दुःख में सुख से जीने की कला कि समीक्षा-- #दुःख में सुख से जीने की कला# शीर्षक से स्प्ष्ट है कि जीवन के सुख दुख एव सामाजिक परंपरा संस्कृति संस्कार को जीवंत रखते हुए जीवन कि चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करना एव सच्चाई का सामना ईमानदारी से करना ।#दुःख में सुख से जीने की कला# वास्तव मे व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों का संस्मरण होने के बावजूद बेहद सकारात्मक सार्थक संदेश देते हुए सम्पूर्ण मानव समाज के वर्तमान एव भविष्य को अपने अतित से दृष्टि दिशा एव दृष्टिकोण प्रदान करने में पूर्णतया सफल एव सक्षम है ।#दुःख में सुख से जीने की कला # मुख्य पात्र राकेश एव इंदु जिनके इर्द गिर्द घूमती घटनाएं एव विपरीत परिस्थितियों में दोनों ही मुख्य पात्रों के व्यवहारिक आचरण एव संवाद वर्तमान समय एव समाज को विशेषकर भारतीय समाज के रिश्तों की मर्यादा ,संस्कृति के पथप्रदर्शक के रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम एव सफल है-दुःख में सुख से जीने की कला#राकेश एक कुशाग्र मेहनती उच्च शिक्षित सोच समझ का नौजवान जिसने अपनी योग्यता के बलबूते देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान में अधिकारी पद पर नियुक्त होकर जबलपुर प्रतिस्थापित होता है ।राकेश की परवरिश पर दिल्ली एव आस पास के समाज संस्कृति का गहरा प्रभाव है विशेष कर मथुरा का जो भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि के साथ साथ धर्म संस्कृति कि चेतना जागृति के महत्वपूर्ण केन्द्र कि सांस्कृतिक सामाजिक पारिवारिक चेतना का शंखनाद है -# दुख में सुख से जीने की कला # महत्वपूर्ण प्रेरक कहानी के स्वरूप मेंभविष्य को अनेको सार्थक संदेश देने में सक्षम है - #दुःख में सुख से जीने की कला#महत्वपूर्ण शसक्त मर्यादित नारी के इन्दु जो मध्यमवर्गीय परिवार एव मथुरा से ही सम्बंधित है नायिका के रूप मे अपने व्यवहारिक आचरण से नैतिकता एव जीवन मूल्यों कि परिभाषक परिलक्षित होती प्रतिबिंबित है जिसके प्रतिबिंब से प्रकाशित है-#दुःख में सुख से जीने की कला#प्रमुख पुरुष पात्र राकेश एव इंदु का संयोग , विरह, वियोग कि वेदना भवनाओ संवेदनाओं सच समाज एव जीवन मे अनुभव किया जाता है यही शाश्वत सहकार है- #दुःख में सुख से जीने की कला# लेखक द्वारा बहुत सारगर्भित शैली एव भावों द्वारा व्यक्त किया गया है जो लेखक कि विशेषता एव विशिष्टता कि प्रसंगीता एव प्रमाणिकता है।वर्तमान समय मे जब दहेज प्रथा विकराल रूप धारण कर चुकी है बहुत से पिता अपने पुत्रियों के विवाह में जीवन का सब कुछ गंवा देते है ऐसे में पचास वर्ष पूर्व जब भारत मे शिक्षा का स्तर बहुत निम्न था ऐसे में राकेश एव उसके मित्रों द्वारा दहेज विरोध में एक शांत वैचारिक क्रांति का संदेश अपने आप मे कहानी का वह धारदार प्रभावी पहलू है जो चीख चीख कर वर्तमान समाज कि अन्तरात्मा को झकझोरने को विवश करते हुए उन्हें सोचने को विवश करता है प्रमाण है-#दुःख में सुख से जीने कि कला#स्मरण/कहानी गोबिंद बल्लभ पंत के हृदय रोग विभाग के करानेरी इंटेंसिव केयर यूनिट से प्रारम्भ होती है जहां राकेश कि बीमार पत्नी इंदु कि चिकित्सा चल रही है राकेश जीवन और मृत्यु को बहुत निकट से देखते हुए एव उसकी कडुवी सच्चाई की अनुभूति करते हुए अतित के पग पथ को निहारता है भविष्य के प्रति सशंकित होते हुए इंदु के रहने एव न रहने के मध्य इंदु के साथ देखे सपने एव उनके अंत कि वास्तविकता के द्वंद एव वैचारिक मंथन का प्रतिफल है कालजायी अभिव्यक्ति कहानी/ संस्मरण है #दुःख में सुख से जीने कि कला #।कार्डियेक मायोपैथी रोग से पीड़ित पत्नी इंदु वेदनाओं को दर किनार करती हुई अपने दृढ़ता साहस एव शक्ति से भयानक बीमारी से लड़ते हुए सनातन कि नारी शक्ति दुर्गा जैसी लोक कल्याण को नही छोड़ पाती है जीवन और मृत्यु के मध्य स्वंय संघर्ष करती गैर रोगी के लिए चिकित्सक के मना करने के बाद भी अपना बेड दे देती है इंदु का मृत्य और जीवन से लड़ते समय किया त्याग नारी की मूल शक्ति करुणा ,दया ,क्षमा के शिखर पर इंदु को स्थापित करती मार्मिक एव मर्मस्पर्शी बनाती है-#दुःख में सुख से जीने की कला#गोविन्द वल्लभ पंथ हॉस्पिटल में पत्नी इंदु जीवन जीवन की अभिलाषा में संघर्ष करती पति राकेश जीवन के अतीत में खो जाता है और अपने मस्तिष्क के समरण ग्रंथ के पन्नो को उलटते पलटते संसय, आशंका एव आशा के मध्य मद्धिम होती इंदु की जीवन रेखाओं कि कल्पना एव वास्तविकताओं के मध्य असमंजस कि मनःस्थिति के व्यथित भाव की ज्वलंत जीवंत प्रस्तुति है -#दुःख में सुख से जीने की कला#उन्नीस सौ चौरासी में राकेश कठिन प्रतिस्पर्धा प्रतियोगिता में सफलता के बाद प्रथम श्रेणी अधिकारी के रूप में देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान के जबलपुर कार्यालय में प्रतिस्थापित होना इंदु के घरवालों का विवाह का प्रस्ताव आना राकेश का इंदु को देखना विवाह से इनकार करना एव पुनः इंदु से ही विवाह होना ब्रजक्षेत्र कि सांस्कृतिक सामाजिक एव लोक परम्पराओ का बहुत सजीव एव सारगर्भित प्रस्तुति लेखक द्वारा किया गया है ऐसा प्रतीत होता है जैसे सारा वृतांत प्रत्यक्ष प्रतिबिंबित हो रहा हो लेखक का प्रयास शसक्त एव सक्षम प्रायोगिक एव प्रभावी दोनों ही माप दण्डों पर खरा है-#दुःख में सुख से जीने की कला# स्मरण /कहानी कि आत्मा है गोबिंद वल्लभ पंत अस्पताल में इंदु और राकेश का संवाद कोमा से पड़ी इंदु जब अपने अधखुले नेत्रों से अपने जीवन संजीवनी राकेश को नम नेत्रों से निकट खड़ा निहारती है और जीवन मृत्यु के मध्य संघर्षों कि व्यथा को दर किनार कर राकेश से अंतर्मन कि पीड़ा कराह को अपने साहस शक्ति से आक्षादित कर धीमे स्वर शब्द से कहती है-#अभी क्यों इतनी रोनी सूरत बना ली है अभी नहीं जाने वाली# जबाब में राकेश अपने संशय शंकाओं का बादल को इंदु कि जीवन अभिलाषा के विश्वास से ढकते हुए कहता है-#अरे ये तो तुम्हारे होश में आने की खुशी के आंसू है#इंदु का कहना कि# अब शादी से पहले कि भोली इंदु नही हूँ मैं#पुनः राकेश का मुस्कुराते हुए कहना #मैं भी अब तेज तर्रार अधिकारी नही रहा सारा अहंकार पिघला दिया तुम्हारे प्यार ने#पुनः इंदु का जबाब# क्यो इतना झूठ बोलते हो मैं तो बस तुम्हे अस्पताल एव दवाईओ का ज्ञान ही दे पाई हूँ अपनी बीमारी से ?प्यार तो तुमने किया है।राकेश और इंदु के मध्य का संवाद वर्तमान परिपेक्ष में प्रेम,प्यार काया के आकर्षण एव दैहिक सुख का स्रोत मात्र का साधन है के वर्तमान सामाजिक आचरण पर प्रहार करते हुए प्रेम एव पारिवारिक सम्बन्थों कि गहराई का एहसास कराता है प्यार, प्रेम को उच्छृंखलता एव सतही संतुष्टि से इतर आत्मा कि अनुभूतियों एव उसकी वेदना संवेदना को परिभाषित करते हुए प्रासंगिक प्रामाणिकता प्रदान करते हुए वर्तमान समाज पर जहाँ छोटी छोटी बातों पर पारिवारिक विखंडन कि नींव पड़ जाती है का दिग्दर्शक बन सनातन के सत्यार्थ सम्बन्थों कि चेतना को जागृत करता है- #दुःख में सुख से जीने की कला#बाबा रामनाथ वैद्य का पत्र विवाह निश्चित होना दहेज रहित विवाह का संकल्प वैवाहिक कार्यक्रम का शुभारंभ परिवार विरोध के वावजूद राकेश का इंदु को अंगूठी पहनाना एव मित्र मंडली द्वारा विवाह कराने वाले पण्डित से नोक झोंक एव वैवाहिक प्रथाएं परम्पराए रोचकता साथ साथ सामाजिक परम्पराओ से अवगत कराते है जो संस्मरण/कहानी का शसक्त पहलू तो है ही मार्मिक एव धार्मिक मान्यताओं एव आस्थाओं का जीवंत दर्पण है जो महत्वपूर्ण होने के साथ साथ वर्तमान को सोचने समझने के लिए विवश करता विषय है।पलंग पूजन बृज क्षेत्र के विवाहोत्सव कि विशेष परंपरा एव वैवाहिक परम्पराओ से वैवाहिक संबंधों एव उसके महत्व को धार्मिक एव तार्किक कसौटी परखती एव सामाजिक स्तर की स्वीकार्यता का सच है -#दुःख में सुख से जीने की कला#नकली कुंडली का सच इंदु द्वारा पति राकेश को बताना राकेश एव इंदु के मध्य वार्तालाप चुलबुली हँसमुख भोली इंदु एव सैद्धांतिक,वैचारिक गंभ्भीर राकेश के मन मे उठते गुबार , क्रोध एव सत्य स्वीकारोक्ति निश्चित रूप से सामाजिक सम्बन्थों कि परिपक्वता बचनबद्धता के प्रति समर्पण का साक्ष्य एव शिक्षा देने में सफल है ।साथ ही साथ स्प्ष्ट संदेश देने में कामयाब है कि धैर्य एव विनम्रता सामाजिक जीवन एव सम्बन्थों का सार है।इंदु का ससुराल अपने पति राकेश के घर आना वहाँ कि परम्पराओ एव रीति रिवाजों का हिस्सा बनना वैवाहिक समारोह में सम्मिलित इष्ट मित्र रिश्ते नातो का सम्मिलित होना उनका स्वागत आदि स्मरण /कहानी का सुख दाम्पत्य जीवन के भरतीय परंपरा के शुभ शुभारम्भ का सजीव वर्णन कहानी /स्मरण कि विशिष्टता को अतित एव वर्तमान को संदर्भित करता परम्पराओ को धरोहर के रूप में अक्षुण रखने तथा व्यवहारिक सतत प्रवाह के रूप मे प्रवाहित करने का पथप्रदर्शक है- #दुःख में सुख से जीने की कला#स्मरण/कहानी का सुखद पहलू है इंदु का पति राकेश एव सास के साथ जबलपुर जाना तो भारतीय समाज कि बेतूकी दबंग मानसिकता को दर्शाता सरदार द्वारा अवैध कब्जा कर दूसरे कि आरक्षित सीट पर जबरन बैठना और उग्रता उदंडता को आमंत्रित करना ।महाकौशल एक्सप्रेस कि यात्राएं और जबलपुर के पर्यटन स्थल एव धार्मिक स्थलों पर निर्बाध भ्रमण तत्कालीन समय काल में नवदम्पति के वैचारिक मिलन एव एक दूसरे के व्यक्तित्व का एक दूसरे में समायोजन समावेश कि सुभाषित संस्कृति कि सुंगध विखेरती है तो वर्तमान के हनीमून एव सिकुड़ती ,संक्षिप्त होते संस्कार ,रीति ,रिवाजों परम्पराओ का सच उजागर करता है वर्तमान समय के भागम भाग जीवन मे समय का ही मूल्यवान एव सर्वोपरि होना वर्तमान के सच का दर्पण है -दुःख में सुख से जीने की कला# वर्तमान में किसी के पास समय नहीं है समय है तो संसाधन एव धन नही है यदि सब कुछ उपलब्ध है तो वैचारिक प्रगति बाधक है इन सभी तथ्यों के मध्य जीवन कि मौलिकता भौतिकता सत्यार्थ है -#दुःख में सुख से जीने कि कला#दहेज एव स्कूटर प्रकरण सम्बन्थों एव सिंद्धान्तों के मध्य यथार्थवादी दृष्टिकोण एव नैतिकता को बल प्रदान करता है ।माँ नर्वदा के प्रति आस्था विश्वास अमरकंटक आदि का वर्णन एव भ्रमण इंद्रा से इंदु का जन्म एव राकेश कि प्रेयसी पर्याय एव छाया की सच्चाई प्रेम एव सम्बन्थों कि पराकाष्ठा पवित्रता ऊंचाई भवनाओ के उफान, प्रावाह कि निरंतरता के वास्तविकता को निरूपित करता एक अद्भुत कालखण्ड कि जीवन गति है-#दुःख में सुख से जीने की कला#राकेश एव इंदु का दाम्पत्य जीवन आदर्श समाज की स्थापना एव स्थाईत्व को आमंत्रित करता हैनववर्ष समारोह इंदु का मायके जाना एव खुशियों के आगमन की सौगात पति राकेश को देना नारी के रूप मे पत्नी के स्वरूप में इंदु का आदर्श प्रस्तुत करता है जो पति एव उसकी खुशियों के लिए ही समर्पित है और जिसके लिए पति ही परमेश्वर है एव उसका अस्तित्व आराध्य सुख का चरण इसी मोड़ पर स्मरण/कहानी खट्टे मीठे अतित के साथ समाप्त होकर दुःखों एव वेदना कि अनुभूतियों का आगमन जीवन मे उतार चढ़ाव खुशी गम का सच कहता है -#दुःख में सुख से जीने की कला# इंदु का गंभीर हृदय रोग से पीड़ित होना ईमानदार अधिकारी कि सीमित आय में पत्नी कि चिकित्सा हेतु आवश्यकताओं को सीमित करना मित्रों द्वारा सच जाने बेगैर आरोपित कर राकेश के दुःख के समय आहत करना संसय एव द्विविधाग्रस्त सामाजिक व्यवस्था एव सम्बन्धो को स्प्ष्ट संकेत देता है -#दुःख में सुख से जीने की कला#सीमित आय एव असाधारण समय मे विचार एव व्यवहार में संतुलन एव धैर्य बनाए रखने के लिए प्रेरणा देता देती बहुत प्रभावी कृति है #दुःख में सुख से जीने की कला#गर्भावस्था में गंभ्भीर हृदय रोग से पीड़ित इंदु का प्रसव के लिए जिद्द करना और चिकित्सको द्वारा गर्भपात कि सलाह को दृढ़तापूर्वक अस्वीकार करना जन्म और जीवन की ईश्वरीय एव वैज्ञानिक अवधारणा के मध्य संभावना एव प्रयास के विश्वास को जन्म देता है पति राकेश द्वारा इंदु कि चिकित्सा हेतु सभी उपलब्ध सुविधाओं एव अवसरों का उपयोग करना आजमाना जीवन मे क्लेश एव वेदना से मुक्ति का जीवन युद्ध करना अंत मे इंदु का ऑपरेशन द्वारा कन्या को जन्म देना दुःखों के सतत श्रृंखला में जीवन के संघर्षों के परिणाम स्वरूप जन्मे घावों वेदनाओं का समदर्शी बन जाता है- #दुःख में सुख से जीने की कला# नवजात पुत्री को भी समस्या पैर का ऑपरेशन इंदु के अरमानों के आकाश कि लाड़िली का जीवन आम जीवन मे व्यक्ति कि विवशता एव क्षमताओं में सीमित कर ईश्वरीय अवधारणा के ब्रह्मांडीय सत्य का बोध कराती मानस पटल पर छा जाती जाने वाली अमर कृति है -#दुःख में सुख से जीने की कला#निष्कर्ष-- लेखक द्वारा पूरी ईमानदारी एव सच्चाई के साथ पल प्रहर दिवस माह वर्षों के जीवन प्रवाह उफान धारा सुख दुःख के भंवर में उठती गिरती लहरों एव उसमें कराहती सिसकती जीवन की सच्चाई को बड़े बेवाक शैली में लेखक द्वारा अपने संस्मरण/कहानी # दुःख में सुख से जीने की कला के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है निश्चय ही लेखक का सारगर्भित सार्थक सकारात्मक प्रयास सफल हुआ है ।निर्विवाद रूप से अतीत के पथ पग प्रमाण से लेखक द्वारा वर्तमान एव भविष्य को मर्यादित, नैतिक ,सांस्कृतिक, सांस्कारिक ,सामाजिक ,धार्मिक मार्मिक एव मर्मस्पर्शी संदेश देने की सफल सक्षम कोशिश की है जो अनुकरणीय अविस्मरणीय एव प्रशसनीय है एव साधुवाद की पात्र है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।