Yey Vada Raha in Hindi Comedy stories by dilip kumar books and stories PDF | ये वादा रहा

Featured Books
Categories
Share

ये वादा रहा

“ये वादा रहा” (व्यंग्य कथा)
सुबह-सुबह दफ्तर जाने के लिये घर का मेन गेट खोला तो सामने के खाली प्लाट पर नाग देवता फन काढ़े हुए हमारे घर की तरफ देखते नाग को इस तरह अपनी तरफ एकटक देखा तो मेरी रूह फ़ना हो गई। मैंने खुद को कोसा कि जब गाय को रोज दो रोटी खिलाया ही करता हूँ तो मैंने फिर नेवले को दो ब्रेड खिलाना बंद क्यों कर दिया ? अब इसे कंजूसी कहें या लापरवाही कि ब्रेड के एक टुकड़े के चक्कर में सुबह सुबह नेवला मेरे घर के आसपास अक्सर मंडराता रहता था। उसी एक ब्रेड के टुकड़े के एवज में नेवला मेरे घर को जहरीले जीव जंतुओं से महफूज रखता था । इधर हफ्ते भर से मैंने ब्रेड डालना बंद किया तो नेवला दिखा ही नहीं। नेवले का पलायन हुआ तो सांप का आगमन हो गया। हालांकि नागराज अभी मुझसे थोड़ी दूर थे मगर अडिग होकर मेरी तरफ ही देख रहे थे। सांप को फन काढ़े देखकर मेरा डर और बेचैनी बढ़ने लगी। मैंने डर के मारे गेट बंद कर लिया और आगे के एक्शन के बारे में सोचने लगा। बाहर निकलना भी मुश्किल था और दफ्तर जाना भी जरूरी था ।सांप के जहर से जहर से न मरता तो बॉस की दी गई ज़िल्लत से मरता। एक तरफ़ कुंआ था तो दूसरी तरफ खाईं। हारकर मैंने घर में वापस लौटने का तय किया। किचेन से मैंने एक ब्रेड का टुकड़ा लिया ।फिर कुछ और सोचा तो दो ब्रेड के टुकड़े लिए और साथ में लकड़ी की एक भारी औऱ लम्बी लाठी ले ली। मैंने सोच लिया था कि पहले ब्रेड फेंकूँगा और ब्रेड देखकर कहीं से नेवला आ गया तो फिर सांप से मेरी लड़ाई नेवला ही लड़ेगा। और अगर नेवला नहीं आया तो लाठी से सांप का सामना मैं करूंगा। आखिर दफ्तर भी तो जाना है, वहाँ भी इमरजेंसी थी ,आडिट जो चल रहा था। कौन सा हथियार काम करेगा , ब्रेड या लकड़ी की लाठी? यही सब सोचते हुए दुबारा मैंने घर का गेट खोला तो सामने सांप की जगह अपने वामपन्थी मित्र विक्टर नार्थ को पाया। उन्हें मैंने कहा “आप जल्दी से अंदर आ जाइये। सामने के प्लाट पर एक जहरीला सांप है जो बेहद खतरनाक है” ।
उन्होंने तपाक से कहा- “तुम्हारी सोच से जहरीला इस वक्त कुछ भी नहीं है इंडिया में । तुम राइट विंगर्स से खतरनाक इस प्लेनेट पर कोई नहीं है। सांप के जहर का इलाज तो एंटी वेनम है मगर तुम लोगों के दिलोदिमाग के जहर का तो कोई इलाज ही नहीं है”।
उनकी मौखिक मिसाइलों के वार से मैं हतप्रभ रह गया। विक्टर नार्थ तब से मेरे पुराने मित्र थे जब से वह वासुदेव नाथ हुआ करते थे। उन्होंने अपना धर्म तो नहीं बदला था अलबत्ता सोच जरूर बदल ली थी। सोच बदलने पर उन्होंने सबसे पहले अपना नाम बदला । उन्हें अपने सनातनी पिता द्वारा दिया गया धार्मिक नाम धर्म -कर्म में काफी पगा हुआ लगता था। सो उन्होंने अपना पुकारू नाम वासुदेव नाथ से विक्टर नार्थ कर लिया। यह सब बदलाव जुबानी ही था अभिलेखों में सब कुछ उन्होंने पूर्ववत ही रखा था।वह पुराने मित्र रहे हैं।लाइब्रेरी में दस-पचास किताबें पढ़कर काफी मॉडर्न औऱ थोड़े वामपंथीया गए हैं। कुछेक दिनों से हर समय क्रांति और बदलाव की बात करते हैं।कुछ नया करने का भूत उन पर हमेशा सवार रहता है आजकल।
मैंने उनसे कहा –
“हमें तो नाग देवता काट लेते तो हम तो स्वर्ग जाते। मगर कल्पना कीजिये अगर आप को सांप ने डस लिया होता तो आपकी मृत्यु के बाद आपकी देह का क्या होता ”?
उन्होंने कुछ देर तक सोचा फिर कहा –
“यह स्वर्ग –नरक, मोक्ष -मुक्ति, तुम जैसे लोगों का ढकोसला है। मैंने तो घरवालों को बता दिया है कि मेरी मृत्यु पर अग्निसंस्कार नहीं करवाना। मैंने तो सोच रखा है कि जब देह से प्राण ही निकल गए तो फिर यह देह फूंकवाने से अच्छा किसी के काम आए। इस मृत देह से जीव जंतुओं का पेट भरे।और बड़ी बात जो है वह यह है कि ऐसा करने पर पेड़ बचेंगे। इस तरह से काफी जंगल बचेंगे । वरना दाह संस्कार में तो कितनी सारी लकड़ी लगती है ? मैं तो जल्द ही मृत्यु के बाद होने वाले अग्नि संस्कार के विरुद्ध एक जनांदोलन खड़ा करूंगा”।
ये कहकर और अपने को विजित मानते हुए कॉलर ऊंचा करके वह उपहास की दृष्टि से मुझे देखने लगे कि मैं उन्हें प्रशस्ति दूंगा कि, भई वाह,, क्या ऊंचे किस्म विचार हैं ?आप तो बदलाव की साक्षात मूर्ति हैं, इतिहास आपको इस महान घटना के लिए काफी दिनों तक याद रखेगा”।
लेकिन दुर्भाग्य से मैं उनकी उम्मीदों पर खरा न उतर सका। मैंने सावधानी से दूर तक नजरें दौड़ाईं मगर नेवला कहीं नजर न आया। अलबत्ता साँप अब भी उसी तरह फन काढ़े हमारी तरफ देख रहा था । मैंने सावधानी से ब्रेड के दोनों टुकड़े खाली प्लाट की तरफ फेंक दिए और इस बात की प्रतीक्षा करने लगा कि यदि नेवला कहीं से ब्रेड के उन टुकड़ों को देख ले तो हमारी तरफ आ जाये ताकि नागराज के कोप से हम बच सकें।
उन्हें मेरा यह कृत्य मूर्खतापूर्ण लगा ।वह मेरा उपहास उड़ाते हुए हँसे।
पहले उनके शब्द बाणों और फिर उनके उपहास से मैं तिलमिला उठा।
अपने शब्दों को चबाते हुए मैंने उनसे कहा-
“सुनो , इंटलीजेंट इडियट। पहली बात यह कि अग्नि संस्कार में ज्यादा से ज्यादा एक देह के लिए आठ मन यानी 3क्विंटल 20किलो लकड़ी लगती है। यह तो मैने ज्यादा ही बताई है।तुम जिस हिसाब से धूम्रपान कर रहे हो। उसमें तो तुम्हारा ज्यादातर शरीर सिगरेट ही जला देगी । बाकी बचा -खुचा तुम्हारी रगों में घूम रही दारू फूंक देगी। मान लो फिर भी अगर पांच-दस किलो बच भी गए। तो भी तुम पेड़ों की चिंता हर्गिज मत करना भाई। हम तुम्हें पुरानी चप्पलों और फटे हुए टायरों,पोलीथिनों में दबाकर फूँकवा देंगे। ये वादा रहा। इस तरह से मरने के बाद सब कुछ तुम्हारी इच्छानुसार ही होगा । इससे जंगल भी बच जाएंगे और तुम्हारा काम भी बन जाएगा”।
उन्होंने मुझे तिलमिला कर कहर भरी नजरों से देखा।
मैंने उनकी नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मुस्कराते हुए कहा-
“चिंता मत करो बन्धु। हम तुम्हारी हर इच्छा का मान रखेंगे।अब रही तुम्हारे जनांदोलन करने की बात।तो भाई मेरे, इतनी लकड़ी तो एक पेड़ के कुछ ही हिस्सों से प्राप्त हो जाती है। तुम अग्नि संस्कार के बहिष्कार की बजाय ये आंदोलन क्यों नहीं करते कि प्रत्येक व्यक्ति हजार पेड़ लगाकर मरे।उससे पहले मरेगा तो उस लापरवाह व्यक्ति को चील-कौओं को खिलाया जाएगा।दुनिया से जाने से पहले हर इंसान कम से कम सौ पेड़ लगाए। और अगर इतना न कर सके कम से कम दस पेड़ ही लगाए।इस नियम का हर व्यक्ति जरूर पालन करे । मरते वक्त बच्चों को कह दे कि एक पेड़ की लकड़ियों से मुझे अग्नि संस्कार करना और पूर्वजों की परंपरा निभाना और बाकी बचे 9 पेड़ो को मेरी याद में संभालना और इनकी टहनियों से ठोस और लंबे डंडे बनाना। ताकि कोई कुपंथी अगर अग्नि संस्कार का विरोध करे तो मार लठ, मार लठ, रुई सी उसे धुन देना। अन्यथा तुम लोगों को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा और न ही मेरी आत्मा को शांति”।
बस इत्ते छोटे से वार्तालाप से बंधु रूठ गए। वह भिनभिनाते--बिलबिलाते हुए मुझे कुछ कहने ही वाले थे तब तक मैंने सांप को तेजी से अपने गेट की तरफ जीभ लपलपाते हुए आते देखा। डर के मैं सिर्फ इतना चीखा –
“पीछे देखो साँप, भागो जल्दी”।
भागकर मैं गेट के अंदर आया और अंदर हो लिया ।
विक्टर साहब चीखे “अरे मुझे भी तो अंदर लो भैया। अपने दरवाजे पर सांप से डसवा कर मरवाओगे क्या “?
“आते हैं और और आपको बचाते हैं । ये वादा रहा” ये बोलते हुए घर के अंदर जा रहे कदमों को मोड़कर मैंने गेट खोल दिया और विक्टर साहब अंदर आ गए । मैंने तड़ से गेट बंद कर दिया।
लाठी ताने सांस रोके मैं गेट से सांप के अंदर आने की प्रतीक्षा कर रहा था । हालांकि मेरे हाथ में लाठी थी और मैं खुद को बहादुर दिखाने का प्रयत्न कर रहा था मगर अंदर से मैं भी थर -थर कांप ही रहा था और विक्टर साहब तो डर के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे।
यूँ ही डर और आशंका में जब पांच मिनट बीत गए तब मैने लाठी ताने हुए सावधानी से गेट खोला ।
दरयाफ्त करने पर पाया वहां कोई सांप नहीं था और सामने के प्लाट पर नेवला मेरे दिए हुए ब्रेड के टुकड़ों को कुतर -कुतर कर खा रहा था।
विक्टर साहब ने धीरे से कहा “शायद सांप हमारी तरफ हमें डसने के लिए नहीं दौड़ा था बल्कि नेवले को देखकर खुद को बचाने के लिए सांप भागा था”।
मेरे मन में असमंजस था मगर मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
नेपथ्य में कहीं रफी साहब का एक गीत बज रहा था “ये वादा रहा”। आपने भी इस मधुर गीत की स्वरलहरियां सुनीं क्या ?
समाप्त
कृते-दिलीप कुमार