यू तो सुधा की नींद सुबह 5 बजे ही खुल गई थी,लेकिन शरीर मे ना तो कोई स्फूर्ति,ना कोई उमंग....
कहाँ तो कभी कभी 5 घंटे की नींद भी बहुत लगती थी...अनिकेत चाय का कप पकड़ते ही बोल
उठते “क्या सुधा ... इतने जल्दी क्यो उठ जाती हो...पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है..कुछ देर से उठोगी
तो क्या बिगड़ जाएगा"
“मुझे जल्दी उठ कर आपको चाय देना .... पूजा करना और उगते सूरज को देखना बहुत पसंद है ..मुझे इतनी नींद पर्याप्त लगती है”
वो चादर तय करती हुई बोलती तो कभी बिस्तर ठीक करते हुए ...
"मुझे भी लत लगी हो जैसे तुम्हारे हाथ की चाय पीने की" अनिकेत अक्सर मुस्कुरा कर यही बात बोल देते... और वो इठलाती सी बाकी कामों मे लग जाती ... ना थकान महसूस होती ना ही नींद की कमी...
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खिड़की से झांक कर देखा तो सूरज ऊपर तक चढ आया था, अभी तक ...किसी ने, ना तो उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया था...ना ही कोई आवाज दी थी, उसकी नजर पास ही सो रही दो वर्षीय कुमुद पर चली गयी...मासूम बच्ची दुनिया से बेखबर , अपने सपनों की दुनिया मे थी... कभी मुस्कुराती तो कभी चेहरे को धूप की वजह से सिकोड़ लेती ...सुधा ने उठकर पर्दा खींच कर ठीक किया... कुमुद का तनाव भरा चेहरा संयत हो गया था अब,
कमरे से बाहर निकलते ही मालती जी को सामने पाया वो सुधा को देखते ही बोलीं “सुधा... जल्दी तैयार हो जा...अनिकेत मान गया है तलाक के लिये, लेकिन.."
“लेकिन क्या माँ?” उसने चिंतित होते हुए पूछा
“लेकिन ये कि तलाक देने से पहले वो कुछ बात करना चाहता है इसलिए उसने हम लोगों को कचहरी के पास वाले रेस्टोरेंट में बुलाया है..कुमुद को भी साथ ले चलों... हम्म"
“अब भला ये.. या कुमुद क्या करेंगे ,हम बड़े ही बात कर लेंगे “ मालती की बात से उनके पति हरिप्रसाद ने चिढ़ते हुए कहा
”नहीं बात तलाक की है.... हमें सब बात पता भी तो नहीं ... इसीलिए सुधा का होना बहुत जरूरी है" मालती बोलीं
“ठीक है .... तो फिर कुमुद को क्यो ले जाना...मैं नही चाहता उस नालायक का साया भी मेरी नातिन पर पड़े ?” हरिप्रसाद ने ऊंचे स्वर मे कहा
“ये मत भूलिए कि हमारी बेटी ने शादी उसी नालायक से की है ...."
ये सुनते ही हरिप्रसाद माथे पर बल पड़ गए और वो निढ़ाल से सोफे पर बैठ गए...उन्हें चुप देखकर मालती समझाते हुए बोली
"तलाक का केस शुरू होने के बाद मैं नही चाहती कुमुद वहाँ जाये..कोर्ट में लोग ना जाने कैसी -कैसी बातें करते हैं... जरा सी बच्ची है.. ना जाने उसके अबोध मन पर क्या असर पड़े…”
बोलते बोलते भाबुक मालती ने अपनी साड़ी का पल्लू भावनाए छुपाने के लिए मुंह पर रख लिया ...मालती को ऐसे भाबुक देख हरिप्रसाद भी भावुक हो गए ..और खुद को संयत करने के लिए दूसरी ओर देखने लगे ।
सुधा के लिए ये सब देखना बहुत मुश्किल हो गया... तो भीतर चली गयी ...कुमुद को सोते से उठाया और तैयार करने लगी.....
”मम्मा ...हम कहाँ जा रहे हैं “ अबोध कुमुद ने पूछा
“तुम्हारे पापा के पास “ सुधा ने उसे कपड़े पहनाते हुए कहा
“ये ह...और रिशव भैया के पास “ दोनो हाथों से ताली बजाते हुए कुमुद बोली
“हुम्म ...रिशव भइया...सारा ड्रामा तो उन्ही लोगों का है “
“मम्मा ....रिशव भइया के पापा नही ना “ मासूम बच्ची की भोली आंखो का सामना करना मुश्किल हों गया सुधा के लिए ...कुमुद को पास ही बैठा, वो अपनी साड़ी बांधने लगी
“मम्मा पैसे दो ना...”
“पैसे क्यूँ ...क्या करेगी पैसों का? “
“रिशव भइया के लिए चॉकलेट लेनी है… उनके पापा नयी ना...”
“ये क्या ...? पापा नहीं ना..पापा नहीं ना लगा रखा है “
सुधा कुमुद की ओर देख थोड़ी सख्ती से बोली
“ताई जी के पास पैसे भी नयी है....मम्मा"
"किसने कहा तुझसे ये सब ? "सुधा ने कुमुद के पास बैठ कर बड़े प्यार से पूंछा
“रिशव भैया ने ...” वो धीरे से बोली
सुधा ने उसे गोद मे उठाना चाहा तो नन्ही कुमुद ने दौड़ कर अपना पिग्गी बैंक उठा लिया
“ये क्यूँ ?"
“ताई जी के पास पैसे नहीं ना,… मैं उन्हे दूँगी “
कुमुद से ये सुन सुधा की आंखो के सामने वो दृश्य घूम गया...जब उसके जेठ जी के खत्म होने के बाद करवाचौथ का त्यौहार आने वाला था....और अनिकेत उसके और उसकी जेठानी के लिए एक ही जैसी दिखने वाली दो साड़ियां ले आया और जेठानी के लिए पायल भी ,जिसे देख उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया था।
“मैं पूंछती हूँ ये सब है क्या? एक जैसी दो साड़ियां देखकर उसने गुस्से से तिलमिलाते हुए अनिकेत से पूछा
“सुधा ...एक जैसी साड़ियां जानबूझक्रर लाया हूँ,ताकि भाभी को ये ना लगे की भैया नही रहे ..तो इस घर मे उनका खयाल रखने वाला कोई नही “ अनिकेत समझाते हुए बोला
“मैंने कब मना किया साड़ी लाने को? लेकिन एक जैसी क्यों ,मेरे लिए ...इतनी सस्ती साड़ी क्यो”
“सुधा ... जरा सोचो...उनके लिए सस्ती और तुम्हारे लिए महंगी लाता तो उन्हे कितना बुरा लगता... दीपावली आने वाली है, भैया के गुजर जाने से वो पहले ही काफी दुखी हैं ...बस्स थोड़े समय की बात है, वो संयत हो जाएगी“ उसने सुधा के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा
“अच्छा ...तो फिर उनके लिए ये पायल क्यो ?" उसने अनिकेत का हाथ झटकते हुए कहा
“क्योंकि इस वक़्त उनका सबसे ज्यादा खुश रहना जरूरी है ...और तुम जानती हो...आजकल पैसों कि तंगी है ...इसीलिए बस्स उनके लिए ले आया ...जल्दी ही तुम्हारे लिए इससे भी भारी पायल लाऊँगा” अनिकेत लाचारगी दिखाते हुए बोला
“देख रही हूँ ...कुछ ज्यादा ही ख्याल ही रख रहे हो उनका...खूब समझती हूँ मैं.. “उसने सख्त होकर कहा
“क्या समझती हो ...” ये सुनकर अनिकेत ने ठीक उसके सामने आते हुए पूंछा
“यही कि... भैया तो रहे नही...तो कोई कहने-सुनने वाला भी नहीं..तो क्यूँ ना तुम उन्हें ...." वो बोलते बोलते चुप हो गयी
"उन्हें ...क्या...?" अनिकेत ने गुस्से में पूँछा
" उन्हें प्रभावित करके अपने पास ही रख लो .... और ... एक साथ दो पत्नियों का सुख .....
“क्या अनर्गल बोले जा रही हो.. क्या मानसिकता सड़ चुकी है तुम्हारी” बीच मे ही टोकते हुए अनिकेत चीख पड़ा
....उसने सपने में भी सुधा से ऐसी मानसिकता और सोच की अपेक्षा नहीं की थी...
गुस्से में उसने अपना हाथ उछाला और कुछ सोचते हुए रुक गया
“रुक क्यों गए... मारो मुझे ...यही कमी रह गयी है ,तुम्हें लगता है....मैंने घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी की है तो कहीं ठिकाना नहीं मेरा...इसीलिए जो चाहो करते रहो....मैं सब सहती रहूँगी..लेकिन मैं उन औरतों में से नहीं हूँ...मैं ना तो चुप रहूँगी और ना तुम्हारी ज़्यादतियाँ सहूँगी...हरगिज नहीं.. ”
चेहरा तो चेहरा, गुस्से में पूरा शरीर कांप रहा था सुधा का... और घंटो लगाकर तैयार होने वाली सुधा ने दस मिनट मे अपना बैग तैयार कर लिया...
एक हाथ मे कुमुद और दूसरे हाथ मे बैग उठाए सुधा तेज़ी घर से बाहर निकल गयी ...और अनिकेत मानो सदमे मे हों... सुधा की कही बातें उसके दिमाग मे लगातार घूम रही थी,
बस चुपचाप जड़ बना वो उसे जाते हुए देखता रहा था ...
....
आज अपने माँ के घर आए सुधा को पूरे बीस दिन हो गए हैं,हर दिन अनिकेत फोन करता,लेकिन सुधा कभी फोन नहीं उठाती,हर कॉल के जवाव मे बस्स एक मेसेज करती जिसमें लिखा रहता
“मुझे तलाक चाहिए”
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कार के हॉर्न की आवाज से चौंकती हुई सुधा ने कुमुद को गोद मे उठाया और जाकर कार मे बैठ गयी…कार तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी... और लगभग सब ही चुप थे...कुमुद की बातों पर कभी कभी सुधा की माँ कुछ बोल देती ... लेकिन पापा कुछ नहीं... वो शुरू से ही अनिकेत से शादी के सख्त खिलाफ थे,जब उसने अनिकेत से अपनी शादी का फैसला घर में सुनाया... तो वो घोर निराशा के स्वर में बोले थे
“मैं चाहता हूँ तुम सिविल सर्विस की तैयारी करो....और तुम हों कि एक मामूली से क्लर्क से शादी करने चली हो कैसी सोच है तुम्हारी...मैं हैरान हूँ,वो लड़का ना इस परिवार के लायक है और ना ही तुम्हारे लाइक है”
लेकिन किसी की ना सुनते हुए उसने अनिकेत से शादी कर ली थी... और शादी के लगभग तीन साल बाद जब वो घर आई तो ऐसे .....
...अचानक तेज ब्रेक के साथ कार रुकी ...किसी जुलूस की टुकड़ी सड़क पर आ गयी थी।. ...इसलिए झटके के साथ कार रोकी थी ड्राइवर ने... सुधा भी अपनी सोच से बाहर आ गयी।
बाहर नजर गयी तो देखा कि अचानक मौसम बड़ा सुहाना हों गया था , उसने शीशा नीचे कर लिया....उसे अनिकेत का ख्याल आ गया..इस वक़्त अनिकेत पास होते तो जरूर बोलते
“सुधा पकौड़ी बना लो ना,चलो तुम चाय बनाओ मैं प्याज काट देता हूँ “ बारिश तो क्या... बादल ही घिरते तो पकौड़ी की फरमाइश कर देते अनिकेत ....उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी...
कुछ मिनटों बाद ही एक छोटे से रेस्टोरेंट के सामने गाड़ी रोकी ड्राइवर ने ...पहली नजर अनिकेत पर ही गयी सुधा की ...
सामने ही सिगरेट पीते नजर आए ...उसे देख सिगरेट छिपाने की नाकाम कोशिश करने लगे....
सुधा को शादी के बाद का वो दिन याद हो आया जब देर रात ...कमरे के बाहर बनी बालकनी में वो अनिकेत की बाहों में सिमट कर बैठी थी...और अनिकेत सिगरेट पीते हुए उससे बातें कर रहा था...
“अनिकेत..... सिगरेट पीना छोड़ दो ना...पीते तुम हों,कलेजा मेरा सुलगता है” उसने अनिकेत से मनुहार करते हुए कहा था
“क्या..तुम्हे इतना दुख होता है ...तो पहले क्यों नहीं कहा...अच्छा लो ... इसी क्षण से छोड़ देता हूँ.... “ अनिकेत ने मुस्कुराते हुए सिगरेट बुझा दी और उस दिन के बाद सुधा ने अनिकेत को आज सिगरेट पीते देखा....
मानसी भाभी,और सास ससुर जहाँ सुधा के माता पिता से बात करने लगे वहीं सुधा अनिकेत के पास चली आई
“सिगरेट पीने लगे हों? “ तल्खी से पूंछा उसने
“नहीं तो ...वो तो ब्स्स बहुत तनाव हो रहा था.. इसलिए...जब से मना किया था तुमसे उस दिन के बाद .. आज ही पहली बार जलाई थी..कि “
उसके जवाब में सुधा ने कोई रुचि ना दिखाते हुए अगला सवाल कर दिया।
“तनाव मे कैसे ...मैंने तो सुना कि शादी की तैयारी मे हों ? फिर तो खुश होना चाहिए" वो तंज के स्वर में बोली
“शादी ....किसने कहा “?अनिकेत ने अचकचाते हुए पूँछा
“उससे क्या फर्क पड़ता है... ?" वो धीरे से बोली
अनिकेत कुछ सोचकर मुस्कुराया और बोला "अच्छा ...किसी ने मुझे मॅट्रिमोनियल के ऑफिस में देखा होगा.... मैं खुद के लिए कोई लड़की नहीं...बल्कि मानसी भाभी के लिए कोई उनके मुताबिक साथी तलाश रहा हूँ"
अनिकेत का ये जवाब सुन सुधा ने एक गहरी साँस खींची और कहा "ओह्ह .."
"हम्म...वो जल्दी से जल्दी शादी करना चाहती हैं , सो भी किसी के भी साथ "
"किसी से भी?" पूँछने के साथ ही वो मजाक उड़ाने के अंदाज में मुस्कुराई...अनिकेत को सुधा का ऐसा रवैया देखकर बहुत कोफ्त हुई वो आगे बोला
"भाभी कहती हैं इस घर मे ना रहेंगी...जिस दिन तुम गयीं थी...उस दिन उन्होने हमारे बीच की कहासुनी सुन ली था...तब से वो खुद को दोषी मानती हैं ...उन्हें यकीन है उनकी शादी से हमारे बीच आई ये दूरियाँ खत्म हो जाएंगी “ अनिकेत के इतना कहते ही सुधा के चेहरे के भाव बदल गए
"बहुत कोशिश की मैंने उन्हें मनाने की..समझाने की...लेकिन ना तो उस दिन की मेरी लायी हुई वो साड़ी और पायल लीं ...ना उस दिन के बाद से किसी तरह की कोई मदद ली...बल्कि पास के स्कूल में ही टीचिंग की जॉब कर ली है...
.बड़ा असहाय महसूस करता हूँ खुद को..सोचता हूँ...इस दुनियां से जाने के बाद भईया से कैसे नजर मिला पाऊँगा..ऊपर से देखते होंगे तो.सोचते होंगे...कि इतना बड़ा परिवार होकर भी कोई मेरी बीबी का एक महीने भी ख्याल नहीं रख पाया" बोलते बोलते अनिकेत के चेहरे पर गहरा दुख दिखने लगा था....
"जानती हो सुधा...बारहवीं के बाद मेरी ग्रेजुएशन और उसके बाद परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग ....सब भईया ने ही कराई थी...वो मुझे भाई नहीं बल्कि बेटा मानते थे अपना"
...इतना बोल अपनी आँखो में भर आये आँसू उसने जल्दी से पोंछ लिए सुधा नजरे नीचे किए सब सुनती जा रही थी...उसे पहली बार एहसास हुआ था...कि कितनी बड़ी गलती हो गयी थी उससे..
इतने मे अनिकेत ने उसकी तरफ एक सुंदर सी पायल बढ़ाते हुए कहा
"सेलेरी मिलते ही सबसे पहले यही खरीदी ...सोचा तुम्हारी आखिरी फरमाइश पूरी कर दूँ....शादी के
वक़्त वादा किया था... सात जन्म तक साथ निभाऊंगा.. लेकिन इस जन्म भी तुम्हें खुश ना रख पाया “
सुधा ने पायलों की ओर देखा उसे खुद पर इतनी शर्म महसूस हुई...कि कहीं गायब ही हो जाये।
इतने में “पापा ... पापा “ पुकारते हुए कुमुद दौड़ती हुई आई और अनिकेत की गोद मे बैठ गयी
अनिकेत ने उसे चूमते हुए कहा
“मेरा प्यारा बच्चा कैसा है ?”
“आई मिस यू पापा..." कुमुद खुशी से चहकते हुए बोली
"आई मिस यू टू बेटा” अनिकेत ने उसे दुलारा और सुधा से बोला
“तलाक के केस मे बच्चे की कस्टडी का बड़ा मसला होता है, लेकिन तुम चिंता मत करना ...कुमुद तुम्हारे
पास ही रहेगी, मैं तुम्हें दुखी नहीं देख सकता”
“पापा मैं खेलने जाऊँ ".....कुमुद खुश होती हुई बोली
"हाँ बेटा जाओ”अनिकेत न कहा और कुमुद दौड़ गयी।उसके जाने के बाद दोनों कुछ देर खामोश रहे ....
कि इतने मे ही तेज़ शोर हुआ ...
और सब एक तरफ “कुमुद कुमुद “चिल्लाते हुए भागे
“क्या हुआ “ अनिकेत ने पूंछा
“कुमुद नाले मे गिर गयी “मालती घबराई सी बोली
“अनी ...कुमुद को कुछ नहीं होना चाहिए “ सुधा ने अनिकेत की बांह पकड़कर रोते हुए कहा
“कुछ नहीं होगा हमारी बच्ची को ...तुम चिंता मत करो” उसने जूते उतारते हुए कहा और अगले पल नाले मे उतर गया...थोड़ी देर बाद बापस निकला, कुमुद को लेकर ... तो सुधा दौड़ती हुई उसके पास आ गई,अनिकेत ने बढ़कर कुमुद को उसे सौपते हुए कहा
“ चिंता मत करो ये बिल्कुल ठीक है,नाले से एकदम सुरक्षित बाहर निकली है”
“यही नहीं..मैं भी”
“मतलब?अनिकेत ने पूछा लेकिन वो मानसी की ओर बढ़कर पैर छूते हुए बोली .
."बहुत बड़ी गलती हुई है मुझसे .बेबकूफ़ समझ माफ कर दीजिए,यकीन दिलाती हूँ कि ये मेरी अंतिम गलती है...क्या कहूँ शर्म से गढ़ी जा रही हूं... भाभी मुझे इतनी बड़ी सजा मत दीजिये ...कि आप किसी से भी शादी करके अपना जीवन बर्बाद कर लें , ..जब आपका खुद का मन हो तब ही शादी करें और मन ना हो तो कोई जरूरत नहीं... मै सबके साथ मिलकर आपको इतनी खुशियां दूँगी कि आप इस घर से जाना ही नहीं चाहेंगी"
ये सुनकर मानसी का कोमल हृदय पिघल गया..वो भावविभोर होकर बोलीं
"अर् कैसी बात करती हो,मैंने तो तुम्हें अपनी देवरानी कभी समझा ही नहीं.. अपनी बेटी माना है ...इसलिए मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई नाराजगी नहीं" बड़े प्यार से उन्होंने सुधा को उठाते हुए कहा,..तो सुधा आंसू पोछते हुए बोली...
"भाभी...वो घर पहले आपका है ..और हमेशा आपका ही रहेगा..बाद में मेरा"
इतना सुनकर मानसी ने सुधा को अपने गले से लगा लिया...फिर सुधा अनिकेत के पास जाकर बोली
"तुमने कुमुद को ही नहीं.. मुझे भी गंदे नाले सी सोच से बाहर निकाला है..अनिकेत ..मुझे माफ़ कर पाओगे"?
"तुम्हारे और कुमुद के बिना मेरी ज़िंदगी भी नरक से कम नहीं" अनिकेत प्यार से उसकी ओर देखते हुए बोला
"चलो अच्छा हुआ ...दीपावली से पहले ही मन की सारी गंदगी साफ हो गयी...अब बड़ी खुशी -खुशी त्योहार मनेगा"
मानसी ने जब ये कहा तो सबके चेहरे पर खुशी की चमक आ गयी..
सुधा ने आंखों ही आँखों में अपनी मां से पूछा तो उन्होंने आश्वस्त किया कि, उसका फैसला सही है,अपने माता पिता से इज़ाज़त ले सुधा सबके साथ गाड़ी में बैठी ...और गाड़ी सड़क पर दौड़ गयी
सुधा के माता-पिता ने एकदूसरे की ओर देखा ...उन्हें ऐसा एहसास हुआ जैसे आज सही मायनों में उन्होंने बेटी की विदा की हो 😊
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साभार :-- सोनल जौहरी