Bharat ki rachna - 14 in Hindi Love Stories by Sharovan books and stories PDF | भारत की रचना - 14

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भारत की रचना - 14

 

भारत की रचना/ धारावाहिक

चौदहवां भाग

समय का पंछी लगातार उड़ता ही रहा.       

     रोजाना सूरज निकलता, नये दिन को जन्म देता, फिर शाम ढलती, रात बीतती और सृष्टि का चक्र चलता ही रहता. रचना के दिन इसी आस और उम्मीदों में व्यतीत हो रहे थे. भारत उससे एक दिन मिलकर, फिर शीघ्र ही वापस आने की बात कहकर गया था; पर वह अभी तक वापस नहीं आया था. जब से रचना की उससे आख़िरी भेंट हुई थी, तब से लगभग तीन सप्ताह व्यतीत होने जा रहे थे, परन्तु अभी तक भारत के लौटने के कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहे थे. वह न तो स्वय: ही आया था और न ही उसने अपनी कोई सूचना ही  भेजी थी. हां, इतना अवश्य ही था, भारत की ओर से रॉबर्ट को चेतावनी मिलने के पश्चात रॉबर्ट तब से एक बार भी कॉलेज नहीं झांका था. रचना, इस बात को समझती तो थी, परन्तु वह रॉबर्ट की इस चुप्पी से मन-ही-मन भयभीत भी हो चुकी थी. वह रॉबर्ट का व्यवहार अच्छी तरह से जानती थी, इसलिए वह उसको कभी-भी अच्छे और सभ्य मनुष्यों में नहीं गिनती थी. इस प्रकार रचना भारत के वापस आने की प्रतिदिन ही प्रतीक्षा करती थी. जब से वह एक बार उससे बात कर चुका था, तब से रचना का दिल और भी अधिक भारत को एक महत्वपूर्ण स्थान दे चुका था. इसके साथ-साथ उसको भारत की ओर से एक प्रकार का संतोष भी हो चुका था कि, वह जब भी कॉलेज आयेगा, तो रचना को एक बार अवश्य ही पूछेगा.

       सो इस प्रकार रचना, अब पहले से अधिक, अपने भावी भविष्य के सपनों को बुनती थी और उनके चित्रों को देख-देखकर कल्पनाओं के आकाश में उड़ती-फिरती थी. हांलाकि, वह अपनी अन्तरंग सहेली ज्योति को भी सब ही कुछ बता देती थी, परन्तु फिर भी कल्पनाओं की सुखमयी दुनियां में भ्रमण करती रहती थी. अपने पवित्र प्यार के बन्धनों में वह कभी स्वत: ही बंधती थी और खुद ही उनके बारे में सोचती थी. भारत के वापस आने की आशा वह प्रतिदिन ही किया करती थी. इसी आस में वह उसके पूर्व स्वागत में नित नये वस्त्र पहनकर कॉलेज जाया करती थी. ये वह वस्त्र थे, जो उसको ज्योति ने रामकुमार वर्मा की दुकान से एक विशेष छूट के दौरान खरीदे थे. भारत, चूँकि कॉलेज नहीं आ रहा था, इसलिए रचना ने पहले ही से उसके लिए सारे नोट्स सुरक्षित कर रखे थे, क्योंकि उसे विश्वास था कि भारत को आने पर उनकी आवश्यकता अवश्य ही पड़ेगी. इस प्रकार से रचना ने अपनी समस्त आशाएं और उससे सम्बन्धित सभी सपने भारत के तले सुरक्षित कर रखे थे. ये और बात थी कि, उसने अभी तक भारत से अपनी चाहतों के प्रति कोई बात नहीं की थी; हां, उसको एक इशारा तो समझने के लिए दे ही दिया था. सो अब आगे उसकी किस्मत थी कि, उसके सपने साकार हों अथवा नहीं, पर सपने बुनने से तो उसे कोई नहीं रोक सकता था.

       फिर, रचना के लिए, ये वह मनहूस घड़ी का दिन था, जब कि वह कॉलेज से वापस आ रही थी. उसका अंतिम पीरियड भी नहीं समाप्त हो सका था जब कि, वह समय से पहले ही अपनी कक्षा से जल्दी ही निकल आई थी. ज्योति भी दूसरी कक्षा में, जो रचना के विषय से भिन्न थी, चली गई थी. सो रचना अभी कॉलेज के मुख्य द्वार से बाहर निकलकर सड़क पर करीब पचास कदम ही आगे बढ़ पाई होगी कि अचानक ही उसके पास एक सफेद रंग की कार आकर रुक गई. इस पर रचना कार को अपने पास अचानक ही रुकते देखकर चौंक गई. तब उसने अचानक से ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक को देखा. वह कुछ सोचती और कहती कि तभी ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक जल्दी से उतरकर रचना के पास आया और उससे बोला कि,

       'रचना जी, चलो अच्छा हुआ कि आप ही यहाँ मिल गईं. मुझे अब आगे  हीं जाना पडेगा. मैं बहुत जल्दी में हूँ. मुझे अपनी दुकान के केस के सिलसिले में अभी कोर्ट में पहुंचना है. यदि मैं नहीं पहुंचा तो मेरा लाखों का नुकसान हो जाएगा. यह ब्रीफकेस मुझे अपनी दूकान तक पहुंचाना था. यदि आप इसे वहां तक न भी पहुंचाएं तो भी कोई बात नहीं है. मैं इसे कल, जब कॉलेज आऊँगा तब आपसे ले लूंगा. इसमें अन्दर कुछ नहीं कुछ जरूरी कागज़ात और दुकान के पैसे हैं, जिन्हें मैं बैंक से निकालकर लाया हूँ. इन पैसों को मैं कार में छोड़कर कोर्ट की तारीख अटेंड नहीं कर सकूंगा. एक बहुत बड़ी पार्टी आज दुकान पर आने को है. उस पार्टी के लिए ये पैसे इतने आवश्यक नहीं जितने कि, कागज़ात. मैं दुकान पर फोन कर दूंगा, या तो वहां से कोई आदमी आकर इस ब्रीफकेस को ले लेगा या फिर रॉबर्ट को ही भेज दूंगा. वह इसे आपसे ले लेगा.'

       '?'- इस पर रचना कभी उस युवक को, तो कभी ब्रीफकेस को आश्चर्य से देखने लगी; क्योंकि, वह युवक कोई और नहीं, बल्कि उसकी ही कक्षा का सहपाठी रामकुमार वर्मा था. और कुछ दिन पूर्व ही वह ज्योति के साथ उसकी दुकान पर खरीदारी भी करने गई थी.

       रामकुमार वर्मा ने यह सब इतनी शीघ्रता से कहा कि, उसने रचना को कुछ सोचने का अवसर ही नहीं दिया. वह कुछ कहती भी, इससे पूर्व ही, रामकुमार वर्मा अपनी कार में बैठकर वहां से चलता बना और रचना उसे आश्चर्य से देखती ही रह गई. वह कभी उस ओर देखती जिधर रामकुमार वर्मा की कार आगे बढ़कर सड़क की भीड़ में जाकर खो भी गई थी, तो कभी अपने हाथ में पकडे हुए ब्रीफकेस को एक संशय से निहारने लगती थी. फिर जब उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया, तो वह चुपचाप ब्रीफकेस को हाथ में लटकाए हुए अपने हॉस्टल में आ गई. हॉस्टल भी उसका कॉलेज की चारदीवारी से लगा हुआ था. केवल उसको आने के लिए बीच की सडक ही पार करनी थी. सो उसको अपने निवास-स्थल तक आने में मुश्किल से पांच मिनट ही लगे होंगे.

       हॉस्टल में, अपने कमरे में पहुँचते ही, वह किसी कटे  हुए वृक्ष के समान अपने पलंग पर गिर पडी. दर्द के कारण उसका सिर जैसे फटा जा रहा था. इसी कारण वह कक्षा से भी जल्दी ही निकल आई थी. धूप में चलने के कारण गर्मी से भी उसका बदन दुखने लगा था. राम कुमार वर्मा के द्वारा दिए ब्रीफकेस को उसने वहीं मेज पर पटक दिया था. पुस्तकें भी उसने एक ओर पलंग पर ही एक ओर फेंक दी थीं और चुपच्क्स्हाप सारी बातों से बेखबर वह बिना कपड़े बदले, बिस्तर पर लेट गई. वह चाह रही थी कि, एक अच्छी नींद नींद की झपकी ले ले, तो उसे कुछ राहत मिले.

       इस प्रकार रचना अभी कुछेक क्षण ही लेट सकी होगी कि, अचानक ही उसको हॉस्टल की लम्बी बरामदे जैसी गैलरी में, जल्दी-जल्दी चलनेवाले कदमों आहटें सुनाई देने लगीं- खट-खट करती हुई चमड़े के बूटों की आवाजें- ये सब सुनकर रचना के कान अचानक ही ठिठक गये. वह तुरंत ही करव्ट से पलटकर गौर से उस आवाज़ को सुनने लगी. एक साथ कई-एक लोगों के चलने की आवाजें थीं, जो उसके कमरे की ओर ही बढ़ती जा रही थीं. जैसे-जैसे, तेज चलते कदमों की आवाजें तीव्र सुनाई पड़ने लगीं, वैसे-वैसे रचना के कान भी सतर्क हो गये. फिर जब उससे नहीं रहा गया, तो वह तुरंत ही हड़बड़ाकर उठ बैठी. इस प्रकार कि, जैसे उसके दिल के अंदर कोई अचानक बादल के बीच, वर्षा में भीगी हुई बिजली कौंध गई हो. तुरंत ही उसका मस्तिष्क विभिन्न प्रकार की बुरी शंकाओं से भर गया. तब वह आहिस्ता-से उठकर अपने कमरे के द्वार तक आई और झांककर दरवाज़े की संधों के बीच, बाहर बरामदे में गैलरी की ओर देखने लगी. फिर उसने जब देखा तो उसका कोमल दिल अचानक ही भय से धड़क गया. दिल के अंदर उसके धक-सी होकर रह गई- उसके हॉस्टल की वार्डन लिल्लिम्मा जॉर्ज, एक पुलिस इंस्पेक्टर और उसके साथ आये हुए सिपाही साथियों के साथ उसके कमरे के नज़दीक आकर खड़े हो चुके थे. तब रचना ने घबराकर सारे हॉस्टल की ओर एक नज़र देखा- सारी लड़कियों के कमरों की तरफ एक दृष्टि डाली, तो उनके दरवाज़ों के ऊपर बंद लगे हुए तालों ने उसे मुंह चिढ़ा दिया. जैसे सब ही उसकी बे-बसी का मज़ाक उड़ा बना रहे थे. हॉस्टल में उसके अतिरिक्त अन्य कोई भी लड़की इस समय नहीं थी. पुलिस?, वार्डन?, अकेला हॉस्टल और हॉस्टल के अंदर केवल वह अकेली- तन्हा-सी- बेबस, लाचार? न जाने क्या होनेवाला था? क्या से क्या बात हो? कारण, चाहे कुछ भी रहा हो, पर मुसीबत का संकेत उसके द्वार पर आकर टिक चुका था. आनेवाले तूफ़ान से अनभिज्ञ रचना, अपना दिल मसोसकर, लाचार बनी, चुपचाप  फिर अपने पलंग की ओर बढ़ गई.

       लेकिन, वह अभी पलंग पर बैठ भी नहीं पाई थी कि, तभी किसी ने उसके कमरे का द्वार खटखटा दिया. रचनी ने भयभीत मुद्रा में कमरे का द्वार खोला, तो किसी पुलिस इंस्पेक्टर और साथ खड़े हुए पुलिस के सिपाहियों के साथ हॉस्टल की वार्डन लिल्लिम्मा जॉर्ज को देखकर तुरंत ही उसके पैरों से ज़मीन खिसक गई. रचना ने महसूस कियास कि, पुलिस इंस्पेक्टर और उसके साथ के सिपाहियों की नज़रें जैसे उसी की ओर संधिग्ध भाव से निहार रही हैं.

       तभी, सारी परिस्थिति और कमरे को एक नज़र देखने के पश्चात लिल्लिम्मा जॉर्ज ने रचना से अपनी रौबीली आवाज़ में कहा कि,

'रचना ! कम ऑन दिस साइड?'

'?'- रचना तब चुपचाप किसी भीगी बिल्ली के समान उसकी तरफ बढ़ गई. लिल्लिम्मा जॉर्ज जब तक उससे कुछ कहती, तब तक पुलिस इंस्पेक्टर ने उसकी मेज पर पडा हुआ ब्रीफकेस उठा लिया और उसको अपने नथुनों के पास लाकर, एक बार सूंघकर उसने रचना की ओर देखा. फिर बोला,

'मिस ! ये ब्रीफकेस आपका है?'

'जी नही.' रचना ने एक संक्षिप्त उत्तर दिया.

'तो फिर किसका है?'

इंस्पेक्टर ने दूसरा प्रश्न कर दिया तो रचना बोली,

'मिस्टर रामकुमार वर्मा का.'

'आपके पास कैसे आया?'

तब रचना ने तुरंत ही उसको सारी बात संक्षिप्त में बता दी. इस पर इंस्पेक्टर ने आगे रचना से पूछा,

'आप रामकुमार वर्मा को कैसे जानती हैं?'

'मैं, क्या सारी कक्षा की लड़कियां उसको जानती हैं. वह मेरी ही कक्षा का छात्र है.' रचना बोली.

'तब इंस्पेक्टर ने रचना को एक बार निहारा- गम्भीरता से सोचा, फिर वह उससे बोला,

'जानती हैं कि, इस ब्रीफकेस के अंदर क्या है?'

इस पर रचना कहा कि,

'रामकुमार वर्मा ने बताया था कि, इसके अंदर कुछ आवश्यक कागज़ात और पैसे हैं, जिन्हें उसकी दुकान का कोई भी आदमी आकर उससे ले लेगा.'

तब इंस्पेक्टर ने आगे पूछा कि,

'आपने इस ब्रीफकेस को खोलकर देखा है?'

'जी नहीं.'

'इसकी चाबी?'

'वह रामकुमार वर्मा के पास ही है, मेरे पास नहीं.'

'क्या आपने इसको खोलकर देखना भी चाहा था?'

पुलिस इंस्पेक्टर ने अगला प्रश्न किया तो रचना बोली,

'मैंने इसकी आवश्यकता नहीं समझी थी.'

'क्यों?'

'क्योंकि, ये मेरा नहीं है. रामकुमार वर्मा का है और वह इसे आकर ले जाएगा.' रचना ने कहा.

'यदि वह इसे लेने नहीं आया तो. . .?'

'तो मैं खुद ही इसको उसकी दुकान पर जाकर दे आऊँगी.' रचना ने इंस्पेक्टर से कहा तो, वह आगे उससे बोला कि,

'यदि उसने इस ब्रीफकेस को वापस लेने से इनकार कर दिया और कहा कि, ये उसका नहीं है, तब फिर आप क्या करेंगी?'

'?'- खामोशी.

-क्रमश: