारी समस्या, सारी पीड़ा, सारी यातना आदि का सुखद अंत होगा।
किन्तु,
पुन: एक बार बंगाल का हिन्दू ठगा गया। पूर्व बंगाल को भारत ने उसके हाल पर छोड़ दिया। उसे भारत में विलीन करने का साहस नहीं कर सका भारत का राजकीय नेतृत्व।
और? एक नए देस ने जन्म लिया- बांग्लादेस। बांग्ला हिंदुओं की सारी आशाएं, अपेक्षाएं धूम्रसेर बनकर हवा में विलीन हो गईं। उनके लीये कुछ नहीं बदला, कुछ नहीं।
[मैं जोश से खडा हो जाता हूँ।]
इतिहास – तूम खड़े हो गए हो यह देखकर मुझे प्रसन्नता हुई। किन्तु अभी थोड़ा और सुन लो, थोड़ा और समझ लो.
[मैं उसकी तरफ उत्सुकता से देखता हूँ।]
इतिहास- 2024, 5 अगस्त। तत्कालीन बांग्लादेसी प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलट होता है। वह देस छोड़कर भाग जाती है। और बांग्लादेस के लघुमती हिंदुओं पर अत्याचार प्रारंभ होता है। उसे लूटा जा रहा है, मारा जा रहा है। स्त्रीयों पर बलात्कार हो रहे हैं। मंदिरों में स्थित भगवान की मूर्तीयां तोड़ी जा रही है।
प्रत्येक भूखे को दोनों समय पर्याप्त भोजन कराकर पेट भर रहे इस्कॉन के स्वामी चिन्मय कृष्ण दास को अपराधी बनाकर पकड़ लिया गया है। हिंदुओं का अन्न खाकर हिंदुओं को ही मार रही है बांग्लादेस की बहुमत जनता। हिंदुओं को नष्ट करने पर तुली है बांग्लादेस की बहुमत प्रजा। और उसे समर्थन दे रही है बांग्लादेस की सरकार। हिन्दू नि:सहाय है। आज भी बांग्ला हिन्दू भारत की तरफ आश लगाए बैठ है, किन्तु ...
[उसका कंठ रुँध गया। वह कुछ क्षण रुका।]
किन्तु भारत तो है निरपेक्ष, निष्क्रिय। भारत सो रहा है, भारतीय हिन्दू सो रहा है। क्यों कि, हमारा वहाँ कौन है जो हम गहरी नींद से जाग जाएँ?
बंगाल के हिंदुओं ने इतिहास से इतना तो सिख ही लिया है कि संकट के समय में कोई उनके साथ खड़ा नहीं रहता है। ना भारत, न ही भारत का हिन्दू। अपनी लड़ाई स्वयं ही लडनी पड़ती है।
वे लड़ रहे हैं, अकेले। यदि किसी से भी आशा रखी जाएगी तो पुन: ठगे जाएंगे। वे लड़ रहे हैं, हम सो रहे हैं।
हम में से कोई उसके साथ नहीं लड़ रहा। न मैं, न तुम, न और कोई। हम सब सो रहे हैं, हमें क्या?
एक ध्वनि – मैं साथ हूँ, बांग्लादेस के हिंदुओं के साथ।
[सभी की दृष्टि उस ध्वनि को खोज लेती है। वह एक बालक की ध्वनि है। वह अपने शब्दों के साथ, आत्मविश्वास से मंच पर चड जाता है। ]
बालक- मैं बांग्लादेस के हिंदुओं के साथ हूँ। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि इस बार ठगे नहीं जाओगे। क्यों कि मैं, यह, वो हम सब आपके साथ हैं। पूरा भारत आपके साथ है।
प्रेक्षक- हाँ। हाँ। पूरा भारत साथ है। बांग्लादेस के हिंदुओं के साथ।
[पार्श्व में गीत बजता है – वंदे मातरम। सूजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम। वंदे मातरम। ]
समाप्त